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खौफ के साये में पढ़ते हैं बच्चे, 30 हजार से ज्यादा सरकारी स्कूल भवनों पर आसमानी आफत का खतरा! - झारखंड न्यूज

झारखंड के सरकारी स्कूलों में खौफ के साये में बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं. राज्य के भविष्य कहे जाने वाले बच्चे मेघगर्जन के बीच कक्षा में सहम कर पढ़ाई करने को मजबूर हैं. ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट से जानिए, पूरी कहानी.

More than thirty thousand government schools do not have lightning conductors in Jharkhand
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Published : Aug 19, 2023, 4:43 PM IST

Updated : Aug 19, 2023, 5:12 PM IST

देखें स्पेशल रिपोर्ट

रांचीः झारखंड में वज्रपात यानी आसमानी बिजली के गिरने से होनेवाली क्षति को राजकीय आपदा की सूची में शामिल किया गया है. हर साल राज्य के अलग अलग इलाकों में बड़ी संख्या में आसमानी कहर बरपता है और इसमें कई अकाल काल के गाल में समा जाते हैं. साथ ही जान माल की हानि भी काफी होती है.

इसे भी पढ़ें- झारखंड में साल-दर साल बढ़ी वज्रपात में मरने वालों की संख्या, स्कूलों में तड़ित चालक न लगने से जान जोखिम में डालने को मजबूर बच्चे

प्रदेश में वज्रपात से मौत का आंकड़ा काफी भयावह है. वर्ष 2015-16 से वर्ष 2021-22 यानी आठ साल में वज्रपात की वजह से 2091 लोग असमय काल के गाल में समा गये. लेकिन सरकारी लापरवाही का आलम ऐसा है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में बच्चों को इससे सुरक्षित रखने के लिए तड़ित चालक नहीं लगाये गये हैं. राज्य के 30 हजार से अधिक स्कूल में तड़ित चालक नहीं और जहां था भी वहां से चोरी हो गया.

ऐसे में उन स्कूली बच्चों पर वज्रपात का खतरा बना रहता है जो मानसून के दिनों में पढ़ाई करने के लिए स्कूल जाते हैं. पिछले वर्ष भी तत्कालीन शिक्षा मंत्री स्वर्गीय जगरनाथ महतो के क्षेत्र में एक स्कूल पर वज्रपात हुआ था. गनीमत यह रही कि तब किसी की जान इस घटना में नहीं गयी. उस समय तत्कालीन शिक्षामंत्री जगरनाथ महतो ने कहा था कि जल्द ही राज्य के सभी सरकारी विद्यालयों के भवन के ऊपर तड़ित चालक लगाए जायेंगे.

अब जगरनाथ महतो के स्थान पर शिक्षा विभाग उनकी पत्नी के अंदर में मुख्यमंत्री की देखरेख में है. इसके बावजूद राज्य में 30 हजार से अधिक सरकारी विद्यालयों के भवन ऐसे हैं, जहां आकाशीय बिजली से बचाव की कोई व्यवस्था नहीं है. वज्रपात और ठनका के समय शिक्षिका से लेकर बच्चे तक सभी सहमे रहते हैं. आलम ऐसा है कि कई सरकारी विद्यालयों के हेडमास्टर मौसम साफ होने तक बच्चों को कक्षा से बाहर नहीं निकलने का हुक्म भी सुना देते हैं.

रांची के नामकुम स्थित परमवीर अल्बर्ट एक्का राजकीय मध्य विद्यालय में वज्रपात से बचाव की व्यवस्था देखने के लिए ईटीवी भारत की टीम पहुंची. टीम ने पाया कि मेघगर्जन और वज्रपात के येलो अलर्ट के बीच बच्चे डर के साये में पढ़ाई कर रहे हैं. यही हाल उन सभी 30 हजार से अधिक सरकारी विद्यालय भवनों की है जहां तड़ित चालक नहीं लगा है. नामकुम के अल्बर्ट एक्का राजकीय मध्य विद्यालय के प्रिंसिपल शेखर कुमार झा कहते हैं कि लगभग 10 साल पहले विद्यालय में तड़ित चालक लगाया गया था. लेकिन 10 दिन के अंदर ही तड़ित चालक की चोरी हो गयी. उस समय प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

प्रिंसिपल शेखर कुमार झा कहते हैं कि वज्रपात का डर तो बना रहता है. उन्होंने कहा कि एक दशक पहले नामकुम के ही रामपुर गांव में वज्रपात की बड़ी घटना हुई थी. उन्होंने कहा कि जब आसमान में बादल छा जाते हैं और मेघ गरजने लगता है तो वह बच्चों को कक्षा से बाहर नहीं निकलने देते.

इसे भी पढ़ें- खूंटी में आकाशीय बिजली का कहरः ढाई साल में 60 लोगों ने गंवाई जान

क्या कहते हैं आंकड़ेः एक नजर डालें राज्य में वज्रपात से हुई मौत के आंकड़ों पर, जो काफी भयावह हैं. झारखंड में 2014-15 से पिछले वर्ष तक 2091 लोगों की मौत वज्रपात से हुई है. अगर जिलावार आंकड़ा देखें तो हर साल बड़ी संख्या में लोग ठनका की वजह से असमय जान गंवा चके हैं. 2014-15 में 144 लोगों की मौत वज्रपात से हुई है तो 2015-16 में 210 मौत, 2016-17 में 265 मौत, 2017-18 में 256 मौत, 2018-19 में 261 मौत, 2019-20 में 283 मौत, 2020-21 में 322 मौत और 2021-22 में 350 लोगों की मौत वज्रपात से हुई है. इसके अलावा 2022 से 2023 में अभी तक भी अलग अलग जिलों से कई मौत की सूचनाएं आती रहती हैं. जिसे आपदा प्रबंधन विभाग एकत्रित करके बाद में जारी करेगा.

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वज्रपात से मौत के आंकड़े

पिछले वर्ष बोकारो में विद्यालय पर वज्रपात की घटना के बाद राज्य के आपदा प्रबंधन मंत्री बन्ना गुप्ता ने घटना के बाद शीघ्र ही उच्चस्तरीय बैठक बुलाने की बात कही थी. लेकिन एक साल बाद भी 30 हजार से अधिक सरकारी विद्यालय भवनों पर वज्रपात से बचाव के लिए तड़ित चालक नहीं लगाया गया. इसको लेकर जब ईटीवी भारत ने सवाल उठाया तो इस बार मंत्री ने कहा कि स्कूल भवनों ओर तड़ित लगाना आपदा प्रबंधन विभाग का काम नहीं है. वह इसके लिए शिक्षा सचिव से बात करेंगे और जरूरत पड़ी तो मुख्यमंत्री से भी बात करेंगे.

राज्य के दो तिहाई से अधिक सरकारी विद्यालय भवनों पर तड़ित चालक नहींः झारखंड में 40 हजार से अधिक सरकारी स्कूल भवन हैं. जिसमें से दो तिहाई से अधिक विद्यालय के भवन पर तड़ित चालक नहीं लगा हुआ है. मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2008-09 और 2011-12 में राज्य के सरकारी स्कूल भवन पर तड़ित चालक लगाने का काम शुरू हुआ था. उस समय महालेखाकार द्वारा प्रति तड़ित चालक पर हो रहे खर्च को लेकर आपत्ति किये जाने के बाद इस अभियान को बीच मे ही बंद कर दिया गया. उसके बाद से जिन स्कूल भवनों में तड़ित चालक नहीं लगा, वह ऐसे ही रह गए और जहां लगा भी उन विद्यालयों में सुरक्षा प्रहरी नहीं होने से तड़ित चालक चोरी हो गए. स्कूल प्रबंधन ने स्थानीय थाना में तड़ित चालक चोरी होने की प्राथमिकी लिखा अपने कर्तव्यों का पूरा हुआ मान लिया. इसके बाद तब से वज्रपात के खतरे के बीच नौनिहाल शिक्षा प्राप्त करने को मजबूर हैं.

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सरकारी स्कूल भवनों में तड़ित चालक का हाल

झारखंड में ज्यादा होता है वज्रपातः मौसम पूर्वानुमान वैज्ञानिक प्रीति गुणवानी कहती हैं कि झारखंड पठारी क्षेत्र में फैला हुआ है. इसके अंदर बड़ी मात्रा में लौह अयस्क और अन्य खनिज भरे हुए हैं. ये आसमान से गिरने वाली बिजली को आकर्षित करते हैं. पठारी क्षेत्र होने की वजह से भी पूरा झारखंड आसमानी बिजली (वज्रपात) गिरने के प्रभाव वाले क्षेत्र में आता है. इस वजह से प्रदेश में सबसे ज्यादा वज्रपात होता है.

इसे भी पढ़ें- लोहरदगा में आसमान से बरसती है 'मौत', हर साल चली जाती है कई लोगों की जान

देखें स्पेशल रिपोर्ट

रांचीः झारखंड में वज्रपात यानी आसमानी बिजली के गिरने से होनेवाली क्षति को राजकीय आपदा की सूची में शामिल किया गया है. हर साल राज्य के अलग अलग इलाकों में बड़ी संख्या में आसमानी कहर बरपता है और इसमें कई अकाल काल के गाल में समा जाते हैं. साथ ही जान माल की हानि भी काफी होती है.

इसे भी पढ़ें- झारखंड में साल-दर साल बढ़ी वज्रपात में मरने वालों की संख्या, स्कूलों में तड़ित चालक न लगने से जान जोखिम में डालने को मजबूर बच्चे

प्रदेश में वज्रपात से मौत का आंकड़ा काफी भयावह है. वर्ष 2015-16 से वर्ष 2021-22 यानी आठ साल में वज्रपात की वजह से 2091 लोग असमय काल के गाल में समा गये. लेकिन सरकारी लापरवाही का आलम ऐसा है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में बच्चों को इससे सुरक्षित रखने के लिए तड़ित चालक नहीं लगाये गये हैं. राज्य के 30 हजार से अधिक स्कूल में तड़ित चालक नहीं और जहां था भी वहां से चोरी हो गया.

ऐसे में उन स्कूली बच्चों पर वज्रपात का खतरा बना रहता है जो मानसून के दिनों में पढ़ाई करने के लिए स्कूल जाते हैं. पिछले वर्ष भी तत्कालीन शिक्षा मंत्री स्वर्गीय जगरनाथ महतो के क्षेत्र में एक स्कूल पर वज्रपात हुआ था. गनीमत यह रही कि तब किसी की जान इस घटना में नहीं गयी. उस समय तत्कालीन शिक्षामंत्री जगरनाथ महतो ने कहा था कि जल्द ही राज्य के सभी सरकारी विद्यालयों के भवन के ऊपर तड़ित चालक लगाए जायेंगे.

अब जगरनाथ महतो के स्थान पर शिक्षा विभाग उनकी पत्नी के अंदर में मुख्यमंत्री की देखरेख में है. इसके बावजूद राज्य में 30 हजार से अधिक सरकारी विद्यालयों के भवन ऐसे हैं, जहां आकाशीय बिजली से बचाव की कोई व्यवस्था नहीं है. वज्रपात और ठनका के समय शिक्षिका से लेकर बच्चे तक सभी सहमे रहते हैं. आलम ऐसा है कि कई सरकारी विद्यालयों के हेडमास्टर मौसम साफ होने तक बच्चों को कक्षा से बाहर नहीं निकलने का हुक्म भी सुना देते हैं.

रांची के नामकुम स्थित परमवीर अल्बर्ट एक्का राजकीय मध्य विद्यालय में वज्रपात से बचाव की व्यवस्था देखने के लिए ईटीवी भारत की टीम पहुंची. टीम ने पाया कि मेघगर्जन और वज्रपात के येलो अलर्ट के बीच बच्चे डर के साये में पढ़ाई कर रहे हैं. यही हाल उन सभी 30 हजार से अधिक सरकारी विद्यालय भवनों की है जहां तड़ित चालक नहीं लगा है. नामकुम के अल्बर्ट एक्का राजकीय मध्य विद्यालय के प्रिंसिपल शेखर कुमार झा कहते हैं कि लगभग 10 साल पहले विद्यालय में तड़ित चालक लगाया गया था. लेकिन 10 दिन के अंदर ही तड़ित चालक की चोरी हो गयी. उस समय प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

प्रिंसिपल शेखर कुमार झा कहते हैं कि वज्रपात का डर तो बना रहता है. उन्होंने कहा कि एक दशक पहले नामकुम के ही रामपुर गांव में वज्रपात की बड़ी घटना हुई थी. उन्होंने कहा कि जब आसमान में बादल छा जाते हैं और मेघ गरजने लगता है तो वह बच्चों को कक्षा से बाहर नहीं निकलने देते.

इसे भी पढ़ें- खूंटी में आकाशीय बिजली का कहरः ढाई साल में 60 लोगों ने गंवाई जान

क्या कहते हैं आंकड़ेः एक नजर डालें राज्य में वज्रपात से हुई मौत के आंकड़ों पर, जो काफी भयावह हैं. झारखंड में 2014-15 से पिछले वर्ष तक 2091 लोगों की मौत वज्रपात से हुई है. अगर जिलावार आंकड़ा देखें तो हर साल बड़ी संख्या में लोग ठनका की वजह से असमय जान गंवा चके हैं. 2014-15 में 144 लोगों की मौत वज्रपात से हुई है तो 2015-16 में 210 मौत, 2016-17 में 265 मौत, 2017-18 में 256 मौत, 2018-19 में 261 मौत, 2019-20 में 283 मौत, 2020-21 में 322 मौत और 2021-22 में 350 लोगों की मौत वज्रपात से हुई है. इसके अलावा 2022 से 2023 में अभी तक भी अलग अलग जिलों से कई मौत की सूचनाएं आती रहती हैं. जिसे आपदा प्रबंधन विभाग एकत्रित करके बाद में जारी करेगा.

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वज्रपात से मौत के आंकड़े

पिछले वर्ष बोकारो में विद्यालय पर वज्रपात की घटना के बाद राज्य के आपदा प्रबंधन मंत्री बन्ना गुप्ता ने घटना के बाद शीघ्र ही उच्चस्तरीय बैठक बुलाने की बात कही थी. लेकिन एक साल बाद भी 30 हजार से अधिक सरकारी विद्यालय भवनों पर वज्रपात से बचाव के लिए तड़ित चालक नहीं लगाया गया. इसको लेकर जब ईटीवी भारत ने सवाल उठाया तो इस बार मंत्री ने कहा कि स्कूल भवनों ओर तड़ित लगाना आपदा प्रबंधन विभाग का काम नहीं है. वह इसके लिए शिक्षा सचिव से बात करेंगे और जरूरत पड़ी तो मुख्यमंत्री से भी बात करेंगे.

राज्य के दो तिहाई से अधिक सरकारी विद्यालय भवनों पर तड़ित चालक नहींः झारखंड में 40 हजार से अधिक सरकारी स्कूल भवन हैं. जिसमें से दो तिहाई से अधिक विद्यालय के भवन पर तड़ित चालक नहीं लगा हुआ है. मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2008-09 और 2011-12 में राज्य के सरकारी स्कूल भवन पर तड़ित चालक लगाने का काम शुरू हुआ था. उस समय महालेखाकार द्वारा प्रति तड़ित चालक पर हो रहे खर्च को लेकर आपत्ति किये जाने के बाद इस अभियान को बीच मे ही बंद कर दिया गया. उसके बाद से जिन स्कूल भवनों में तड़ित चालक नहीं लगा, वह ऐसे ही रह गए और जहां लगा भी उन विद्यालयों में सुरक्षा प्रहरी नहीं होने से तड़ित चालक चोरी हो गए. स्कूल प्रबंधन ने स्थानीय थाना में तड़ित चालक चोरी होने की प्राथमिकी लिखा अपने कर्तव्यों का पूरा हुआ मान लिया. इसके बाद तब से वज्रपात के खतरे के बीच नौनिहाल शिक्षा प्राप्त करने को मजबूर हैं.

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सरकारी स्कूल भवनों में तड़ित चालक का हाल

झारखंड में ज्यादा होता है वज्रपातः मौसम पूर्वानुमान वैज्ञानिक प्रीति गुणवानी कहती हैं कि झारखंड पठारी क्षेत्र में फैला हुआ है. इसके अंदर बड़ी मात्रा में लौह अयस्क और अन्य खनिज भरे हुए हैं. ये आसमान से गिरने वाली बिजली को आकर्षित करते हैं. पठारी क्षेत्र होने की वजह से भी पूरा झारखंड आसमानी बिजली (वज्रपात) गिरने के प्रभाव वाले क्षेत्र में आता है. इस वजह से प्रदेश में सबसे ज्यादा वज्रपात होता है.

इसे भी पढ़ें- लोहरदगा में आसमान से बरसती है 'मौत', हर साल चली जाती है कई लोगों की जान

Last Updated : Aug 19, 2023, 5:12 PM IST
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