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झारखंड के लोगों को नहीं मिल पा रहा है सूचना का अधिकार, 15 हजार से ज्यादा एप्लीकेशन हैं पेंडिंग, पढ़ें रिपोर्ट - झारखंड महिला आयोग अध्यक्ष

झारखंड के लोगों को सूचना के अधिकार कानून का लाभ नहीं मिल पा रहा है. आयोग के पास 15 हजार से अधिक आवेदन पेंडिंग में है. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी नहीं सुलझ पा रहा मामला.

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Published : Apr 4, 2023, 8:39 PM IST

रांची: झारखंड के लोगों को आरटीआई के तहत सूचनाएं नहीं मिल रही हैं. मई 2020 के बाद से तो लोगों ने सूचना आयोग में आना भी छोड़ दिया है. झारखंड महिला आयोग के फ्लोर पर तो सन्नाटा पसरा रहता है. लोकायुक्त दफ्तर का मुख्य गेट शायद ही कभी खुलता हो. बाल आयोग और मानवाधिकार आयोग जैसी करीब 12 संस्थाओं में अध्यक्ष और सदस्यों के पद रिक्त हैं. राज्य की इतनी महत्वपूर्ण संस्थाएं मृत अवस्था में हैं. इसे अंग्रेजी में DEFUNCT कहते हैं. सबसे ज्यादा खामियाजा आरटीआई के तहत सूचना मांगने वालों को उठाना पड़ रहा है. किसी सरकारी मामले में सूचना पदाधिकारी से जानकारी मांगने के लिए 30 दिन इंतजार करना पड़ता है. वहां से जवाब नहीं आने या संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर प्रथम अपीलीय प्राधिकार में जाना पड़ता है. दोनों मोर्चों पर मायूसी के बाद सूचना आयोग में द्वितीय अपील की जाती है. लेकिन सूचना आयोग जाने से कोई फायदा नहीं.

ये भी पढ़ें- CIC को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का कैसे पालन करेगी झारखंड सरकार? क्या है राज्य सूचना आयोग की स्थिति, पढ़ें रिपोर्ट

झारखंड के सूचना आयोग का हाल: दुर्भाग्य है कि इस आयोग को खुद अच्छी सूचना की जरूरत है. एक मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा पांच सूचना आयुक्तों के पद मई 2020 से खाली पड़े हैं. आयोग के पास वित्तीय वर्ष 2022-23 के अंत तक कुल 8,427 नये आवेदन लंबित पड़े हुए हैं. पेंडिंग अपील आवेदन की संख्या 7657 हो गई है. इसके अलावा 71 कंप्लेंट एप्लीकेशन ऐसे हैं जो एक-दो सुनवाई के बाद लटके पड़े हैं. वहीं 184 नये कंप्लेंट आवेदन विभागीय अलमारी में धूल फांक रहे हैं. अब न तारीख मिलती है औ न न्याय.

झारखंड में 24 जुलाई 2006 को राज्य सूचना आयोग का गठन हुआ था. इस आलोक में रिटायर्ड जस्टिस हरिशंकर प्रसाद 30 जुलाई 2006 को पहले मुख्य सूचना आयुक्त बने थे. वह 30 जून 2008 तक इस पद पर थे. उनके साथ शपथ लेने वाले छह सूचना आयुक्त की सेवा जुलाई 2011 तक चली. इसके बाद रिटायर्ड जस्टिस दिलीप कुमार सिन्हा 5 अगस्त 2011 को मुख्य सूचना आयुक्त बने. उन्होंने 31 जुलाई 2013 तक सेवा दी. उनके बाद पहली बार एक रिटार्यड आईएएस आदित्य स्वरूप 24 अप्रैल 2015 को मुख्य सूचना आयुक्त बने. इनका कार्यकाल खत्म होने के बाद हिमांशु शेखर चौधरी एक मात्र सूचना आयुक्त थे जो सीआईसी का प्रभार संभालते हुए मई 2020 तक पद पर रहे. उनका कार्यकाल खत्म होने के बाद से मामला ठंडा पड़ा हुआ है. जनवरी 2020 में सीआईसी और आईसी के लिए विज्ञापन भी निकाला गया लेकिन राज्य में नेता प्रतिपक्ष के न होने से चयन रूका हुआ है.

हाई कोर्ट तक पहुंच चुका है मामला: राज्य की तमाम प्रमुख संस्थानों के अध्यक्ष और सदस्यों के पद रिक्त होने से व्यवस्था पर पड़ रहे प्रभाव का मामला झारखंड हाई कोर्ट तक पहुंच चुका है. एडवोकेट एसोसिएशन के महासचिव नवीन कुमार हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं. हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सरकार को जल्द से जल्द रिक्त पदों को भरने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 19 अप्रैल को होनी है.

क्यों बंद हैं महत्वपूर्ण संस्थाओं के दरवाजे: इसकी एकमात्र वजह है " राजनीति ". दरअसल सभी बड़े संस्थाओं में शीर्ष पदों का चुनाव बिना नेता प्रतिपक्ष की उपस्थिति के नहीं हो सकता है. झारखंड में नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी हैं. लेकिन विधानसभा के भीतर उन्हें यह अधिकार नहीं मिला है. उनके खिलाफ संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत दल-बदल के उल्लंघन का आरोप है. इस मामले में स्पीकर के ट्रिब्यूनल में अगस्त, 2022 में ही सुनवाई पूरी हो चुकी है. भाजपा की दलील है कि जब चुनाव आयोग ने बाबूलाल मरांडी को मान्यता दे दी है फिर उसे उलझाने का क्या मतलब है. भाजपा की दलील है कि बाबूलाल मरांडी ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा विधायक की हैसियत से वोट डाला था. फिर सदस्यता पर सवाल क्यों.

हालांकि मुख्य सत्ताधारी दल झामुमो का कहना है कि भाजपा की वजह से सभी प्रमुख संस्थाओं के पद रिक्त हैं. भाजपा के लोगों को किसी दूसरे को विधायक दल का नेता चुनना चाहिए. क्योंकि बाबूलाल मरांडी तो जेवीएम से आए हैं. भाजपा चाहती तो यह संवैधानिक संकट दूर हो जाता. जाहिर है कि इस राजनीति का खामियाजा आम जनता भुगत रही है. उसे इंसाफ नहीं मिल पा रहा है. सूचना आयोग समेत सभी प्रमुख संस्थाएं मृत पड़ी हैं. वक्त के साथ अब उम्मीद भी धूमिल होती जा रही है. उसकी असर संबंधित दफ्तरों पर दिखने भी लगा है.

रांची: झारखंड के लोगों को आरटीआई के तहत सूचनाएं नहीं मिल रही हैं. मई 2020 के बाद से तो लोगों ने सूचना आयोग में आना भी छोड़ दिया है. झारखंड महिला आयोग के फ्लोर पर तो सन्नाटा पसरा रहता है. लोकायुक्त दफ्तर का मुख्य गेट शायद ही कभी खुलता हो. बाल आयोग और मानवाधिकार आयोग जैसी करीब 12 संस्थाओं में अध्यक्ष और सदस्यों के पद रिक्त हैं. राज्य की इतनी महत्वपूर्ण संस्थाएं मृत अवस्था में हैं. इसे अंग्रेजी में DEFUNCT कहते हैं. सबसे ज्यादा खामियाजा आरटीआई के तहत सूचना मांगने वालों को उठाना पड़ रहा है. किसी सरकारी मामले में सूचना पदाधिकारी से जानकारी मांगने के लिए 30 दिन इंतजार करना पड़ता है. वहां से जवाब नहीं आने या संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर प्रथम अपीलीय प्राधिकार में जाना पड़ता है. दोनों मोर्चों पर मायूसी के बाद सूचना आयोग में द्वितीय अपील की जाती है. लेकिन सूचना आयोग जाने से कोई फायदा नहीं.

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झारखंड के सूचना आयोग का हाल: दुर्भाग्य है कि इस आयोग को खुद अच्छी सूचना की जरूरत है. एक मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा पांच सूचना आयुक्तों के पद मई 2020 से खाली पड़े हैं. आयोग के पास वित्तीय वर्ष 2022-23 के अंत तक कुल 8,427 नये आवेदन लंबित पड़े हुए हैं. पेंडिंग अपील आवेदन की संख्या 7657 हो गई है. इसके अलावा 71 कंप्लेंट एप्लीकेशन ऐसे हैं जो एक-दो सुनवाई के बाद लटके पड़े हैं. वहीं 184 नये कंप्लेंट आवेदन विभागीय अलमारी में धूल फांक रहे हैं. अब न तारीख मिलती है औ न न्याय.

झारखंड में 24 जुलाई 2006 को राज्य सूचना आयोग का गठन हुआ था. इस आलोक में रिटायर्ड जस्टिस हरिशंकर प्रसाद 30 जुलाई 2006 को पहले मुख्य सूचना आयुक्त बने थे. वह 30 जून 2008 तक इस पद पर थे. उनके साथ शपथ लेने वाले छह सूचना आयुक्त की सेवा जुलाई 2011 तक चली. इसके बाद रिटायर्ड जस्टिस दिलीप कुमार सिन्हा 5 अगस्त 2011 को मुख्य सूचना आयुक्त बने. उन्होंने 31 जुलाई 2013 तक सेवा दी. उनके बाद पहली बार एक रिटार्यड आईएएस आदित्य स्वरूप 24 अप्रैल 2015 को मुख्य सूचना आयुक्त बने. इनका कार्यकाल खत्म होने के बाद हिमांशु शेखर चौधरी एक मात्र सूचना आयुक्त थे जो सीआईसी का प्रभार संभालते हुए मई 2020 तक पद पर रहे. उनका कार्यकाल खत्म होने के बाद से मामला ठंडा पड़ा हुआ है. जनवरी 2020 में सीआईसी और आईसी के लिए विज्ञापन भी निकाला गया लेकिन राज्य में नेता प्रतिपक्ष के न होने से चयन रूका हुआ है.

हाई कोर्ट तक पहुंच चुका है मामला: राज्य की तमाम प्रमुख संस्थानों के अध्यक्ष और सदस्यों के पद रिक्त होने से व्यवस्था पर पड़ रहे प्रभाव का मामला झारखंड हाई कोर्ट तक पहुंच चुका है. एडवोकेट एसोसिएशन के महासचिव नवीन कुमार हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं. हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सरकार को जल्द से जल्द रिक्त पदों को भरने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 19 अप्रैल को होनी है.

क्यों बंद हैं महत्वपूर्ण संस्थाओं के दरवाजे: इसकी एकमात्र वजह है " राजनीति ". दरअसल सभी बड़े संस्थाओं में शीर्ष पदों का चुनाव बिना नेता प्रतिपक्ष की उपस्थिति के नहीं हो सकता है. झारखंड में नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी हैं. लेकिन विधानसभा के भीतर उन्हें यह अधिकार नहीं मिला है. उनके खिलाफ संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत दल-बदल के उल्लंघन का आरोप है. इस मामले में स्पीकर के ट्रिब्यूनल में अगस्त, 2022 में ही सुनवाई पूरी हो चुकी है. भाजपा की दलील है कि जब चुनाव आयोग ने बाबूलाल मरांडी को मान्यता दे दी है फिर उसे उलझाने का क्या मतलब है. भाजपा की दलील है कि बाबूलाल मरांडी ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा विधायक की हैसियत से वोट डाला था. फिर सदस्यता पर सवाल क्यों.

हालांकि मुख्य सत्ताधारी दल झामुमो का कहना है कि भाजपा की वजह से सभी प्रमुख संस्थाओं के पद रिक्त हैं. भाजपा के लोगों को किसी दूसरे को विधायक दल का नेता चुनना चाहिए. क्योंकि बाबूलाल मरांडी तो जेवीएम से आए हैं. भाजपा चाहती तो यह संवैधानिक संकट दूर हो जाता. जाहिर है कि इस राजनीति का खामियाजा आम जनता भुगत रही है. उसे इंसाफ नहीं मिल पा रहा है. सूचना आयोग समेत सभी प्रमुख संस्थाएं मृत पड़ी हैं. वक्त के साथ अब उम्मीद भी धूमिल होती जा रही है. उसकी असर संबंधित दफ्तरों पर दिखने भी लगा है.

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