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झारखंड में मनरेगा का हाल बेहाल: तेजी से घटी है काम करने वालों की संख्या, पलायन कर रहे हैं मजदूर

झारखंड में मनरेगा का हाल बेहाल है. यहां से मजदूरों का पलायन हो रहा है. इसके तहत काम करने वाले मजदूरों की संख्या में लगातार कमी हो रही है.

MNREGA workers exodus from Jharkhand
MNREGA workers exodus from Jharkhand
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Published : Jul 28, 2022, 10:10 PM IST

रांची: कोविड के दौर में मनरेगा की योजनाओं ने झारखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेपटरी होने से बचाने में अहम भूमिका निभाई थी. झारखंड में रिकॉर्ड मानव दिवस का सृजन हुआ था. बिरसा हरित ग्राम योजना और नवंबर 2021 से फरवरी 2022 तक मजदूरों का भुगतान नहीं हो पाया था. बाद में केंद्र सरकार की तरफ से 330 करोड़ की राशि जारी करने पर बकाये का भुगतान भी हो गया. फिर भी झारखंड से मजदूरों का पलायन हो रहा है. मनरेगा की योजनाओं से जुड़कर काम करने वालों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से कमी आई है. सबसे खास बात है कि इस साल औसत से बेहद कम बारिश हुई है. पूरा राज्य सुखाड़ की चपेट में है. अगर आने वाले कुछ दिनों में अच्छी बारिश नहीं होती है कि धान की खेती नहीं हो पाएगी. धान की खेती के लिए बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने गांव लौटे थे. लेकिन अब फिर दूसरे प्रदेश जाने को विवश हो गये हैं.

मजदूरी बढ़ने के बाद भी रूझान कम: झारखंड में करीब 44 लाख एक्टिव वर्कर्स हैं. इसमें सबसे ज्यादा 26 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति से जुड़े वर्कर्स हैं. साल 2020-21 में मनरेगा मजदूरों को प्रति दिन 198 रु. मेहनताना मिलता था. यह राशि केंद्र सरकार देती थी. राज्य सरकार ने अपनी तरफ से 27 रु. जोड़कर पारिश्रमिक की राशि प्रति कार्यदिवस 225 रु. कर दी. अब यह राशि बढ़कर 237 रु हो गई है. इसके बावजूद मनरेगा के प्रति लोगों का रूझान कम होता जा रहा है. दरअसल, उन्हें दूसरे राज्यों में प्रति दिन अच्छी खासी मजदूरी मिल जाती है.

पिछले साल की तुलना में मानव दिवस में कमी: वित्तीय वर्ष 2021-22 के शुरूआती तीन महीनों में जितने मानव दिवस का लक्ष्य रखा गया था, उसकी तुलना में करीब सौ फीसदी काम हुआ. अप्रैल 2021 में 1,64,32,196 मानदिवस के सृजन का लक्ष्य था. जबकि 1,64,31,418 मानव दिवस का सृजन हुआ. मई 2021 में 3,11,29,948 की तुलना में 3,11,39,096 मानव दिवस का सृजन हुआ. जून 2021 में 4,29,03,153 की तुलना में 4,29,02,182 मानव दिवस सृजित हुआ.

दूसरी तरफ वर्तमान वित्तीय वर्ष यानी 2022-23 के अप्रैल माह में 1,50,75,000 की तुलना में सिर्फ 63,09,770 यानी लक्ष्य की तुलना में आधे से भी कम मानव दिवस सृजित हुआ. मई 2022 में 2,97,00,000 की तुलना में सिर्फ 1,02,47,596 मानव दिवस सृजित हुआ. जून 2022 में स्थिति और भी खराब हो गई. जून माह में 4,41,00,000 मानव दिवस सृजन का लक्ष्य था लेकिन 1,62,30,818 मानव दिवस सृजित हो पाया. यह आंकड़ा बताता है कि इस साल कैसे मनरेगा की योजनाओं के प्रति मजदूरों की बेरूखी बढ़ी है.

हेमंत सरकार ने कोविड की पहली लहर के दौरान मनरेगा से ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने के तीन योजनाओं की शुरूआत की थी. बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर-पितांबर जल समृद्धि योजना और वीर शहीद पोटो हो खेल विकास योजना की बदौलत ग्रामीण स्तर पर रिकॉर्ड मानव दिस का सृजन हुआ था.

रांची: कोविड के दौर में मनरेगा की योजनाओं ने झारखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेपटरी होने से बचाने में अहम भूमिका निभाई थी. झारखंड में रिकॉर्ड मानव दिवस का सृजन हुआ था. बिरसा हरित ग्राम योजना और नवंबर 2021 से फरवरी 2022 तक मजदूरों का भुगतान नहीं हो पाया था. बाद में केंद्र सरकार की तरफ से 330 करोड़ की राशि जारी करने पर बकाये का भुगतान भी हो गया. फिर भी झारखंड से मजदूरों का पलायन हो रहा है. मनरेगा की योजनाओं से जुड़कर काम करने वालों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से कमी आई है. सबसे खास बात है कि इस साल औसत से बेहद कम बारिश हुई है. पूरा राज्य सुखाड़ की चपेट में है. अगर आने वाले कुछ दिनों में अच्छी बारिश नहीं होती है कि धान की खेती नहीं हो पाएगी. धान की खेती के लिए बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने गांव लौटे थे. लेकिन अब फिर दूसरे प्रदेश जाने को विवश हो गये हैं.

मजदूरी बढ़ने के बाद भी रूझान कम: झारखंड में करीब 44 लाख एक्टिव वर्कर्स हैं. इसमें सबसे ज्यादा 26 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति से जुड़े वर्कर्स हैं. साल 2020-21 में मनरेगा मजदूरों को प्रति दिन 198 रु. मेहनताना मिलता था. यह राशि केंद्र सरकार देती थी. राज्य सरकार ने अपनी तरफ से 27 रु. जोड़कर पारिश्रमिक की राशि प्रति कार्यदिवस 225 रु. कर दी. अब यह राशि बढ़कर 237 रु हो गई है. इसके बावजूद मनरेगा के प्रति लोगों का रूझान कम होता जा रहा है. दरअसल, उन्हें दूसरे राज्यों में प्रति दिन अच्छी खासी मजदूरी मिल जाती है.

पिछले साल की तुलना में मानव दिवस में कमी: वित्तीय वर्ष 2021-22 के शुरूआती तीन महीनों में जितने मानव दिवस का लक्ष्य रखा गया था, उसकी तुलना में करीब सौ फीसदी काम हुआ. अप्रैल 2021 में 1,64,32,196 मानदिवस के सृजन का लक्ष्य था. जबकि 1,64,31,418 मानव दिवस का सृजन हुआ. मई 2021 में 3,11,29,948 की तुलना में 3,11,39,096 मानव दिवस का सृजन हुआ. जून 2021 में 4,29,03,153 की तुलना में 4,29,02,182 मानव दिवस सृजित हुआ.

दूसरी तरफ वर्तमान वित्तीय वर्ष यानी 2022-23 के अप्रैल माह में 1,50,75,000 की तुलना में सिर्फ 63,09,770 यानी लक्ष्य की तुलना में आधे से भी कम मानव दिवस सृजित हुआ. मई 2022 में 2,97,00,000 की तुलना में सिर्फ 1,02,47,596 मानव दिवस सृजित हुआ. जून 2022 में स्थिति और भी खराब हो गई. जून माह में 4,41,00,000 मानव दिवस सृजन का लक्ष्य था लेकिन 1,62,30,818 मानव दिवस सृजित हो पाया. यह आंकड़ा बताता है कि इस साल कैसे मनरेगा की योजनाओं के प्रति मजदूरों की बेरूखी बढ़ी है.

हेमंत सरकार ने कोविड की पहली लहर के दौरान मनरेगा से ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने के तीन योजनाओं की शुरूआत की थी. बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर-पितांबर जल समृद्धि योजना और वीर शहीद पोटो हो खेल विकास योजना की बदौलत ग्रामीण स्तर पर रिकॉर्ड मानव दिस का सृजन हुआ था.

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