रांचीः मानसून सत्र के तीसरे दिन प्रश्नकाल के दौरान झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम ने लघु खनिज खनन पट्टे को लेकर अपनी ही सरकार को घेरा. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 11 जुलाई 1997 के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि अनुसूचित राज्यों को रेगुलेशन बनाते हुए खनिज पर मालिकाना हक जनजातियों और मूलवासियों को देना था. उस पर अब तक राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है. नियमों को दरकिनार कर अवैध तरीके से खनन पट्टे दिए जा रहे हैं.
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जवाब में प्रभारी मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि झारखंड लघु खनिज समनुदान नियमावली 2004 के संशोधित नियम 13 के तहत लघु खनिज के खनन पट्टे की स्वीकृति के लिए अनुसूचित जनजाति सहयोग समिति को खनन पट्टा प्राप्त करने के लिए प्राथमिकता दिए जाने का प्रावधान है. साथ ही नियम 11 (क) के तहत अनुसूचित क्षेत्र में खनन पट्टे की स्वीकृति के पहले ग्रामसभा की स्वीकृति लेना भी अनिवार्य है.
इस पर पूरक प्रश्न के तहत लोबिन हेंब्रम ने कहा कि जब राज्य में पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरिया) नियमावली बनी ही नहीं है तो फिर किस आधार पर ग्रामसभा की अनुमति ली जा रही है. इस पर हस्तक्षेप करते हुए संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि लोबिन हेंब्रम भी अच्छी तरह जानते हैं कि रैयतों की जमीन लेने पर ग्रामसभा की स्वीकृति ली जाती है. उन्होंने कहा कि जिन खनिज खनन पट्टों की बात कर रहे हैं, वह पूर्व से चले आ रहे हैं, लोबिन हेंब्रम के क्षेत्र में भी ऐसा हुआ है.
बात बढ़ने पर प्रभारी मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि पेसा नियमावली को लेकर गजट में प्रकाशित हुआ है. उसके लिए पब्लिक की सलाह और आपत्तियां मांगी गई है. उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री खुद गंभीर हैं. उनके सुझाव के अनुरूप रैयतों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए पेसा नियमावली बन रही है. लेकिन लोबिन हेंब्रम इस बात पर अड़े रहे कि जब नियम ही नहीं बना है तो ग्रामसभा कैसे काम कर रही है. उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि सरकार को दिखाना चाहिए कि कहां कहां के लघु खनिज खनन पट्टों के लिए ग्रामसभा की अनुमति ली गई है. जवाब में प्रभारी मंत्री ने कहा कि वह इससे जुड़ी सूची माननीय को उपलब्ध करा देंगे.