रांची: लॉकडाउन पार्ट टू के दौरान दूसरे राज्यों में फंसे झारखंड के प्रवासी मजदूर सिर्फ इस कोशिश में थे कि उन्हें भोजन और राशन मिल जाए. लेकिन लॉकडाउन 3 लागू होते ही इनकी सोच बदल गई है.
प्रवासी श्रमिकों की एक ही ख्वाहिश है कि उन्हें किसी भी सूरत में अपने प्रदेश और अपने गांव पहुंचना है. ईटीवी भारत की टीम को यह जानकारी मिली कंट्रोल रूम से जहां प्रवासी श्रमिक फोन कर अपनी तकलीफ साझा कर रहे हैं. जिसका जायजा और वहां पर मौजूद लोगों से खास बातचीत हमारे वरिष्ठ सहयोगी राजेश सिंह ने की.
27 मार्च को किया गया था कॉल सेंटर स्थापित
श्रम एवं नियोजन विभाग के अधीन पीएचआईए फाउंडेशन की पहल पर 27 मार्च को एक कॉल सेंटर स्थापित किया गया था, ताकि दूसरे राज्य में फंसे लोगों तक मदद पहुंचाई जा सके. तब सरकार के पास ऐसा कोई डाटा नहीं था, जिसके आधार पर कहा जा सके कि झारखंड के लोग किन-किन राज्यों में और कितनी संख्या में फंसे हुए हैं.
एक दिन में 5,000 से ज्यादा कॉल
कॉल सेंटर को लीड कर रहे पीएचआईए फाउंडेशन के जॉनसन टोप्पो ने कहा कि 10 लोगों इसकी शुरुआत की थी. कॉल सेंटर का नंबर जारी होते ही पहले दिन करीब 15 सौ कॉल आए लेकिन दूसरे दिन 5,000 से ज्यादा कॉल आए जिसे संभालना मुश्किल हो गया.
दूसरे राज्यों में फंसे झारखंड के श्रमिकों की संख्या 15 से 20 लाख
प्रवासी श्रमिकों से अब संवाद स्थापित होने लगा था. लिहाजा उस वक्त विकास आयुक्त रहे सुखदेव सिंह की पहल पर 29 मार्च को कॉल सेंटर को विस्तार दिया गया और अलग-अलग विभागों से डेढ़ सौ लोगों को तैनात किया गया. अब यह कॉल सेंटर 24x7 चल रहा है. अभी तक 10 लाख से ज्यादा प्रवासी श्रमिक अपनी समस्याएं शेयर कर चुके हैं. जॉनसन ने एक अनुमान के मुताबिक बताया कि दूसरे राज्यों में फंसे झारखंड के श्रमिकों की संख्या 15 से 20 लाख तक हो सकती है.
181 पर डायल कर अपनी सूचना दे रहे श्रमिक
2 मई को jharkhandpravasi.in नाम से वेब लिंक जारी किया गया था. इसपर अब तक छह लाख से ज्यादा लोग रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं. इनमें सबसे ज्यादा संख्या महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना और तमिलनाडु में फंसे झारखंड के प्रवासी श्रमिकों की है. सभी हर हाल में घर लौटना चाहते हैं. रजिस्ट्रेशन के दौरान एक शर्त भी है कि झारखंड लौटने पर क्वॉरेंटाइन में रहना होगा. इसे सभी मानने को तैयार हैं. पीएचआईए फाउंडेशन के झारखंड हेड जॉनसन टोप्पो ने कहा कि झारखंड में फंसे दूसरे राज्यों के श्रमिक181 पर डायल कर अपनी सूचना दे रहे हैं.
झारखंड सरकार के पास श्रमिकों का रिकॉर्ड
अब तक झारखंड सरकार के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं था कि उसके कितने लोग दूसरे राज्यों में काम करने गए हुए हैं. इस कॉल सेंटर की वजह से अब प्रवासी श्रमिकों का एक डाटा भी तैयार हो रहा है. इस डाटा को अलग-अलग राज्यों के नोडल पदाधिकारियों के साथ शेयर किया जाता है ताकि वहां फंसे प्रवासी श्रमिकों को चिन्हित कर झारखंड लाने में सुविधा हो.
संक्रमित होने का मजदूरों को डर
फिलहाल प्रवासी श्रमिकों को वापस लाने की कवायद जोर शोर से चल रही है. ईटीवी भारत की टीम से भी प्रवासी श्रमिक संपर्क कर रहे हैं, खासकर मुंबई में फंसे श्रमिकों का कहना है कि जिस तरह से यह बीमारी फैल रही है. उससे उनके संक्रमित होने का डर है. लोग चाहते हैं कि अगर उन्हें पास मिल जाए तो वह सभी अपने-अपने स्तर से गाड़ी बुक कर घर लौटने को तैयार हैं. बातचीत के दौरान चतरा के कुछ श्रमिकों का यह भी कहना है कि इसकी जानकारी मंत्री सत्यानंद भोक्ता और चतरा जिला प्रशासन को भी दी गई है लेकिन उनकी घर वापसी को लेकर कोई ठोस जवाब नहीं मिल पा रहा है.