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झारखंड में मनरेगा ने बदली प्रवासी मजदूरों की जिंदगी, अब अनलॉक में फिर पलायन की बेबसी

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Published : Jan 3, 2021, 7:46 AM IST

मनरेगा यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के लिए सबसे बड़ा सहारा बनी. अब जैसे-जैसे स्थितियां सामान्य होती जा रही हैं, वैसे-वैसे मजदूरों का पलायन भी बढ़ने लगा है.

झारखंड में मनरेगा
झारखंड में मनरेगा

रांचीः लॉकडाउन के दौरान झारखंड में साढ़े सात लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों की घर वापसी हुई. इनमें से कुछ ट्रेनों के जरिए लौटे तो कुछ मजदूरों को विमान के जरिए रेस्क्यू किया गया. जिन्हें कोई साधन नहीं मिला, वे पैदल ही निकल पड़े. घर वापसी के बाद रोजगार सबसे बड़ी चुनौती बनी तो मनरेगा सबसे बड़ा सहारा बना. ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम और मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने ईटीवी भारत को बताया कि झारखंड में कोरोना काल के दौरान 10 लाख जॉब कार्ड बने और 26 लाख 31 हजार लोगों को मनरेगा के तहत काम मिला. इसके साथ ही पारिश्रमिक मद में 1,623 करोड़ से ज्यादा की राशि वितरित की गई.

देखें पूरी खबर

मजदूरों की प्रतिक्रिया

इन दावों की पड़ताल के लिए ईटीवी भारत छोटानागपुर, पलामू और संताल परगना के गांवों में पहुंची. हमने मजदूरों से पूछा कि उन्हें कितना काम मिला, क्या ये काम उनकी रोजी-रोटी के लिए काफी रहा और क्या अब वे काम की तलाश में शहर नहीं जाएंगे? लोहरदगा और हजारीबाग के मजदूरों ने बताया कि उन्हें पर्याप्त काम मिल रहा है जबकि पलामू के मजदूरों ने कहा कि शुरुआती महीनों में काम मिलने के बाद अब काम नहीं मिल रहा.

झारखंड में मनरेगा
कितने लोगों को काम मिला

ये भी पढ़ें-मजदूरों के मन में बसा मनरेगा, रिकॉर्ड मानव दिवस सृजितः मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी

क्या कहते हैं अधिकारी

हजारीबाग के उप विकास आयुक्त अभय कुमार सिन्हा ने बताया कि मजदूरों के लिए 100 की जगह 125 दिन रोजगार मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया. केंद्र सरकार प्रायोजित गरीब कल्याण रोजगार अभियान में देशभर के 116 जिलों के साथ झारखंड के 3 जिले गिरिडीह, गोड्डा और हजारीबाग को भी शामिल किया गया. मनरेगा के तहत सार्वजनिक काम के अलावा कुछ निजी काम भी शामिल किए गए. सामुदायिक स्वच्छता, ग्राम पंचायत भवन, सड़क निर्माण, फाइबर केबल, कुआं, तालाब जैसे काम कराए गए.

झारखंड में मनरेगा
कितने दिन काम मिला

आंकड़ों पर एक नजर

आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो 24 मार्च को लॉकडाउन के बाद अप्रैल महीने में 24 लाख 16 हजार 345 मानव दिवस सृजित हुए. अगले महीने मई में ये संख्या तीन गुना से ज्यादा 91 लाख 69 हजार 928 हो गए. इसके अगले महीने जून में ये आंकड़ा 1 करोड़ 40 लाख 31 हजार 763 तक पहुंच गया. जून में अनलॉक वन की शुरुआत हो गई और धीरे-धीरे प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया. इसकी तसदीक आंकड़े भी कर रहे हैं. जुलाई में 94 लाख 67 हजार 298 मानव मानव दिवस सृजित हुए जो अगस्त में घटकर 59 लाख 50 हजार 770 पर पहुंच गया. हालांकि सितंबर, अक्टूबर और नवंबर महीने में इसमें बढ़ोतरी देखी गई.

झारखंड में मनरेगा
कितना पारिश्रमिक बांटा गया

ये भी पढ़ें-ग्रामीण विकास विभाग का एक साल का रिपोर्ट कार्ड, मंत्री आलमगीर आलम से एक्सक्लूसिव बातचीत

पलायन की वजह

पलायन की बड़ी वजह मनरेगा मजदूरी की कम दर और कुशल श्रमिकों के लिए बेहतर रोजगार का न होना भी है. हालांकि मनरेगा आयुक्त इसके दूसरे फायदे गिना रहे हैं. सिद्धार्थ त्रिपाठी ने कहा कि संपत्ति के नजरिए से देखें तो मनरेगा से मजदूरों को बहुत फायदा होता है. एक तो उन्हें रोजगार मिलता है और दूसरी तरफ बिना लागत से कई तरह के शेड और बागवानी तैयार हो जाती है. कुशल श्रमिक बेहतर रोजगार की तलाश में बाहर जाते हैं इसमें कोई बुराई नहीं है.

झारखंड में मनरेगा
कितने जॉब कार्ड बनाए गए

विभागीय मंत्रियों का बयान

झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि झारखंड में मनरेगा की मजदूरी जरूर कम है लेकिन राज्य सरकार अपनी तरफ से 31 रुपए अतिरिक्त देने की तैयारी कर रही है. वहीं श्रम नियोजन एवं कौशल विकास मंत्री का दावा है कि वे मजदूरों पर विशेष नजर रखे हुए हैं. पलायन रोकने के लिए विशेष प्रशिक्षण के जरिए स्किल डेवलपमेंट की भी योजना है ताकि उन्हें राज्य के कल कारखानों में रोजगार मिल सके.

बहरहाल, कभी दो वक्त की रोटी के लिए मजदूरों को खाली हाथ-नंगे पांव गांव लौटना पड़ा था अब एक बार फिर यही भूख मजदूरों को शहर की ओर खींच रही है. दरअसल, प्रवासी मजदूरों में कई पढ़े लिखे लोग हैं जिन्हें मनमुताबिक काम मिला ही नहीं. हुनर होने के बावजूद काम नहीं मिला तो पलायन मजबूरी बन जाती है.

लॉकडाउन और अनलॉक

कोरोना महामारी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को पहली बार पूरे देश में तालाबंदी की घोषणा की. इसके बाद 31 मई तक चरणबद्ध तरीके से इसे लॉकडाउन 4 तक बढ़ाया गया. जब देश में कोरोना संक्रमण के हालात काबू में आने लगे तो केंद्र सरकार ने लॉकडाउन पांच यानी एक जून से लेकर 30 जून तक के लिए गाइडलाइंस जारी किए, जिसे अनलॉक 1 कहा गया. अब धीरे-धीरे सभी गतिविधियों को चरणबद्ध तरीके से खोलने के दिशानिर्देश जारी किए जा रहे हैं.

मनरेगा क्या है

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत 2 अक्टूबर 2005 को नरेगा की शुरुआत की. इस योजना का मकसद हर वित्तीय वर्ष में ग्रामीण परिवारों के व्यस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना है. 31 दिसंबर 2009 को इस योजना का नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा कर दिया गया. इसके तहत झारखंड में मजदूरों को प्रतिदिन 194 रुपए दिए जाते हैं. मनरेगा की मजदूरी सबसे ज्यादा 309 रुपए हरियाणा में है जबकि सबसे कम 190 रुपए छत्तीसगढ़ में है.

रांचीः लॉकडाउन के दौरान झारखंड में साढ़े सात लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों की घर वापसी हुई. इनमें से कुछ ट्रेनों के जरिए लौटे तो कुछ मजदूरों को विमान के जरिए रेस्क्यू किया गया. जिन्हें कोई साधन नहीं मिला, वे पैदल ही निकल पड़े. घर वापसी के बाद रोजगार सबसे बड़ी चुनौती बनी तो मनरेगा सबसे बड़ा सहारा बना. ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम और मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने ईटीवी भारत को बताया कि झारखंड में कोरोना काल के दौरान 10 लाख जॉब कार्ड बने और 26 लाख 31 हजार लोगों को मनरेगा के तहत काम मिला. इसके साथ ही पारिश्रमिक मद में 1,623 करोड़ से ज्यादा की राशि वितरित की गई.

देखें पूरी खबर

मजदूरों की प्रतिक्रिया

इन दावों की पड़ताल के लिए ईटीवी भारत छोटानागपुर, पलामू और संताल परगना के गांवों में पहुंची. हमने मजदूरों से पूछा कि उन्हें कितना काम मिला, क्या ये काम उनकी रोजी-रोटी के लिए काफी रहा और क्या अब वे काम की तलाश में शहर नहीं जाएंगे? लोहरदगा और हजारीबाग के मजदूरों ने बताया कि उन्हें पर्याप्त काम मिल रहा है जबकि पलामू के मजदूरों ने कहा कि शुरुआती महीनों में काम मिलने के बाद अब काम नहीं मिल रहा.

झारखंड में मनरेगा
कितने लोगों को काम मिला

ये भी पढ़ें-मजदूरों के मन में बसा मनरेगा, रिकॉर्ड मानव दिवस सृजितः मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी

क्या कहते हैं अधिकारी

हजारीबाग के उप विकास आयुक्त अभय कुमार सिन्हा ने बताया कि मजदूरों के लिए 100 की जगह 125 दिन रोजगार मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया. केंद्र सरकार प्रायोजित गरीब कल्याण रोजगार अभियान में देशभर के 116 जिलों के साथ झारखंड के 3 जिले गिरिडीह, गोड्डा और हजारीबाग को भी शामिल किया गया. मनरेगा के तहत सार्वजनिक काम के अलावा कुछ निजी काम भी शामिल किए गए. सामुदायिक स्वच्छता, ग्राम पंचायत भवन, सड़क निर्माण, फाइबर केबल, कुआं, तालाब जैसे काम कराए गए.

झारखंड में मनरेगा
कितने दिन काम मिला

आंकड़ों पर एक नजर

आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो 24 मार्च को लॉकडाउन के बाद अप्रैल महीने में 24 लाख 16 हजार 345 मानव दिवस सृजित हुए. अगले महीने मई में ये संख्या तीन गुना से ज्यादा 91 लाख 69 हजार 928 हो गए. इसके अगले महीने जून में ये आंकड़ा 1 करोड़ 40 लाख 31 हजार 763 तक पहुंच गया. जून में अनलॉक वन की शुरुआत हो गई और धीरे-धीरे प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया. इसकी तसदीक आंकड़े भी कर रहे हैं. जुलाई में 94 लाख 67 हजार 298 मानव मानव दिवस सृजित हुए जो अगस्त में घटकर 59 लाख 50 हजार 770 पर पहुंच गया. हालांकि सितंबर, अक्टूबर और नवंबर महीने में इसमें बढ़ोतरी देखी गई.

झारखंड में मनरेगा
कितना पारिश्रमिक बांटा गया

ये भी पढ़ें-ग्रामीण विकास विभाग का एक साल का रिपोर्ट कार्ड, मंत्री आलमगीर आलम से एक्सक्लूसिव बातचीत

पलायन की वजह

पलायन की बड़ी वजह मनरेगा मजदूरी की कम दर और कुशल श्रमिकों के लिए बेहतर रोजगार का न होना भी है. हालांकि मनरेगा आयुक्त इसके दूसरे फायदे गिना रहे हैं. सिद्धार्थ त्रिपाठी ने कहा कि संपत्ति के नजरिए से देखें तो मनरेगा से मजदूरों को बहुत फायदा होता है. एक तो उन्हें रोजगार मिलता है और दूसरी तरफ बिना लागत से कई तरह के शेड और बागवानी तैयार हो जाती है. कुशल श्रमिक बेहतर रोजगार की तलाश में बाहर जाते हैं इसमें कोई बुराई नहीं है.

झारखंड में मनरेगा
कितने जॉब कार्ड बनाए गए

विभागीय मंत्रियों का बयान

झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि झारखंड में मनरेगा की मजदूरी जरूर कम है लेकिन राज्य सरकार अपनी तरफ से 31 रुपए अतिरिक्त देने की तैयारी कर रही है. वहीं श्रम नियोजन एवं कौशल विकास मंत्री का दावा है कि वे मजदूरों पर विशेष नजर रखे हुए हैं. पलायन रोकने के लिए विशेष प्रशिक्षण के जरिए स्किल डेवलपमेंट की भी योजना है ताकि उन्हें राज्य के कल कारखानों में रोजगार मिल सके.

बहरहाल, कभी दो वक्त की रोटी के लिए मजदूरों को खाली हाथ-नंगे पांव गांव लौटना पड़ा था अब एक बार फिर यही भूख मजदूरों को शहर की ओर खींच रही है. दरअसल, प्रवासी मजदूरों में कई पढ़े लिखे लोग हैं जिन्हें मनमुताबिक काम मिला ही नहीं. हुनर होने के बावजूद काम नहीं मिला तो पलायन मजबूरी बन जाती है.

लॉकडाउन और अनलॉक

कोरोना महामारी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को पहली बार पूरे देश में तालाबंदी की घोषणा की. इसके बाद 31 मई तक चरणबद्ध तरीके से इसे लॉकडाउन 4 तक बढ़ाया गया. जब देश में कोरोना संक्रमण के हालात काबू में आने लगे तो केंद्र सरकार ने लॉकडाउन पांच यानी एक जून से लेकर 30 जून तक के लिए गाइडलाइंस जारी किए, जिसे अनलॉक 1 कहा गया. अब धीरे-धीरे सभी गतिविधियों को चरणबद्ध तरीके से खोलने के दिशानिर्देश जारी किए जा रहे हैं.

मनरेगा क्या है

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत 2 अक्टूबर 2005 को नरेगा की शुरुआत की. इस योजना का मकसद हर वित्तीय वर्ष में ग्रामीण परिवारों के व्यस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना है. 31 दिसंबर 2009 को इस योजना का नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा कर दिया गया. इसके तहत झारखंड में मजदूरों को प्रतिदिन 194 रुपए दिए जाते हैं. मनरेगा की मजदूरी सबसे ज्यादा 309 रुपए हरियाणा में है जबकि सबसे कम 190 रुपए छत्तीसगढ़ में है.

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