पलामू: पूरा देश बुधवार 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मना रहा है. इस दिन यानी 26 जनवरी 1950 को हमने जिस संविधान को अपनाया और जिसने हमें एक उत्कृष्ट शासन पद्धति दी, उसके निर्माण के पीछे कई ऐसी शख्सियत हैं जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं. इनमें से दो विभूतियां पलामू की भी थीं, जिनके सुझावों पर संविधान सभा ने ऐसे मूल्यों को अपनाया जिससे गरीब और आदिवासियों के अधिकारों को समाज में सुरक्षित किया. इन्हीं में से एक हैं पलामू के यदुवंश सहाय, आइये जानते हैं यदुबाबू के कृतित्व पर छोटी सी रिपोर्ट.
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भारत के संविधान के निर्माण के लिए 284 सदस्यों की संविधान सभा का गठन किया गया था. इसके निर्माण में दो वर्ष 11 माह और 18 दिन लगे. संविधान का निर्माण करने वाली इस संविधान सभा के सदस्यों के संविधान पर हस्ताक्षर हैं. इनमें पलामू की दो महान विभूतियां भी शामिल थीं, जिनके इस पर हस्ताक्षर हैं. वरिष्ठ पत्रकार सतीश सुमन बताते हैं कि संविधान सभा में पलामू के यदुवंश सहाय और अमिय कुमार घोष सदस्य थे. इनके संविधान पर हस्ताक्षर भी हैं. दोनों ने कई बिंदुओं पर संविधान सभा को महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे.
संविधान सभा में आदिम जनजाति पर चर्चाः सतीश सुमन बताते हैं कि यदुवंश सहाय को यदु बाबू भी कहा जाता है. इन्होंने संविधान सभा में आदिम जनजातियों को लेकर महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे. संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत आदिम जनजातियों के लिए बने पेसा कानून को लेकर बहस में भी शिरकत की थी और इसकी जोरदार वकालत की थी. उनके सुझाव और बहस बाद में झारखंड में PESA Act के आधार बने हैं. पत्रकार सतीश सुमन बताते हैं कि बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को कानून के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारी यदुवंश सहाय ने उपलब्ध कराई थी.
स्वतंत्रता संग्राम में चार बार जेल गए थे यदुवंश सहायः यदुवंश सहाय का जन्म बिहार के औरंगाबाद के अंबा प्रखंड के सरडीहा गांव में हुआ था. वकालत की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने औरंगाबाद में ही वकालत शुरू की थी. इस दौरान वो आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए. अंग्रेजों ने उन्हें आजादी की लड़ाई से दूर रखने के लिए डालटनगंज के जेल हाता में घर बना कर उन्हें भेज दिया था. इसके बाद डालटनगंज से ही उन्होंने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिलने आए थे डालटनगंजः यदुवंश सहाय उर्फ यदु बाबू 1930 ,1932, 1940 और 1942 में स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जेल गए थे. 1946 में जब अंतरिम सरकार के गठन के लिए चुनाव हुए तो यदुवंश सहाय डालटनगंज से विधायक चुने गए थे. इसी दौरान उन्हें संविधान सभा का सदस्य भी बनाया गया. यदुवंश सहाय के भतीजे आलोक वर्मा बताते हैं कि उनके चाचा शुरू से मेधावी छात्र रहे थे. स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए उन्होंने डालटनगंज को कर्मभूमि बनाया था. महात्मा गांधी से प्रेरित होकर उन्होंने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था. आजादी की लड़ाई के दौरान डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी उनके घर पर रूके थे. उस दौरान पलामू के शिवाजी मैदान में किसान सभा का आयोजन किया गया था.
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यदु बाबू से मिलने आए थे जेपी और रामवृक्ष बेनीपुरीः नोआखली में महात्मा गांधी के साथ पहुंचे थे यदुवंश सहायः 1946 में नोआखली (वर्तमान में बांग्लादेश) में जब भयंकर दंगे हुए. उस दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ यदुवंश सहाय नोआखली पहुंचे थे.पत्रकार सतीश सुमन बताते हैं कि नोआखली में माहौल को शांत करने के लिए यदुवंश सहाय ने महात्मा गांधी के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वहीं भतीजे आलोक वर्मा बताते हैं कि हजारीबाग जेल में यदुवंश सहाय की जयप्रकाश नारायण और रामवृक्ष बेनीपुरी से मुलाकात हुई थी.
संविधान लागू होने के एक माह बाद हो गया था निधनः देश में संविधान लागू होने के एक महीने बाद यदुवंश सहाय का निधन हो गया. 25 फरवरी 1950 को सतबरवा में किसान सभा में भाग लेने जा रहे यदुवंश सहाय सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए थे. इस सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से जख्मी यदुवंश सहाय का इलाज के क्रम में निधन हो गया था.