रांची: राजधानी रांची के गेतलसूद में 100 करोड़ की लागत से बना झारखंड मेगा फूड पार्क अब खंडहर में तब्दील हो चुका है. राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव और स्थानीय समस्या की वजह से बंद पड़ा मेगा फूड पार्क इन दिनों गार्ड के भरोसे है. मेगा फूड पार्क में 21 बड़े खाद्य प्रसंस्करण और 12 छोटे खाद प्रसंस्करण की यूनिट लगाने का प्लॉट तैयार है. एक 10 एमवीए क्षमता के 33/11 केवी का पावर सब स्टेशन भी बना हुआ है. एक पंप हाउस बना हुआ है. एक प्रशासनिक भवन, गार्ड रूम, वर्कर हॉस्टल, वेयर हाउस, कोल्ड स्टोरेज, दो फ्रीजर वैन और 10 ट्रक है. मेगा फूड पार्क की चौकीदारी कर रहे विश्वनाथ की मानें तो जब उद्घाटन हुआ तो लगा कि कुछ लोगों का भविष्य संवर जायेगा लेकिन प्लांट बंद होते ही सब कुछ बर्बाद हो गया.
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5 साल पहले हुआ था उद्घाटन, कुछ दिनों के बाद हो गया बंद
2009 में मेगा फूड पार्क का शिलान्यास हुआ था. शिलान्यास के सात वर्ष बाद 2016 में इसका उद्घाटन किया गया, लेकिन उदघाटन के कुछ दिनों बाद ही मेगा फूड पार्क बंद हो गया. बंद होने के बाद अब मशीनें सड़ रही हैं. कोल्ड स्टोरेज बर्बाद हो गया है. बर्बाद हो रहे मेगा फूड पार्क पर चैंबर ऑफ कामर्स ने नाराजगी जताते हुए सरकार से इसे फिर से शुरू करने की मांग की है. चैंबर ऑफ कॉमर्स के महासचिव राहुल मारु ने कहा कि इस मेगा फूड पार्क में निवेश करने वाले कई उद्योगपति चक्कर काट रहे हैं.
कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि मेगा फूड पार्क को लेकर सरकार गंभीर है. इस मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी बात हुई है. उन्होंने कहा कि अगर इसकी शुरुआत हो जाती है तो हजारों किसानों को इसका लाभ मिलेगा.
फूड पार्क से ये होते फायदे-
- पार्क से रांची सहित राज्य भर के हजारों किसानों को लाभ मिलता
- करीब 25 हजार लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता
- राज्य में किसानों से प्रति वर्ष करीब 16 हजार मीट्रिक टन सब्जियां और जंगलों में होने वाले फलों की खरीद किये जाने का लक्ष्य था
- मटर, टमाटर, गोभी, कटहल सहित अन्य कई प्रकार की सब्जियां का प्रसंस्करण कर पैकेजिंग की जाती
- प्रसंस्करण के लिए फल और सब्जियां हजारीबाग, पतरातू, डोमचांच और लोहरदगा से मंगवाने की योजना थी
- सुविधाओं के माध्यम से आउटलेट और प्रसंस्करण इकाइयों को खुदरा व्यापार से जोड़ने का लक्ष्य था
25 हजार किसानों को होता है लाभ
मेगा फूड पार्क का जब प्रस्ताव तैयार किया गया था तब कहा गया था कि 5,700 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से और 10 हजार लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसर मिलेंगे. साथ ही 25 हजार किसानों को इससे लाभ होगा. मेगा फूड पार्क द्वारा 646 करोड़ रुपये वार्षिक टर्नओवर का अनुमान लगाया गया था.
खंडहर में तब्दील हो गए दो वेयर हाउस
मेगा फूड पार्क के अंदर दो वेयर हाउस हैं, जो खंडहर में तब्दील हो चुके हैं. जहां-तहां प्लास्टर उखड़ रहा है. वर्कर हॉस्टल भी खंडहर हो चुका है. प्रशासनिक भवन वीरान पड़ा है. चार कोल्ड स्टोरेज भी हैं, जो जहां-तहां से टूट रहे हैं. इसमें एसी भी लगा हुआ है, लेकिन कभी चालू नहीं हुआ. एक फूड टेस्टिंग लैब भी बना हुआ है लेकिन इसमें उपकरण नहीं लगाये गये हैं. एक पंप हाउस और वाटर स्टोरेज का भी इस्तेमाल नहीं हो रहा है.
करोड़ों का पावर सब स्टेशन हुआ बेकार
मेगा फूड पार्क की यूनिट और आसपास के गांवों में बिजली आपूर्ति के लिए आठ करोड़ की लागत से पावर सब स्टेशन बनाया गया था. इससे पहले कि पावर सब स्टेशन बिजली वितरण निगम को हस्तांतरित होता और चालू होता, फूड पार्क ही बंद हो गया. पावर सब स्टेशन के ट्रांसफॉर्मर बर्बाद हो रहे हैं. सड़कों पर लगी स्ट्रीट लाइट भी बर्बाद हो रही है. किसानों की समस्या दूर कर उनकी आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए बड़ी-बड़ी बातें होती रही हैं लेकिन हकीकत यह है कि झारखंड में काफी जद्दोजहद के बाद शुरू हुआ मेगा फूड पार्क आज बर्बादी के कगार पर है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि इस मेगा फूड पार्क को शुरू कर यहां के प्रोडक्ट को ग्लोबल पहचान दे.