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यूनिफॉर्म सिविल कोड के खिलाफ आदिवासी संगठन, कहा- यूसीसी से हमारी संस्कृति हो जाएगी खत्म - आर्टिकल 13

माना जा रहा है कि केंद्र सरकार मानसून सत्र में समान नागरिक संहिता बिल पेश कर सकती है. इस मामले पर अब राजनीति गर्म होने लगी है. झारखंड में भी आदिवासी संगठनों का कहना है कि अगर ये कानून बनता है तो इससे आदिवासी हितो को नुकसान पहुंचेगा.

Meeting of tribal organizations
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Published : Jun 25, 2023, 9:20 PM IST

Updated : Jun 25, 2023, 9:33 PM IST

देवेंद्र नाथ चंपारिया और देव कुमार धान का बयान

रांची: वर्ष 2024 के चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लेकर राजनीति गर्म होती जा रही है. एक तरफ केंद्र में बैठी भारतीय जनता पार्टी इसका समर्थन कर रही है. तो वहीं विपक्ष में बैठे लोग इसका विरोध करते नजर आ रहे हैं. इसी को लेकर राजधानी रांची में भी आदिवासी संगठनों ने विरोध जताते हुए आदिवासी समाज के बुद्धिजीवियों ने रविवार को धूमकुरिया भवन में बैठक की.

ये भी पढ़ें: UNIFORM CIVIL CODE: इकबाल अंसारी और जगतगुरु परमहंस आचार्य ने समान नागरिक संहिता को लेकर ये मांग उठाई

रांची में हुए बैठक के बाद बिहार विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष देवेंद्र नाथ चंपिया ने बताया कि भारत के संविधान के अनुसार जो क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य है या फिर जहां पर पांचवी अनुसूची लागू है वहां पर कॉमन लोग एप्लीकेबल नहीं हैं. देवेंद्र नाथ चंपिया ने बताया कि जैसे इंडियन सकसेशन एक्ट, हिंदू मैरिज एक्ट सहित विभिन्न जगह पर आदिवासियों को शामिल नहीं किया गया क्योंकि इन कानूनों के लिए आदिवासियों को कॉमन मैन के रूप में देखा गया. उन्होंने बताया कि ब्रिटिश काल से ही आदिवासियों के संस्कृतियों का ख्याल रखा गया है. भारत का संविधान बनने के बाद आर्टिकल 13 में यह स्पष्ट वर्णन किया गया है कि आदिवासियों के रूढ़ी प्रथा को मान्यता दी जाएगी. वहीं आर्टिकल 368 में भी स्पष्ट किया गया है कि संसद द्वारा किया गया संशोधन भी आर्टिकल 13 को प्रभावित नहीं कर सकता. इसीलिए आज भी झारखंड के कई क्षेत्रों में आदिवासियों पर होने वाले मुकदमे सीपीसी (civil procedure court )के तहत नहीं बल्कि रूढ़ी प्रथा के तहत की जाती है.

बिहार विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष ने बताया कि अगर कोई भी कानून आदिवासी क्षेत्र में लागू की जाती है तो उसके लिए पहले गवर्नर को नोटिफिकेशन जारी करना पड़ता है. अधिसूचना जारी करने से पहले राज्यपाल को भी राज्य के ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी (TAC) से सुनिश्चित करना होता है कि लागू किया जाने वाला कानून आदिवासियों के लिए हितकारी है या नहीं. जब तक आदिवासियों के हित में काम करने वाली संस्था ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी (Tac) सुनिश्चित नहीं करती है तब तक कोई भी नया कानून शेड्यूल एरिया में लागू नहीं हो सकता.

देवेंद्र नाथ चंपिया ने बताया कि आदिवासियों के लिए जमीन उसकी मां होती है, लेकिन यदि यूसीसी को लागू कर दिया जाता है तो दूसरे समाज की तरह आदिवासियों के भी पैतृक संपत्ति बेटियों के बीच बांटी जाएगी जिससे आदिवासियों की संस्कृति को सीधा ठेस पहुंचता है. वहीं, यूनिफॉर्म सिविल कोड के खिलाफ की गई चिंतन बैठक में पूर्व विधायक देव कुमार धान ने बताया कि समान नागरिक संहिता लागू हो जाने से आदिवासियों की संस्कृति और पहचान समाप्त हो जाएगी.

इतना ही नहीं अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू कर दिया जाता है तो झारखंड में आदिवासियों के हित के लिए लाए गए कानून जैसे सीएनटी एसपीटी और पेशा को भी प्रभावित करेगा. बैठक में आए बुद्धिजीवियों ने कहा कि केंद्र सरकार सिर्फ राजनीति के तहत देश में यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड को लाना चाह रही है. यूनिफॉर्म सिविल कोड देश में लागू होता है तो देश के विभिन्न राज्यों में रहने वाले सीधे-साधे आदिवासियों की संस्कृति समाप्त हो जाएगी.

वहीं, इस बैठक में आए लॉ यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ प्रोफेसर अरुण कुमार उरांव बताते हैं कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की मंशा सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए है. उन्होंने बताया कि लॉ कमीशन ने भी स्पष्ट कर दिया है कि यूसीसी को लागू करना अंडेसिरेबल और अननेसरी (undesirbale and unnecessary) है, लेकिन इसके बावजूद भी सत्ता में बैठे लोग अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना चाहते हैं जो निश्चित रूप से आदिवासियों की संस्कृति और उनकी सभ्यता को कमजोर करेगा.

देवेंद्र नाथ चंपारिया और देव कुमार धान का बयान

रांची: वर्ष 2024 के चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लेकर राजनीति गर्म होती जा रही है. एक तरफ केंद्र में बैठी भारतीय जनता पार्टी इसका समर्थन कर रही है. तो वहीं विपक्ष में बैठे लोग इसका विरोध करते नजर आ रहे हैं. इसी को लेकर राजधानी रांची में भी आदिवासी संगठनों ने विरोध जताते हुए आदिवासी समाज के बुद्धिजीवियों ने रविवार को धूमकुरिया भवन में बैठक की.

ये भी पढ़ें: UNIFORM CIVIL CODE: इकबाल अंसारी और जगतगुरु परमहंस आचार्य ने समान नागरिक संहिता को लेकर ये मांग उठाई

रांची में हुए बैठक के बाद बिहार विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष देवेंद्र नाथ चंपिया ने बताया कि भारत के संविधान के अनुसार जो क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य है या फिर जहां पर पांचवी अनुसूची लागू है वहां पर कॉमन लोग एप्लीकेबल नहीं हैं. देवेंद्र नाथ चंपिया ने बताया कि जैसे इंडियन सकसेशन एक्ट, हिंदू मैरिज एक्ट सहित विभिन्न जगह पर आदिवासियों को शामिल नहीं किया गया क्योंकि इन कानूनों के लिए आदिवासियों को कॉमन मैन के रूप में देखा गया. उन्होंने बताया कि ब्रिटिश काल से ही आदिवासियों के संस्कृतियों का ख्याल रखा गया है. भारत का संविधान बनने के बाद आर्टिकल 13 में यह स्पष्ट वर्णन किया गया है कि आदिवासियों के रूढ़ी प्रथा को मान्यता दी जाएगी. वहीं आर्टिकल 368 में भी स्पष्ट किया गया है कि संसद द्वारा किया गया संशोधन भी आर्टिकल 13 को प्रभावित नहीं कर सकता. इसीलिए आज भी झारखंड के कई क्षेत्रों में आदिवासियों पर होने वाले मुकदमे सीपीसी (civil procedure court )के तहत नहीं बल्कि रूढ़ी प्रथा के तहत की जाती है.

बिहार विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष ने बताया कि अगर कोई भी कानून आदिवासी क्षेत्र में लागू की जाती है तो उसके लिए पहले गवर्नर को नोटिफिकेशन जारी करना पड़ता है. अधिसूचना जारी करने से पहले राज्यपाल को भी राज्य के ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी (TAC) से सुनिश्चित करना होता है कि लागू किया जाने वाला कानून आदिवासियों के लिए हितकारी है या नहीं. जब तक आदिवासियों के हित में काम करने वाली संस्था ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी (Tac) सुनिश्चित नहीं करती है तब तक कोई भी नया कानून शेड्यूल एरिया में लागू नहीं हो सकता.

देवेंद्र नाथ चंपिया ने बताया कि आदिवासियों के लिए जमीन उसकी मां होती है, लेकिन यदि यूसीसी को लागू कर दिया जाता है तो दूसरे समाज की तरह आदिवासियों के भी पैतृक संपत्ति बेटियों के बीच बांटी जाएगी जिससे आदिवासियों की संस्कृति को सीधा ठेस पहुंचता है. वहीं, यूनिफॉर्म सिविल कोड के खिलाफ की गई चिंतन बैठक में पूर्व विधायक देव कुमार धान ने बताया कि समान नागरिक संहिता लागू हो जाने से आदिवासियों की संस्कृति और पहचान समाप्त हो जाएगी.

इतना ही नहीं अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू कर दिया जाता है तो झारखंड में आदिवासियों के हित के लिए लाए गए कानून जैसे सीएनटी एसपीटी और पेशा को भी प्रभावित करेगा. बैठक में आए बुद्धिजीवियों ने कहा कि केंद्र सरकार सिर्फ राजनीति के तहत देश में यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड को लाना चाह रही है. यूनिफॉर्म सिविल कोड देश में लागू होता है तो देश के विभिन्न राज्यों में रहने वाले सीधे-साधे आदिवासियों की संस्कृति समाप्त हो जाएगी.

वहीं, इस बैठक में आए लॉ यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ प्रोफेसर अरुण कुमार उरांव बताते हैं कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की मंशा सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए है. उन्होंने बताया कि लॉ कमीशन ने भी स्पष्ट कर दिया है कि यूसीसी को लागू करना अंडेसिरेबल और अननेसरी (undesirbale and unnecessary) है, लेकिन इसके बावजूद भी सत्ता में बैठे लोग अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना चाहते हैं जो निश्चित रूप से आदिवासियों की संस्कृति और उनकी सभ्यता को कमजोर करेगा.

Last Updated : Jun 25, 2023, 9:33 PM IST
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