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सरना धर्म कोड पर फैसला ले सरकार, नहीं तो पांच राज्यों में होगा रेल-रोड चक्का जाम: सालखन मुर्मू

रांची के मोरहाबादी मैदान में सरना धर्म कोड की मांग को लेकर विशाल जन प्रदर्शन किया गया (Mass demonstration at Morhabadi Maidan). प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि भारत सरकार सरना धर्म कोड (Sarna Dharam Code) पर 20 नवंबर 2022 तक फैसला ले, नहीं तो 30 नवंबर 2022 को देश के पांच राज्यों में रेल-रोड चक्का जाम किया जाएगा.

Mass demonstration at Morhabadi Maidan
Mass demonstration at Morhabadi Maidan
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Published : Oct 18, 2022, 7:28 PM IST

रांची: आदिवासियों को सरना धर्म कोड (Sarna Dharam Code) की मान्यता देने की मांग को लेकर मोरहाबादी मैदान के बापू वाटिका के सामने पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने विशाल जन प्रदर्शन किया (Mass demonstration at Morhabadi Maidan). प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि प्राकृतिक पूजक आदिवासियों की धार्मिक मान्यता का मामला है. आदिवासी ना तो हिंदू हैं, ना ही मुसलमान हैं. इनका अपना धर्म है. भारत सरकार इस पर फैसला ले और जल्द से जल्द सरना धर्म कोड को लागू करें.

इसे भी पढ़ें: झारखंड में हेमंत से ज्यादा चहेते हैं मोदी, सर्वे में हुआ खुलासा

30 नवंबर को होगा रेल और रोड का चक्का जाम: पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि अगर 20 नवंबर 2022 तक भारत सरकार सरना धर्म कोड पर कोई निर्णय नहीं लेती है, तो 30 नवंबर 2022 को देश के पांच राज्य जिसमें झारखंड, बिहार, बंगाल, ओडिशा और असम में रेल-रोड चक्का जाम किया जाएगा. उन्होंने बताया कि धरना प्रदर्शन में करीब आठ हजार से दस हजार लोग शामिल हुए हैं. प्रदर्शन में शामिल लोगों को यह बताया गया कि किस प्रकार से भारत सरकार पर हमें दबाव बनाना है ताकि देश में आदिवासियों के लिए भी सरना धर्म कोड को जल्द से जल्द लागू किया जाए. उन्होंने आदिवासी समाज के जनता और आम लोगों से भी अपील की है कि उनके इस अभियान में ज्यादा से ज्यादा लोग शामिल हो ताकि आदिवासियों को उनका हक मिल सके.

देखें पूरी खबर

लंबे अरसे से लड़ाई लड़ रहे हैं आदिवासी समाज: जल, जंगल, जमीन और पहाड़ के अलावा आदिवासियों से झारखंड राज्य की पहचान होती है. लेकिन, आजादी के बाद से धीरे-धीरे आदिवासियों की जनसंख्या प्रतिशत कम होती चली गई. इस वजह से आदिवासियों के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. आजाद हिंदुस्तान में पहली बार 1951 में जनगणना हुई. तब झारखंड की कुल आबादी के 35.8% लोग आदिवासी थे. वहीं, 2011 की जनगणना के मुताबिक आदिवासी घटकर 26% रह गए. पिछले 70 सालों में आदिवासियों की संख्या में करीब 10 प्रतिशत की गिरावट आई है. अपनी पहचान को लेकर लड़ाई लड़ रहा आदिवासी समाज लंबे अरसे से सरना धर्म कोड की मांग कर रहा है. आदिवासियों की मांग पर हेमंत सरकार ने सदन से सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पास कर दिया है. तब से यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पाले में है और आदिवासी भारत सरकार से सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग कर रहे हैं.

रांची: आदिवासियों को सरना धर्म कोड (Sarna Dharam Code) की मान्यता देने की मांग को लेकर मोरहाबादी मैदान के बापू वाटिका के सामने पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने विशाल जन प्रदर्शन किया (Mass demonstration at Morhabadi Maidan). प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि प्राकृतिक पूजक आदिवासियों की धार्मिक मान्यता का मामला है. आदिवासी ना तो हिंदू हैं, ना ही मुसलमान हैं. इनका अपना धर्म है. भारत सरकार इस पर फैसला ले और जल्द से जल्द सरना धर्म कोड को लागू करें.

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30 नवंबर को होगा रेल और रोड का चक्का जाम: पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि अगर 20 नवंबर 2022 तक भारत सरकार सरना धर्म कोड पर कोई निर्णय नहीं लेती है, तो 30 नवंबर 2022 को देश के पांच राज्य जिसमें झारखंड, बिहार, बंगाल, ओडिशा और असम में रेल-रोड चक्का जाम किया जाएगा. उन्होंने बताया कि धरना प्रदर्शन में करीब आठ हजार से दस हजार लोग शामिल हुए हैं. प्रदर्शन में शामिल लोगों को यह बताया गया कि किस प्रकार से भारत सरकार पर हमें दबाव बनाना है ताकि देश में आदिवासियों के लिए भी सरना धर्म कोड को जल्द से जल्द लागू किया जाए. उन्होंने आदिवासी समाज के जनता और आम लोगों से भी अपील की है कि उनके इस अभियान में ज्यादा से ज्यादा लोग शामिल हो ताकि आदिवासियों को उनका हक मिल सके.

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लंबे अरसे से लड़ाई लड़ रहे हैं आदिवासी समाज: जल, जंगल, जमीन और पहाड़ के अलावा आदिवासियों से झारखंड राज्य की पहचान होती है. लेकिन, आजादी के बाद से धीरे-धीरे आदिवासियों की जनसंख्या प्रतिशत कम होती चली गई. इस वजह से आदिवासियों के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. आजाद हिंदुस्तान में पहली बार 1951 में जनगणना हुई. तब झारखंड की कुल आबादी के 35.8% लोग आदिवासी थे. वहीं, 2011 की जनगणना के मुताबिक आदिवासी घटकर 26% रह गए. पिछले 70 सालों में आदिवासियों की संख्या में करीब 10 प्रतिशत की गिरावट आई है. अपनी पहचान को लेकर लड़ाई लड़ रहा आदिवासी समाज लंबे अरसे से सरना धर्म कोड की मांग कर रहा है. आदिवासियों की मांग पर हेमंत सरकार ने सदन से सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पास कर दिया है. तब से यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पाले में है और आदिवासी भारत सरकार से सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग कर रहे हैं.

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