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Mandar by election: मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार, जानिए क्यों दिलचस्प है मांडर सीट का इतिहास - कुल 14 प्रत्याशी

झारखंड के रांची जिला के मांडर विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए 23 जून को वोटिंग होगी जबकि काउंटिंग 26 जून हो होगी. यह सीट बंधु तिर्की के विधायकी खत्म होने के बाद खाली हुई है. उपचुनाव में कुल 14 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. इस बार इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार हैं.

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झारखंड
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Published : Jun 21, 2022, 5:27 PM IST

रांचीः मांडर विधानसभा उपचुनाव के लिए 23 जून को वोट डाले जाएंगे. 26 जून को वोटों की गिनती होगी. इस बार के उपचुनाव में कुल 14 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. उपचुनाव को लेकर लोगों में काफी उत्साह है. इस चुनाव में महंगाई, पानी, बिजली, सड़क, बेरोजगारी समेत कई मुद्दे हैं. मांडर विधानसभा में 3.54 लाख मतदाता हैं. इनमें लगभग 1.75 लाख सरना (आदिवासी) मतदाता, 74,000 हिंदू, 70,000 मुस्लिम और 30,000 ईसाई मतदाता हैं.

इसे भी पढ़ें- मांडर विधानसभा उपचुनाव: मतदान को लेकर सुरक्षा की सख्त तैयारी, 4 हजार जवान रहेंगे तैनात

23 जून को मांडर विधानसभा उपचुनाव के लिए वोटिंग होना है. पूर्व मंत्री और कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की की आय से अधिक मामले में सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता चली गयी. जिस वजह से मांडर विधानसभा सीट (Mandar assembly seat) के लिए उपचुनाव हो रहा है. मांडर विधानसभा सीट का रोचक इतिहास रहा है. वर्ष 2000 के बाद पहली बार कांग्रेस जीत की रेस में दिख रही है. भाजपा के प्रत्याशी मोदी सरकार के काम और राष्ट्रवाद के सहारे जीत की उम्मीद लगाएं बैठे हैं. निर्दलीय लेकिन ओवैसी के समर्थन मिलने के बाद देव कुमार धान (Dev Kumar Dhan in Mandar by election) भी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में लगे हैं.

आइये, एक नजर डालें मांडर में वर्ष 2000 के बाद के चुनावी इतिहास पर. जनजाति बहुल मांडर (ST) सुरक्षित विधानसभा सीट (Mandar assembly seat) से वर्ष 2000 में संयुक्त बिहार के समय देव कुमार धान कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी. उसके बाद मांडर में कोई भी विधानसभा चुनाव कांग्रेस नहीं जीत पाई. यानि 2000 के बाद 20-22 वर्षों में कांग्रेस की झोली मांडर में खाली ही रही है. मांडर विधानसभा का पिछले 20 वर्षों का चुनावी इतिहास इस ओर इशारा करता है कि यहां के मतदाता किसी दल विशेष या बड़े दल की जगह नेता के व्यक्तिगत बात व्यवहार और काम से जुड़ाव रखती हैं. यही वजह है कि झारखंड बनने के बाद मांडर विधानसभा के लिए जितने भी उपचुनाव हुए सभी के केंद्र में बंधु तिर्की और देव कुमार धान रहे.

वर्ष 2014 विधानसभा चुनाव की बात छोड़ दें तो बंधु तिर्की ने वर्ष 2005, 2009 और 2019 में अलग-अलग दलों से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. वर्ष 2014 में भी ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ कर बंधु तिर्की दूसरे स्थान पर थे. इसी तरह वर्ष 2000 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर मंत्री बनने वाले देव कुमार धान निर्दलीय चुनाव लड़े या किसी दल से हर बार वह टॉप 3 में जरूर रहे हैं. यह ट्रेंड बताता है कि मांडर विधानसभा के मतदाता के लिए पार्टी से ज्यादा प्रत्याशी महत्व रखता है. यही वजह है कि अलग अलग दलों में रहकर भी बंधु तिर्की और देव कुमार धान जैसे नेता अपनी लोकप्रियता बरकरार रखी है.


झारखंड की राजनीति में बंधु तिर्की एक कुशल राजनीतिज्ञ माने जाते हैं. राज्य के शिक्षा मंत्री रह चुके बंधु तिर्की को लेकर मांडर विधानसभा क्षेत्र के चुनाव को लेकर एक और रोचक तथ्य यह है कि बंधु तिर्की ने कभी एक ही दल या सिंबल पर चुनाव नहीं लड़े. बंधु तिर्की ने झारखंड विधानसभा के लिए वर्ष 2005 में हुए चुनाव में बंधु तिर्की ने UGDP (यूनाइटेड गोम्स डेमोक्रेटिक पार्टी) से चुनाव लड़े और जीते. 2009 में बंधु तिर्की ने झारखंड जन अधिकार मंच से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. वहीं 2014 विधानसभा चुनाव ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़े और दूसरे स्थान पर रहे. जबकि 2019 का विधानसभा चुनाव उन्होंने बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक के सिंबल पर लगा और विधायक बने.

इसी तरह क्षेत्र के दूसरे कद्दावर नेता देव कुमार धान जो इस बार निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. वह भी वर्ष 2000 से लेकर अब तक कभी कांग्रेस, कभी भाजपा तो कभी निर्दलीय चुनावी समर में उतर चुके हैं. ये और बात है कि बंधु तिर्की की तरह उन्हें जीत के रूप में सफलता वर्ष 2000 के बाद नहीं मिली है.

झारखंड बनने के बाद से अब तक के चुनावी नतीजे यह बताते हैं कि यहां पर मुख्य रूप से व्यक्ति आधारित राजनीति हावी रही है. लेकिन इस बीच भारतीय जनता पार्टी ने अपने वोट बैंक बढ़ाया है बल्कि 2014 के विधानसभा चुनाव में जीत भी हासिल की है. वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा, सीपीआई माले, आजसू, जदयू, राजद जैसे दलों का जनाधार क्षेत्र में काफी कम है. कांग्रेस का जनाधार भी वर्ष 2000 के बाद से लेकर 2019 विधानसभा चुनाव तक कम हुआ है. लेकिन इस बार निवर्तमान विधायक बंधु तिर्की की बेटी शिल्पा नेहा तिर्की के कांग्रेस उम्मीदवार बनाए जाने के बाद महागठबंधन के साथ कांग्रेस भी मजबूती से मैदान में हैं.

बहरहाल मांडर विधानसभा उपचुनाव के नतीजे क्या होगा यहां की जनता किसे अपना जनप्रतिनिधि चुनेगी, इसका फैसला तो 23 जून को वोटिंग और 26 जून को मतगणना के बाद ही पता चलेगा. लेकिन मांडर के चुनावी इतिहास का विश्लेषण करें तो इस बार भी विधानसभा चुनाव का मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है.

रांचीः मांडर विधानसभा उपचुनाव के लिए 23 जून को वोट डाले जाएंगे. 26 जून को वोटों की गिनती होगी. इस बार के उपचुनाव में कुल 14 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. उपचुनाव को लेकर लोगों में काफी उत्साह है. इस चुनाव में महंगाई, पानी, बिजली, सड़क, बेरोजगारी समेत कई मुद्दे हैं. मांडर विधानसभा में 3.54 लाख मतदाता हैं. इनमें लगभग 1.75 लाख सरना (आदिवासी) मतदाता, 74,000 हिंदू, 70,000 मुस्लिम और 30,000 ईसाई मतदाता हैं.

इसे भी पढ़ें- मांडर विधानसभा उपचुनाव: मतदान को लेकर सुरक्षा की सख्त तैयारी, 4 हजार जवान रहेंगे तैनात

23 जून को मांडर विधानसभा उपचुनाव के लिए वोटिंग होना है. पूर्व मंत्री और कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की की आय से अधिक मामले में सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता चली गयी. जिस वजह से मांडर विधानसभा सीट (Mandar assembly seat) के लिए उपचुनाव हो रहा है. मांडर विधानसभा सीट का रोचक इतिहास रहा है. वर्ष 2000 के बाद पहली बार कांग्रेस जीत की रेस में दिख रही है. भाजपा के प्रत्याशी मोदी सरकार के काम और राष्ट्रवाद के सहारे जीत की उम्मीद लगाएं बैठे हैं. निर्दलीय लेकिन ओवैसी के समर्थन मिलने के बाद देव कुमार धान (Dev Kumar Dhan in Mandar by election) भी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में लगे हैं.

आइये, एक नजर डालें मांडर में वर्ष 2000 के बाद के चुनावी इतिहास पर. जनजाति बहुल मांडर (ST) सुरक्षित विधानसभा सीट (Mandar assembly seat) से वर्ष 2000 में संयुक्त बिहार के समय देव कुमार धान कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी. उसके बाद मांडर में कोई भी विधानसभा चुनाव कांग्रेस नहीं जीत पाई. यानि 2000 के बाद 20-22 वर्षों में कांग्रेस की झोली मांडर में खाली ही रही है. मांडर विधानसभा का पिछले 20 वर्षों का चुनावी इतिहास इस ओर इशारा करता है कि यहां के मतदाता किसी दल विशेष या बड़े दल की जगह नेता के व्यक्तिगत बात व्यवहार और काम से जुड़ाव रखती हैं. यही वजह है कि झारखंड बनने के बाद मांडर विधानसभा के लिए जितने भी उपचुनाव हुए सभी के केंद्र में बंधु तिर्की और देव कुमार धान रहे.

वर्ष 2014 विधानसभा चुनाव की बात छोड़ दें तो बंधु तिर्की ने वर्ष 2005, 2009 और 2019 में अलग-अलग दलों से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. वर्ष 2014 में भी ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ कर बंधु तिर्की दूसरे स्थान पर थे. इसी तरह वर्ष 2000 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर मंत्री बनने वाले देव कुमार धान निर्दलीय चुनाव लड़े या किसी दल से हर बार वह टॉप 3 में जरूर रहे हैं. यह ट्रेंड बताता है कि मांडर विधानसभा के मतदाता के लिए पार्टी से ज्यादा प्रत्याशी महत्व रखता है. यही वजह है कि अलग अलग दलों में रहकर भी बंधु तिर्की और देव कुमार धान जैसे नेता अपनी लोकप्रियता बरकरार रखी है.


झारखंड की राजनीति में बंधु तिर्की एक कुशल राजनीतिज्ञ माने जाते हैं. राज्य के शिक्षा मंत्री रह चुके बंधु तिर्की को लेकर मांडर विधानसभा क्षेत्र के चुनाव को लेकर एक और रोचक तथ्य यह है कि बंधु तिर्की ने कभी एक ही दल या सिंबल पर चुनाव नहीं लड़े. बंधु तिर्की ने झारखंड विधानसभा के लिए वर्ष 2005 में हुए चुनाव में बंधु तिर्की ने UGDP (यूनाइटेड गोम्स डेमोक्रेटिक पार्टी) से चुनाव लड़े और जीते. 2009 में बंधु तिर्की ने झारखंड जन अधिकार मंच से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. वहीं 2014 विधानसभा चुनाव ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़े और दूसरे स्थान पर रहे. जबकि 2019 का विधानसभा चुनाव उन्होंने बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक के सिंबल पर लगा और विधायक बने.

इसी तरह क्षेत्र के दूसरे कद्दावर नेता देव कुमार धान जो इस बार निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. वह भी वर्ष 2000 से लेकर अब तक कभी कांग्रेस, कभी भाजपा तो कभी निर्दलीय चुनावी समर में उतर चुके हैं. ये और बात है कि बंधु तिर्की की तरह उन्हें जीत के रूप में सफलता वर्ष 2000 के बाद नहीं मिली है.

झारखंड बनने के बाद से अब तक के चुनावी नतीजे यह बताते हैं कि यहां पर मुख्य रूप से व्यक्ति आधारित राजनीति हावी रही है. लेकिन इस बीच भारतीय जनता पार्टी ने अपने वोट बैंक बढ़ाया है बल्कि 2014 के विधानसभा चुनाव में जीत भी हासिल की है. वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा, सीपीआई माले, आजसू, जदयू, राजद जैसे दलों का जनाधार क्षेत्र में काफी कम है. कांग्रेस का जनाधार भी वर्ष 2000 के बाद से लेकर 2019 विधानसभा चुनाव तक कम हुआ है. लेकिन इस बार निवर्तमान विधायक बंधु तिर्की की बेटी शिल्पा नेहा तिर्की के कांग्रेस उम्मीदवार बनाए जाने के बाद महागठबंधन के साथ कांग्रेस भी मजबूती से मैदान में हैं.

बहरहाल मांडर विधानसभा उपचुनाव के नतीजे क्या होगा यहां की जनता किसे अपना जनप्रतिनिधि चुनेगी, इसका फैसला तो 23 जून को वोटिंग और 26 जून को मतगणना के बाद ही पता चलेगा. लेकिन मांडर के चुनावी इतिहास का विश्लेषण करें तो इस बार भी विधानसभा चुनाव का मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है.

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