रांची: झारखंड में कोल परियोजनाओं से लेवी वसूली के धंधों का बड़ा खुलासा हुआ है. चतरा के मगध-आम्रपाली कोल परियोजना से टेरर फंडिंग की जांच एनआईए पहले से कर रही है, लेकिन अब चतरा पुलिस के समक्ष सरेंडर करने वाले टीपीसी के रीजनल कमांडर मुकेश गंझू ने कोल परियोजना शुरू करवाने में उग्रवादी संगठन की भूमिका की बात बतायी है. उसने बताया कि सीसीएल के अधिकारियों के साथ-साथ बीजीआर कंपनी के लोगों से भी टीपीसी उग्रवादियों की सांठगाठ थी.
कैसे काम करता था गठजोड़
मुकेश गंझू ने पुलिस को बताया कि आम्रपाली कोल परियोजना के लिए सीसीएल को जमीन की जरूरत थी. 2012 में परियोजना से प्रभावित होने वाले गांव के लोगों की समिति बनायी गई थी. तब टीपीसी ने सीसीएल के अफसरों को जमीन दिलाने में मदद की थी. उस दौरान ग्रामीणों पर जमीन देने के लिए दबाव डाला गया. मुकेश गंझू ने बताया कि सीसीएल के जीएम एके ठाकुर, कामता गांव के सुभान मियां, बीजीआर कंपनी के रघुराम रेड्डी ने टीपीसी के सुप्रीमो और 25 लाख के ईनामी ब्रजेश गंझू, आक्रमण भगत जी, अरदान जी के साथ मिलकर ग्राम समिति के साथ बैठक की.
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कैसे काम करता था टीपीसी का अर्थतंत्र
बैठक में सीसीएल के काम में हस्तक्षेप नहीं करने का दबाव डाला गया. इसके बाद सितंबर 2014 में परियोजना प्रबंधक केके सिन्हा, मनोज कुमार, शांति समिति के 35 सदस्यों की बैठक हुई. इस बैठक में तय हुआ कि कोयला उठाव पर प्रत्येक टन 200 रुपये कमेटी के नाम पर उठेंगे. डीओ होल्डर्स को ग्रामीणों को प्रत्येक टन पर 110 रुपये देने पर सहमति बनी. मुकेश गंझू के मुताबिक, टेरर फंडिंग नेटवर्क के जरिए सीसीएल को 29 रुपये प्रतिटन मिलते थे. कांटाबाबू और कांटा क्लर्क भी दस रुपये प्रतिटन लेते थे. वहीं, डीओ होल्डर्स की ओर से 40 रुपये प्रतिटन की दर से टीपीसी कमांडर आक्रमण को पहुंचाया जाता था. इस तरह प्रत्येक महीने करीब दो करोड़ की लेवी वसूली जाती थी.
कोल परियोजना का पूरा काम खुद देखात था मुकेश
इसमें से बड़ा हिस्सा ब्रजेश गंझू और मुकेश गंझू को मिलता था. मुकेश ने बताया कि टंडवा में चलने वाले कोल परियोजना का पूरा काम वह खुद देखात था. कोयला से जुड़े कारोबारी, डीओ होल्डर, ट्रांसपोर्टर पर अलग से लेवी पहुंचाने के लिए दबाव डाला जाता था. पैसे नहीं देने पर कोल कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाती थी. विंगलात के प्रदीप राम, कुमरांगकला के अमलेश दास, उडसू के राजेंद्र उरांव, कुमरांग खुर्द के विजय साव, होन्हे के हुलास यादव को भी प्रत्येक टन निश्चित रकम मिलती थी. टीपीसी संगठन के अलावा चतरा के टंडवा-पिपरवार के कई लोग मुकेश को मदद करते थे. रामवृक्ष गंझू, उदित, डीलर शंकर गुप्ता, ठेकेदार भैरव उरांव, इसराफिल मियां, सकेंद्र महतो, मुकेश महतो, बलेश्वर गंझू और अजय मुकेश गंझू को मदद पहुंचाते थे.