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रिम्स में डॉक्टरों का बड़ा गड़बड़झाला, जांच के नाम पर रिम्स को लगाया जा रहा हर महीने करीब 50 लाख का चूना - Ranchi news in Hindi

रिम्स में डॉक्टरों का बड़ा गड़बड़झाला सामने आया है. डॉक्टर्स अपने ही अस्पताल को लाखों का घाटा करवाकर निजी जांच एजेंसी को लाभ पहुंचा रहे हैं. डॉक्टरों के इस करतूत से रिम्स को हर महीने करीब लाखों का नुकसान हो रहा है.

RIMS Ranchi
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Published : Mar 26, 2022, 12:12 PM IST

रांची: झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में निजी जांच एजेंसी को लाभ पहुंचाने का खेल चल रहा है. हैरत की बात यह है कि रिम्स में चल रहे इस खेल में कमोबेश रिम्स के सभी डॉक्टर शामिल हैं. जांच के नाम पर रिम्स को हर महीने करीब 50 लाख का चूना लगाया जा रहा है. रिम्स के जनसम्पर्क अधिकारी डॉ. दीपेश कुमार सिन्हा ने भी रिम्स को होने वाली घाटे की बात को स्वीकार किया है और इस पर कार्रवाई का आश्वासन दिया है.

इसे भी पढ़ें: झारखंड हाई कोर्ट ने रिम्स के ट्यूटर नियुक्ति स्थाई करने के मामले मे हस्तक्षेप से किया इनकार, याचिका खारिज



दरअसल, रिम्स में इलाज के लिए आनेवाले मरीजों की सुविधा के लिए पूर्ववर्ती सरकार ने मेडाल नाम की निजी जांच एजेंसी (Private test agency Medall) के साथ एक करार (MOU) किया था. जिसके तहत वैसे किसी भी पैथोलॉजिकल जांच जिसकी सुविधा रिम्स में नहीं है उसके लिए मरीज मेडाल में जांच करवा सकते हैं. रिम्स की तरह मेडाल में भी सामान्य मरीजों को निर्धारित कम दर पर जांच और वैसे मरीज जिसकी पात्रता निशुल्क जांच की है उसके लिए मेडाल में निशुल्क जांच की बात कही गयी. MOU में यह भी स्पष्ट था कि निशुल्क जांच के बदले मेडाल को झारखंड सरकार भुगतान करेगी. इसी बात का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है.

देखें वीडियो

ऐसे लगता है रिम्स को चूना!: निजी जांच एजेंसी मेडाल (Private test agency Medall) को लाभ पहुंचाने के लिए डॉक्टर्स निशुल्क इलाज की पात्रता रखने वाले गरीब मरीजों की कोई भी जांच कराते हैं, उस पर्चे में मेडाल लिख देते हैं. ऐसे में मरीज या उनके परिजन मेडाल में अपना सैम्पल दे देते हैं. मरीजों का जांच तो निशुल्क हो जाता है लेकिन उसके बदले रिम्स को मेडाल को तय दर से भुगतान करना पड़ता है. ये राशि कोई छोटी मोटी राशि नहीं होती बल्कि हर महीने लगभग 50 लाख की होती है. इतनी बड़ी राशि को कम किया जा सकता था जब MOU के अनुसार सिर्फ वहीं सैम्पल जांच मेडाल से कराया जाए जिसकी जांच की व्यवस्था रिम्स के सेंट्रल पैथोलॉजी सेंटर (RIMS Central Pathology Center) में न हो, लेकिन खून में हीमोग्लोबिन तक की जांच मेडाल में करायी जाती है.

क्या कहते हैं रिम्स के जनसम्पर्क अधिकारी: रिम्स को हर महीने करीब 50 लाख की राशि के नुकसान बेवजह होने की बात स्वीकारते हुए जनसम्पर्क अधिकारी डॉ. दीपेश कुमार सिन्हा कहते हैं कि MOU में स्पष्ट है कि सिर्फ वहीं जांच मेडाल में कराया जाए, जिसकी सुविधा रिम्स में नहीं है. ऐसे में जो डॉक्टरों के द्वारा सामान्य और रिम्स के सेंट्रल पैथोलॉजी में उपलब्ध जांच को भी मेडाल से करवाने की सलाह पर्चे पर लिख देना गलत है. रिम्स पीआरओ ने कहा कि जो भी डॉक्टर इस तरह की हरकत के लिए दोषी पाए जाएंगे उनके प्रैक्टिस पर रोक लगाई जाएगी.

रांची: झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में निजी जांच एजेंसी को लाभ पहुंचाने का खेल चल रहा है. हैरत की बात यह है कि रिम्स में चल रहे इस खेल में कमोबेश रिम्स के सभी डॉक्टर शामिल हैं. जांच के नाम पर रिम्स को हर महीने करीब 50 लाख का चूना लगाया जा रहा है. रिम्स के जनसम्पर्क अधिकारी डॉ. दीपेश कुमार सिन्हा ने भी रिम्स को होने वाली घाटे की बात को स्वीकार किया है और इस पर कार्रवाई का आश्वासन दिया है.

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दरअसल, रिम्स में इलाज के लिए आनेवाले मरीजों की सुविधा के लिए पूर्ववर्ती सरकार ने मेडाल नाम की निजी जांच एजेंसी (Private test agency Medall) के साथ एक करार (MOU) किया था. जिसके तहत वैसे किसी भी पैथोलॉजिकल जांच जिसकी सुविधा रिम्स में नहीं है उसके लिए मरीज मेडाल में जांच करवा सकते हैं. रिम्स की तरह मेडाल में भी सामान्य मरीजों को निर्धारित कम दर पर जांच और वैसे मरीज जिसकी पात्रता निशुल्क जांच की है उसके लिए मेडाल में निशुल्क जांच की बात कही गयी. MOU में यह भी स्पष्ट था कि निशुल्क जांच के बदले मेडाल को झारखंड सरकार भुगतान करेगी. इसी बात का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है.

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ऐसे लगता है रिम्स को चूना!: निजी जांच एजेंसी मेडाल (Private test agency Medall) को लाभ पहुंचाने के लिए डॉक्टर्स निशुल्क इलाज की पात्रता रखने वाले गरीब मरीजों की कोई भी जांच कराते हैं, उस पर्चे में मेडाल लिख देते हैं. ऐसे में मरीज या उनके परिजन मेडाल में अपना सैम्पल दे देते हैं. मरीजों का जांच तो निशुल्क हो जाता है लेकिन उसके बदले रिम्स को मेडाल को तय दर से भुगतान करना पड़ता है. ये राशि कोई छोटी मोटी राशि नहीं होती बल्कि हर महीने लगभग 50 लाख की होती है. इतनी बड़ी राशि को कम किया जा सकता था जब MOU के अनुसार सिर्फ वहीं सैम्पल जांच मेडाल से कराया जाए जिसकी जांच की व्यवस्था रिम्स के सेंट्रल पैथोलॉजी सेंटर (RIMS Central Pathology Center) में न हो, लेकिन खून में हीमोग्लोबिन तक की जांच मेडाल में करायी जाती है.

क्या कहते हैं रिम्स के जनसम्पर्क अधिकारी: रिम्स को हर महीने करीब 50 लाख की राशि के नुकसान बेवजह होने की बात स्वीकारते हुए जनसम्पर्क अधिकारी डॉ. दीपेश कुमार सिन्हा कहते हैं कि MOU में स्पष्ट है कि सिर्फ वहीं जांच मेडाल में कराया जाए, जिसकी सुविधा रिम्स में नहीं है. ऐसे में जो डॉक्टरों के द्वारा सामान्य और रिम्स के सेंट्रल पैथोलॉजी में उपलब्ध जांच को भी मेडाल से करवाने की सलाह पर्चे पर लिख देना गलत है. रिम्स पीआरओ ने कहा कि जो भी डॉक्टर इस तरह की हरकत के लिए दोषी पाए जाएंगे उनके प्रैक्टिस पर रोक लगाई जाएगी.

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