रांची: देश की सभी राजनीतिक पार्टियां और उनके नेता भ्रष्टाचार को समय-समय पर मुद्दा बनाते ही रहे हैं. जब बात भ्रष्टाचार की होती है तो अनायास सबका ध्यान लोकपाल, जनलोकपाल और लोकायुक्त जैसे शब्दों पर चला जाता है. ये शब्द एक दशक पहले हुए अन्ना हजारे के आंदोलन के समय खासे चर्चा में रहे थे. भ्रष्टाचार से लेकर लोकायुक्त की बात इसलिए की जा रही है, क्योंकि झारखंड में भ्रष्टाचार का हाल किसी से छिपा नहीं है और इस भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की कल्पना जिस लोकायुक्त के जरिए की गई थी, उसके कार्यालय का हाल क्या है, ये भी आम जनता को जानना जरूरी है.
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दो वर्षों से बिना लोकायुक्त का झारखंड: भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने के लिए राज्यों में जिस लोकायुक्त की कल्पना की गई थी, वह लोकायुक्त का पद झारखंड में पिछले दो वर्षों से खाली पड़ा हुआ है. इस कारण रिम्स डेंटल कॉलेज में डेंटल चेयर खरीद में भ्रष्टाचार सहित कई मामले वर्षों से लंबित पड़े हुए हैं. 29 जून 2021 को झारखंड के लोकायुक्त जस्टिस डीएन उपाध्याय के निधन के बाद से यह पद खाली पड़ा हुआ है. लोकायुक्त के बीमार रहने पर लोकायुक्त एक्ट के प्रावधानों के तहत 27 अप्रैल 2022 तक सचिव को जांच रिपोर्ट मांगने, समन जारी करने जैसे अधिकार मिले थे, लेकिन कार्मिक ने एक आदेश के माध्यम से 27 अप्रैल 2022 से उस पर भी रोक लगा दी. तब से राज्य का लोकायुक्त कार्यालय महज एक भव्य भवन वाला कार्यालय बनकर रह गया है.
झारखंड लोकायुक्त कार्यालय को अभी तक आठ हजार के करीब लोकसेवकों की शिकायतें मिली हैं. जिसमें से दो हजार से अधिक शिकायतों पर लोकायुक्त कार्यालय, एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा हैं, यानी मामले लंबित पड़े हुए हैं.
बिहार ने लोकायुक्त को दिया ज्यादा पावर: झारखंड में भले ही लोकसेवकों द्वारा समय समय पर बड़े भ्रष्टाचार करने के आरोप लगते रहे हों, लेकिन उसपर कारगर तरीके से लगाम लगाने की पहल किसी भी सरकार ने नहीं की. लोकायुक्त एक्ट (बिहार)-1973 में संशोधन करके बिहार राज्य ने 2011 में ही अपने लोकायुक्त को ज्यादा अधिकार दिए, जिसके तहत वहां के लोकायुक्त को छापेमारी और कुर्की जब्ती के अधिकार मिले हुए हैं. लेकिन, बिहार से अलग होकर बने झारखंड में बिहार वाले 1974 के लोकायुक्त एक्ट को जस का तस आत्मसात कर लिया गया है. मध्य प्रदेश में लोकायुक्त को सर्च वारंट जारी करने का भी अधिकार मिला हुआ है. ऐसे में झारखंड में भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस एजेंसी को बनाया गया, वह पहले से ही कमजोर था और अब लोकायुक्त के अभाव में पूरी तरह निष्क्रिय हो गया है.
लोकायुक्त पुलिस, एसीबी, सीआईडी पर निर्भर: झारखंड में भ्रष्टाचारियों पर जांच से लेकर कार्रवाई के लिए लोकायुक्त को पूरी तरह सरकारी विभागों पर निर्भर रहना पड़ता है. ऐसे में अगर पुलिस अधिकारियों के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकायुक्त के पास आ जाये तो उसे फिर उसी पुलिस के पास जांच और कार्रवाई के लिए भेजना पड़ता है, जिसपर आरोप लगा है. ऐसे में कई मामले ऐसे ही लंबित पड़े रहते हैं.
साल दर साल लोकायुक्त कार्यालय को मिलने वाली शिकायतों की संख्या
वर्ष | मिली शिकायतें |
2010 | 94 |
2011 | 665 |
2012 | 62 |
2013 | 661 |
2014 | 606 |
2015 | 507 |
2016 | 220 |
2017 | 550 |
2018 | 1417 |
2019 | 1025 |
2020 | 777 |
2021 | 644 |
2022 | 388 |
राजनीतिक बयानबाजी जारी: राज्य में लोकसेवकों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए बनाए गए लोकायुक्त का पद दो वर्षों से खाली है, लेकिन इसपर राजनीति जरूर होती रहती है. लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाने की वजह भारतीय जनता पार्टी को बताते हुए झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय ने कहा कि भाजपा में एक से बढ़कर एक दिग्गज विधायक है. लेकिन भाजपा का नेतृत्व कंघी छाप से जीत कर विधानसभा पहुंचे बाबूलाल मरांडी को फूल छाप के विधायकों का नेता बनाना चाहता है. इसलिए मामला फंसा हुआ है.
वहीं भाजपा के नेता अरुण झा ने कहा कि दरअसल हेमंत सोरेन सरकार की ना काम करने की नीयत है और ना ही उनकी कोई नीति है. नतीजा यह है कि सारे आयोग खाली पड़े हैं. उन्होंने कहा कि जब भाजपा विधायकों ने बाबूलाल को अपना नेता मान लिया तो फिर झामुमो या सरकार को क्या आपत्ति है. भाजपा के नेता ने कहा कि हेमंत सोरेन सरकार की इच्छा ही भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की नहीं है. यही वजह है कि लोकायुक्त के बिना राज्य चल रहा है.