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48 वर्ष पुराने बिहार के लोकायुक्त एक्ट के सहारे झारखंड, कैसे भ्रष्टाचार पर लगेगा अंकुश

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Published : Jun 16, 2021, 8:28 PM IST

Updated : Jun 16, 2021, 11:07 PM IST

झारखंड में संयुक्त बिहार के समय 1973 में बना लोकायुक्त अधिनियम के सहारे कार्यालय संचालित हो रहा है. कई राज्य सरकारों ने भष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए नीतियां बदलीं लेकिन झारखंड में आज भी 48 वर्ष पुराने एक्ट के तहत कार्य हो रहा है.

Lokayukta in jharkhand
झारखंड लोकायुक्त

रांची: झारखंड में आज भी 48 वर्ष पुराने नियमावली के सहारे लोकायुक्त का कार्यालय संचालित हो रहा है. समय के साथ भ्रष्टाचार के तौर तरीके बदले लेकिन इस पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार ने अपनी नीतियां नहीं बदली जिसके कारण आज भी सरकारी सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में लोकायुक्त समर्थ नहीं है.

ब्यूरोक्रेसी में फैले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए संयुक्त बिहार के समय 1973 में बना लोकायुक्त अधिनियम आज भी झारखंड में लागू है. बिहार में इस एक्ट को 10 साल पहले 2011 में ही संशोधन कर दिया गया है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

यह भी पढ़ें: लोकायुक्त के पास नहीं है खुद की जांच एजेंसी, कैसे रुकेगा भ्रष्टाचार

सरकार बदलती रही, नहीं बदला लोकायुक्त का पावर

इस एक्ट में बदलाव के लिए कई बार कोशिश भी की गई लेकिन फाइल आगे नहीं बढ़ी. रघुवर दास के शासनकाल के बाद हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी नई सरकार ने शुरू में थोड़ी रूचि जरूर दिखाई लेकिन अप्रैल 2020 से सरकार के पास लोकायुक्त एक्ट में संशोधन संबंधी फाइल आज भी धूल फांक रही है.

यह हास्यास्पद है कि अंग्रेजी में तैयार ड्राफ्ट को खारिज कर सरकार ने हिन्दी में लोकायुक्त कार्यालय से ड्राफ्ट मंगाया, उसे भी समर्पित करने के बाद सरकार ने इस पर कोई विचार नहीं किया.

अक्सर जांच रिपोर्ट पर उठते हैं सवाल

कड़े कानून बनाने के लिए नियमावली में संशोधन और लोकायुक्त को पावरफुल बनाने की कवायद को ठुकराने के पीछे की कहानी 'आ बैल मुझे मार' जैसी है. ऐसे में दंतहीन लोकायुक्त के पास न तो स्वतंत्र जांच एजेंसी है और न ही जांच करने का अधिकार. करप्शन की शिकायत की जांच उसी विभाग के अधिकारी को देनी होती है जिस विभाग से संबंधित मामले हैं. ऐसे में जांच रिपोर्ट की निष्पक्षता पर या तो सवाल खड़े हो जाते हैं या समय पर जांच रिपोर्ट लोकायुक्त को नहीं मिल पाता है.

लोकायुक्त को पारवफुल बनाने की मांग

लोकायुक्त कार्यालय के सचिव संजय कुमार की मानें तो बिहार सहित अन्य राज्यों ने संशोधन कर अपने-अपने राज्यों में लोकायुक्त को अधिक पावरफुल बनाया है. इसी को आधार बनाकर राज्य सरकार के पास लोकायुक्त एक्ट में संशोधन करने का प्रस्ताव कई बार भेजा गया है लेकिन अभी तक सरकार के पास यह मामला लंबित है.

वहीं लोकायुक्त कार्यालय में सरकार द्वारा कई पद सृजित भी किये गए हैं. इधर, भ्रष्टाचार मामलों के जानकार कानूनविदों ने सरकार से करप्शन पर अंकुश लगाने के लिए लोकायुक्त को पावरफुल बनाने की मांग की है.

सरकारी विभागों में फैली भ्रष्टाचार किसी से छिपी हुई नहीं है. हालत यह है कि करप्शन को लेकर सबसे ज्यादा शिकायत पथ निर्माण, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं खाद्य आपूर्ति विभाग से जुड़ा हुए मामला लोकायुक्त कार्यालय में हर दिन आते रहते हैं. अब आवश्यकता इस बात की है कि समय के साथ बदल रहे करप्शन के तौर तरीके पर अंकुश लगाने के लिए सरकार लोकायुक्त नियमों में अन्य राज्यों की तरह संशोधन कर भ्रष्टाचार रोकने की पहल करें.

रांची: झारखंड में आज भी 48 वर्ष पुराने नियमावली के सहारे लोकायुक्त का कार्यालय संचालित हो रहा है. समय के साथ भ्रष्टाचार के तौर तरीके बदले लेकिन इस पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार ने अपनी नीतियां नहीं बदली जिसके कारण आज भी सरकारी सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में लोकायुक्त समर्थ नहीं है.

ब्यूरोक्रेसी में फैले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए संयुक्त बिहार के समय 1973 में बना लोकायुक्त अधिनियम आज भी झारखंड में लागू है. बिहार में इस एक्ट को 10 साल पहले 2011 में ही संशोधन कर दिया गया है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

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सरकार बदलती रही, नहीं बदला लोकायुक्त का पावर

इस एक्ट में बदलाव के लिए कई बार कोशिश भी की गई लेकिन फाइल आगे नहीं बढ़ी. रघुवर दास के शासनकाल के बाद हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी नई सरकार ने शुरू में थोड़ी रूचि जरूर दिखाई लेकिन अप्रैल 2020 से सरकार के पास लोकायुक्त एक्ट में संशोधन संबंधी फाइल आज भी धूल फांक रही है.

यह हास्यास्पद है कि अंग्रेजी में तैयार ड्राफ्ट को खारिज कर सरकार ने हिन्दी में लोकायुक्त कार्यालय से ड्राफ्ट मंगाया, उसे भी समर्पित करने के बाद सरकार ने इस पर कोई विचार नहीं किया.

अक्सर जांच रिपोर्ट पर उठते हैं सवाल

कड़े कानून बनाने के लिए नियमावली में संशोधन और लोकायुक्त को पावरफुल बनाने की कवायद को ठुकराने के पीछे की कहानी 'आ बैल मुझे मार' जैसी है. ऐसे में दंतहीन लोकायुक्त के पास न तो स्वतंत्र जांच एजेंसी है और न ही जांच करने का अधिकार. करप्शन की शिकायत की जांच उसी विभाग के अधिकारी को देनी होती है जिस विभाग से संबंधित मामले हैं. ऐसे में जांच रिपोर्ट की निष्पक्षता पर या तो सवाल खड़े हो जाते हैं या समय पर जांच रिपोर्ट लोकायुक्त को नहीं मिल पाता है.

लोकायुक्त को पारवफुल बनाने की मांग

लोकायुक्त कार्यालय के सचिव संजय कुमार की मानें तो बिहार सहित अन्य राज्यों ने संशोधन कर अपने-अपने राज्यों में लोकायुक्त को अधिक पावरफुल बनाया है. इसी को आधार बनाकर राज्य सरकार के पास लोकायुक्त एक्ट में संशोधन करने का प्रस्ताव कई बार भेजा गया है लेकिन अभी तक सरकार के पास यह मामला लंबित है.

वहीं लोकायुक्त कार्यालय में सरकार द्वारा कई पद सृजित भी किये गए हैं. इधर, भ्रष्टाचार मामलों के जानकार कानूनविदों ने सरकार से करप्शन पर अंकुश लगाने के लिए लोकायुक्त को पावरफुल बनाने की मांग की है.

सरकारी विभागों में फैली भ्रष्टाचार किसी से छिपी हुई नहीं है. हालत यह है कि करप्शन को लेकर सबसे ज्यादा शिकायत पथ निर्माण, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं खाद्य आपूर्ति विभाग से जुड़ा हुए मामला लोकायुक्त कार्यालय में हर दिन आते रहते हैं. अब आवश्यकता इस बात की है कि समय के साथ बदल रहे करप्शन के तौर तरीके पर अंकुश लगाने के लिए सरकार लोकायुक्त नियमों में अन्य राज्यों की तरह संशोधन कर भ्रष्टाचार रोकने की पहल करें.

Last Updated : Jun 16, 2021, 11:07 PM IST
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