रांची: लंबे संघर्ष के बाद सत्ता की भागीदार बनी प्रदेश कांग्रेस में भीतरखाने बड़ा खेल चल रहा है. हेमंत कैबिनेट में शामिल कांग्रेस के चार मंत्रियों में से दो मंत्री सॉफ्ट टारगेट बने हुए हैं. इसकी वजह भी है. इसी आड़ में अगड़ी जाति से आने वाले प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर को भी किनारा लगाने की कोशिश हो रही है. विरोधी खेमे की दलील है कि प्रदेश में पार्टी की कमान जनाधार पर पकड़ रखने वाले को मिलनी चाहिए. बार-बार याद दिलाया जाता है कि राजेश ठाकुर आरपीएन सिंह के चहेते थे. भाजपा में जाने से पहले आरपीएन सिंह ने राजेश ठाकुर को बतौर गिफ्ट प्रदेश की कमान दिलवा दी थी. ऐसे में इनपर विश्वास नहीं किया जा सकता. उनकी जगह पिछड़ी जाति या ट्राइबल नेता की मांग हो रही है.
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हालांकि ठाकुर समर्थक कहते हैं कि जो काम पूर्व के दो प्रदेश अध्यक्ष नहीं कर पाए, उसे वर्तमान अध्यक्ष ने कर दिखाया. मसलन, अगस्त 2021 में अध्यक्ष बनने के बाद राजेश ठाकुर पहले ऐसे नेता रहे जिन्होंने ना सिर्फ प्रदेश कांग्रेस कमिटी का विस्तार किया बल्कि लंबे समय से जमे कई जिला अध्यक्षों को भी बदला. यही नहीं उन्होंने बोर्ड, निगम में कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ताओं को जगह दिलाने में अहम भूमिका निभाई. इसी का नतीजा है कि रवींद्र सिंह को कृषि विपणन पर्षद का अध्यक्ष मनोनीत किया गया है. वहीं राजीव रंजन प्रसाद को झारखंड गो सेवा का अध्यक्ष बनाया गया है. ठाकुर समर्थकों का कहना है कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ताओं को सम्मान मिल रहा है. लेकिन यह बात दूसरे नेताओं को रास नहीं आ रही है. पार्टी का नेतृत्व गंवाने के बाद वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव नाराज चल रहे हैं. उनका भी कहना है कि पार्टी को मजबूत बनाने के लिए जनाधार वाले नेता की जरूरत है. लेकिन खुलकर बोलने से परहेज करते हैं.
कैबिनेट में फेरबदल का खेल: असली खेल तो मंत्री पद को लेकर हो रहा है. शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के असमय निधन के बाद इस पोर्टफोलियों पर कई नेताओं की नजर गड़ी हुई है. हालांकि वह झामुमो का मामला है. लेकिन कैबिनेट में फेरबदल से पोर्टफोलियों पर भी असर पड़ने के आसार हैं. फिलहाल विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कांग्रेस कोटे के दो मंत्री तलवार की धार पर खड़े हैं. एक मंत्री की जगह लातेहार के मनिका विधायक रामचंद्र सिंह का नाम सबसे आगे चल रहा है. इसके लिए कांग्रेस के एक दिग्गज और खानदानी रूप से कांग्रेसी नेता लॉबिंग कर रहे हैं. इस लिस्ट में कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की की बेटी नेहा शिल्पी के लिए भी फिल्डिंग की जा रही है. तीसरे नंबर पर हैं भूषण बाड़ा. क्योंकि सिमडेगा में कांग्रेस ने जबरदस्त प्रदर्शन किया था.
दूसरे मंत्री के विकल्प के रूप में बड़कागांव की विधायक अंबा प्रसाद को देखा जा रहा है. इसकी वजह है कि बड़कागांव में उनके पिता योगेंद्र साव और माता निर्मला देवी का दबदबा. इस सीट पर लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके भाजपा के लोकनाथ महतो को हटाना आसाना नहीं था. लेकिन इसे साव परिवार ने कर दिखाया. पिता और मां की जीत और दोनों के जेल में रहने के बावजूद अंबा प्रसाद ने परिवार की विरासत को आगे बढ़ाया. वह बेहद मुखर मानी जाती हैं. उन्होंने कई मौकों पर अपनी ही सरकार पर सवाल करने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई. उनकी दावेदारी को इसलिए भी मजबूत माना जा रहा है कि राहुल गांधी युवाओं को आगे लाना चाह रहे हैं. हालांकि दूसरे मंत्री की जगह लेने के लिए बेरमो विधायक जयमंगल उर्फ अनूप सिंह भी सक्रिय हैं. उनके पिता दिवंगत राजेंद्र सिंह की पार्टी में जबरदस्त पकड़ हुआ करती थी. इस लिहाज से अनूप सिंह रास्ता बना रहे हैं. उनको सीएम का भी करीबी भी माना जाता है क्योंकि पिछले साल सरकार गिराने की कोशिश मामले में वह अपनी ही पार्टी के तीन विधायकों इरफान अंसारी, राजेश कच्छफ और विक्सल कोंगाड़ी के खिलाफ एफआईआर करवाने में नहीं हिचके थे. इस फैसले की वजह से उनपर कई सवाल भी उठे थे.
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कैबिनेट में फेरबदल को लेकर एक और चर्चा चल रही है. सुझाव दिया जा रहा है कि झारखंड में सीएम समेत कुल 12 मंत्री हो सकते हैं. क्यों न उसको भी अलॉट कर दिया जाए. लेकिन इस मामले में शगुन अंक आड़े आ जा रहा है. कहा जाता है कि फिलहाल सीएम समेत कुल 11 मंत्री हैं. यह शुभ अंक हैं. इसमें छेड़छाड़ करना अच्छा नहीं होगा. वैसे रघुवर दास ने भी एक मंत्री के बगैर ही कार्यकाल पूरा किया था. बेशक, 12 मंत्री को लेकर कोई बहस नहीं हैं लेकिन कांग्रेस में जिस तरह से गुटबाजी चल रही है, उससे साफ है कि कैबिनेट में बदलाव को टाला जाना मुश्किल है. वैसे बदलाव की बात पिछले वर्ष भी जोरशोर से हुई थी. लेकिन इसी बीच सरकार को गिराने की कोशिश और ईडी की कार्रवाई से तस्वीर बदल गई थी. जितनी बातों का जिक्र किया गया है वह कयासों पर आधारित बिल्कुल नहीं है. सारी बातें अलग-अलग खेमे के पार्टी नेताओं के साथ ऑफ द रिकॉर्ड चर्चा पर आधारित हैं.