रांची: मंगलवार को झारखंड के लोहरदगा जिले में नक्सलियों के लगाए गए आईईडी ब्लास्ट में स्मॉल एक्शन टीम का एक जवान शहीद हो गया. इसके बाद एक बार यह फिर साबित हो गया है कि झारखंड में नक्सल अभियान में लगे जवानों के लिए सबसे बड़ा खतरा लैंडमाइंस ही है. झारखंड के निर्माण के बाद से लेकर अब तक जवानों का सबसे ज्यादा नुकसान लैंडमाइंस की वजह से ही हुआ है.
इसे भी पढे़ं: लोहरदगा में डेड उपकरणों के भरोसे अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था, आग लगने पर हो सकता है बड़ा हादसा
कच्ची-पक्की सड़कों पर बिछा है बारूद
झारखंड में केन्द्रीय सुरक्षा बलों के जवान हों या फिर पुलिस के, उनके लिए सड़कों और पगडंडियों पर नक्सलियों के लगाए गए लैंड माइंस एक बड़ी चुनौती है. नक्सलियों के साथ आमने-सामने की लड़ाई हो या फिर जंगल के भीतर चलाए जाने वाला सर्च अभियान, बारूदी सुरंग उनके लिए मौत का पैगाम लेकर आ रही है. नक्सलियों ने झारखंड के नक्सल प्रभावित इलाकों को जोड़ने वाली सड़कों पर कई जगह लैंडमाइंस बिछा रखा है. जंगल का शायद ही ऐसा कोई भू-भाग हो जहां बारूदी सुरंग या प्रेशर बम ना लगा हो. इसकी चपेट में आने से सुरक्षा बलों को जान-माल का जबरदस्त नुकसान होता है.
पुलिस और ग्रामीण होते हैं शिकार
पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान हों या फिर नक्सल प्रभावित इलाकों में रहने वाले ग्रामीण. वो अक्सर सड़कों के अंदर बिछे बारूद का शिकार हो रहे हैं. झारखंड के चाईबासा, लोहरदगा, सरायकेला खरसावां, पलामू, गढ़वा, लातेहार के नक्सल प्रभावित इलाके के साथ-साथ पूरे बूढ़ा पहाड़ एरिया में नक्सलियों ने बड़े पैमाने पर प्रेशर बम लगा कर रखा है. यहां सड़क मार्ग जानलेवा है. इन सड़कों के कई हिस्सों में लैंडमाइंस बिछी हुई है. चाहे जंगल के भीतर दाखिल होने वाले कच्चे-पक्के रास्ते हों या फिर पक्की सड़कें, कोई भी राह आसान नहीं है. आईजी अभियान साकेत सिंह के मुताबिक लैंडमाइंस पुलिस के सामने बड़ी चुनौती है. आम ग्रामीण हों या फिर पुलिस के जवान किसी की भी सड़क पर चहल कदमी जोखिम भरा है. इन सड़कों पर पैदल चलना तक दूभर हो गया है. बेफिक्री से जमीन पर रखा गया कोई भी कदम जानलेवा साबित हो सकता है. बुलेट प्रूफ वाहन हो या एंटी लैंडमाइंन व्हिकल, या फिर आम मोटर गाड़ियां किसी की भी राह सड़कों पर आसान नहीं है. इन दिनों नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़कों और जमीन के इर्द-गिर्द जमीन के नीचे लैंडमाइंस को खोज निकालने का काम जोर-शोर से चल रहा है. इसके लिए ऑपरेशन चला कर पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान बारूदी सुरंगों और कई तरह के प्रेशर बम और आईईडी को नष्ट करने में जुटे हुए हैं. इस तरह के विस्फोट से धरती थर्रा उठती है.
इसे भी पढे़ं: चाईबासा की चकाचक सड़कों पर दौड़ रही मौत! इंसानी खून से लाल हो रहीं सड़कें
लगातार बरामद हो रहे लैंड माइंस
झारखंड पुलिस से मिले आंकड़ों के अनुसार साल 2018 में पुलिस ने नक्सल प्रभावित इलाकों से 463 लैंडमाइंस बरामद किए गए थे, जबकि 2019 में 278 और 2020 में 276 साल 2021 में अब तक सबसे ज्यादा चाईबासा इलाके से लैंडमाइंस बरामद किए गए हैं. हालांकि जो सूचना है अभी भी हजारों की संख्या में नक्सलियों ने लैंडमाइंस बिछा कर रखा है, जिसे अगर सही समय पर निष्क्रिय नहीं किया जाता है तो भविष्य में सुरक्षा बलों के लिए बड़ा खतरा बनेगा.
छोटे लैंडमाइंस से पुलिस को निशाना बना रहे नक्सली
आमतौर पर नक्सली संगठन पहले सड़क के बीचों-बीच लैंडमाइंस लगाया करते थे. सड़कों पर लगे लैंडमाइंस इतने खतरनाक और शक्तिशाली होते थे, कि इनकी चपेट में आने से एंटी लैंडमाइंस वाहन भी क्षतिग्रस्त हो जाया करते थे. नक्सलियों की इस योजना को नाकामयाब करने के लिए नक्सल ऑपरेशन के दौरान जवान पैदल ही दुर्गम इलाकों में जाने लगे, जिसके बाद नक्सलियों ने नए लैंडमाइंस इजाद किए, जो 5 से 10 किलो के हैं. अब वैसे इलाके जहां नक्सलियों ने छोटे प्रेशर बम लगाए हैं, वहां पर जवानों का पैदल चलना भी मुश्किल है, क्योंकि जवान जैसे ही इन इलाकों से गुजरेंगे विस्फोट हो जाएगा और इसमें बड़ी संख्या में जवान हताहत होंगे.
इसे भी पढे़ं: सरकार की बेवफाई, कैसे हो स्कूलों में साफ-सफाई: प्राथमिक-मध्य विद्यालय में नहीं है सफाईकर्मी
कैसे लगाते हैं नक्सली बम
झारखंड के सबसे बड़े नक्सली संगठन भाकपा माओवादी पुलिस के खिलाफ सबसे ज्यादा लैंडमाइंस का प्रयोग करता है. अपने प्रभाव वाले इलाके में वह सड़क निर्माण में लगे ठेकेदारों को धमकाकर पक्की सड़कों के नीचे भी लैंडमाइंस लगाने का काम करता है. भाकपा माओवादियों के पास कई ऐसे नक्सली कैडर भी हैं, जो बम बनाने में माहिर हैं. जंगलों और पगडंडियों में बम लगाने के दौरान नक्सलियों को रोकने वाला कोई नहीं होता है, लेकिन पक्की सड़कों के नीचे बम लगाने के कई मेकनिज्म है, जिसका इस्तेमाल नक्सली समय-समय पर करते हैं.
अलर्ट पर पुलिस
साल 2021 के जनवरी में नक्सलियों ने आगजनी की घटनाओं को अंजाम देकर पुलिस को चुनौती दी थी, लेकिन फरवरी महीने में लगातार नक्सलियों ने आधा दर्जन से अधिक घटनाओं को अंजाम देकर यह साबित करने की कोशिश की है, कि वह कमजोर नहीं हुए हैं. ऐसे में जरूरी है कि पुलिस नक्सलियों के खिलाफ जो भी ऑपरेशन चला रही है, उसमें विशेष सतर्कता बरतें, ताकि पुलिस के जवान लैंडमाइंस का शिकार ना हो.