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Janmashtami 2021: कृष्ण जन्माष्टमी में यहां वृंदावन की परंपरा के अनुरूप होती है पूजा-अर्चना

रांची में कृष्ण जन्माष्टमी की धूम देखी जा रही है. राजधानी के बोड़ेया बस्ती में राधे-कृष्ण की मदन मोहन मंदिर है, जहां जन्माष्टमी के अवसर पर देर शाम भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. इसके साथ ही कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए श्रद्धालु भगवान का दर्शन करेंगे.

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कृष्ण जन्माष्टमी में वृंदावन की परंपरा के अनुरूप होती है पूजा-अर्चना
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Published : Aug 30, 2021, 3:06 PM IST

रांचीः भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है. हिंदू पंचांग के मुताबिक भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण जन्म लिए थे. इस तिथि को भगवान कृष्ण के आगमन की उत्सव श्रद्धालु मनाते हैं. इस वर्ष छह साल बाद जयंती योग में भगवान जन्म लेंगे, इससे श्रद्धालुओं में खासा उत्साह दिख रहा है.

यह भी पढ़ेंःश्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार : ब्रज में कान्हा ने 'हरि चंद्रिका' पोशाक में दिए दिव्य दर्शन

राजधानी रांची से महज 8 किलोमीटर दूर बोड़ेया बस्ती में राधे-कृष्ण की मदन मोहन मंदिर है, जिसका निर्माण लक्ष्मी नारायण तिवारी ने साल 1665 में कराया था. इस मंदिर में वृंदावन की परंपरा के अनुरूप पूजा-अर्चना की जाती है. इस मंदिर की कई मान्यताएं भी हैं. श्रद्धालु भगवान के प्रति आस्था रखकर मनोकामनाएं पूर्ण की कामना करते हैं तो उनकी कामना भी पूर्ण होती है. इसके साथ ही श्रद्धालु मांगलिक कार्य शुरू करने से पहले राधा-कृष्ण से आशीर्वाद लेकर ही शुरू करते हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

कोरोना गाइडलाइन का किया जा रहा पालन
जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर परिसर में भव्य कार्यक्रम का आयोजित किया जाता है. लेकिन पिछले साल की तरह इस वर्ष भी कोरोना की वजह से भव्य क्रायक्रम आयोजित नहीं किया जा रहा है. कोरोना गाइडलाइन के तहत श्रद्धालु भगवान का दर्शन करेंगे और साधारण तरीके से भजन संध्या का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा, जिसका श्रद्धालु लुत्फ ले सकेंगे. मंदिर के पुजारी कहते है कि जन्माष्टमी के दिन भगवान का पांच समय पर वस्त्र बदलने के साथ साथ पांच बार भोग भी लगाते है.

शाम में भव्य कार्यक्रम

मंदिर आए श्रद्धालु ने बताया कि मंदिर में विधि विधान के पूजा-पाठ किया जाता है. शाम में भव्य कार्यक्रम का आयोजित किया जाता है. उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण सबको सुरक्षित रखेंगे.

लक्ष्मी नारायण तिवारी ने बनवाया था मंदिर

इस मंदिर का निर्माण एक अद्भुत कहानी से जुड़ी है. आज से साढ़े तीन सौ साल पहले छोटानागपुर प्रांत में ब्राह्मणों की घोर कमी थी. उस वक्त रातू महाराज को पूजा पाठ कराने में ब्राह्मणों की कमी खलती थी. जिसको लेकर रातू महाराजा ने 56 ब्राह्मणों का जत्था यूपी के कनौती से बुलाया और छोटानागपुर के अलग-अलग हिस्सों में बसाया. इसी में एक जत्था रांची के बोड़ेया में आ बसा. एक समय की बात है जब लक्ष्मी नारायण तिवारी ने रातू महाराज की सेवा के लिए उन्हें आमंत्रित किया और जगराता महाराज उनके आमंत्रण को स्वीकार करते हुए पहुंचे. जगराता महाराज की सेवा सत्कार करने के बाद हाथी पर सोना लादकर विदाई दिए थे. लेकिन आधा किलोमीटर दूर जाते ही सोना से लदा हाथी बैठ गया और उठ नहीं. उस समय रातू महाराज को ब्राह्मण की ओर से दिए उपहार अशुभ महसूस हुआ. फिर इस उपहार को लौटा दिया गया. इसके बाद लक्ष्मी नारायण तिवारी ने उस उपहार को बेचकर मंदिर का निर्माण कराया था.

इसे भी पढ़ें- बगोदर में 160 साला पुरानी है कृष्ण मंदिर, धूमधाम से मनाया जा रहा है कृष्ण जन्माष्टमी


355 वर्ष पुराना है मंदिर
झारखंड में ऐसे कई प्राचीन धरोहर है. इनमें एक है रांची के बोड़ेया में स्थित है मदन मोहन मंदिर. 355 साल पुराना इस प्राचीन मंदिर पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है. इसकी वजह से अब तक इस मंदिर को राजकीय पहचान नहीं मिल पाई है. लिहाजा इस प्राचीन मंदिर की पहचान महज कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रह गई है. रांची ही नहीं, बल्कि झारखंड के प्राचीन मंदिरों में एक इस मंदिर के संस्थापक के वंशजों ने ट्रस्ट बनाने की मांग की, पर अब तक इस दिशा में पहल नही की जा सकी है.

रांचीः भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है. हिंदू पंचांग के मुताबिक भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण जन्म लिए थे. इस तिथि को भगवान कृष्ण के आगमन की उत्सव श्रद्धालु मनाते हैं. इस वर्ष छह साल बाद जयंती योग में भगवान जन्म लेंगे, इससे श्रद्धालुओं में खासा उत्साह दिख रहा है.

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राजधानी रांची से महज 8 किलोमीटर दूर बोड़ेया बस्ती में राधे-कृष्ण की मदन मोहन मंदिर है, जिसका निर्माण लक्ष्मी नारायण तिवारी ने साल 1665 में कराया था. इस मंदिर में वृंदावन की परंपरा के अनुरूप पूजा-अर्चना की जाती है. इस मंदिर की कई मान्यताएं भी हैं. श्रद्धालु भगवान के प्रति आस्था रखकर मनोकामनाएं पूर्ण की कामना करते हैं तो उनकी कामना भी पूर्ण होती है. इसके साथ ही श्रद्धालु मांगलिक कार्य शुरू करने से पहले राधा-कृष्ण से आशीर्वाद लेकर ही शुरू करते हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

कोरोना गाइडलाइन का किया जा रहा पालन
जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर परिसर में भव्य कार्यक्रम का आयोजित किया जाता है. लेकिन पिछले साल की तरह इस वर्ष भी कोरोना की वजह से भव्य क्रायक्रम आयोजित नहीं किया जा रहा है. कोरोना गाइडलाइन के तहत श्रद्धालु भगवान का दर्शन करेंगे और साधारण तरीके से भजन संध्या का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा, जिसका श्रद्धालु लुत्फ ले सकेंगे. मंदिर के पुजारी कहते है कि जन्माष्टमी के दिन भगवान का पांच समय पर वस्त्र बदलने के साथ साथ पांच बार भोग भी लगाते है.

शाम में भव्य कार्यक्रम

मंदिर आए श्रद्धालु ने बताया कि मंदिर में विधि विधान के पूजा-पाठ किया जाता है. शाम में भव्य कार्यक्रम का आयोजित किया जाता है. उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण सबको सुरक्षित रखेंगे.

लक्ष्मी नारायण तिवारी ने बनवाया था मंदिर

इस मंदिर का निर्माण एक अद्भुत कहानी से जुड़ी है. आज से साढ़े तीन सौ साल पहले छोटानागपुर प्रांत में ब्राह्मणों की घोर कमी थी. उस वक्त रातू महाराज को पूजा पाठ कराने में ब्राह्मणों की कमी खलती थी. जिसको लेकर रातू महाराजा ने 56 ब्राह्मणों का जत्था यूपी के कनौती से बुलाया और छोटानागपुर के अलग-अलग हिस्सों में बसाया. इसी में एक जत्था रांची के बोड़ेया में आ बसा. एक समय की बात है जब लक्ष्मी नारायण तिवारी ने रातू महाराज की सेवा के लिए उन्हें आमंत्रित किया और जगराता महाराज उनके आमंत्रण को स्वीकार करते हुए पहुंचे. जगराता महाराज की सेवा सत्कार करने के बाद हाथी पर सोना लादकर विदाई दिए थे. लेकिन आधा किलोमीटर दूर जाते ही सोना से लदा हाथी बैठ गया और उठ नहीं. उस समय रातू महाराज को ब्राह्मण की ओर से दिए उपहार अशुभ महसूस हुआ. फिर इस उपहार को लौटा दिया गया. इसके बाद लक्ष्मी नारायण तिवारी ने उस उपहार को बेचकर मंदिर का निर्माण कराया था.

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355 वर्ष पुराना है मंदिर
झारखंड में ऐसे कई प्राचीन धरोहर है. इनमें एक है रांची के बोड़ेया में स्थित है मदन मोहन मंदिर. 355 साल पुराना इस प्राचीन मंदिर पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है. इसकी वजह से अब तक इस मंदिर को राजकीय पहचान नहीं मिल पाई है. लिहाजा इस प्राचीन मंदिर की पहचान महज कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रह गई है. रांची ही नहीं, बल्कि झारखंड के प्राचीन मंदिरों में एक इस मंदिर के संस्थापक के वंशजों ने ट्रस्ट बनाने की मांग की, पर अब तक इस दिशा में पहल नही की जा सकी है.

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