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आदिवासी वोट बैंक पर सीएम हेमंत की है पकड़, कब होगी छत्तीसगढ़ चुनाव में इंट्री, क्या सोच रही है कांग्रेस, क्या कहते हैं जानकार

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव प्रचार में सीएम हेमंत सोरेन की इंट्री कब होगी? आदिवासी वोट बैंक पर सीएम हेमंत सोरेन की पकड़ है. फिर भी इसको लेकर कांग्रेस क्या सोच रही है और क्या कहते हैं जानकार, जानिए ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट से. Why CM Hemant Soren not being entered in Chhattisgarh elections.

Know why Jharkhand CM Hemant Soren not go to campaign for Chhattisgarh assembly elections 2023
जानिए क्यों छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव प्रचार में सीएम हेमंत सोरेन
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 30, 2023, 7:22 PM IST

Updated : Oct 30, 2023, 7:34 PM IST

रांचीः बेशक, पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. लेकिन झारखंड के नजरिए से देखें तो इसका छत्तीसगढ़ से बेहद करीबी वास्ता रहा है. इसकी वजह है आदिवासी संस्कृति. एक और समानता है एसटी सीटों की संख्या को लेकर. दोनों राज्यों में एसटी के लिए रिजर्व सीटें सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाती है. अब सवाल है कि आदिवासी वोट बैंक में मजबूत पकड़ रखने वाले सीएम हेमंत का इंडिया गठबंधन खासकर कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में अब तक क्यों इस्तेमाल नहीं किया. पिछले दिनों यह सवाल उठा तो खुद सीएम ने कहा कि हमने वहां प्रत्याशी तो दिया नहीं है. लेकिन जहां तक प्रचार प्रसार की बात है तो अभी बता पाना संभव नहीं है.

इसे भी पढ़ें- चुनाव प्रचार में सीएम हेमंत सोरेन को नहीं बुलाने पर झारखंड की राजनीति गर्म, जानिए मुख्यमंत्री और बाकी नेताओं ने क्या कहा

वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा का कहना है कि विधानसभा का चुनाव इंडिया गठबंधन का चुनाव नहीं है. केजरीवाल की पार्टी छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ रही है. मध्य प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ रही है. एमपी में जदयू भी लड़ रही है. इन राज्यों में कांग्रेस चुनाव लड़ रही है. इसलिए किसी भी दूसरे दल के नेता को बुलाना कोई जरूरी नहीं दिख रहा है. अगर हेमंत सोरेन जाते हैं तो गठबंधन के दूसरे दलों को तकलीफ होती. हालांकि कांग्रेस के पास तर्क है कि झारखंड में हम झामुमो के साथ सरकार चला रहे हैं. दूसरी बात यह है कि हेमंत सोरेन के जाने से वोट पर असर पड़ जाएगा, ऐसा नहीं है. अगर ओड़िशा में चुनाव होता तो उनकी प्रासंगिकता जरूर होती.

वरिष्ठ पत्रकार शंभु नाथ चौधरी के मुताबिक सीएम हेमंत सोरेन का अबतक छत्तीसगढ़ के चुनाव प्रचार में नहीं उतारे जाने की कोई खास वजह नजर नहीं आ रही है. छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल के साथ हेमंत सोरेन के अच्छे ताल्लुकात रहे हैं. आदिवासी महोत्सव को लेकर दोनों नेता एक दूसरे को आमंत्रित करते रहे हैं. संभव है कि यह कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा हो. हो सकता है कि 17 नवंबर को 70 सीटों पर दूसरे चरण के चुनाव से पहले सीएम हेमंत को बुलाया जाए. वैसे भी झारखंड के कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय कह चुके हैं. कि झारखंड में चुनाव हेमंत सोरेन के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. इसलिए खटास वाली कोई बात नहीं दिखती.

छत्तीसगढ़ में भी एसटी के पास सत्ता की चाबीः झारखंड में 28 सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं तो छत्तीसगढ़ में 29 सीटें. 2014 में 11 एसटी सीटें जीतकर भाजपा झारखंड की सत्ता तक पहुंचने में कायमाब हुई थी. लेकिन 2019 के चुनाव में सिर्फ दो एसटी सीटों पर सिमट गई. भाजपा का वही हाल छत्तीसगढ़ में हुआ. 2013 में एसटी की 11 सीटें जीतने वाली भाजपा 2018 में सिर्फ 03 एसटी सीटें जीत पाई. यही नहीं साल 2013 में एससी के लिए रिजर्व 10 सीटों में से 09 सीटें जीतने वाली भाजपा 2018 में 07 सीटें गंवाकर 02 सीट पर आ गई. जबकि 2013 में सिर्फ एक एससी सीट जीतने वाली कांग्रेस ने 2018 में 07 एससी सीटों पर कब्जा जमा लिया. लिहाजा, सिर्फ एसटी और एससी की कुल 32 सीटों के साथ जादुई आंकड़े को छूने के लिए कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटों की कमी थी. इसकी भरपाई 36 गैर आरक्षित सीटों पर जीत के साथ पूरी हो गई. कांग्रेस को मिली जीत ने भाजपा को हाशिए पर ला दिया. साल 2008 में 50 और 2013 में 49 सीटें जीतने वाली भाजपा 2018 में महज 15 सीट पर सिमट गई. कांग्रेस ने भुपेश बघेल के नेतृत्व में रमन सिंह के किले को ढाह दिया. लिहाजा, छत्तीसगढ़ में एसटी वोट बैंक को साधने के लिए सभी पार्टियां खासकर भाजपा और कांग्रेस तमाम हथकंडे अपना रही हैं.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को झामुमो का रहा है साथः झारखंड की सीमा से लगने वाले छत्तीसगढ़ के बलरामपुर और जशपुर जिला में फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि आप झारखंड में हैं या छत्तीसगढ़ में. बॉर्डर इलाका होने की वजह से दोनों राज्यों में रोटी-बेटी का संबंध है. इन दोनों जिलों की छह विधानसभा सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं. इनपर झामुमो की पैनी नजर रहती है. साल 2013 के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी दल झामुमो ने दस प्रत्याशी उतारने की तैयारी भी की थी लेकिन कांग्रेस के आग्रह पर हेमंत सोरेन ने अपना फैसला बदल दिया था. उन्होंने कांग्रेस को हर तरह से समर्थन देने की घोषणा की थी. हालांकि उस चुनाव में भाजपा के रमन सिंह लगातार तीसरी बार बाजी मार ले गये थे. लेकिन 2018 के चुनाव ने छत्तीसगढ़ की तस्वीर बदल दी. वहां कांग्रेस के भूपेश बघेल खूंटा गाड़े बैठे हैं. इस राज्य पर कब्जा जमाने के लिए भाजपा ने एड़ी चोटी लगा दी है.

सीएम हेमंत सोरेन और सीएम भूपेश के बीच घनिष्ठताः 2019 के चुनावी रिजल्ट के बाद सत्ताधारी दल झामुमो और कांग्रेस में लंबे समय तक वाद-विवाद चलता रहा. समन्वय समिति बनाने में विलंब पर कई सवाल उठे. बोर्ड, निगम के खाली रहने पर भी खींचतान चली. लेकिन इन सबसे परे झारखंड के सीएम हेमंत और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल का एक दूसरे के प्रति सम्मान और घनिष्ठता में कोई कमी नहीं दिखी. साल 2021 में रायपुर में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव एवं राज्योत्सव में सीएम हेमंत को उद्घाटन समारोह का मुख्य अतिथि बनाकर बुलाया गया. उन्होंने भी 2022 में विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर पहली बार आयोजित जनजातीय महोत्सव में सीएम भूपेश बघेल को मुख्य अतिथि बनाकर आमंत्रित किया. दोनों कार्यक्रमों में दोनों नेताओं ने उस समय की परिस्थिति का हवाला देकर केंद्र सरकार और केंद्रीय एजेंसियों पर जमकर हमले किए थे.

रांचीः बेशक, पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. लेकिन झारखंड के नजरिए से देखें तो इसका छत्तीसगढ़ से बेहद करीबी वास्ता रहा है. इसकी वजह है आदिवासी संस्कृति. एक और समानता है एसटी सीटों की संख्या को लेकर. दोनों राज्यों में एसटी के लिए रिजर्व सीटें सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाती है. अब सवाल है कि आदिवासी वोट बैंक में मजबूत पकड़ रखने वाले सीएम हेमंत का इंडिया गठबंधन खासकर कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में अब तक क्यों इस्तेमाल नहीं किया. पिछले दिनों यह सवाल उठा तो खुद सीएम ने कहा कि हमने वहां प्रत्याशी तो दिया नहीं है. लेकिन जहां तक प्रचार प्रसार की बात है तो अभी बता पाना संभव नहीं है.

इसे भी पढ़ें- चुनाव प्रचार में सीएम हेमंत सोरेन को नहीं बुलाने पर झारखंड की राजनीति गर्म, जानिए मुख्यमंत्री और बाकी नेताओं ने क्या कहा

वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा का कहना है कि विधानसभा का चुनाव इंडिया गठबंधन का चुनाव नहीं है. केजरीवाल की पार्टी छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ रही है. मध्य प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ रही है. एमपी में जदयू भी लड़ रही है. इन राज्यों में कांग्रेस चुनाव लड़ रही है. इसलिए किसी भी दूसरे दल के नेता को बुलाना कोई जरूरी नहीं दिख रहा है. अगर हेमंत सोरेन जाते हैं तो गठबंधन के दूसरे दलों को तकलीफ होती. हालांकि कांग्रेस के पास तर्क है कि झारखंड में हम झामुमो के साथ सरकार चला रहे हैं. दूसरी बात यह है कि हेमंत सोरेन के जाने से वोट पर असर पड़ जाएगा, ऐसा नहीं है. अगर ओड़िशा में चुनाव होता तो उनकी प्रासंगिकता जरूर होती.

वरिष्ठ पत्रकार शंभु नाथ चौधरी के मुताबिक सीएम हेमंत सोरेन का अबतक छत्तीसगढ़ के चुनाव प्रचार में नहीं उतारे जाने की कोई खास वजह नजर नहीं आ रही है. छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल के साथ हेमंत सोरेन के अच्छे ताल्लुकात रहे हैं. आदिवासी महोत्सव को लेकर दोनों नेता एक दूसरे को आमंत्रित करते रहे हैं. संभव है कि यह कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा हो. हो सकता है कि 17 नवंबर को 70 सीटों पर दूसरे चरण के चुनाव से पहले सीएम हेमंत को बुलाया जाए. वैसे भी झारखंड के कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय कह चुके हैं. कि झारखंड में चुनाव हेमंत सोरेन के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. इसलिए खटास वाली कोई बात नहीं दिखती.

छत्तीसगढ़ में भी एसटी के पास सत्ता की चाबीः झारखंड में 28 सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं तो छत्तीसगढ़ में 29 सीटें. 2014 में 11 एसटी सीटें जीतकर भाजपा झारखंड की सत्ता तक पहुंचने में कायमाब हुई थी. लेकिन 2019 के चुनाव में सिर्फ दो एसटी सीटों पर सिमट गई. भाजपा का वही हाल छत्तीसगढ़ में हुआ. 2013 में एसटी की 11 सीटें जीतने वाली भाजपा 2018 में सिर्फ 03 एसटी सीटें जीत पाई. यही नहीं साल 2013 में एससी के लिए रिजर्व 10 सीटों में से 09 सीटें जीतने वाली भाजपा 2018 में 07 सीटें गंवाकर 02 सीट पर आ गई. जबकि 2013 में सिर्फ एक एससी सीट जीतने वाली कांग्रेस ने 2018 में 07 एससी सीटों पर कब्जा जमा लिया. लिहाजा, सिर्फ एसटी और एससी की कुल 32 सीटों के साथ जादुई आंकड़े को छूने के लिए कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटों की कमी थी. इसकी भरपाई 36 गैर आरक्षित सीटों पर जीत के साथ पूरी हो गई. कांग्रेस को मिली जीत ने भाजपा को हाशिए पर ला दिया. साल 2008 में 50 और 2013 में 49 सीटें जीतने वाली भाजपा 2018 में महज 15 सीट पर सिमट गई. कांग्रेस ने भुपेश बघेल के नेतृत्व में रमन सिंह के किले को ढाह दिया. लिहाजा, छत्तीसगढ़ में एसटी वोट बैंक को साधने के लिए सभी पार्टियां खासकर भाजपा और कांग्रेस तमाम हथकंडे अपना रही हैं.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को झामुमो का रहा है साथः झारखंड की सीमा से लगने वाले छत्तीसगढ़ के बलरामपुर और जशपुर जिला में फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि आप झारखंड में हैं या छत्तीसगढ़ में. बॉर्डर इलाका होने की वजह से दोनों राज्यों में रोटी-बेटी का संबंध है. इन दोनों जिलों की छह विधानसभा सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं. इनपर झामुमो की पैनी नजर रहती है. साल 2013 के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी दल झामुमो ने दस प्रत्याशी उतारने की तैयारी भी की थी लेकिन कांग्रेस के आग्रह पर हेमंत सोरेन ने अपना फैसला बदल दिया था. उन्होंने कांग्रेस को हर तरह से समर्थन देने की घोषणा की थी. हालांकि उस चुनाव में भाजपा के रमन सिंह लगातार तीसरी बार बाजी मार ले गये थे. लेकिन 2018 के चुनाव ने छत्तीसगढ़ की तस्वीर बदल दी. वहां कांग्रेस के भूपेश बघेल खूंटा गाड़े बैठे हैं. इस राज्य पर कब्जा जमाने के लिए भाजपा ने एड़ी चोटी लगा दी है.

सीएम हेमंत सोरेन और सीएम भूपेश के बीच घनिष्ठताः 2019 के चुनावी रिजल्ट के बाद सत्ताधारी दल झामुमो और कांग्रेस में लंबे समय तक वाद-विवाद चलता रहा. समन्वय समिति बनाने में विलंब पर कई सवाल उठे. बोर्ड, निगम के खाली रहने पर भी खींचतान चली. लेकिन इन सबसे परे झारखंड के सीएम हेमंत और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल का एक दूसरे के प्रति सम्मान और घनिष्ठता में कोई कमी नहीं दिखी. साल 2021 में रायपुर में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव एवं राज्योत्सव में सीएम हेमंत को उद्घाटन समारोह का मुख्य अतिथि बनाकर बुलाया गया. उन्होंने भी 2022 में विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर पहली बार आयोजित जनजातीय महोत्सव में सीएम भूपेश बघेल को मुख्य अतिथि बनाकर आमंत्रित किया. दोनों कार्यक्रमों में दोनों नेताओं ने उस समय की परिस्थिति का हवाला देकर केंद्र सरकार और केंद्रीय एजेंसियों पर जमकर हमले किए थे.

Last Updated : Oct 30, 2023, 7:34 PM IST
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