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झारखंड राज्य स्थापना विशेष: जानिए, 22 साल बाद क्या है रिम्स अस्पताल का हाल

झारखंड राज्य गठन के 22 साल पूरे हो रहे हैं. दो दशक के बाद रिम्स अस्पताल का हाल (current situation of RIMS Hospital) क्या है, सुविधाएं कितनी बढ़ीं, लोगों का विश्वास कितना जगा. पढ़िए, रिम्स की वर्तमान हालात बयां करती ईटीवी भारत की ये खास रिपोर्ट.

Know current situation of RIMS Hospital after 22 years of Jharkhand state foundation
रिम्स
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Published : Nov 3, 2022, 10:04 AM IST

Updated : Nov 3, 2022, 2:26 PM IST

रांची: झारखंड राज्य गठन के दो दशक हो रहे हैं. राज्य का सबसे बड़ा धरोहर कहा जाने वाला राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान भी करीब 20 साल का हो गया. क्योंकि वर्ष 2002 में रिम्स को आरएमसीएच (RMCH) से बदलकर रिम्स (RIMS) किया गया. वर्ष 2002 में रिम्स बनने के बाद यह उम्मीद जताई (RIMS Hospital after 22 years) गई कि अब राज्य का सबसे बड़ा स्वास्थ्य केंद्र झारखंड के सुदूर और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को लाभ पहुंचा पाएगा.

इसे भी पढ़ें- रिम्स के पोस्टमार्टम हाउस का पोस्टमार्टम, कर्मचारियों ने खोली पोल!

झारखंड में आज भी कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां पर ना तो अच्छे स्वास्थ्य केंद्र हैं और ना ही बेहतर व्यवस्था. ऐसे में ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोग आज भी रिम्स के भरोसे ही अपना इलाज कराते हैं. क्योंकि यहां पर गरीबों को मुफ्त में बेहतर इलाज मिल पाता है. वर्ष 2002 में आरएमसीएच से रिम्स होने के बाद कई बदलाव आए जैसे भवन निर्माण, जांच केंद्र, इमरजेंसी सेंटर्स के साथ साथ ऐसे कई वार्ड भी बनाए (current situation of RIMS Hospital) गए, जो राज्य गठन से पहले नहीं थे. 20 वर्ष पूर्व यह रिम्स 1005 बेड का अस्पताल हुआ करता था. लेकिन वर्तमान में इसका विस्तार 2175 बेड तक हो गया है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

रिम्स में करीब 30 वर्ष तक सेवा देने के बाद सेवानिवृत्त हुए डॉक्टर लाल बहादुर मांझी बताते हैं कि 1990 के दशक में वर्तमान का रिम्स अस्पताल उस वक्त आरएमसीएच के नाम से जाना जाता था. पिछले 30 वर्षों की बात करें तो कई परिवर्तन देखने को मिले हैं, खासकर जबसे झारखंड का गठन हुआ है तब से रिम्स को बेहतर बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि उस वक्त भी इमरजेंसी केस आते थे और डॉक्टर इलाज कर मरीज की जान बचाते थे. लेकिन अब मरीजों की संख्या दोगुनी हुई है लेकिन संसाधन उस स्तर से नहीं बढ़ पाई है.

उन्होंने बताया कि रिम्स अस्पताल उनके घर की तरह है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन का आधा समय रिम्स में ही बिताया है. डॉक्टर लाल बहादुर माझी बताते हैं कि सिर्फ सरकार और प्रबंधन के मदद से ही रिम्स को बेहतर नहीं बनाया जा सकता बल्कि आम लोगों को भी रिम्स को बेहतर बनाने के लिए आगे आना होगा. रिम्स में कार्यरत वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. प्रभात कुमार अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि जब रिम्स को एम्स की तर्ज पर बनाया गया था तो यहां के डॉक्टरों और कर्मचारियों की उम्मीद बढ़ी थी कि अब उन्हें बेहतर सुविधा मिलेगा. जिससे वो मरीजों को नई तकनीक के साथ स्वास्थ सुविधा दे सकेंगे. लेकिन इस 22 वर्षों में भी रिम्स में आने वाले मरीजों को एम्स वाली सुविधा नहीं मिल पा रही है.

इसे भी पढ़ें- RIMS: खुद सलाइन की बोतल लेकर शौचालय जाने को मजबूर मरीज, सामने आई डॉक्टर्स की कोताही

आपसी सहभागिता से बदलेगा रिम्स का हालः वहीं उन्होंने बताया कि प्रबंधन और सरकार को तो अस्पताल पर ध्यान देने की आवश्यकता है. साथ ही साथ आम लोग और राज्य भर में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को भी रिम्स को आगे बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे. उन्होंने बताया कि आज की तारीख में प्रतिदिन रिम्स में हजारों मरीज आते हैं. उसमें ज्यादातर वैसे मरीज होते हैं जो छोटी सी छोटी बीमारियों के लिए रिम्स पहुंचते हैं जबकि उसके लिए सरकारी स्तर पर कई अस्पताल बनाए गए हैं. उन्होंने लोगों और स्वास्थ्य विभाग से अपील करते हुए कहा कि रेफरल मरीज को तभी भेजें जब उसकी स्थिति गंभीर हो अन्यथा रिम्स के डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों पर साधारण मरीज भेजकर कार्य बोझ ना बढ़ाएं, इससे गंभीर मरीजों के इलाज पर असर पड़ता है.

रिम्स में मैनपावर की कमीः वर्तमान में समय में करीब 2175 बेड हैं और सीनियर डॉक्टर की बात करें तो वह महज डेढ़ सौ से दो सौ के करीब हैं. इस आंकड़े को देखकर यह तो अनुमान लगाया जा सकता है कि मरीजों को समय पर इलाज क्यों नहीं मिल पाता. डॉ प्रभात कुमार बताते हैं रिम्स को बेहतर बनाने के लिए और भी ज्यादा संसाधन को बढ़ाने की आवश्यकता है. साथ ही साथ चिकित्सक और अन्य मैन पावर की भी नियुक्ति जरूरी है ताकि प्रत्येक मरीज को समय पर इलाज मिल सके. वर्तमान में करीब 2200 मरीज पर रिम्स में महज 300 नर्सेज सेवा दे रही हैं. जबकि एक्सपर्ट्स बताते हैं कि 2200 मरीज पर कम से कम 700 से 800 नर्स की आवश्यक्ता है.

रिम्स में भवन निर्माण की बात करें तो वर्ष 2012 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र सिंह के कार्यकाल के दौरान सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक बनाए गए, जिसमें कई विभाग खोले गए हैं. वहीं वर्ष 2014 के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के कार्यकाल में नए एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक, स्टेडियम ऑडिटोरियम पेइंग वार्ड जैसे महत्वपूर्ण भवन का निर्माण किया गया. पिछले 15 वर्षों में बने सभी भवन कहीं ना कहीं रिम्स में आने वाले मजबूर और लाचार मरीजों को लाभ पहुंचा रहा है. लेकिन सवाल सवाल उठता है कि आखिर इतना संसाधन मिलने के बावजूद भी रिम्स अपनी कुव्यवस्थाओं के कारण क्यों चर्चा में बना रहता है.

इसे भी पढ़ें- दस्तावेजों में सिमटी सुविधाएं! 20 साल से सिर्फ कागजों में ही एम्स की तर्ज पर सुविधा दे रहा रिम्स

कुव्यवस्थाओं के बीच रिम्स: रिम्स न्यूरोलॉजी विभाग के वरिष्ठ चिकित्सा डॉ. विकास बताते हैं कि राज्य का राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान ही एकमात्र ऐसा स्वास्थ्य केंद्र है, जहां पर सभी तरह के इलाज लोगों को मिल सकता है. वो बताते हैं कि झारखंड के मूल निवासी होने के कारण वह बचपन से ही आरएमसीएच आते थे और यहां पर कुव्यवस्थाओं का आलम भी देखा है. लेकिन आरएमसीएच जब रिम्स बना तो यहां पर व्यवस्थाओं में सुधार हुआ. लेकिन स्थानीय प्रबंधन और सरकारी अधिकारियों की वजह से अभी भी कई ऐसी समस्याएं हैं, जो मरीजों को दिन प्रतिदिन परेशान करते हैं. उन्होंने बताया कि रिम्स में पढ़ने वाले छात्र सिर्फ झारखंड और देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी झारखंड का नाम रोशन कर रहे हैं. लेकिन दुर्भाग्य है कि उन छात्रों को वर्तमान में रिम्स प्रबंधन ना तो बेहतर हॉस्टल फैसिलिटी दे पाते हैं और ना ही उन्हें अन्य सुविधा मुहैया हो पाती है, जिस वजह से कई बार अच्छे छात्र कॉलेज छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं.

राज्य के 22 साल पूरे होने पर ईटीवी भारत की टीम ने जब रिम्स के विभिन्न चिकित्सकों से बात की तो लगभग सभी चिकित्सकों ने एक स्वर में कहा कि सिर्फ संसाधन ही नहीं बल्कि व्यवस्था को सुधार करने की जरूरत है. क्योंकि आज भी रिम्स में कई ऐसे चिकित्सक हैं जो पिछले कई वर्षों से प्रमोशन नहीं ले पाए हैं. रिम्स जैसे संस्थान में अगर समय पर चिकित्सकों को प्रमोशन और उनको सम्मान नहीं मिलता है तो निश्चित रूप से डॉक्टरों का उत्साह कम होता है. ऐसे में इसका प्रभाव यहां आने वाले मरीजों को झेलना पड़ता है.

रिम्स में कई विभाग मौजूदः आज की तारीख में रिम्स के कार्डियोलॉजी, सीटीवीएस, ऑन्कोलॉजी, ऑर्थो विभाग के चिकित्सकों ने ऐसे ऑपरेशन किए हैं जो हमेशा ही रिम्स के इतिहास में याद किया जाएगा. लेकिन दूसरी ओर कई बार ऐसी भी तस्वीरें देखने को मिलती है जो चिकित्सकों और इलाज के अभाव में गरीब मरीज अपनी जान गंवा देते हैं. आज रिम्स में नवजात बच्चे के लिए नियोनाटोलॉजी डिपार्टमेंट है तो वहीं पेडियाट्रिक सर्जरी भी बनाए गए हैं. सिर्फ नवजात बच्चे के लिए ही नहीं बल्कि बुजुर्गों को बेहतर स्वास्थ्य लाभ देने के लिए जिरियाट्रिक डिपार्टमेंट भी बनाए गए हैं. इनके अलावा जेनेटिक डिपार्टमेंट, मेडिकल रिकॉर्ड कीपिंग, यूरोलॉजी डिपार्टमेंट सहित कई नए डिपार्टमेंट बनाए गए हैं.

इसे भी पढ़ें- MBBS की सीट नहीं बचा पा रहा झारखंड! फैकल्टी की कमी से एनएमसी नए नामांकन पर लगा सकती है रोक

मेडिकल की पढ़ाई में बुनियादी सुविधाओं की दरकारः रिम्स सिर्फ क्लिनिकल डिपार्टमेंट में ही नहीं बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी बेहतर करने का प्रयास कर रहा है. वर्तमान में करीब 40 रिसर्च रिम्स के छात्र कर रहे हैं जो आने वाले समय में मेडिकल साइंस के क्षेत्र में आम लोगों को बेहतर सुविधा देंगे. रिम्स के जनसंपर्क अधिकारी डॉ राजीव रंजन बताते हैं पिछले दिनों की तुलना में एमबीबीएस की सीट भी बढ़ाई गई है. वहीं सिर्फ एमबीबीएस ही नहीं बल्कि मास्टर और डॉक्टरेट की डिग्री दिलाने के लिए रिम्स छात्रों को सुविधा दे रहा है.

रिम्स के जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ. राजीव रंजन बताते हैं वर्ष 1960 से ही रिम्स अस्पताल किसी ना किसी रूप में राज्य के मरीजों की सेवा कर रहा है. अस्पताल की इसी परंपरा को आज भी यहां के चिकित्सक और प्रबंधन के लोग आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में रिम्स से जुड़े सभी लोग एकजुट होकर अस्पताल को और भी ऊपर ले जाने की कोशिश करेंगे ताकि राज्य की आन बान शान कहे जाने वाले राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान पूरे देश और विश्व में राज्य का नाम रोशन कर सकें.

रांची: झारखंड राज्य गठन के दो दशक हो रहे हैं. राज्य का सबसे बड़ा धरोहर कहा जाने वाला राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान भी करीब 20 साल का हो गया. क्योंकि वर्ष 2002 में रिम्स को आरएमसीएच (RMCH) से बदलकर रिम्स (RIMS) किया गया. वर्ष 2002 में रिम्स बनने के बाद यह उम्मीद जताई (RIMS Hospital after 22 years) गई कि अब राज्य का सबसे बड़ा स्वास्थ्य केंद्र झारखंड के सुदूर और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को लाभ पहुंचा पाएगा.

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झारखंड में आज भी कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां पर ना तो अच्छे स्वास्थ्य केंद्र हैं और ना ही बेहतर व्यवस्था. ऐसे में ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोग आज भी रिम्स के भरोसे ही अपना इलाज कराते हैं. क्योंकि यहां पर गरीबों को मुफ्त में बेहतर इलाज मिल पाता है. वर्ष 2002 में आरएमसीएच से रिम्स होने के बाद कई बदलाव आए जैसे भवन निर्माण, जांच केंद्र, इमरजेंसी सेंटर्स के साथ साथ ऐसे कई वार्ड भी बनाए (current situation of RIMS Hospital) गए, जो राज्य गठन से पहले नहीं थे. 20 वर्ष पूर्व यह रिम्स 1005 बेड का अस्पताल हुआ करता था. लेकिन वर्तमान में इसका विस्तार 2175 बेड तक हो गया है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

रिम्स में करीब 30 वर्ष तक सेवा देने के बाद सेवानिवृत्त हुए डॉक्टर लाल बहादुर मांझी बताते हैं कि 1990 के दशक में वर्तमान का रिम्स अस्पताल उस वक्त आरएमसीएच के नाम से जाना जाता था. पिछले 30 वर्षों की बात करें तो कई परिवर्तन देखने को मिले हैं, खासकर जबसे झारखंड का गठन हुआ है तब से रिम्स को बेहतर बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि उस वक्त भी इमरजेंसी केस आते थे और डॉक्टर इलाज कर मरीज की जान बचाते थे. लेकिन अब मरीजों की संख्या दोगुनी हुई है लेकिन संसाधन उस स्तर से नहीं बढ़ पाई है.

उन्होंने बताया कि रिम्स अस्पताल उनके घर की तरह है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन का आधा समय रिम्स में ही बिताया है. डॉक्टर लाल बहादुर माझी बताते हैं कि सिर्फ सरकार और प्रबंधन के मदद से ही रिम्स को बेहतर नहीं बनाया जा सकता बल्कि आम लोगों को भी रिम्स को बेहतर बनाने के लिए आगे आना होगा. रिम्स में कार्यरत वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. प्रभात कुमार अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि जब रिम्स को एम्स की तर्ज पर बनाया गया था तो यहां के डॉक्टरों और कर्मचारियों की उम्मीद बढ़ी थी कि अब उन्हें बेहतर सुविधा मिलेगा. जिससे वो मरीजों को नई तकनीक के साथ स्वास्थ सुविधा दे सकेंगे. लेकिन इस 22 वर्षों में भी रिम्स में आने वाले मरीजों को एम्स वाली सुविधा नहीं मिल पा रही है.

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आपसी सहभागिता से बदलेगा रिम्स का हालः वहीं उन्होंने बताया कि प्रबंधन और सरकार को तो अस्पताल पर ध्यान देने की आवश्यकता है. साथ ही साथ आम लोग और राज्य भर में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को भी रिम्स को आगे बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे. उन्होंने बताया कि आज की तारीख में प्रतिदिन रिम्स में हजारों मरीज आते हैं. उसमें ज्यादातर वैसे मरीज होते हैं जो छोटी सी छोटी बीमारियों के लिए रिम्स पहुंचते हैं जबकि उसके लिए सरकारी स्तर पर कई अस्पताल बनाए गए हैं. उन्होंने लोगों और स्वास्थ्य विभाग से अपील करते हुए कहा कि रेफरल मरीज को तभी भेजें जब उसकी स्थिति गंभीर हो अन्यथा रिम्स के डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों पर साधारण मरीज भेजकर कार्य बोझ ना बढ़ाएं, इससे गंभीर मरीजों के इलाज पर असर पड़ता है.

रिम्स में मैनपावर की कमीः वर्तमान में समय में करीब 2175 बेड हैं और सीनियर डॉक्टर की बात करें तो वह महज डेढ़ सौ से दो सौ के करीब हैं. इस आंकड़े को देखकर यह तो अनुमान लगाया जा सकता है कि मरीजों को समय पर इलाज क्यों नहीं मिल पाता. डॉ प्रभात कुमार बताते हैं रिम्स को बेहतर बनाने के लिए और भी ज्यादा संसाधन को बढ़ाने की आवश्यकता है. साथ ही साथ चिकित्सक और अन्य मैन पावर की भी नियुक्ति जरूरी है ताकि प्रत्येक मरीज को समय पर इलाज मिल सके. वर्तमान में करीब 2200 मरीज पर रिम्स में महज 300 नर्सेज सेवा दे रही हैं. जबकि एक्सपर्ट्स बताते हैं कि 2200 मरीज पर कम से कम 700 से 800 नर्स की आवश्यक्ता है.

रिम्स में भवन निर्माण की बात करें तो वर्ष 2012 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र सिंह के कार्यकाल के दौरान सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक बनाए गए, जिसमें कई विभाग खोले गए हैं. वहीं वर्ष 2014 के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के कार्यकाल में नए एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक, स्टेडियम ऑडिटोरियम पेइंग वार्ड जैसे महत्वपूर्ण भवन का निर्माण किया गया. पिछले 15 वर्षों में बने सभी भवन कहीं ना कहीं रिम्स में आने वाले मजबूर और लाचार मरीजों को लाभ पहुंचा रहा है. लेकिन सवाल सवाल उठता है कि आखिर इतना संसाधन मिलने के बावजूद भी रिम्स अपनी कुव्यवस्थाओं के कारण क्यों चर्चा में बना रहता है.

इसे भी पढ़ें- दस्तावेजों में सिमटी सुविधाएं! 20 साल से सिर्फ कागजों में ही एम्स की तर्ज पर सुविधा दे रहा रिम्स

कुव्यवस्थाओं के बीच रिम्स: रिम्स न्यूरोलॉजी विभाग के वरिष्ठ चिकित्सा डॉ. विकास बताते हैं कि राज्य का राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान ही एकमात्र ऐसा स्वास्थ्य केंद्र है, जहां पर सभी तरह के इलाज लोगों को मिल सकता है. वो बताते हैं कि झारखंड के मूल निवासी होने के कारण वह बचपन से ही आरएमसीएच आते थे और यहां पर कुव्यवस्थाओं का आलम भी देखा है. लेकिन आरएमसीएच जब रिम्स बना तो यहां पर व्यवस्थाओं में सुधार हुआ. लेकिन स्थानीय प्रबंधन और सरकारी अधिकारियों की वजह से अभी भी कई ऐसी समस्याएं हैं, जो मरीजों को दिन प्रतिदिन परेशान करते हैं. उन्होंने बताया कि रिम्स में पढ़ने वाले छात्र सिर्फ झारखंड और देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी झारखंड का नाम रोशन कर रहे हैं. लेकिन दुर्भाग्य है कि उन छात्रों को वर्तमान में रिम्स प्रबंधन ना तो बेहतर हॉस्टल फैसिलिटी दे पाते हैं और ना ही उन्हें अन्य सुविधा मुहैया हो पाती है, जिस वजह से कई बार अच्छे छात्र कॉलेज छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं.

राज्य के 22 साल पूरे होने पर ईटीवी भारत की टीम ने जब रिम्स के विभिन्न चिकित्सकों से बात की तो लगभग सभी चिकित्सकों ने एक स्वर में कहा कि सिर्फ संसाधन ही नहीं बल्कि व्यवस्था को सुधार करने की जरूरत है. क्योंकि आज भी रिम्स में कई ऐसे चिकित्सक हैं जो पिछले कई वर्षों से प्रमोशन नहीं ले पाए हैं. रिम्स जैसे संस्थान में अगर समय पर चिकित्सकों को प्रमोशन और उनको सम्मान नहीं मिलता है तो निश्चित रूप से डॉक्टरों का उत्साह कम होता है. ऐसे में इसका प्रभाव यहां आने वाले मरीजों को झेलना पड़ता है.

रिम्स में कई विभाग मौजूदः आज की तारीख में रिम्स के कार्डियोलॉजी, सीटीवीएस, ऑन्कोलॉजी, ऑर्थो विभाग के चिकित्सकों ने ऐसे ऑपरेशन किए हैं जो हमेशा ही रिम्स के इतिहास में याद किया जाएगा. लेकिन दूसरी ओर कई बार ऐसी भी तस्वीरें देखने को मिलती है जो चिकित्सकों और इलाज के अभाव में गरीब मरीज अपनी जान गंवा देते हैं. आज रिम्स में नवजात बच्चे के लिए नियोनाटोलॉजी डिपार्टमेंट है तो वहीं पेडियाट्रिक सर्जरी भी बनाए गए हैं. सिर्फ नवजात बच्चे के लिए ही नहीं बल्कि बुजुर्गों को बेहतर स्वास्थ्य लाभ देने के लिए जिरियाट्रिक डिपार्टमेंट भी बनाए गए हैं. इनके अलावा जेनेटिक डिपार्टमेंट, मेडिकल रिकॉर्ड कीपिंग, यूरोलॉजी डिपार्टमेंट सहित कई नए डिपार्टमेंट बनाए गए हैं.

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मेडिकल की पढ़ाई में बुनियादी सुविधाओं की दरकारः रिम्स सिर्फ क्लिनिकल डिपार्टमेंट में ही नहीं बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी बेहतर करने का प्रयास कर रहा है. वर्तमान में करीब 40 रिसर्च रिम्स के छात्र कर रहे हैं जो आने वाले समय में मेडिकल साइंस के क्षेत्र में आम लोगों को बेहतर सुविधा देंगे. रिम्स के जनसंपर्क अधिकारी डॉ राजीव रंजन बताते हैं पिछले दिनों की तुलना में एमबीबीएस की सीट भी बढ़ाई गई है. वहीं सिर्फ एमबीबीएस ही नहीं बल्कि मास्टर और डॉक्टरेट की डिग्री दिलाने के लिए रिम्स छात्रों को सुविधा दे रहा है.

रिम्स के जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ. राजीव रंजन बताते हैं वर्ष 1960 से ही रिम्स अस्पताल किसी ना किसी रूप में राज्य के मरीजों की सेवा कर रहा है. अस्पताल की इसी परंपरा को आज भी यहां के चिकित्सक और प्रबंधन के लोग आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में रिम्स से जुड़े सभी लोग एकजुट होकर अस्पताल को और भी ऊपर ले जाने की कोशिश करेंगे ताकि राज्य की आन बान शान कहे जाने वाले राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान पूरे देश और विश्व में राज्य का नाम रोशन कर सकें.

Last Updated : Nov 3, 2022, 2:26 PM IST
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