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प्रकृति से जुड़ा आदिवासियों का पर्व करमा, भाई-बहन के निश्छल प्यार का है प्रतीक - भाई और बहन के प्यार को दर्शाता है करमा

करमा पर्व झारखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक है और काफी लोकप्रिय भी. यह पर्व भादो महीने के शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस पर्व को भाई-बहन के निश्छल प्यार के रूप में भी जाना जाता है.

Karma festival shows the love of brothers and sisters
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Published : Aug 28, 2020, 3:05 PM IST

Updated : Aug 28, 2020, 3:22 PM IST

रांची: करम या करमा पर्व झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों का संस्कृति से जुड़ा लोकपर्व है. यह पर्व भाई-बहन के प्रेम को दर्शाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार भादो मास की एकादशी में मनाया जाने वाला पर्व करमा आदिवासियों की परंपरा में बहुत ही खास महत्व रखता है. इस दिन आदिवासी पुरुष और महिलाएं मिलकर करम देवता की पूजा करते हैं. इस मौके पर सभी पारंपरिक परिधान लाल बार्डर के साथ सफेद रंग के साड़ी और धोती में जगह-जगह लोक नृत्य करते नजर आते हैं. आदिवासियों के साथ-साथ सनातन धर्म प्रेमी भी इस पर्व में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं, लेकिन इस बार कोरोना महामारी को देखते हुए सतर्कता के साथ करमा पर्व को मनाने का निर्णय लिया गया है.

देखें करमा स्पेशल स्टोरी

करमा के बाद होता है शुभ मुहूर्त की शुरूआत

झारखंड में पेड़-पौधे की पूजा का प्रथा सदियों चली आ रही है. प्रकृति के प्रति मानव समाज की यह परंपरा बहुत पुरानी है. आदिमानवों ने जब प्रकृति के उपकार को समझा तब से ही यह प्रकृति पर्व आदिवासियों के संस्कृति का हिस्सा बन गया. यह आज भी इसकी प्रासंगिकता है. इसमें प्रकृति का संदेश निहित है. जैसे करम में करम डाली, सरहुल में सखुआ फूल, जितिया में कतारी आदि का पूजा करते आ रहे हैं. आदिवासी करमा पर्व की पूर्व संध्या से ही इसकी तैयारी में लग जाते हैं. इस पर्व का आदिवासी बड़े ही बेसब्री से इंतजार करते हैं, क्योंकि करमा पर्व के बाद से ही आदिवासी समाज में शादी और शुभ कार्य की शुरुआत की जाती है.

करम डाली की होती है पूजा

इस दिन करम डाल की पूजा की जाती है. परंपरा के अनुसार कर्मा की डाली को पूरे रीति-रिवाज के साथ आदिवासियों के धार्मिक स्थल अखड़ा में लगाया जाता है, जिसके बाद इसकी पूजा रात में की जाती है. करमा पर्व जावा का महत्व काफी माना जाता है. तीज त्योहार के दूसरे दिन पूजा के लिए लड़कियां घर-घर घूमकर चावल, गेहूं, मक्का जैसे अलग-अलग तरह के अनाज इकट्ठा करती है और एक टोकरी में जावा बनाती हैं. पूजा के बाद जो सभी लोगों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. इस प्रसाद रूपी जावा को लोग एक-दूसरे के बाल में या फिर कान में लगाकर करमा पर्व की शुभकामनाएं देते हैं.

भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है करमा

पूजा के दौरान कर्मा और धर्मा नाम के दो भाइयों की कहानी भी सुनाई जाती है. जिसका सार करमा के महत्व को समझाता है. इस कहानी को सुने बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. माना जाता है कि इस पर्व को मनाने से गांव में खुशहाली आती है. करमा के दिन घर घर में कई प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं. करमा भाई-बहन के प्यार को दर्शाता है. महिलाएं खासकर अपने भाइयों की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य के लिए व्रत रखती है.

रांची: करम या करमा पर्व झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों का संस्कृति से जुड़ा लोकपर्व है. यह पर्व भाई-बहन के प्रेम को दर्शाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार भादो मास की एकादशी में मनाया जाने वाला पर्व करमा आदिवासियों की परंपरा में बहुत ही खास महत्व रखता है. इस दिन आदिवासी पुरुष और महिलाएं मिलकर करम देवता की पूजा करते हैं. इस मौके पर सभी पारंपरिक परिधान लाल बार्डर के साथ सफेद रंग के साड़ी और धोती में जगह-जगह लोक नृत्य करते नजर आते हैं. आदिवासियों के साथ-साथ सनातन धर्म प्रेमी भी इस पर्व में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं, लेकिन इस बार कोरोना महामारी को देखते हुए सतर्कता के साथ करमा पर्व को मनाने का निर्णय लिया गया है.

देखें करमा स्पेशल स्टोरी

करमा के बाद होता है शुभ मुहूर्त की शुरूआत

झारखंड में पेड़-पौधे की पूजा का प्रथा सदियों चली आ रही है. प्रकृति के प्रति मानव समाज की यह परंपरा बहुत पुरानी है. आदिमानवों ने जब प्रकृति के उपकार को समझा तब से ही यह प्रकृति पर्व आदिवासियों के संस्कृति का हिस्सा बन गया. यह आज भी इसकी प्रासंगिकता है. इसमें प्रकृति का संदेश निहित है. जैसे करम में करम डाली, सरहुल में सखुआ फूल, जितिया में कतारी आदि का पूजा करते आ रहे हैं. आदिवासी करमा पर्व की पूर्व संध्या से ही इसकी तैयारी में लग जाते हैं. इस पर्व का आदिवासी बड़े ही बेसब्री से इंतजार करते हैं, क्योंकि करमा पर्व के बाद से ही आदिवासी समाज में शादी और शुभ कार्य की शुरुआत की जाती है.

करम डाली की होती है पूजा

इस दिन करम डाल की पूजा की जाती है. परंपरा के अनुसार कर्मा की डाली को पूरे रीति-रिवाज के साथ आदिवासियों के धार्मिक स्थल अखड़ा में लगाया जाता है, जिसके बाद इसकी पूजा रात में की जाती है. करमा पर्व जावा का महत्व काफी माना जाता है. तीज त्योहार के दूसरे दिन पूजा के लिए लड़कियां घर-घर घूमकर चावल, गेहूं, मक्का जैसे अलग-अलग तरह के अनाज इकट्ठा करती है और एक टोकरी में जावा बनाती हैं. पूजा के बाद जो सभी लोगों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. इस प्रसाद रूपी जावा को लोग एक-दूसरे के बाल में या फिर कान में लगाकर करमा पर्व की शुभकामनाएं देते हैं.

भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है करमा

पूजा के दौरान कर्मा और धर्मा नाम के दो भाइयों की कहानी भी सुनाई जाती है. जिसका सार करमा के महत्व को समझाता है. इस कहानी को सुने बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. माना जाता है कि इस पर्व को मनाने से गांव में खुशहाली आती है. करमा के दिन घर घर में कई प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं. करमा भाई-बहन के प्यार को दर्शाता है. महिलाएं खासकर अपने भाइयों की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य के लिए व्रत रखती है.

Last Updated : Aug 28, 2020, 3:22 PM IST
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