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बीजेपी में झाविमो के विलय के ये हैं रास्ते, नहीं माने बंधु औए प्रदीप तो बाबूलाल इस रास्ते से जा सकते हैं बीजेपी

बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो का बीजेपी में मर्ज होना लगभग तय हो गया है. इसकी तैयारी भी कर ली गई है. झाविमो के पास वर्तमान में 3 विधायक हैं.

jvm merger with BJP is almost certain
बीजेपी में जाएंगे बाबूलाल
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Published : Jan 14, 2020, 7:37 PM IST

रांची: अपने गठन काल से लेकर अब तक लगातार दलबदल की मार झेलने वाला झारखंड विकास मोर्चा नए साल में नई इबारत लिखने की तैयारी कर रहा है. 2009 और 2014 के विधानसभा चुनावों में पार्टी विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद अब जेवीएम के बीजेपी में 'मर्जर' की तैयारी हो रही है. इस मर्जर को लेकर पहल खुद झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी कर रहे हैं.

झाविमो का लगभग बीजेपी में विलय होना तय

झाविमो के अंदरूनी सूत्रों की माने तो इसको लेकर बीजेपी के शीर्ष नेताओं से बात हो चुकी है. अब केवल औपचारिकताएं पूरी करनी बाकी है. हालांकि झाविमो सुप्रीमो फिलहाल भारत से बाहर हैं, लेकिन पार्टी के अंदरखाने इसकी तैयारी की जा रही है. आंकड़ों के हिसाब से 2019 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद पार्टी के पास 3 विधायक हैं. वहीं दूसरी तरफ पार्टी की कार्यसमिति फिलहाल भंग है और सारी शक्तियां झाविमो सुप्रीमो में अंतर्निहित है.

इसे भी पढ़ें:- मंत्री पद के लिए कांग्रेस विधायक लगा रहे हैं दिल्ली की दौड़, जल्द होगी तश्वीर साफ

कैसे हो सकता है विलय
कैसे होगी विलय की प्रक्रिया पूरी, झाविमो के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार पार्टी के बीजेपी में विलय के लिए एक तरफ जहां कार्यसमिति के दो तिहाई लोगों का समर्थन चाहिए, वहीं दूसरी तरफ तीन में से दो विधायक की भी सहमति जरूरी है. झाविमो के संविधान और चुनाव आयोग के प्रावधानों के अनुसार यह दोनों अहर्ताएं पूरी होने के बाद ही पार्टी का बीजेपी में विलय संवैधानिक रूप से पूर्ण माना जाएगा. पार्टी के सामने तीन रास्ते हैं. फिलहाल झाविमो की कार्यसमिति भंग है. ऐसे में सबसे पहले पार्टी की नई कार्यसमिति का गठन होगा.

कार्यसमिति के होंगे 151 सदस्य
आंकड़ों के अनुसार कार्यसमिति के 151 सदस्य होंगे. विलय के पहले तरीके के हिसाब से कार्यसमिति के गठन के बाद बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें यह विलय का प्रस्ताव रखा जाएगा. इस प्रस्ताव पर कार्यसमिति के 100 से अधिक लोगों की सहमति और मरांडी के अलावा एक और विधायक के हस्ताक्षर जरूरी हैं. अगर ऐसा संभव हुआ तो विलय का रास्ता आसान हो जाएगा.

इसे भी पढ़ें:- महागठबंधन के निशाने पर BJP, कांग्रेस ने कहा- मुद्दा विहीन पॉलिटिक्स कर रही है पार्टी

क्या है दूसरा रास्ता
अगर विलय के प्रस्ताव पर दो तिहाई विधायकों का समर्थन नहीं होता है, तो ऐसे में पार्टी अध्यक्ष अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर दोनों विधायकों को पार्टी अध्यक्ष के निर्देश को मानने का निर्देश देंगे. अन्य दो विधायक अगर पार्टी अध्यक्ष के निर्देश की अवहेलना करते हैं, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. यह कार्रवाई उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखाने जैसी हो सकती है. ऐसे में दोनों विधायकों के पार्टी से बाहर हो जाने पर पार्टी सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के लिए विलय का रास्ता आसान हो जाएगा.

पार्टी के सामने तीसरा रास्ता
संवैधानिक प्रावधानों पर नजर डालें तो अगर मरांडी के अलावा दोनों विधायक प्रदीप यादव या बंधु तिर्की दूसरे दल की तरफ चले जाते हैं, तो उनके खिलाफ दलबदल कार्रवाई के लिए पहल की जा सकेगी. इसे आधार बनाकर बाबूलाल मरांडी उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा सकते हैं. दरअसल ऐसी स्थिति पर भी विचार इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि प्रदीप यादव और बंधु तिर्की ने पहले ही अलग-अलग प्लेटफार्म पर बीजेपी में शामिल होने की संभावनाओं से इनकार किया है.

क्या होगा स्टेटस
बंधु तिर्की और प्रदीप यादव अगर दोनों विधायक विलय की मंजूरी के साथ होते हैं, तो उन्हें सदन में 2024 तक जेवीएम का विधायक माना जाएगा. अगर उन्हें जेवीएम से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है तो सदन में 2024 तक उनकी मान्यता एक निर्दलीय विधायक के रूप में रहेगी. वहीं अगर वह दूसरे दल में जाते हैं तो उनके खिलाफ दल बदल के आधार पर दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत कार्रवाई हो सकती है. उनकी विधानसभा से सदस्यता तक जा सकती है.

क्या होगा झारखंड विकास मोर्चा का
दरअसल विलय के लिए कार्यसमिति में प्रस्ताव तैयार किया जाएगा और यह प्रस्ताव मुख्य निर्वाचन आयुक्त को दिल्ली भेजा जाएगा. उसकी एक प्रतिलिपि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास भी भेजी जाएगी. चुनाव आयोग इसके बाद एक्शन में आएगा. एक तरफ जहां राज्यस्तरीय पार्टियों के लिए बनी लिस्ट से झाविमो का नाम हट जाएगा, वहीं दूसरी तरफ इस नाम से दूसरा कोई राजनीतिक संगठन भी नहीं खड़ा किया जा सकेगा. इसके बाद बीजेपी की तरफ से पार्टी अध्यक्ष झाविमो के तत्कालीन अध्यक्ष को उनके भेजे गए पत्र के आलोक में विलय की स्वीकृति के संबंध में सूचित करेंगे, फिर उसकी औपचारिक घोषणा की जाएगी.

क्या मानना है झाविमो और बीजेपी का

वहीं इस मामले पर झारखंड विकास मोर्चा और बीजेपी का अपना अपना दावा है. झाविमो नेता अर्जुन मरांडी ने दावा किया कि बीजेपी में विलय को लेकर फैसला पार्टी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी करेंगे. उन्होंने कहा कि चूंकि कार्यसमिति भंग है, इसलिए उनका निर्णय सर्वोपरि होगा. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि सभी समर्थक उनके साथ हैं, अब बाबूलाल मरांडी को तय करना है कि जेवीएम की नई टीम खड़ी होगी या फिर पार्टी का बीजेपी में विलय होगा. वहीं बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि बाबूलाल मरांडी एक बड़े नेता है और राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उनके पार्टी में विलय को लेकर फाइनल डिसीजन केंद्रीय नेतृत्व करेगा. उन्होंने कहा कि जो भी निर्णय लिया जाएगा उसका अनुसरण राज्य के नेता करेंगे.

रांची: अपने गठन काल से लेकर अब तक लगातार दलबदल की मार झेलने वाला झारखंड विकास मोर्चा नए साल में नई इबारत लिखने की तैयारी कर रहा है. 2009 और 2014 के विधानसभा चुनावों में पार्टी विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद अब जेवीएम के बीजेपी में 'मर्जर' की तैयारी हो रही है. इस मर्जर को लेकर पहल खुद झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी कर रहे हैं.

झाविमो का लगभग बीजेपी में विलय होना तय

झाविमो के अंदरूनी सूत्रों की माने तो इसको लेकर बीजेपी के शीर्ष नेताओं से बात हो चुकी है. अब केवल औपचारिकताएं पूरी करनी बाकी है. हालांकि झाविमो सुप्रीमो फिलहाल भारत से बाहर हैं, लेकिन पार्टी के अंदरखाने इसकी तैयारी की जा रही है. आंकड़ों के हिसाब से 2019 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद पार्टी के पास 3 विधायक हैं. वहीं दूसरी तरफ पार्टी की कार्यसमिति फिलहाल भंग है और सारी शक्तियां झाविमो सुप्रीमो में अंतर्निहित है.

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कैसे हो सकता है विलय
कैसे होगी विलय की प्रक्रिया पूरी, झाविमो के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार पार्टी के बीजेपी में विलय के लिए एक तरफ जहां कार्यसमिति के दो तिहाई लोगों का समर्थन चाहिए, वहीं दूसरी तरफ तीन में से दो विधायक की भी सहमति जरूरी है. झाविमो के संविधान और चुनाव आयोग के प्रावधानों के अनुसार यह दोनों अहर्ताएं पूरी होने के बाद ही पार्टी का बीजेपी में विलय संवैधानिक रूप से पूर्ण माना जाएगा. पार्टी के सामने तीन रास्ते हैं. फिलहाल झाविमो की कार्यसमिति भंग है. ऐसे में सबसे पहले पार्टी की नई कार्यसमिति का गठन होगा.

कार्यसमिति के होंगे 151 सदस्य
आंकड़ों के अनुसार कार्यसमिति के 151 सदस्य होंगे. विलय के पहले तरीके के हिसाब से कार्यसमिति के गठन के बाद बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें यह विलय का प्रस्ताव रखा जाएगा. इस प्रस्ताव पर कार्यसमिति के 100 से अधिक लोगों की सहमति और मरांडी के अलावा एक और विधायक के हस्ताक्षर जरूरी हैं. अगर ऐसा संभव हुआ तो विलय का रास्ता आसान हो जाएगा.

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क्या है दूसरा रास्ता
अगर विलय के प्रस्ताव पर दो तिहाई विधायकों का समर्थन नहीं होता है, तो ऐसे में पार्टी अध्यक्ष अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर दोनों विधायकों को पार्टी अध्यक्ष के निर्देश को मानने का निर्देश देंगे. अन्य दो विधायक अगर पार्टी अध्यक्ष के निर्देश की अवहेलना करते हैं, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. यह कार्रवाई उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखाने जैसी हो सकती है. ऐसे में दोनों विधायकों के पार्टी से बाहर हो जाने पर पार्टी सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के लिए विलय का रास्ता आसान हो जाएगा.

पार्टी के सामने तीसरा रास्ता
संवैधानिक प्रावधानों पर नजर डालें तो अगर मरांडी के अलावा दोनों विधायक प्रदीप यादव या बंधु तिर्की दूसरे दल की तरफ चले जाते हैं, तो उनके खिलाफ दलबदल कार्रवाई के लिए पहल की जा सकेगी. इसे आधार बनाकर बाबूलाल मरांडी उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा सकते हैं. दरअसल ऐसी स्थिति पर भी विचार इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि प्रदीप यादव और बंधु तिर्की ने पहले ही अलग-अलग प्लेटफार्म पर बीजेपी में शामिल होने की संभावनाओं से इनकार किया है.

क्या होगा स्टेटस
बंधु तिर्की और प्रदीप यादव अगर दोनों विधायक विलय की मंजूरी के साथ होते हैं, तो उन्हें सदन में 2024 तक जेवीएम का विधायक माना जाएगा. अगर उन्हें जेवीएम से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है तो सदन में 2024 तक उनकी मान्यता एक निर्दलीय विधायक के रूप में रहेगी. वहीं अगर वह दूसरे दल में जाते हैं तो उनके खिलाफ दल बदल के आधार पर दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत कार्रवाई हो सकती है. उनकी विधानसभा से सदस्यता तक जा सकती है.

क्या होगा झारखंड विकास मोर्चा का
दरअसल विलय के लिए कार्यसमिति में प्रस्ताव तैयार किया जाएगा और यह प्रस्ताव मुख्य निर्वाचन आयुक्त को दिल्ली भेजा जाएगा. उसकी एक प्रतिलिपि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास भी भेजी जाएगी. चुनाव आयोग इसके बाद एक्शन में आएगा. एक तरफ जहां राज्यस्तरीय पार्टियों के लिए बनी लिस्ट से झाविमो का नाम हट जाएगा, वहीं दूसरी तरफ इस नाम से दूसरा कोई राजनीतिक संगठन भी नहीं खड़ा किया जा सकेगा. इसके बाद बीजेपी की तरफ से पार्टी अध्यक्ष झाविमो के तत्कालीन अध्यक्ष को उनके भेजे गए पत्र के आलोक में विलय की स्वीकृति के संबंध में सूचित करेंगे, फिर उसकी औपचारिक घोषणा की जाएगी.

क्या मानना है झाविमो और बीजेपी का

वहीं इस मामले पर झारखंड विकास मोर्चा और बीजेपी का अपना अपना दावा है. झाविमो नेता अर्जुन मरांडी ने दावा किया कि बीजेपी में विलय को लेकर फैसला पार्टी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी करेंगे. उन्होंने कहा कि चूंकि कार्यसमिति भंग है, इसलिए उनका निर्णय सर्वोपरि होगा. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि सभी समर्थक उनके साथ हैं, अब बाबूलाल मरांडी को तय करना है कि जेवीएम की नई टीम खड़ी होगी या फिर पार्टी का बीजेपी में विलय होगा. वहीं बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि बाबूलाल मरांडी एक बड़े नेता है और राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उनके पार्टी में विलय को लेकर फाइनल डिसीजन केंद्रीय नेतृत्व करेगा. उन्होंने कहा कि जो भी निर्णय लिया जाएगा उसका अनुसरण राज्य के नेता करेंगे.

Intro:बाइट 1 अर्जुन मरांडी झाविमो नेता बाइट 2 प्रतुल शाहदेव प्रवक्ता प्रदेश बीजेपी रांची। अपने गठन काल से लेकर अब तक लगातार दलबदल की मार झेलने वाला झारखंड विकास मोर्चा नए साल में नई इबारत लिखने की तैयारी कर रहा है। 2009 और 2014 के विधानसभा चुनावों में पार्टी विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद अब जेवीएम के बीजेपी में 'मर्जर' की तैयारी हो रही है। इस मर्जर को लेकर पहल खुद झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी कर रहे हैं। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की माने तो इसको लेकर बीजेपी के शीर्ष नेताओं से बात हो चुकी है। अब केवल औपचारिकताएं पूरी करनी बाकी है। हालांकि झाविमो सुप्रीमो मरांडी फिलहाल भारत से बाहर है लेकिन पार्टी के अंदरखाने इसकी तैयारी की जा रही है। आंकड़ों के हिसाब से 2019 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद पार्टी के पास 3 विधायक हैं। वहीं दूसरी तरफ पार्टी की कार्यसमिति फिलहाल भंग है और सारी शक्तियां झाविमो सुप्रीमो में अंतर्निहित हैं।


Body:कैसे होगी विलय की प्रक्रिया पूरी झाविमो के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार पार्टी के बीजेपी में विलय के लिए एक तरफ जहां कार्यसमिति के दो तिहाई लोगों का समर्थन चाहिए। वहीं दूसरी तरफ तीन में से दो विधायक की भी सहमति जरूरी है। झाविमो के संविधान और चुनाव आयोग के प्रावधानों के अनुसार यह दोनों अहर्ताएं पूरी होने के बाद ही पार्टी का बीजेपी में विलय संवैधानिक रूप से पूर्ण माना जाएगा। पार्टी के सामने है तीन रास्ते फिलहाल झाविमो की कार्यसमिति भंग है। ऐसे में सबसे पहले पार्टी की नई कार्यसमिति का गठन होगा। आंकड़ों के अनुसार कार्यसमिति के 151 सदस्य होंगे। विलय के पहले तरीके के हिसाब से कार्यसमिति के गठन के बाद बैठक बुलाई जाएगी। जिसमें यह विलय का प्रस्ताव रखा जाएगा। इस प्रस्ताव पर कार्यसमिति के 100 से अधिक लोगों की सहमति और मरांडी के अलावा एक और विधायक के हस्ताक्षर जरूरी हैं। अगर ऐसा संभव हुआ तो विलय का रास्ता आसान हो जाएगा। क्या है दूसरा रास्ता अगर विलय के प्रस्ताव पर दो तिहाई विधायकों का समर्थन नहीं होता है तो ऐसे में पार्टी अध्यक्ष अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर दोनों विधायकों को पार्टी अध्यक्ष के निर्देश को मानने का निर्देश देंगे। अन्य दो विधायक अगर पार्टी अध्यक्ष के निर्देश की अवहेलना करते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। यह कार्रवाई उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखाने जैसी हो सकती है। ऐसे में दोनों विधायकों के पार्टी से बाहर हो जाने पर पार्टी सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के लिए विलय का रास्ता आसान हो जाएगा।


Conclusion:यह है तीसरा रास्ता वहीं संवैधानिक प्रावधानों पर नजर डालें तो अगर मरांडी के अलावा दोनों विधायक प्रदीप यादव या बंधु तिर्की दूसरे दल की तरफ चले जाते हैं तो उनके खिलाफ दलबदल कार्रवाई के लिए पहल की जा सकेगी। इसे आधार बनाकर मरांडी उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा सकते हैं। दरअसल ऐसी स्थिति पर भी विचार इसलिए किया जा रहा है क्योंकि प्रदीप यादव और बंधु तिर्की ने पहले ही अलग-अलग प्लेटफार्म पर बीजेपी में शामिल होने की संभावनाओं से इनकार किया है। क्या स्टेटस होगा तिर्की और यादव का अगर दोनों विधायक विलय की मंजूरी के साथ होते हैं तो उन्हें सदन में 2024 तक जेवीएम का विधायक माना जाएगा। अगर उन्हें जेवीएम से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है तो सदन में 2024 तक उनकी मान्यता एक निर्दलीय विधायक के रूप में रहेगी। वहीं अगर वह दूसरे दल में जाते हैं तो उनके खिलाफ दल बदल के आधार पर दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत कार्रवाई हो सकती है और उनकी विधानसभा से सदस्यता तक जा सकती है। क्या होगा झारखंड विकास मोर्चा का दरअसल विलय के लिए कार्यसमिति में प्रस्ताव तैयार किया जाएगा और यह प्रस्ताव मुख्य निर्वाचन आयुक्त को दिल्ली भेजा जाएगा। उसकी एक प्रतिलिपि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास भी भेजी जाएगी। चुनाव आयोग इसके बाद एक्शन में आएगा। एक तरफ जहां राज स्तरीय है पार्टियों के लिए बानी लिस्ट से झाविमो का नाम हट जाएगा। वहीं दूसरी तरफ इस नाम से दूसरा कोई राजनीतिक संगठन भी नहीं खड़ा किया जा सकेगा। इसके बाद बीजेपी के तरफ से पार्टी अध्यक्ष झाविमो के तत्कालीन अध्यक्ष को उनके भेजे गए पत्र के आलोक में विलय की स्वीकृति के संबंध में सूचित करेंगे और फिर उसकी औपचारिक घोषणा की जाएगी। क्या मानना है झाविमो और बीजेपी का वहीं इस मामले पर झारखंड विकास मोर्चा और बीजेपी का अपना अपना दावा है। झाविमो नेता अर्जुन मरांडी ने दावा किया कि बीजेपी में विलय को लेकर फैसला पार्टी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी करेंगे। उन्होंने कहा कि चूंकि कार्यसमिति भंग है इसलिए उनका निर्णय सर्वोपरि होगा। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि सभी समर्थक उनके साथ हैं अब मरांडी को तय करना है कि जेवीएम की नई टीम खड़ी होगी या फिर पार्टी का बीजेपी में विलय होगा। वहीं बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि बाबूलाल मरांडी एक बड़े नेता है और राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनके पार्टी में विलय को लेकर फाइनल डिसीजन केंद्रीय नेतृत्व करेगा। उन्होंने कहा कि जो भी निर्णय लिया जाएगा उसका अनुसरण राज्य के नेता करेंगे।
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