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जज उत्तम आनंद मौत मामले ने न्यायाधीशों की सुरक्षा पर छेड़ी बहस, जानें क्या है पूर्व जस्टिस और अधिवक्ताओं की राय - जज की सुरक्षा

जज उत्तम आनंद की मौत मामले ने एक बार फिर समाज में जज की सुरक्षा पर बहस छेड़ दी है. इस मामले में मोटिव स्पष्ट न हो पाने से आरोपी गैर इरादतन हत्या के दोषी ठहराए गए हैं. लेकिन जज की सुरक्षा बगैर समाज की सुरक्षा पर उठ रहे सवाल पर जानें क्या है कानून विशेषज्ञों की राय.

Enter Keyword here.. Judge Uttam Anand death case
जज उत्तम आनंद की मौत
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Published : Aug 6, 2022, 9:57 PM IST

Updated : Aug 6, 2022, 11:07 PM IST

रांचीः भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में सभी नागरिकों को उनके हर हक की सुरक्षा न्यायालय से मिलती है. अगर किसी को किसी भी तरह की दिक्कत होती है तो उसका सबसे बड़ा भरोसा न्यायपालिका पर होता है . लेकिन जब न्यायपालिका को भी अपनी सुरक्षा की चिंता होने लगे तो एक बार इस संदर्भ की समीक्षा भी जरूरी है कि आखिर न्यायपालिका इस स्थिति में क्यों पहुंची है कि सभी मंचों से न्यायपालिका के लोगों को सुरक्षा देने और सुरक्षित नहीं रहने की बाते होने लगे.

ये भी पढ़ें-मैं पीएम मोदी से भी कहता हूं, फैसला देना न्यायपालिका का अधिकार है : गडकरी

धनबाद में ऑटो की टक्कर से 28 जुलाई 2021 को जज उत्तम आनंद की मौत और उसके बाद चली जांच की प्रक्रिया के बाद 6 अगस्त 2022 को फैसला आया. ऑटो चलाने वाले 2 लोगों को गैर इरादतन हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई. बड़ा सवाल यह है कि गैर इरादतन हत्या के मामले की बात कही तो गई क्योंकि यह साबित ही नहीं हो पाया कि हत्या की वजह क्या थी, लेकिन न्यायिक व्यवस्था में जितने मुंह उतनी बातें हो रहीं हैं. न्यायालय ने अपना फैसला दे दिया है तो न्यायपालिका पर भरोसे की वजह से लोग मान भी लेंगे, लेकिन जिस बात को न्यायपालिका में चर्चा के लिए रख दिया गया है, इसे मानने के लिए मन से न्यायपालिका के लोग भी तैयार नहीं है, वह है खुद जज और वकीलों की सुरक्षा.

6 अगस्त 2022 को जज उत्तम आनंद के मामले में कोर्ट ने 2 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुना कर यह तो बता दिया कि न्यायपालिका किसी को छोड़ती नहीं है लेकिन न्याय देने वाले, जिस तरीके से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं उसमें आम लोगों की सुरक्षा भी सवालों में है. न्यायपालिका को सुरक्षा देने की पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार की है. लेकिन जिस तरीके से जजों पर हमलों के सिलसिले बढ़े हैं उस पर यह चर्चा होना लाजिमी भी है कि आखिर सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चूक होती कहां है. दूसरा बड़ा सवाल है कि आखिर हर बार इसकी वजह क्या है.

जजों की सुरक्षा के मानक
सुप्रीम कोर्ट
देश में जज की सुरक्षा के लिए मानक तय हैं. सुप्रीम कोर्ट के माननीय जस्टिस को जेड प्लस तक की सुरक्षा दी जाती है, वहीं सुप्रीम कोर्ट के दूसरे जज को हवाई सुरक्षा का कवर दिया जाता है. लेकिन आवश्यकता होने पर इसे जेडप्लस तक बढ़ाया जाता है. सुप्रीम कोर्ट के जज अगर बाहर जाते हैं तो उनकी सुरक्षा और बढ़ाई जाती है.

हाई कोर्ट
हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को राज्य के न्यायिक संगठन का प्रमुख होने के नाते राज्य के मुख्य न्यायाधीश को उस राज्य के मुख्यमंत्री के समतुल्य सुरक्षा देने का प्रावधान है. हालांकि इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए उनकी सुरक्षा की व्यवस्था की जाती है जो वाय कैटेगरी से लेकर जेड प्लस तक की होती है. वहीं हाईकोर्ट के जज की बात करें तो हाईकोर्ट के बाकी जजों को राज्य के कैबिनेट मंत्रियों की तरह की सुरक्षा दी जाती है.

जिला कोर्ट
जिला जज को उनके अलग-अलग अधिकार क्षेत्र के लिए सुरक्षा कवर में दो से चार हथियारबंद गार्ड दिए जाते हैं. वहीं चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट को एक से दो हथियारबंद गार्ड दिए जाते हैं जबकि बाकी न्यायाधीश को एक हथियार बंद गार्ड दिया जाता है हालांकि इसकी उपलब्धता राज्य के अनुसार अलग-अलग है.

सुरक्षा के लिए सरकारी आदेश

2007 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य की सभी सरकारों के साथ ही केंद्रशासित प्रदेशों के जजों की सुरक्षा के लिए एक गाइडलइन जारी की थी. इसमें सभी डीजीपी को जजों की सुरक्षा के लिए निर्देश दिए गए थे. 2019 में दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट के भीतर पुलिस और वकीलों की झड़प के साथ ही उत्तर प्रदेश की बार काउंसिल की पहली महिला अध्यक्ष की आगरा कोर्ट परिसर के अंदर हुई हत्या के बाद अदालत परिसर में हिंसक घटनाओं की पृष्ठभूमि को लेकर एक याचिका दायर की गई थी. इस याचिका में यह कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 146 के तहत सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों और वकीलों की सुरक्षा के लिए एक स्पेशल फोर्स गठित करने के लिए आदेश जारी कर सकता है.

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा था. इसी मामले को लेकर 2020 में गृह मंत्रालय ने एक हलफनामा दायर किया था और कहा था कि जजों की सुरक्षा का मामला राज्य का विषय है और इसके लिए सभी राज्यों को निर्देशित भी किया गया है. राज्य के चीफ सेक्रेटरी से इसके लिए सुझाव देने को भी कहा गया है हालांकि उसके बाद किस तरह के आदेश पारित हुए, यह सामान्य जन की जानकारी में नहीं आ सका.

चर्चा में आ गया है जजों की सुरक्षा का मामलाः इसे महज संजोग कहा जाए या फिर न्यायपालिका में देशों की सुरक्षा को लेकर हो रही गंभीर चर्चा का विषय. जुलाई महीने में रांची पहुंचे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने रांची हाई कोर्ट के जजों, न्यायिक अधिकारियों, कानून के छात्रों और वकीलों को संबोधित करते हुए कहा कि हाल के दिनों में जिस तरीके से न्यायिक व्यवस्था से जुड़े हुए लोगों पर वारदातें बढ़ीं हैं, इसकी चिंता करना महत्वपूर्ण है. जजों और वकीलों की सुरक्षा का मजबूत इंतजाम होना आवश्यक है. जजों की सुरक्षा को लेकर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि राजनेताओं, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों के साथ ही दूसरे जनप्रतिनिधियों को रिटायरमेंट के बाद भी नौकरी की संवेदनशीलता को देखते हुए सुरक्षा दी जाती है. लेकिन यह बड़ी विडंबना है कि जजों को उस तरह की सुरक्षा नहीं दी जाती.


जज उत्तम आनंद की मौत ने दहलायाः एक चर्चा धनबाद के जज की रोड एक्सीडेंट में हुई मौत के बाद जरूर शुरू हुई है, भले ही यह किस सुरक्षा खामी के कारण हुई यह तय करना बाकी है. लेकिन हमने एक होनहार जज खो दिया. धनबाद के जज की मौत पहली नहीं है, इससे पहले भी कई राजनेताओं के केस देखने वाले जजों को धमकियां मिलीं हैं और अभी स्थिति जजों के फैसले पर होने वाली राजनीतिक टिप्पणियों तक आ गई है. इस विषय पर एक संवेदनशील समीक्षा जरूरी है कि न्यायपालिका के लिए किस तरह की चीजों का होना जरूरी है इस समाज के सभी प्रबुद्ध लोगों को इसलिए भी सोचना चाहिए कि आज उत्तम आनंद जिस कारण से मरे, उसमें गैर इरादतन हत्या के तहत ही सही कोर्ट ने 2 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुना दी. लेकिन न्यायपालिका के भीतर जिस तरीके से हालात बन रहा है वह निश्चित तौर पर बड़े चिंता का विषय है और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने जिस तरीके के सवाल को उठाया है वह राज्य की तमाम सरकारों के लिए बहुत बड़ा विषय है.

क्या कहते हैं मोअज्जिज लोगः जजों की सुरक्षा व्यवस्था और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के उठाए गए सवाल पर अपना पक्ष रखते हुए बिहार एडवोकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश चंद्र वर्मा ने कहा कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने जो सवाल उठाया है वह निश्चित तौर पर बड़ी विवेचना के तहत आना चाहिए और राज्य सरकारों को यह चीजें समझनी चाहिए कि आखिर इस तरह के सवाल को उठाने की जरूरत क्यों पड़ी.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया द्वारा न्यायपालिका और लोगों पर सुरक्षा को लेकर जताई गई चिंता पर बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कुमार ने कहा कि यह निश्चित तौर पर बड़ी विचित्र व्यवस्था है, जिस पर राज्य सरकारों का ध्यान ही नहीं रहता है. उन्होंने कहा कि जज के चैंबर में हथियार लेकर लोग चले जाते हैं, वकील का कपड़ा पहनकर रोहिणी कोर्ट में जिस तरीके से गैंगवार हुआ वह एक बड़ा उदाहरण है. हाल के दिनों में दुमका की कोर्ट में बिहार से पेशी के लिए आए विचाराधीन कैदी की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है.

आए दिन कोर्ट के भीतर असामाजिक तत्वों द्वारा चाहे बम फेंकने की बात हो या गोली चला देने की बात आम हो गई है. अगर इस व्यवस्था को लेकर राज्य सरकारें बेहतर तरीके से सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम नहीं कर पाती हैं तो निश्चित तौर पर न्यायपालिका पर आम लोगों का भरोसा डगमगाएगा. विवेक कुमार ने कहा कि सभी राज्य सरकारों को समीक्षा के दायरे में इस विषय को लाना चाहिए कि हर व्यक्ति न्याय मांगने के लिए जब कोर्ट जाता है तो उसे भरोसा होना चाहिए कि उसे न्याय भी मिलेगा और सुरक्षा भी. लेकिन न्यायपालिका पर भरोसा करने वाले लोगों को यह भरोसा अगर मन में हो गया जब स्वयं वहां के लोग ही सुरक्षित नहीं हैं तो सुरक्षा किस आधार पर मिलेगी तो देश एक विचित्र स्थिति में चला जाएगा. इस पर अभी से विचार और मंथन करने की जरूरत है और माननीय मुख्य न्यायाधीश ने जिस तरफ इशारा किया है यह आज के बदलते राजनीतिक हालात और न्यायिक प्रणाली के लिए सार्वभौमिक हो गया है.

क्या कहते हैं पूर्व न्यायाधीशः अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ के अध्यक्ष सह पूर्व न्यायाधीश पटना हाईकोर्ट जस्टिस राजेन्द्र प्रसाद ने न्यायपालिका से जुड़े लोगों की सुरक्षा पर अपनी राय रखते हुए कहा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने जिस बात को कहा है उसे सभी राज्य सरकारों को तत्काल प्रभाव में लाना चाहिए. देश में सब को न्याय देने वाली कोर्ट और उसके सर्वोच्च प्रमुख अगर देश के लिए कोई संदेश देते हैं तो निश्चित तौर पर सभी को उस पर विचार करना चाहिए.

रांचीः भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में सभी नागरिकों को उनके हर हक की सुरक्षा न्यायालय से मिलती है. अगर किसी को किसी भी तरह की दिक्कत होती है तो उसका सबसे बड़ा भरोसा न्यायपालिका पर होता है . लेकिन जब न्यायपालिका को भी अपनी सुरक्षा की चिंता होने लगे तो एक बार इस संदर्भ की समीक्षा भी जरूरी है कि आखिर न्यायपालिका इस स्थिति में क्यों पहुंची है कि सभी मंचों से न्यायपालिका के लोगों को सुरक्षा देने और सुरक्षित नहीं रहने की बाते होने लगे.

ये भी पढ़ें-मैं पीएम मोदी से भी कहता हूं, फैसला देना न्यायपालिका का अधिकार है : गडकरी

धनबाद में ऑटो की टक्कर से 28 जुलाई 2021 को जज उत्तम आनंद की मौत और उसके बाद चली जांच की प्रक्रिया के बाद 6 अगस्त 2022 को फैसला आया. ऑटो चलाने वाले 2 लोगों को गैर इरादतन हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई. बड़ा सवाल यह है कि गैर इरादतन हत्या के मामले की बात कही तो गई क्योंकि यह साबित ही नहीं हो पाया कि हत्या की वजह क्या थी, लेकिन न्यायिक व्यवस्था में जितने मुंह उतनी बातें हो रहीं हैं. न्यायालय ने अपना फैसला दे दिया है तो न्यायपालिका पर भरोसे की वजह से लोग मान भी लेंगे, लेकिन जिस बात को न्यायपालिका में चर्चा के लिए रख दिया गया है, इसे मानने के लिए मन से न्यायपालिका के लोग भी तैयार नहीं है, वह है खुद जज और वकीलों की सुरक्षा.

6 अगस्त 2022 को जज उत्तम आनंद के मामले में कोर्ट ने 2 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुना कर यह तो बता दिया कि न्यायपालिका किसी को छोड़ती नहीं है लेकिन न्याय देने वाले, जिस तरीके से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं उसमें आम लोगों की सुरक्षा भी सवालों में है. न्यायपालिका को सुरक्षा देने की पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार की है. लेकिन जिस तरीके से जजों पर हमलों के सिलसिले बढ़े हैं उस पर यह चर्चा होना लाजिमी भी है कि आखिर सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चूक होती कहां है. दूसरा बड़ा सवाल है कि आखिर हर बार इसकी वजह क्या है.

जजों की सुरक्षा के मानक
सुप्रीम कोर्ट
देश में जज की सुरक्षा के लिए मानक तय हैं. सुप्रीम कोर्ट के माननीय जस्टिस को जेड प्लस तक की सुरक्षा दी जाती है, वहीं सुप्रीम कोर्ट के दूसरे जज को हवाई सुरक्षा का कवर दिया जाता है. लेकिन आवश्यकता होने पर इसे जेडप्लस तक बढ़ाया जाता है. सुप्रीम कोर्ट के जज अगर बाहर जाते हैं तो उनकी सुरक्षा और बढ़ाई जाती है.

हाई कोर्ट
हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को राज्य के न्यायिक संगठन का प्रमुख होने के नाते राज्य के मुख्य न्यायाधीश को उस राज्य के मुख्यमंत्री के समतुल्य सुरक्षा देने का प्रावधान है. हालांकि इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए उनकी सुरक्षा की व्यवस्था की जाती है जो वाय कैटेगरी से लेकर जेड प्लस तक की होती है. वहीं हाईकोर्ट के जज की बात करें तो हाईकोर्ट के बाकी जजों को राज्य के कैबिनेट मंत्रियों की तरह की सुरक्षा दी जाती है.

जिला कोर्ट
जिला जज को उनके अलग-अलग अधिकार क्षेत्र के लिए सुरक्षा कवर में दो से चार हथियारबंद गार्ड दिए जाते हैं. वहीं चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट को एक से दो हथियारबंद गार्ड दिए जाते हैं जबकि बाकी न्यायाधीश को एक हथियार बंद गार्ड दिया जाता है हालांकि इसकी उपलब्धता राज्य के अनुसार अलग-अलग है.

सुरक्षा के लिए सरकारी आदेश

2007 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य की सभी सरकारों के साथ ही केंद्रशासित प्रदेशों के जजों की सुरक्षा के लिए एक गाइडलइन जारी की थी. इसमें सभी डीजीपी को जजों की सुरक्षा के लिए निर्देश दिए गए थे. 2019 में दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट के भीतर पुलिस और वकीलों की झड़प के साथ ही उत्तर प्रदेश की बार काउंसिल की पहली महिला अध्यक्ष की आगरा कोर्ट परिसर के अंदर हुई हत्या के बाद अदालत परिसर में हिंसक घटनाओं की पृष्ठभूमि को लेकर एक याचिका दायर की गई थी. इस याचिका में यह कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 146 के तहत सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों और वकीलों की सुरक्षा के लिए एक स्पेशल फोर्स गठित करने के लिए आदेश जारी कर सकता है.

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा था. इसी मामले को लेकर 2020 में गृह मंत्रालय ने एक हलफनामा दायर किया था और कहा था कि जजों की सुरक्षा का मामला राज्य का विषय है और इसके लिए सभी राज्यों को निर्देशित भी किया गया है. राज्य के चीफ सेक्रेटरी से इसके लिए सुझाव देने को भी कहा गया है हालांकि उसके बाद किस तरह के आदेश पारित हुए, यह सामान्य जन की जानकारी में नहीं आ सका.

चर्चा में आ गया है जजों की सुरक्षा का मामलाः इसे महज संजोग कहा जाए या फिर न्यायपालिका में देशों की सुरक्षा को लेकर हो रही गंभीर चर्चा का विषय. जुलाई महीने में रांची पहुंचे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने रांची हाई कोर्ट के जजों, न्यायिक अधिकारियों, कानून के छात्रों और वकीलों को संबोधित करते हुए कहा कि हाल के दिनों में जिस तरीके से न्यायिक व्यवस्था से जुड़े हुए लोगों पर वारदातें बढ़ीं हैं, इसकी चिंता करना महत्वपूर्ण है. जजों और वकीलों की सुरक्षा का मजबूत इंतजाम होना आवश्यक है. जजों की सुरक्षा को लेकर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि राजनेताओं, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों के साथ ही दूसरे जनप्रतिनिधियों को रिटायरमेंट के बाद भी नौकरी की संवेदनशीलता को देखते हुए सुरक्षा दी जाती है. लेकिन यह बड़ी विडंबना है कि जजों को उस तरह की सुरक्षा नहीं दी जाती.


जज उत्तम आनंद की मौत ने दहलायाः एक चर्चा धनबाद के जज की रोड एक्सीडेंट में हुई मौत के बाद जरूर शुरू हुई है, भले ही यह किस सुरक्षा खामी के कारण हुई यह तय करना बाकी है. लेकिन हमने एक होनहार जज खो दिया. धनबाद के जज की मौत पहली नहीं है, इससे पहले भी कई राजनेताओं के केस देखने वाले जजों को धमकियां मिलीं हैं और अभी स्थिति जजों के फैसले पर होने वाली राजनीतिक टिप्पणियों तक आ गई है. इस विषय पर एक संवेदनशील समीक्षा जरूरी है कि न्यायपालिका के लिए किस तरह की चीजों का होना जरूरी है इस समाज के सभी प्रबुद्ध लोगों को इसलिए भी सोचना चाहिए कि आज उत्तम आनंद जिस कारण से मरे, उसमें गैर इरादतन हत्या के तहत ही सही कोर्ट ने 2 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुना दी. लेकिन न्यायपालिका के भीतर जिस तरीके से हालात बन रहा है वह निश्चित तौर पर बड़े चिंता का विषय है और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने जिस तरीके के सवाल को उठाया है वह राज्य की तमाम सरकारों के लिए बहुत बड़ा विषय है.

क्या कहते हैं मोअज्जिज लोगः जजों की सुरक्षा व्यवस्था और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के उठाए गए सवाल पर अपना पक्ष रखते हुए बिहार एडवोकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश चंद्र वर्मा ने कहा कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने जो सवाल उठाया है वह निश्चित तौर पर बड़ी विवेचना के तहत आना चाहिए और राज्य सरकारों को यह चीजें समझनी चाहिए कि आखिर इस तरह के सवाल को उठाने की जरूरत क्यों पड़ी.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया द्वारा न्यायपालिका और लोगों पर सुरक्षा को लेकर जताई गई चिंता पर बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कुमार ने कहा कि यह निश्चित तौर पर बड़ी विचित्र व्यवस्था है, जिस पर राज्य सरकारों का ध्यान ही नहीं रहता है. उन्होंने कहा कि जज के चैंबर में हथियार लेकर लोग चले जाते हैं, वकील का कपड़ा पहनकर रोहिणी कोर्ट में जिस तरीके से गैंगवार हुआ वह एक बड़ा उदाहरण है. हाल के दिनों में दुमका की कोर्ट में बिहार से पेशी के लिए आए विचाराधीन कैदी की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है.

आए दिन कोर्ट के भीतर असामाजिक तत्वों द्वारा चाहे बम फेंकने की बात हो या गोली चला देने की बात आम हो गई है. अगर इस व्यवस्था को लेकर राज्य सरकारें बेहतर तरीके से सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम नहीं कर पाती हैं तो निश्चित तौर पर न्यायपालिका पर आम लोगों का भरोसा डगमगाएगा. विवेक कुमार ने कहा कि सभी राज्य सरकारों को समीक्षा के दायरे में इस विषय को लाना चाहिए कि हर व्यक्ति न्याय मांगने के लिए जब कोर्ट जाता है तो उसे भरोसा होना चाहिए कि उसे न्याय भी मिलेगा और सुरक्षा भी. लेकिन न्यायपालिका पर भरोसा करने वाले लोगों को यह भरोसा अगर मन में हो गया जब स्वयं वहां के लोग ही सुरक्षित नहीं हैं तो सुरक्षा किस आधार पर मिलेगी तो देश एक विचित्र स्थिति में चला जाएगा. इस पर अभी से विचार और मंथन करने की जरूरत है और माननीय मुख्य न्यायाधीश ने जिस तरफ इशारा किया है यह आज के बदलते राजनीतिक हालात और न्यायिक प्रणाली के लिए सार्वभौमिक हो गया है.

क्या कहते हैं पूर्व न्यायाधीशः अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ के अध्यक्ष सह पूर्व न्यायाधीश पटना हाईकोर्ट जस्टिस राजेन्द्र प्रसाद ने न्यायपालिका से जुड़े लोगों की सुरक्षा पर अपनी राय रखते हुए कहा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने जिस बात को कहा है उसे सभी राज्य सरकारों को तत्काल प्रभाव में लाना चाहिए. देश में सब को न्याय देने वाली कोर्ट और उसके सर्वोच्च प्रमुख अगर देश के लिए कोई संदेश देते हैं तो निश्चित तौर पर सभी को उस पर विचार करना चाहिए.

Last Updated : Aug 6, 2022, 11:07 PM IST
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