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जयंती विशेष: 'जेपी एक इंसान नहीं, एक विचारधारा हैं', हजारीबाग से है खास लगाव

देश में सबसे बड़े आंदोलन के महानायक जयप्रकाश नारायण की आज जयंती है. पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है. आजादी के स्वर्णिम आंदोलन के बाद देश ने उन्हें अपने लोकनायक के रूप में स्वीकार किया.

जयप्रकाश नारायण की जयंती
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Published : Oct 11, 2019, 11:06 AM IST

Updated : Oct 11, 2019, 12:11 PM IST

हाजारीबाग: पूरा देश आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती मना रहा है. आजादी के आंदोलन में उनकी भूमिका और आजाद भारत के सबसे बड़े आंदोलन के नायक के रूप में उनको याद किया जा रहा है. हजारीबाग से भी उनका विशेष नाता रहा है. जब भी जेपी की बात की जाएगी तो हजारीबाग को नहीं भूला जा सकता.

दखें जेपी पर स्पेशल स्टोरी

जेल से भागकर अंग्रेजों को दी थी चुनौती
हजार बागों का शहर हजारीबाग ऐतिहासिक धरती के रूप में जाना जाता है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कर्मभूमि के रूप में भी इसे जाना जाता है. जेपी भारत छोड़ो आंदोलन के सबसे बड़े सिपाही थे. जिसका गवाह स्थल हजारीबाग बना. जिसका जीता जागता प्रमाण लोकनायक जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारा है.

JP has special attachment with Hazaribag
जयप्रकाश नारायण की जयंती

इसे भी पढ़ें:- 'JP क्रांति की तरह देश में एक और जन आंदोलन की है जरूरत'

दीपावली की रात गढ़ा जा रहा था इतिहास
दीपावली की रात 9 नवंबर 1942 को जब पूरे देश में लोग अतिशबाजी कर दीपावली की खुशियां मना रहे थे, उस रात जेपी ने हजारीबाग में एक अमिट इतिहास रचा था. हजारीबाग सेंट्रल जेल से अपने पांच साथियों के साथ दीपावली के दिन ही उन्होंने चहारदीवारी लांघ कर अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी. हजारीबाग के प्रसिद्ध इतिहासकार और आजादी में हजारीबाग के योगदान पर रिसर्च करने वाले प्रोफेसर प्रमोद सिंह बताते हैं कि यहां से लोकनायक जयप्रकाश का नाम हमेशा जुड़ा रहेगा, क्योंकि उन्होंने हजारीबाग में आजादी से पहले अंग्रेजों को जेल से फरार होकर चुनौती तो दी ही थी. अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी. इतिहासकार यह भी मानते हैं कि हजारीबाग से आजादी की लड़ाई में जेपी का योगदान अमिट है. हजारीबाग के कर्जन ग्राउंड से जयप्रकाश नारायण ने 50 हजार से अधिक लोगों को संबोधित किया था.

JP has special attachment with Hazaribag
जेल से भागकर अंग्रेजों को दी थी चुनौती


जेपी इंसान नहीं एक विचारधारा हैं
जेपी को अपना आदर्श मानने वाले अधिवक्ता स्वरूप जैन का कहना है कि जेपी एक इंसान का नाम नहीं बल्कि एक विचारधारा हैं. जिसका आज भी महत्व है. वो कहते हैं कि हजारीबाग में जेपी मूवमेंट का बड़ा असर देखने को मिला था, हजारों हजार की संख्या में विद्यार्थी गिरफ्तार हुए. उन्होंने कहा अधिवक्ता होने के नाते उस वक्त जो भी गिरफ्तारी होते थे, उसे जमानत दिलाने का काम हमारा था. स्वरुप जैन बताते हैं कि 15 महीना तक जेपी हजारीबाग सेंट्रल जेल में बंद रहे और इमरजेंसी खत्म होने के बाद उनकी रिहाई हुई.

इसे भी पढ़ें:- गांधी जयंती : अहमदाबाद में जेल और श्मशान के बीच बसा है साबरमती आश्रम

सरकार के आदेशों को तत्कालीन एसडीओ ने नकारा
हजारीबाग में जेपी मूवमेंट में सक्रिय भूमिका निभाने वाले हरीश श्रीवास्तव अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, कि यहां जब आंदोलन चरम सीमा पर था और प्रशासनिक अधिकारी आंदोलन पर विशेष नजर रखे हुए थे, उस दौरान समाहरणालय परिसर में आंदोलन चल रहा था. सरकार ने उस समय आंदोलनकारियों पर फायरिंग करने का आदेश दे दिया था, लेकिन तत्कालीन एसडीओ ने फायरिंग के आदेश को नकार दिया और आंदोलनकारियों पर गोली नहीं चलाने का आदेश दिया. हरीश श्रीवास्तव कहते हैं कि अगर गोली चलती तो कई लोगों की मौत हो जाती, लेकिन अधिकारी ने गोली चलाने से जवानों को रोका दिया था. वे कहते हैं कि ऐसा करने का एक उद्देश्य हो सकता है कि उनके दिल में जेपी के प्रति आदर होगा. उनका यह भी मानना है कि आज के समय में फिर से एक उलगुलान की जरूरत है जैसा जेपी के समय में हुआ था.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अपनी कविता के जरिए जेपी को श्रद्धांजलि दी थी. उन्होंने जो लाइन जेपी को समर्पित की थी, वो यह हैं.

क्षमा करो बापू तुम हमको
वचनभंग के हम अपराधी
राजघाट को किया अपावन, भूले मंजिल यात्रा आधी।
जयप्रकाश जी रखो भरोसा
टूटे सपनों को जोड़ेंगे
चिता भस्म की चिंगारी से
अंधकार के गढ़ तोड़ेंगे"

हाजारीबाग: पूरा देश आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती मना रहा है. आजादी के आंदोलन में उनकी भूमिका और आजाद भारत के सबसे बड़े आंदोलन के नायक के रूप में उनको याद किया जा रहा है. हजारीबाग से भी उनका विशेष नाता रहा है. जब भी जेपी की बात की जाएगी तो हजारीबाग को नहीं भूला जा सकता.

दखें जेपी पर स्पेशल स्टोरी

जेल से भागकर अंग्रेजों को दी थी चुनौती
हजार बागों का शहर हजारीबाग ऐतिहासिक धरती के रूप में जाना जाता है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कर्मभूमि के रूप में भी इसे जाना जाता है. जेपी भारत छोड़ो आंदोलन के सबसे बड़े सिपाही थे. जिसका गवाह स्थल हजारीबाग बना. जिसका जीता जागता प्रमाण लोकनायक जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारा है.

JP has special attachment with Hazaribag
जयप्रकाश नारायण की जयंती

इसे भी पढ़ें:- 'JP क्रांति की तरह देश में एक और जन आंदोलन की है जरूरत'

दीपावली की रात गढ़ा जा रहा था इतिहास
दीपावली की रात 9 नवंबर 1942 को जब पूरे देश में लोग अतिशबाजी कर दीपावली की खुशियां मना रहे थे, उस रात जेपी ने हजारीबाग में एक अमिट इतिहास रचा था. हजारीबाग सेंट्रल जेल से अपने पांच साथियों के साथ दीपावली के दिन ही उन्होंने चहारदीवारी लांघ कर अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी. हजारीबाग के प्रसिद्ध इतिहासकार और आजादी में हजारीबाग के योगदान पर रिसर्च करने वाले प्रोफेसर प्रमोद सिंह बताते हैं कि यहां से लोकनायक जयप्रकाश का नाम हमेशा जुड़ा रहेगा, क्योंकि उन्होंने हजारीबाग में आजादी से पहले अंग्रेजों को जेल से फरार होकर चुनौती तो दी ही थी. अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी. इतिहासकार यह भी मानते हैं कि हजारीबाग से आजादी की लड़ाई में जेपी का योगदान अमिट है. हजारीबाग के कर्जन ग्राउंड से जयप्रकाश नारायण ने 50 हजार से अधिक लोगों को संबोधित किया था.

JP has special attachment with Hazaribag
जेल से भागकर अंग्रेजों को दी थी चुनौती


जेपी इंसान नहीं एक विचारधारा हैं
जेपी को अपना आदर्श मानने वाले अधिवक्ता स्वरूप जैन का कहना है कि जेपी एक इंसान का नाम नहीं बल्कि एक विचारधारा हैं. जिसका आज भी महत्व है. वो कहते हैं कि हजारीबाग में जेपी मूवमेंट का बड़ा असर देखने को मिला था, हजारों हजार की संख्या में विद्यार्थी गिरफ्तार हुए. उन्होंने कहा अधिवक्ता होने के नाते उस वक्त जो भी गिरफ्तारी होते थे, उसे जमानत दिलाने का काम हमारा था. स्वरुप जैन बताते हैं कि 15 महीना तक जेपी हजारीबाग सेंट्रल जेल में बंद रहे और इमरजेंसी खत्म होने के बाद उनकी रिहाई हुई.

इसे भी पढ़ें:- गांधी जयंती : अहमदाबाद में जेल और श्मशान के बीच बसा है साबरमती आश्रम

सरकार के आदेशों को तत्कालीन एसडीओ ने नकारा
हजारीबाग में जेपी मूवमेंट में सक्रिय भूमिका निभाने वाले हरीश श्रीवास्तव अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, कि यहां जब आंदोलन चरम सीमा पर था और प्रशासनिक अधिकारी आंदोलन पर विशेष नजर रखे हुए थे, उस दौरान समाहरणालय परिसर में आंदोलन चल रहा था. सरकार ने उस समय आंदोलनकारियों पर फायरिंग करने का आदेश दे दिया था, लेकिन तत्कालीन एसडीओ ने फायरिंग के आदेश को नकार दिया और आंदोलनकारियों पर गोली नहीं चलाने का आदेश दिया. हरीश श्रीवास्तव कहते हैं कि अगर गोली चलती तो कई लोगों की मौत हो जाती, लेकिन अधिकारी ने गोली चलाने से जवानों को रोका दिया था. वे कहते हैं कि ऐसा करने का एक उद्देश्य हो सकता है कि उनके दिल में जेपी के प्रति आदर होगा. उनका यह भी मानना है कि आज के समय में फिर से एक उलगुलान की जरूरत है जैसा जेपी के समय में हुआ था.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अपनी कविता के जरिए जेपी को श्रद्धांजलि दी थी. उन्होंने जो लाइन जेपी को समर्पित की थी, वो यह हैं.

क्षमा करो बापू तुम हमको
वचनभंग के हम अपराधी
राजघाट को किया अपावन, भूले मंजिल यात्रा आधी।
जयप्रकाश जी रखो भरोसा
टूटे सपनों को जोड़ेंगे
चिता भस्म की चिंगारी से
अंधकार के गढ़ तोड़ेंगे"

Intro:हजार बागों का शहर हजारीबाग ऐतिहासिक धरती के रूप में पूरे भारत में जाना जाता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कर्म भूमि के रूप में भी इसे जाना जाता है। जहां से उन्होंने केंद्रीय कारा फांग कर अंग्रेजों को चुनौती दिया। तो दूसरी ओर आजाद भारत का सबसे बड़ा जेपी आंदोलन का यह गवाह स्थली भी बना। जिसका जीता जागता प्रमाण लोकनायक जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारा है।


Body:पूरा देश जयप्रकाश जयंती मना रहा है। उनकी आजादी में भूमिका और आजाद भारत का सबसे बड़े आंदोलन को याद किया जा रहा है। हजारीबाग में से जयप्रकाश नारायण का विशेष नाता रहा है ।जब भी जेपी की बात की जाएगी तो हजारीबाग को नहीं भूला जा सकता। क्योंकि हजारीबाग के सेंट्रल जेल से अपने पांच साथियों के साथ उन्होंने चारदीवारी लाघ कर अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी। दीपावली की रात 9 नवंबर 1942 को जब पूरे देश में दीपावली मनाया जा रहा था। उसी समय हजारीबाग में एक अमिट इतिहास गढ़ा जा रहा था। हजारीबाग के प्रसिद्ध इतिहासकार और आजादी में हजारीबाग के योगदान पर रिसर्च करने वाले प्रोफेसर प्रमोद सिंह भी कहते हैं कि हजारीबाग से जयप्रकाश का नाम हरदम जुड़ा रहेगा ,क्योंकि उन्होंने हजारीबाग में आजादी के पहले अंग्रेजों को जेल से फरार होकर चुनौती तो दिया ही था। साथ ही साथ अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई।तो दूसरी ओर इतिहासकार यह भी मानते हैं कि हजारीबाग से आजादी की लड़ाई में जेपी का योगदान है अमिट है। आजाद भारत का सबसे बड़ा आंदोलन जिसे जेपी आंदोलन के नाम से जाना जाता है उसमें भी हजारीबाग का विशेष योगदान रहा है ।हजारीबाग के कर्जन ग्राउंड से जयप्रकाश बाबू ने 50,000 से अधिक लोगों को संबोधित किया था और वह भी आज अपने आप में इतिहास है।


जेपी को अपना आदर्श मानने वाले अधिवक्ता स्वरूप जैन का भी कहना है कि जेपी एक इंसान का नाम नहीं बल्कि एक विचारधारा है। उस विचारधारा का आज भी महत्व है। वे कहते हैं कि हजारीबाग में जेपी मूवमेंट का बड़ा असर देखने को मिला। हजारों हजार की संख्या में विद्यार्थी गिरफ्तार हुए। अधिवक्ता होने के नाते जो भी गिरफ्तारी होती थी उसे जमानत दिलाने का काम हमारा था ।उन्होंने कहा कि 15 महीना तक हजारीबाग सेंट्रल जेल में बंद रहे और जब इमरजेंसी खत्म हुई तो उनकी रिहाई हुई।


हजारीबाग में जेपी मूवमेंट में सक्रिय भूमिका निभाने वाले हरीश श्रीवास्तव अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि हजारीबाग में जब आंदोलन चरम सीमा पर थी और प्रशासन आंदोलन कार्यों पर विशेष नजर रखे हुए थे। उस दौरान की घटना याद कहते करते हुए वह कहते हैं कि समरणालय परिसर में आंदोलन चल रहा था। उस समय आंदोलनकारियों पर फायरिंग करने का आदेश दे दिया। लेकिन एसडीओ ने फायरिंग का आदेश को रोक दिया और कहा कि इन पर गोली नहीं चलाना है ।हरीष श्रीवास्तव कहते हैं कि अगर गोली चलती तो कई लोगों मौत हो जाती है ।लेकिन अधिकारी ने गोली चलाने से जवानों को रोका। वे कहते हैं कि ऐसा करने का एक उद्देश्य हो सकता है कि उनके दिलों में जेपी के प्रति आदर होगा। उनका यह भी मानना है कि आज के समय में फिर से एक उलगुलान की जरूरत है जैसा जेपी के समय में हुआ था।

byte.... स्वरूप जैन, बूढ़े से
byte.... हरीश श्रीवास्तव जेपी आंदोलनकारी रंगीन शर्ट मे
byte.... प्रमोद सिंह इतिहासकार सफेद शर्ट में







Conclusion:हजारीबाग के धरती से लोकनायक जयप्रकाश नारायण कि अमिट याद इतिहास के पन्नों में दफन है। जरूरत है उनके आदर्श को अपनाने की।
Last Updated : Oct 11, 2019, 12:11 PM IST
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