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JMM ने कृषि बिल को बताया काला कानून, 29 सितंबर को किया जाएगा एकदिवसीय धरना प्रदर्शन

झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कृषि बिल को काला कानून बताया है. पार्टी की ओर से इस विधेयक का विरोध किया जा रहा है. इस विधेयक के विरोध में 29 सितंबर को राज्य के सभी जिला मुख्यालय पर जिला समितियों की ओर से एकदिवसीय धरना-प्रदर्शन कर, इस काले कानून का विरोध करने की अपील की गई है.

JMM ने कृषि बिल को बताया काला कानून
JMM will protest against agriculture bill on 29th september in jharkhand
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Published : Sep 28, 2020, 8:41 PM IST

रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कृषि बिल को काला कानून बताया है. पार्टी किसान विरोधी कृषि विधेयक 2020 का प्रत्येक स्तर पर विरोध करता है और सभी जिला समितियों से आह्वान करता है कि वो भी इस विधेयक के विरोध में 29 सितंबर को राज्य के सभी जिला मुख्यालय पर एकदिवसीय धरना-प्रदर्शन करें और राज्य के किसान, मजदूर और आमजनों की आवाज दबाने वाले कानून का विरोध करें.



पूंजीपतियों को मिलेगा फायदा
पिछले दिनों भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, "कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020" और "मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा बिल, 2020 " (कृषि विधेयक 2020) संसद से बिना बहस के जबरन पारित करवाया था. कृषि विधेयक पहले किसानों और आमजनों के हित को देखते हुए लागू किये गए थे, लेकिन वर्तमान संसोधन विधेयक के पारित होने के बाद इसका सीधा लाभ पूंजीपतियों और बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों को मिलना तय हो गया.

काले कानूनों के खिलाफ आवाज

देश के बाजारों में काला बाजारी करने की खुली छूट दे दी गई है. इसके साथ ही भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का किसान और मजदूर विरोधी चरित्र उजागर हो गया है. आज देश भर में 62 करोड़ किसान-मजदूर और 250 से अधिक किसान संगठन इन काले कानूनों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार देश को बरगलाने में लगी हुई है. सड़कों पर किसान और मजदूरों को लाठियों से पिटवाया जा रहा है. मंडी में पूर्व निर्धारित ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) किसान की फसल के मूल्य निर्धारण का एक मात्र उपाय है, जिससे किसान की उपज का सामूहिक तौर से मूल्य निर्धारण हो पाता है. अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था किसान की फसल की सही कीमत, सही वजन और सही बिक्री की गारंटी है.

ये भी पढ़ें-राज्य सभा में नियम तोड़ने के सवाल पर उप सभापति ने रखे तथ्य

किसान को होगा नुकसान

अगर किसान की फसल को मुट्ठीभर कंपनियां मंडी में सामूहिक खरीद की बजाय उसके खेत से खरीदेंगे, तो फिर मूल्य निर्धारण, MSP, वजन और कीमत की सामूहिक मोलभाव की शक्ति खत्म हो जाएगी. क्या फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया साढ़े पंद्रह करोड़ किसानों के खेतों से एमएसपी पर फसल खरीद सकती है? अगर मुट्ठीभर पूंजीपतियों ने किसान के खेत से खरीदी हुई फसल का एमएसपी नहीं दिया तो क्या मोदी सरकार एमएसपी की गारंटी देगी? किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य आखिर कैसे मिलेगा. स्वाभाविक तौर से इसका नुकसान किसान को होगा.

रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कृषि बिल को काला कानून बताया है. पार्टी किसान विरोधी कृषि विधेयक 2020 का प्रत्येक स्तर पर विरोध करता है और सभी जिला समितियों से आह्वान करता है कि वो भी इस विधेयक के विरोध में 29 सितंबर को राज्य के सभी जिला मुख्यालय पर एकदिवसीय धरना-प्रदर्शन करें और राज्य के किसान, मजदूर और आमजनों की आवाज दबाने वाले कानून का विरोध करें.



पूंजीपतियों को मिलेगा फायदा
पिछले दिनों भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, "कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020" और "मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा बिल, 2020 " (कृषि विधेयक 2020) संसद से बिना बहस के जबरन पारित करवाया था. कृषि विधेयक पहले किसानों और आमजनों के हित को देखते हुए लागू किये गए थे, लेकिन वर्तमान संसोधन विधेयक के पारित होने के बाद इसका सीधा लाभ पूंजीपतियों और बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों को मिलना तय हो गया.

काले कानूनों के खिलाफ आवाज

देश के बाजारों में काला बाजारी करने की खुली छूट दे दी गई है. इसके साथ ही भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का किसान और मजदूर विरोधी चरित्र उजागर हो गया है. आज देश भर में 62 करोड़ किसान-मजदूर और 250 से अधिक किसान संगठन इन काले कानूनों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार देश को बरगलाने में लगी हुई है. सड़कों पर किसान और मजदूरों को लाठियों से पिटवाया जा रहा है. मंडी में पूर्व निर्धारित ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) किसान की फसल के मूल्य निर्धारण का एक मात्र उपाय है, जिससे किसान की उपज का सामूहिक तौर से मूल्य निर्धारण हो पाता है. अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था किसान की फसल की सही कीमत, सही वजन और सही बिक्री की गारंटी है.

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किसान को होगा नुकसान

अगर किसान की फसल को मुट्ठीभर कंपनियां मंडी में सामूहिक खरीद की बजाय उसके खेत से खरीदेंगे, तो फिर मूल्य निर्धारण, MSP, वजन और कीमत की सामूहिक मोलभाव की शक्ति खत्म हो जाएगी. क्या फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया साढ़े पंद्रह करोड़ किसानों के खेतों से एमएसपी पर फसल खरीद सकती है? अगर मुट्ठीभर पूंजीपतियों ने किसान के खेत से खरीदी हुई फसल का एमएसपी नहीं दिया तो क्या मोदी सरकार एमएसपी की गारंटी देगी? किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य आखिर कैसे मिलेगा. स्वाभाविक तौर से इसका नुकसान किसान को होगा.

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