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वन संरक्षण नियम 2022 समाप्त करे भारत सरकार या फिर 20 करोड़ आदिवसियों को दें इच्छा मृत्युः जेएमएम

वन संरक्षण नियम 2022 (Forest conservation rules) को जेएमएम ने को शीघ्र वापस करें केंद्र सरकार आदिवासी और वनवासी विरोधी बताया है. उन्होंने कहा कि इस नियम के खिलाफ दलगत भावना से ऊपर उठकर आवाज को बुलंद करें, ताकि केंद्र सरकार मजबूर होकर नियम को वापस लें.

Former Chief Minister Babulal Marandi
Former Chief Minister Babulal Marandi
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Published : Dec 3, 2022, 9:27 PM IST

रांचीः केंद्र सरकार ने वन संरक्षण नियम 2022 (Forest conservation rules) लागू किया है. यह नियम आदिवासी और वनवासी विरोधी होने के साथ साथ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला है. इस नियम के खिलाफ सभी दलों से गोलबंद होना पड़ेगा. शुक्रवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने वन अधिकार अधिनियम 2006 को परिवर्तित कर वन संरक्षण नियम 2022 को झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, आसाम, महाराष्ट्र, बंगाल सहित कई प्रदेशों में रहने वाले 20 करोड़ लोगों के लिए मौत का नियम बताया था.

यह भी पढ़ेंः सीएम हेमंत ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, वन संरक्षण नियम 2022 को बताया आदिवासी विरोधी, पुनर्विचार का किया आग्रह

शनिवार को झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता सुप्रियो भट्टाचार्या ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने के लिए पूर्व के वन अधिकार अधिनियम में मिले ग्रामसभा के अधिकार को कम कर उसे सिम्बोलिक बना दिया गया है. झामुमो नेता ने कहा कि यह मामला कई प्रदेशों के आदिवासी-मूलवासी के जीवन पर असर डालेगा. इसके साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचायेगा. इसलिए दलगत भावना से ऊपर उठकर सभी दलों को इसके खिलाफ आवाज बुलंद करना चाहिए.

सुप्रीयो भट्टाचार्या ने कहा कि जल्द ही कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन और केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन आंदोलन की घोषणा करेंगे. सुप्रियो भट्टाचार्या ने झारखंड भाजपा के नेताओं कहा कि इस नियम पर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, सांसद सुदर्शन भगत, समीर उरांव चुप्पी साधने हुए हैं. आदिवसी-मूलवासियों के हितैषी अपनी चुप्पी कब तोड़ेंगे. उन्होंने कहा कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेगा और आंदोलन के बल पर इस काले नियम को वापस कराएगा.

रांचीः केंद्र सरकार ने वन संरक्षण नियम 2022 (Forest conservation rules) लागू किया है. यह नियम आदिवासी और वनवासी विरोधी होने के साथ साथ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला है. इस नियम के खिलाफ सभी दलों से गोलबंद होना पड़ेगा. शुक्रवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने वन अधिकार अधिनियम 2006 को परिवर्तित कर वन संरक्षण नियम 2022 को झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, आसाम, महाराष्ट्र, बंगाल सहित कई प्रदेशों में रहने वाले 20 करोड़ लोगों के लिए मौत का नियम बताया था.

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शनिवार को झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता सुप्रियो भट्टाचार्या ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने के लिए पूर्व के वन अधिकार अधिनियम में मिले ग्रामसभा के अधिकार को कम कर उसे सिम्बोलिक बना दिया गया है. झामुमो नेता ने कहा कि यह मामला कई प्रदेशों के आदिवासी-मूलवासी के जीवन पर असर डालेगा. इसके साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचायेगा. इसलिए दलगत भावना से ऊपर उठकर सभी दलों को इसके खिलाफ आवाज बुलंद करना चाहिए.

सुप्रीयो भट्टाचार्या ने कहा कि जल्द ही कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन और केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन आंदोलन की घोषणा करेंगे. सुप्रियो भट्टाचार्या ने झारखंड भाजपा के नेताओं कहा कि इस नियम पर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, सांसद सुदर्शन भगत, समीर उरांव चुप्पी साधने हुए हैं. आदिवसी-मूलवासियों के हितैषी अपनी चुप्पी कब तोड़ेंगे. उन्होंने कहा कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेगा और आंदोलन के बल पर इस काले नियम को वापस कराएगा.

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