रांची: झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम आखिर क्यों अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. क्यों 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता तय करने की मांग कर रहे हैं. इस सवाल का सटीक जवाब अबतक पब्लिक प्लेटफॉर्म पर नहीं आया है. खुद लोबिन हेंब्रम कहते हैं कि चुनाव पूर्व यह पार्टी का एजेंडा था. ऐसा नहीं करने पर पार्टी को आगामी चुनाव में नुकसान होगा.
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सवाल है कि अगर यह पार्टी का एजेंडा था तो फिर इसकी चिंता तो पार्टी सुप्रीमो को करनी चाहिए थी, ना कि लोबिन हेंब्रम को. क्योंकि बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री सह झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन कानून के जानकारों के हवाले से कह चुके हैं कि खतियान पर स्थानीयता को कोर्ट नकार देगा. इसके बावजूद लोबिन हेंब्रम कभी रोकर तो कभी चिखकर, अपनी ही सरकार को घेर रहे हैं. कहीं इसके पीछे उनकी महत्वाकांक्षा तो नहीं छिपी हुई है. क्योंकि राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि मंत्री हाजी हुसैन अंसारी के असमय निधन के बाद लोबिन को उम्मीद थी कि उन्हें मंत्री पद मिल जाएगा.
इसी तरह का तेवर उन्होंने 1995 के विधानसभा चुनाव के वक्त दिखाया था. तब वह झामुमो के विधायक थे. उन्हें दूसरी बार चुनाव लड़ना था. लेकिन पार्टी सुप्रीमो ने जॉन हेंब्रम को टिकट दे दिया था. इससे नाराज लोबिन हेंब्रम बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत भी गये. जीतते ही वह फिर झामुमो में आ गये. 2013 में जब अर्जुन मुंडा सरकार से नाता तोड़कर हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने 2014 में लोबिन हेंब्रम को अपने मंत्रिमंडल में खाद्य आपूर्ति मंत्री का दर्जा दिया था.
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लक्ष्मण रेखा पर पैर रख चुके हैं लोबिन: राजनीति के जानकार बताते हैं कि लोबिन हेंब्रम अब लक्ष्मण रेखा पर पैर रख चुके हैं. बस दूसरा पांव बढ़ाने भर की देरी है. क्योंकि जबतक वह व्यक्तिगत रूप से सवाल खड़े करते रहेंगे, तबतक संभव है कि पार्टी उन्हें बर्दाश्त करती रहे. लेकिन वह बगावत का रास्ता पकड़ चुके हैं. हालाकि 3 अप्रैल को बोरियो में डाकबंगला परिसर से प्रखंड मुख्यालय तक रैली की तैयारी पर प्रशासन रोक लगा चुका है. अब वह आमसभा करने जा रहे हैं.
दूसरी तरफ झामुमो ने कार्यकर्ताओं को खबरदार कर दिया है कि लोबिन के कार्यक्रम में जाना अनुशासनहीनता माना जाएगा. यानी 3 अप्रैल को लोबिन का पावर टेस्ट हो जाएगा. राजनीति के जानकार कहते हैं कि लोबिन हेंब्रम को खतियान आधारित स्थानीय नीति की इतनी ही चिंता थी तो उन्होंने मंत्री रहते कोई पहल क्यों नहीं की. अगर यह इतना गंभीर मामला है तो 2014 से 2019 के बीच रघुवर सरकार के कार्यकाल के दौरान उन्होंने कोई आवाज क्यों नहीं उठाई.
घाटशिला में झारखंड नवनिर्माण के लिए महाजुटान: लोबिन हेंब्रम अब बहुत आगे निकल गये हैं. झामुमो के वह पहले ऐसे विधायक है जो 15 अप्रैल को घाटशिला में झारखंड नवनिर्माण के लिए होने जा रहे महाजुटान के नेतृत्वकर्ताओं में से एक बन गये हैं. झारखंड पहचान, भाषा, संस्कृति और खतियान के नाम पर हो रहे महाजुटान से जुड़ा एक पोस्टर ईटीवी भारत की टीम के हाथ लगा है जिसमें लोबिन के अलावा शैलेंद्र महतो, सूर्य सिंह बेसरा, गीता उरांव, जयराम महतो, देवेंद्र नाथ महतो, मंडल मुर्मू, बेजू मुर्मू, राजीव बास्के, तीर्थ नाथ आकाश, प्रेम शाही मुंडा, पूर्व विधायक सीमा महतो और उनके पति अमित महतो की तस्वीर लगी हुई है. इसमें खतियान के आधार पर स्थानीय नीति, संविधान के अनुच्छेद 37 डी की तर्ज पर नियोजन नीति, झारखंडियों की मातृभाषा से शिक्षा अनिवार्य, 9 झारखंड भाषाओं को राज्यभाषा की मान्यता, पेसा कानून के तहत ग्रामसभा को अधिकार, झारखंड आंदोलनकारियों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा देने की मांग की गई है.
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खास बात है कि ये सभी सवाल सदन में उठ चुके हैं और सरकार की तरफ से जवाब भी आ चुका है. इसके बावजूद इन मसलों को लेकर घाटशिला में महाजुटान के कई मायने निकाले जा रहे हैं. इसमें ज्यादातर लोग वैसे हैं जो राजनीति के हाशिए पर खड़े हैं. कुछ नौजवान ऐसे हैं जो राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं. कल तक धनबाद और बोकारो में जिला स्तर की नौकरियों में भोजपुरी और मगही का विरोध कर रहे थे. इसपर पर सरकार ने विराम लगा दिया तो अब आंदोलन के दूसरे चैप्टर खोल दिए गये हैं. अब देखना है कि लोबिन हेंब्रम क्या कर पाते हैं. कहीं उनकी स्थिति हेमलाल मुर्मू वाली हो जाएगी या वह झारखंड की राजनीति में एक नई पहचान लेकर उभरेंगे. बस कुछ दिन की बात है....सबकुछ साफ दिखने लगेगा.....