रांची: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 नवंबर को झारखंड के खूंटी जिले के उलिहातू का दौरा करेंगे. राज्य स्थापना दिवस और जनजातीय गौरव दिवस के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली पहुंचेंगे. इसके बाद एक जनसभा को भी प्रधानमंत्री संबोधित करेंगे. प्रधानमंत्री के प्रस्तावित झारखंड दौरे को लेकर राज्य में सत्ताधारी पार्टी झामुमो, कांग्रेस और राजद की ओर से बयानबाजी शुरू हो गई है. झामुमो-कांग्रेस ने तो पीएम से उलिहातू की धरती से ही आगामी जनगणना में अलग सरना धर्म कोड की घोषणा करने की मांग कर दी है. वहीं एचईसी को बचाने के लिए पैकेज की भी उम्मीद जताई है.
क्या संदेश देना चाहती है कांग्रेस और झामुमोः अब सवाल यह उठता है कि आखिर झामुमो और कांग्रेस ने पीएम के झारखंड दौरे के समय सरना धर्म कोड की मांग क्यों तेज कर दी है. इस सवाल को जानने के लिए ईटीवी भारत ने राज्य की राजनीति को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार से बात की. वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार ने कहा कि जनजातीय पहचान वाला राज्य झारखंड में झामुमो और कांग्रेस सरना धर्म कोड की मांग उठा कर एक तीर से कई निशाना साधना चाह रही है. वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि राज्य में बड़ी आबादी अनुसूचित जनजाति की है. ऐसे में पीएम के आगमन से पहले सरना धर्म कोड की मांग उठाकर झामुमो और कांग्रेस एक ओर जहां भाजपा पर राजनीतिक दवाब बनाना चाह रही है, वहीं दूसरी ओर अनुसूचित जनजाति के लोगों में यह संदेश भी देना चाहती है कि सरना धर्म कोड के वे समर्थक हैं, लेकिन भाजपा ही नहीं चाहती कि आगे जब भी जनगणना हो तब अलग से सरना धर्म का कोड हो.
सरना धर्म कोड और एचईसी के लिए पैकेज की मांग कर रही सत्ताधारी पार्टियांः झारखंड की राजनीति को समझने वाले एक और वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि राज्य की कांग्रेस और झामुमो पार्टी को यह भी लगता है कि खूंटी के उलिहातू से जो संदेश पीएम मोदी देंगे उसका चाहे-अनचाहे असर पड़ोसी राज्य छतीसगढ़ के चुनाव पर पड़ना ही है, जहां 17 नवंबर को चुनाव होना है. ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस सरना धर्म कोड जैसे भावनात्मक मुद्दे के साथ साथ अब एचईसी को बचाने का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया है, ताकि जब पीएम मोदी जनजातीय गौरव दिवस पर अपने संबोधन में अनुसूचित जनजाति के कल्याण की बातें करें, तब भी उस समाज के लोगों का ध्यान सरना धर्म कोड पर बनी रहे.
भावनात्मक मांग पर राजनीतिक चालः राज्य में करीब 26% आबादी जनजातीय समुदाय की है और अलग-अलग संगठन बनाकर जनजातीय समुदाय का एक वर्ग अलग सरना धर्म कोड की मांग करता रहा है. एक बड़े वर्ग की भावनाओं से जुड़े होने की वजह से झामुमो के नेतृत्व वाली सरकार ने विधानसभा से अलग सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पारित कर राजभवन भी भेज चुकी है. झारखंड भाजपा ने भी कभी अलग सरना धर्म कोड का विरोध नहीं किया है, लेकिन बीजेपी नेताओं का तर्क है कि अलग सरना धर्म कोड बनने से पहले यह साफ हो जाना चाहिए कि जो भी जनजातीय समाज के लोग ईसाई या अन्य धर्म अपना लिए हैं उन्हें फिर शेड्यूल ट्राइब के लिए मिलने वाला आरक्षण और अन्य लाभ से अलग कर दिया जाए.
जब पीएम नरेंद्र मोदी झारखंड दौरे पर आएंगे, तब उनके संबोधन के केंद्र में क्या होगा यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा. तब तक के लिए राज्य की सत्ताधारी दल झामुमो, कांग्रेस और राजद ने अलग सरना धर्म कोड की भावनात्मक मांग पर राजनीतिक चाल तो चल ही दी है.