रांची: झारखंड राज्य के गठन हुए 21 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन राज्य पथ परिवहन निगम का गठन अभी तक नहीं हो पाया है, जिससे राज्य के विकास में कई बाधाएं आ रहीं हैं. इसको लेकर लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. दरअसल, बिहार से झारखंड साल 2000 में अलग हुआ था और नए राज्य की स्थापना की गई थी.
एकत्रित बिहार में राज्य पथ परिवहन निगम काम कर रहा था और उसमें कई कर्मचारी भी कार्यरत थे, लेकिन राज्य का बंटवारा होने के बाद 3 साल तक तो बिहार राज्य पथ परिवहन निगम की ओर से झारखंड का काम चलता रहा, लेकिन साल 2004 में बिहार राज्य ने यह ऐलान किया कि राज्य परिवहन पथ निगम को समाप्त किया जाता है. अब से झारखंड राज्य अपने निगम का निर्माण करे और बिहार अपने निगम का निर्माण करेगा, जिसके बाद धीरे-धीरे बिहार ने राज्य पथ परिवहन निगम का गठन कर लिया, लेकिन झारखंड में अब तक राज्य परिवहन पथ निगम का गठन नहीं हो पाया.
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झारखंड में बचे थे 700 निगम कर्मचारी
राज्य सरकार की ओर से यह निर्णय लिया गया कि राज्य पथ परिवहन निगम की सभी संपत्तियों को परिवहन विभाग की ओर से ही संचालित किया जाएगा और उसमें कार्यरत कर्मचारियों को राज्य सरकार के अधीन नए सिरे से काम दिया जाएगा. साल 2004 में बिहार सरकार की ओर से निगम को समाप्त करने के बाद लगभग 700 निगम कर्मचारी झारखंड में बचे थे, जिन्हें झारखंड सरकार ने दूसरे-दूसरे विभाग में नए सिरे से नियुक्ति दी. जिसको लेकर कर्मचारी लगातार विरोध जताते भी नजर आ रहे हैं और वह कोर्ट का भी सहारा ले रहे हैं.
2004 से सरकारी बसों का परिचालन है बंद
झारखंड में फिलहाल राज्य पथ परिवहन निगम काम नहीं कर रहा है, क्योंकि सरकार का मानना है कि पथ परिवहन निगम से राज्य सरकार को किसी तरह का लाभ नहीं हो पाता है. हालांकि, पथ परिवहन निगम के अंतर्गत आने वाली संपत्ति को फिलहाल परिवहन विभाग की ओर से संचालित किया जा रहा है. जैसे रांची का एक मात्र सरकारी बस अड्डा.
एकीकृत बिहार में राज्य पथ परिवहन निगम की ओर से सरकारी बस अड्डे से सरकारी वाहनों का परिचालन होता था, लेकिन साल 2004 से राज्य पथ परिवहन निगम के समाप्त होने के बाद झारखंड से सरकारी बसों का परिचालन बंद हो गया है, इसीलिए सरकारी बस अड्डों से भी सिर्फ निजी बसें ही यात्रियों को ढोने का काम करती है.
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बिहार सरकार की ओर से निगम की मान्यता रद्द
सरकारी बस डिपो में कार्यरत सेवानिवृत्त कर्मचारी केपी रॉय बताते हैं कि साल 2004 में जब से बिहार सरकार की ओर से निगम की मान्यता रद्द की गई, तब से झारखंड में दोबारा निगम का गठन नहीं हो पाया है. इस वजह से बिहार पथ परिवहन निगम की जो संपत्ति झारखंड में आई थी, वह भी बर्बाद हो गई और पूरे राज्य में सैकड़ों बसें बर्बाद हो गईं, जबकि कुछ ऐसी बसें थी, जिसकी नीलामी की गई थी, लेकिन ज्यादातर बसें सरकार की उदासीनता के कारण बर्बाद हो गई. सरकारी बस अड्डे को फिलहाल परिवहन विभाग की ओर से डीटीओ के चार्ज में चलाया जा रहा है, जिसमें निजी बसों को लगाने के लिए शुल्क वसूला जाता है.
लोगों को चुकाना पड़ता है ज्यादा भाड़ा
झारखंड पथ परिवहन निगम का गठन न होने से सरकारी बसों का परिचालन नहीं हो पा रहा है, जिससे परिवहन सेवा में निजी बस संचालकों का एक क्षत्र राज हो गया है और वह मनमानी पैसा यात्रियों से भाड़ा के रूप में वसूलते हैं. उदाहरण के तौर पर रांची से जमशेदपुर के लिए अगर राज्य परिवहन निगम की बस चलती तो उसका भाड़ा 100 रुपए से 125 रुपये तक होता है, लेकिन वर्तमान में निजी बस चालक रांची से जमशेदपुर का भाड़ा 275 से 300 रुपये तक वसूलते हैं, जिससे यात्रियों पर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है.