रांची: झारखंड में चल रहे सियासी संकट के बीच यहां की राजनीति संथाल में शिफ्ट होती दिख रही है. भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी यहां डेरा जमाए हुए हैं. सभी जिलों का दौरा कर रहे हैं. सरकार की नाकामियां गिना रहे हैं. दुमका में अंकिता को जिंदा जलाकर मारने और आदिवासी नाबालिग की रेप के बाद हत्या के मामले ने सरकार को घेरने का भरपूर मौका दिया है. इस बीच साहिबगंज में बाबूलाल मरांडी के एक बयान से राजनीति गरमा गई है.
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उन्होंने कहा है कि झारखंड में जब भाजपा की सरकार बनेगी तो संथाल में मिनी एनआरसी (Mini NRC in Santhal) लागू किया जाएगा. उनकी दलील है कि संथाल में बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों की घुसपैठ हुई है. इसकी वजह से यहां की डेमोग्राफी बदल रही है. उनके इस बयान को आगे बढ़ाते हुए भाजपा सांसद निशिकांत दूबे ने भी कह दिया है कि भाजपा की सरकार बनते ही मिनी एनआरसी लागू किया जाएगा. बाबूलाल मरांडी के इस बयान को उनके निजी सचिव राजेंद्र तिवारी ने कंफर्म किया है. संथाल में मिनी एनआरसी लागू करने के बाबूलाल मरांडी के बयान पर झामुमो नेता विनोद पांडेय से संपर्क किया गया तो उन्होंने अपनी व्यस्तता बताकर कोई जवाब नहीं दिया. कांग्रेस प्रवक्ता राकेश सिन्हा से इसपर प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने और खतियान आधारित स्थानीयता लागू करने के फैसले से भाजपा तिलमिलाई हुई है. इसी वजह से इस तरह के मुद्दे लाकर लोगों में भ्रम पैदा कर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने की कोशिश की जा रही है. समाज बांटना ही भाजपा का काम है.
इधर, संथाल में बाबूलाल मरांडी की सक्रियता के बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी वहां जाने की तैयारी कर ली है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन संथाल में अपनी पकड़ को और मजबूत करने में जुटे हुए हैं. वह 20 सितंबर को अपने विधानसभा क्षेत्र बरहेट के प्लस टू एसएसडी हाईस्कूल मैदान में सभा को संबोधित करने वाले हैं.
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क्या है एनआरसी और कहां है लागू: एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स. यह व्यवस्था देश के एकमात्र असम राज्य में लागू है. यह एक लिस्ट है जो असम में रहने वाले वैध भारतीय नागरिकों की पहचान सुनिश्चित करती है. दरअसल, असम में बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से एनआरसी को लागू करने की मांग उठी थी. सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2013 में एनआरसी अपडेट करने का आदेश दिया था. इसी आधार पर अगस्त 2019 में आखिरी लिस्ट जारी की गई थी.
संथाल की सियासत में कौन कितना मजबूत: भाजपा का मानना है कि संथाल के जामताड़ा, पाकुड़, साहिबगंज और गोड्डा में बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों का घुसपैठ हुआ है. इसलिए इसपर लगाम कसना जरूरी है. संथाल परगना प्रमंडल को झामुमो का गढ़ कहा जाता है. यहां के छह जिलों में कुल 18 विधानसभा सीटें हैं. लेकिन 2014 के चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. भाजपा ने 18 में से 8 सीटों पर जीत का परचम लहराया था. राजमहल, बोरियो, दुमका, मधुपुर, सारठ (जेवीएम के रणधीर सिंह भाजपा में शामिल), देवघर, गोड्डा और महगामा में पार्टी की जीत हुई थी. अपने गढ़ में झामुमो को सिर्फ पांच सीटों पर संतोष करना पड़ा था. लेकिन 2019 के चुनाव में तस्वीर बदल गई. नौ सीटों पर जीत के साथ झामुमो सबसे पड़ी पार्टी बनकर उभरी. जबकि भाजपा को सिर्फ चार सीट पर संतोष करना पड़ा. यही नहीं दुमका और बोरियो की दो एसटी सीटें भी भाजपा गंवा बैठी. वर्तमान में संथाल की 18 सीटों में से 14 सीटें झामुमो और कांग्रेस के खाते में हैं.