रांची: झारखंड के कोल्हान में पिछले 11 महीने से सुरक्षा बलों और शीर्ष नक्सली कमांडरों के बीच भीषण संघर्ष चल रहा है. हम यह भी कह सकते हैं कि सारंडा में एक तरह से युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है. आईईडी विस्फोट से कोल्हान के बीहड़ कांप रहे हैं. पुलिस लगातार जवाबी कार्रवाई भी कर रही है लेकिन पूरी सफलता नहीं मिल रही है. ऐसे में झारखंड पुलिस ने पड़ोसी राज्यों की पुलिस के साथ मिलकर कोल्हान को नक्सलियों से मुक्त कराने के अभियान में जुट गई है.
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छत्तीसगढ़ और बंगाल से मिल रहा नक्सलियों को सपोर्ट: झारखंड के कोल्हान में युद्ध जैसे हालात हैं. छत्तीसगढ़ और बंगाल के नक्सली कैडरों की मदद से भाकपा माओवादी लंबे समय से झारखंड पुलिस से लोहा ले रहे हैं. सूचना है कि कोल्हान में अपना ठिकाना बना चुके शीर्ष नक्सली कमांडरों समेत छत्तीसगढ़ से बड़ी संख्या में नक्सली लड़ाके सुरक्षा बलों को चुनौती दे रहे हैं. ऐसे में झारखंड पुलिस पड़ोसी राज्यों की पुलिस के साथ मिलकर कोल्हान को हर तरह से घेरने और नक्सलियों को मार गिराने या गिरफ्तार करने की योजना पर काम कर रही है.
झारखंड पुलिस ने झारखंड से नक्सलियों की रसद पर एक हद तक रोक लगा दी है, लेकिन नक्सलियों को छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से समर्थन मिल रहा है, जिसके कारण वे जंगल में फल-फूल रहे हैं. झारखंड पुलिस आईजी अभियान अमोल होमकर ने बताया कि ईस्टर्न रीजनल पुलिस कोऑर्डिनेशन कमेटी की बैठक में कोल्हान को लेकर रणनीति बनायी गयी है.
खासकर छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल पुलिस के साथ खुफिया जानकारी साझा की गई है. बैठक में निर्णय लिया गया कि एक साथ संयुक्त अभियान चलाया जाए, जिसे अब जमीन पर लागू किया जा रहा है. नक्सलियों के कॉरिडोर को संयुक्त रूप से ध्वस्त करने की योजना पर भी काम शुरू हो गया है. कोल्हान से नक्सली भाग कर छत्तीसगढ़ या फिर छत्तीसगढ़ के नक्सली झारखंड में ना आ पाए, इसके लिए सीमा पर विशेष चौकसी शुरू कर दी गई है.
भारी नुकसान के बावजूद नहीं हुआ जवानों का मनोबल कम: बूढ़ा पहाड़, बुलबुल, पारसनाथ जैसे नक्सली गढ़ों को आजाद कराने के बाद कोल्हान को नक्सलियों से मुक्त कराने की कोशिश में झारखंड पुलिस के साथ-साथ केंद्रीय बल पिछले 11 महीने से संघर्ष कर रहे हैं. इस दौरान झारखंड पुलिस को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा है. 11 महीने तक चले ऑपरेशन में अब तक पांच अफसर-जवान शहीद हो चुके हैं, जबकि 22 से ज्यादा जवान आईईडी ब्लास्ट में घायल हुए हैं. लेकिन इसके बावजूद कोल्हान को नक्सलियों से मुक्त कराने में लगे जवानों का मनोबल जरा भी कम नहीं हुआ है.
आईजी अभियान के मुताबिक, नक्सली भी जानते हैं कि झारखंड में यह उनकी आखिरी लड़ाई है और हमारे जवान भी जानते हैं कि कोल्हान को नक्सलियों से मुक्त होते ही झारखंड से नक्सलवाद का सफाया तय है. यही कारण है कि कोल्हान मिशन में लगे जवान वापस नहीं लौटना चाहते बल्कि लगातार नक्सलियों के खिलाफ अभियान चला रहे हैं.
नक्सलियों को भी उठाना पड़ा है नुकसान: पिछले 11 महीनों में झारखंड के कोल्हान के बीहड़ों में नक्सलियों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा है, नक्सलियों के दर्जनों कैंप तबाह कर दिए गए हैं, उनके हथियारों और गोला-बारूद पर भी पुलिस ने बड़ा प्रहार किया है, लेकिन इन सबके बावजूद पिछले 11 महीनों से कोल्हान में नक्सलियों का एक बड़ा दस्ता पुलिस के साथ गुरिल्ला युद्ध लड़ रहा है.
दरअसल, नक्सलियों के शीर्ष नेता कोल्हान में शरण लिए हुए हैं. बूढ़ा पहाड़ के बाद कोल्हान ही वह एकमात्र जगह है, जिसे नक्सलियों ने अपने मुख्यालय के रूप में इस्तेमाल किया है. मुख्यालय होने के कारण यह एक करोड़ के इनामी नक्सली नेताओं का भी ठिकाना है. जानकारी के अनुसार, सारंडा में एक करोड़ के इनामी मिसिर बेसरा, अनमोल दा, टेक विश्वनाथ उर्फ संतोष, मोचु, चमन, कंडे, अजय महतो, सागेन अंगरिया और अश्विन जैसे खतरनाक नक्सली कमांडर मौजूद हैं. इनके पास 100 से ज्यादा लड़ाके हैं जो गुरिल्ला वार में माहिर हैं.