रांचीः झारखंड भले ही जंगल और खान खनिजों का प्रदेश माना जाता हो. लेकिन आज भी राज्य की 70 फीसदी से अधिक की आबादी खेती पर ही आश्रित (agriculture In Jharkhand) है. ऐसे में इस राज्य के लिए कृषि के महत्व को नकारा नहीं जा सकता. बिहार से अलग होने के बाद झारखंड में धान और अन्य अनाजों को मिलाकर उत्पादन 35 लाख टन के करीब था जो आज की तारीख में रिकॉर्ड 74 लाख टन तक पहुंच गया (Jharkhand moving ahead in field of agriculture) है.
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राज्य में 2021 में कृषि में यह रिकॉर्ड उत्पादन था, बावजूद इसके यह एक सच्चाई है कि राज्य बनने के बाद के 22 वर्षो में हर खेत तक पानी पहुंचाने का सपना पूरा नहीं हुआ है. यही वजह है कि यहां के ज्यादातर भूमि पर धान के रूप में एक फसल ही लिया जाता है. वर्तमान समय में भी राज्य के कृषि योग्य भूमि में 85-88 फीसदी क्षेत्र में होने वाली खेती वर्षाजल पर आधारित है. वहीं महज 12 से 15 प्रतिशत खेतों में ही सिंचाई की व्यवस्था हो सकी है. जहां कम वर्षा या बिन बारिश के समय भी गेंहू, दलहन, सब्जियां और अन्य फसल किसान उगा सकते हैं.
दलहन-तिलहन में भी आगे बढ़ रहा झारखंडः झारखंड कृषि निदेशालय (Jharkhand Agriculture Directorate) के उपनिदेशक मुकेश कुमार सिन्हा से ईटीवी भारत ने 22 साल में प्रदेश में कृषि में हुए विकास को लेकर बात की. वो कहते हैं कि राज्य बनने के बाद से कृषि के क्षेत्र में नए नए अनुसंधान, तकनीकों के उपयोग और किसानों के लिए उन्नत किस्म के बीज और खाद की व्यवस्था करने और अन्नदाताओं की दृढ़ इच्छाशक्ति से बेहतरीन प्रदर्शन किया है. पिछले एक दशक की उपलब्धि ही यह दर्शाने के लिए काफी है कि हमने कितनी तरक्की की है.
राज्य में 2010-11 में जहां सिर्फ 14.69 लाख हेक्टेयर में धान की खेती (Paddy production in Jharkhand) होती थी तो आज यह बढ़कर 17.63 लाख हेक्टेयर हो गयी है और उत्पादन भी 14.12 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 46.96 लाख टन से बढ़कर 53.59 लाख टन हो गया है. इसी तरह 2010-11 में जहां मक्का की खेती 2.16 लाख हेक्टेयर में कई जाती थी वह अब बढ़कर 7.85 लाख हेक्टेयर हो गया है और मक्का उत्पादन में 96% बढ़ोतरी के साथ 6.34 लाख टन हो गया है. गेंहू उत्पादन के क्षेत्र में पिछड़े होने के बावजूद पिछले एक दशक में राज्य ने तरक्की की है. 2010-11 में जहां 1.59 लाख हेक्टेयर में 3.03 लाख टन गेंहू उत्पादन होता था, जो अब बढ़कर 2.27 लाख हेक्टेयर में 5.07 लाख टन हो गया है.
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एक दशक में दलहन में 900 और तिलहन में 155 फीसदी की बढ़ोतरीः 2010 के बाद से झारखंड में कृषि में दलहन और तिलहन उत्पादन में तेज रफ्तार यह बताने के लिए काफी है कि झारखंड में तिलहन और दलहन उत्पादन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं (Production of pulses in Jharkhand) हैं. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2010-11 की अपेक्षा 2021-22 में दलहन उत्पादन में 897.78 प्रतिशत (2010-11 में 0.9 लाख टन से बढ़कर 2021-22 में 8.98 लाख टन) और तिलहन में 155.13 फीसदी (2010-11 में 01.56 लाख टन से बढ़कर 2021-22 में 2.42 लाख टन के करीब) उत्पादन बढ़ा है.
सिंचाई की व्यवस्था बढ़ाने की दरकारः अगर राज्य सरकार खेतों में सिंचाई की व्यवस्था बढ़ाने पर जोर देती है तो खेती में झारखंड की आत्मनिर्भरता दूर नहीं है. राज्य में अच्छी मात्रा में हर साल होने वाली वर्षा जल को पठारी इलाकों में जगह जगह छोटे छोटे चेक डैम के माध्यम से रोककर उसे किसानों के खेतों तक पहुंचाने की व्यवस्था करने की दरकार है. अगर ऐसा किया जाता तो राज्य के अन्नदाताओं की मेहनत से कृषि के क्षेत्र में तरक्की की यह कहानी और ज्यादा गहरी और लंबी होती.