रांची: 15 नवंबर 2000 को जब अलग राज्य के रूप में झारखंड अस्तित्व में आया, तो दक्षिण बिहार के इस हिस्से के करोड़ों लोगों की 5 दशक पुरानी मांग पूरी हुई. इस राज्य के गठन में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी का सबसे बड़ा योगदान था. झारखंड को अटल बिहारी वाजपेयी के सपनों की धरती भी कहा जाता है. अटल बिहारी वाजपेयी छोटे राज्यों के पक्षधर थे.
असाधारण व्यक्तित्व के धनी अटल जी कई मायने में अनूठी सोच रखते थे. अलग झारखंड का निर्माण अटल बिहारी वाजपेयी की सोच का ही परिणाम है. अटलजी ने एक साथ तीन राज्यों का गठन किया था. तब बिहार से अलग एक नए राज्य के गठन की राह में कई सियासी पेंच भी थे. इसके बावजूद हर तरह के राजनीतिक विरोध का सामना करते हुए उन्होंने छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के साथ झारखंड के गठन का भी रास्ता साफ कर दिया. उनकी सूझ-बूझ का ही परिणाम रहा कि तीनों राज्यों का अपने मूल राज्य से कोई बड़ा विवाद खड़ा नहीं हुआ, जैसा कि आंध्रप्रदेश से तेलंगाना के अलग होने के बाद हुआ.
दरअसल, आदिवासी महासभा ने जयपाल सिंह मुंडा के नेतृत्व में अलग झारखंड राज्य का सपना देखा था. इसके बाद 1930 से लगातार आंदोलनों का सिलसिला चलता रहा. वर्ष 2000 में जब केंद्र में एनडीए की सरकार बनी, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने धरती आबा बिरसा मुंडा के जन्मदिन के मौके पर 15 नवंबर, 2000 को इस सपने को हकीकत में बदल दिया. बिहार से अलग होकर झारखंड देश के 28वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया. अटल जी हमेशा से चाहते थे कि झारखंड भी दूसरे राज्यों की तरह विकास की राह में आगे बढ़ सके.
2000 में जब अलग झारखंड बना तो राज्य में कुल 18 जिले थे जो अब बढ़कर 24 हो चुके हैं. तब राज्य की जनसंख्या 2.69 करोड़ थी, अब 2011 के जनगणना के अनुसार राज्य की आबादी 3.30 करोड़ हो चुकी है. लिंग अनुपात में भी सुधार आया है. 2001 में प्रति 1000 हजार लड़कों पर 941 लड़कियां थी जो अब बढ़कर 948 तक पहुंची है. इसी तरह प्रतिव्यक्ति आय 10, 294 रुपए से बढ़कर 49,174 रुपए तक हो गया है. साक्षरता में भी सुधार दिखा और ये 53.56 फीसदी से बढ़कर 67.63 फीसदी हो गया है.
सूबे के बजट की बात करें तो साल 2001 में ये 4800.12 करोड़ रुपये था, जो अब बढ़कर 86 हजार 370 करोड़ रुपये हो गया है. इन सब के बावजूद राज्य में 39.1 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं और बेरोजगारी बढ़ने की दर 3 (3.1%)फीसदी से ज्यादा है. राज्य में उद्योग के तमाम अवसर होने के बावजूद नौकरी की तलाश में पलायन का सिलसिला जारी है. जाहिर है झारखंड अटलजी की सोच के अनुसार नहीं बन सका है. ये आंकड़े बताते हैं कि धीरे-धीरे ही सही लेकिन वो दिन जरूर आएगा, जब धरती आबा और अटलजी के सपने पूरे होंगे.