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डीएमसी में अनियमितता की जांच के आदेश को वापस लेने से झारखंड हाई कोर्ट ने किया इनकार - रांची न्यूज

झारखंड हाई कोर्ट ने धनबाद नगर निगम में हुए वित्तीय अनियमितता की जांच का आदेश दिया था. इस आदेश को वासल लेने को लेकर याचिका दायर की गई है, जिसपर विशेष सुनवाई का आग्रह किया गया. लेकिन हाई कोर्ट ने विशेष सुनवाई और आदेश वापस लेने से इनकार कर दिया है.

Jharkhand High Court
डीएमसी में अनियमितता की जांच के आदेश को वापस लेने से झारखंड हाईकोर्ट ने किया इनकार
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Published : Mar 22, 2022, 10:32 PM IST

रांचीः झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश एसके द्विवेदी ने धनबाद नगर निगम में हुए सात करोड़ से अधिक की अनियमितता मामले की जांच आदेश को वापस लेने और सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. अदालत ने याचिकाकर्ता के आग्रह को ठुकराते हुए मामले को क्रम के अनुसार सुनवाई करने की बात कही. अदालत ने विशेष सुनवाई से इनकार कर दिया.

यह भी पढ़ेंःधनबाद नगर निगम में 2 जनवरी से निजी एजेंसी करेगी प्रॉपर्टी टैक्स की वसूली, निगम से हुआ करार

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि यह आदेश उचित नहीं है. इसलिए इस आदेश को वापस ले लिया जाए. अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर आदेश गलत है तो आप सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं. इसके लिए आप स्वतंत्र हैं. मैं अपने आदेश को वापस नहीं ले सकता हूं. मंगलवार को इस मामले की सुनवाई होनी थी. लेकिन समय के अभाव में मामले की सुनवाई नहीं हो सकी.

अदालत ने अभियंता समेत अन्य पदाधिकारियों पर तत्काल प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश एंटी करप्शन ब्यूरो के अपर पुलिस महानिदेशक को देते हुए जांच शुरू करने का निर्देश दिया था. अदालत ने कहा था कि धनबाद के तत्कालीन उप विकास आयुक्त ने कैसे जिला अभियंता को राशि की निकासी के पावर डेलीगेट किया था. इसके लिए पंचायती राज विभाग अथवा वित्त विभाग की तरफ से अनुशंसा की गयी थी, जो जांच का विषय हैं. प्रधान महालेखाकार की रिपोर्ट में सात करोड़ से अधिक की राशि के विचलन का मामला सामना आया था.

प्रार्थी के अधिवक्ता शैलेश कुमार ने धनबाद नगर निगम में हुई वित्तीय अनियमितता मामले में आरोपियों पर कार्रवाई करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि धनबाद नगर निगम में वर्ष 2017-18 से लेकर 2020-21 तक 7,63,93,701 रुपये की वित्तीय अनियमितता और फंड को इधर-उधर किया गया. इसे प्रधान महालेखाकार की ऑडिट रिपोर्ट में भी सामने लाया गया था. इस संबंध में एक याचिका धनबाद के तत्कालीन एसपी के पास और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में भी केस दर्ज किया गया था. अब तक एसीबी की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गयी है. मामले की पिछली सुनवाई दो नवंबर 2021 को हुई थी. सुनवाई के दौरान अदालत को सरकार की तरफ से बताया गया कि संबंधित पक्षों की तरफ से रिपोर्ट नहीं दिए जाने के कारण कार्रवाई नहीं की जा सकी है.

रांचीः झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश एसके द्विवेदी ने धनबाद नगर निगम में हुए सात करोड़ से अधिक की अनियमितता मामले की जांच आदेश को वापस लेने और सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. अदालत ने याचिकाकर्ता के आग्रह को ठुकराते हुए मामले को क्रम के अनुसार सुनवाई करने की बात कही. अदालत ने विशेष सुनवाई से इनकार कर दिया.

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याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि यह आदेश उचित नहीं है. इसलिए इस आदेश को वापस ले लिया जाए. अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर आदेश गलत है तो आप सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं. इसके लिए आप स्वतंत्र हैं. मैं अपने आदेश को वापस नहीं ले सकता हूं. मंगलवार को इस मामले की सुनवाई होनी थी. लेकिन समय के अभाव में मामले की सुनवाई नहीं हो सकी.

अदालत ने अभियंता समेत अन्य पदाधिकारियों पर तत्काल प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश एंटी करप्शन ब्यूरो के अपर पुलिस महानिदेशक को देते हुए जांच शुरू करने का निर्देश दिया था. अदालत ने कहा था कि धनबाद के तत्कालीन उप विकास आयुक्त ने कैसे जिला अभियंता को राशि की निकासी के पावर डेलीगेट किया था. इसके लिए पंचायती राज विभाग अथवा वित्त विभाग की तरफ से अनुशंसा की गयी थी, जो जांच का विषय हैं. प्रधान महालेखाकार की रिपोर्ट में सात करोड़ से अधिक की राशि के विचलन का मामला सामना आया था.

प्रार्थी के अधिवक्ता शैलेश कुमार ने धनबाद नगर निगम में हुई वित्तीय अनियमितता मामले में आरोपियों पर कार्रवाई करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि धनबाद नगर निगम में वर्ष 2017-18 से लेकर 2020-21 तक 7,63,93,701 रुपये की वित्तीय अनियमितता और फंड को इधर-उधर किया गया. इसे प्रधान महालेखाकार की ऑडिट रिपोर्ट में भी सामने लाया गया था. इस संबंध में एक याचिका धनबाद के तत्कालीन एसपी के पास और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में भी केस दर्ज किया गया था. अब तक एसीबी की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गयी है. मामले की पिछली सुनवाई दो नवंबर 2021 को हुई थी. सुनवाई के दौरान अदालत को सरकार की तरफ से बताया गया कि संबंधित पक्षों की तरफ से रिपोर्ट नहीं दिए जाने के कारण कार्रवाई नहीं की जा सकी है.

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