रांची: राज्य में लंबे समय से खाली पड़े सूचना आयुक्त एवं अन्य बोर्ड, निगम के पदों को लेकर झारखंड हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है. खाली पदों को लेकर हाई कोर्ट में बुधवार (19 अप्रैल) को सुनवाई हुई. झारखंड उच्च न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ को नोटिस जारी करने को कहा है. यह नोटिस अध्यक्ष के सचिव के माध्यम से पार्टी बनाते हुए जारी करने को कहा. मामले में एडवोकेट एसोसिएशन ने जनहित याचिका दाखिल की थी. झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्र की खंडपीठ ने सुनवाई की.
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हाईकोर्ट ने सरकार के रवैये पर जताई नाराजगी: सुनवाई के दौरान अदालत में सरकार की ओर से पक्ष रखा गया और बताया गया कि नेता प्रतिपक्ष नहीं होने के कारण नियुक्ति नहीं हो पा रही है. जिस पर अदालत ने नाराजगी जताते हुए रवींद्रनाथ महतो को नोटिस जारी करने को कहा. सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन ने पक्ष रखा. जबकि झारखंड एडवोकेट एसोसिएशन की जनहित याचिका पर अधिवक्ता अभय मिश्रा और नवीन कुमार ने पक्ष रखा. अधिवक्ता नवीन कुमार ने जानकारी देते हुए कहा कि इस मामले की सुनवाई एक सप्ताह बाद होगी.
नियुक्ति नहीं होने से 8 हजार मामले हैं लंबित: राज्य में बोर्ड निगम के साथ-साथ सूचना आयुक्तों का पद लंबे समय से खाली पड़ा है. इस वजह से इन बोर्ड निगमों में कामकाज प्रभावित हो रहा है. सूचना आयोग में आखरी सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर चौधरी का 8 मई 2020 को सेवाकाल पूरा हो गया था. इसके बाद से राज्य सूचना आयोग में सूचना के अधिकार के तहत करीब 8000 मामले लंबित हैं. जिनकी सुनवाई नहीं हो पा रही है.
जनवरी 2020 में 300 से ज्यादा आवेदन मिले: गौरतलब है कि राज्य सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त सहित छह आयुक्तों का सूचना आयोग में प्रावधान है. सूचना आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सरकार ने अब तक दो बार आवेदन मांगा है. इसके बावजूद भी नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है. जनवरी 2020 में विज्ञापन निकाला गया था. यह विज्ञापन कार्मिक प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग ने मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के रिक्त पदों के लिए निकाला गया था. इसमें 300 से ज्यादा आवेदन सरकार के पास पहुंचे थे.
सरकार ने नियुक्ति नहीं होने का बताया कारण: दरअसल, सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए जरूरी 3 सदस्यों वाली चयन समिति में मुख्यमंत्री के अलावा नेता प्रतिपक्ष भी होते हैं. विपक्ष के नेता का पद अभी तक तय नहीं होने की वजह से यह मामला फंसा हुआ है. सुनवाई के दौरान एक बार फिर सरकार की ओर से नेता प्रतिपक्ष नहीं होने की वजह बताते हुए सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं होने का कारण बताया गया है.