रांची: झारखंड गठन के बाद साल 2012 में पहली बार 382 युवाओं को दारोगा, सार्जेंट और कंपनी कमांडर के तौर पर नौकरी मिली, लेकिन डेढ़ साल बाद नौकरी से 42 दारोगा स्तर के अधिकारियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया. 42 बर्खास्त दारोगा के जगह मेरिट लिस्ट से 42 अन्य दारोगा का चयन हुआ.
सेवा से हटाए गए युवकों ने दुबारा बहाली के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. साल 2016 में हक में फैसला आया, लेकिन सरकार ने सेवा में समायोजित करने के बजाय हाईकोर्ट के डबल बेंच में पुनर्विचार याचिका दायर कर दी. आखिरकार गुरुवार को इस लड़ाई में एक अहम फैसला आ गया, जो हक के लिए लंबी चली लड़ाई के साथ - साथ संघर्षों की भी दास्तान है.
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युवाओं ने नौकरी से लेकर बर्खास्तगी तक झेला
साल 2012 में तात्कालिन डीजीपी गौरीशंकर रथ की अध्यक्षता में गठित बोर्ड को मेरिट लिस्ट तैयार करना था. बोर्ड के सदस्यों ने गड़बड़ी की आशंका जताते हुए हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया था. ऐसे में तात्कालिन डीजीपी जीएस रथ ने खुद मेरिट लिस्ट जारी की. अलग - अलग पदों के लिए अलग - अलग कट ऑफ मार्क्स रखा गया था, ऐसे में अधिक अंक लाकर भी 175 अभ्यर्थियों का चयन नहीं हो पाया था, जिसके बाद मामला झारखंड हाईकोर्ट में गया था. दारोगा बहाली की विवाद को देखते हुए साल 2013 में तब नए बने डीजीपी राजीव कुमार की अध्यक्षता में कमेटी गठित हुई. इस कमेटी ने कई तरह की गड़बड़ियों का हवाला देते हुए पुलिस मैनुअल के नियम 668 का हवाला देते हुए 42 सार्जेंट मेजर, कंपनी कमांडर और दारोगा को बर्खास्त कर नए लोगों का नाम मेरिट लिस्ट में जोड़ दिया. मामले में नियमसम्मत कार्रवाई नहीं होने की बात कहकर सार्जेंट हरि कुजूर समेत अन्य ने कई याचिकाएं कोर्ट में दायर की.
क्या था बर्खास्त दारोगा का तर्क
बर्खास्त दारोगा का तर्क था कि सरकार ने एक साल तक हजारीबाग में बेसिक ट्रेनिंग दी, इसके बाद जंगलवार फेयर ट्रेनिंग पदमा में दी गई. बर्खास्त सभी पुलिसकर्मियों को कोरापेट में 202 कोबरा बटालियन के साथ भी ट्रेनिंग दी गई थी. पुलिस मैनुअल के मुताबिक, बगैर किसी गंभीर अपराध के पुलिसकर्मियों को बर्खासत नहीं किया जा सकता, लेकिन तकनीकी गलती बताते हुए बर्खास्त करना सरासर गलत था.
सरकारी सेवा छोड़कर आए थे 26 युवा
पुलिस की सेवा से बर्खास्त हुए 42 दारोगा में 26 ऐसे थे जो पहले से दूसरी सरकारी सेवाओं में थे. पुलिस सेवा में चयन के बाद रेलवे, बैंकिंग, सशस्त्र पुलिस और सिपाही की नौकरी छोड़कर इस नौकरी में आए थे. ऐसे में पुलिस से बर्खास्तगी के बाद कई युवाओं के सामने अचानक रोजगार का संकट आ गया था.
झारखंड बनने के बाद पहली बार हुई थी बहाली , कब क्या हुआ
- 382 पदों के लिए हुई थी साल 2012 में बहाली, तब तत्कालिन डीजीपी जीएस रथ ने जारी किया था रिजल्ट.
- 175 अभ्यर्थी अधिक अंक लाकर भी चयनित नहीं हुए थे, इनलोगों ने भी हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, हालांकि कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था.
- 2016 में झारखंड हाईकोर्ट की एकलपीठ ने 42 दारोगा को समायोजित करने का फैसला सुनाया था, लेकिन सरकार ने समायोजन के बाद इस फैसले को चुनौती दी थी, जिसके बाद मामला डबल बेंच में गया था.
- 8 मार्च 2017 को हाईकोर्ट के डबल बेंच में सुनवाई शुरू हुई थी. ढाई साल तक चली सुनवाई के बाद बर्खास्त 42 दारोगा के हक में फैसला आया.