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कोल माइंस जमीन अधिग्रहण के प्रस्तावित बिल पर झारखंड सरकार ने जताई आपत्ति, कहा-राज्यों को होगा नुकसान

कोल माइंस के लिए जमीन अधिग्रहण को लेकर केंद्र सरकार के प्रस्तावित बिल पर झारखंड सरकार ने आपत्ति जताई है. इस बाबत पत्र में कहा है कि इससे राज्य को राजस्व का नुकसान तो होगा ही, साथ ही आदिवासी-मूलवासियों के अधिकारों का भी हनन होगा.

Jharkhand government expressed strong objection
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 6, 2023, 1:51 PM IST

रांचीः देश में कोल माइंस के लिए जमीन अधिग्रहण से संबंधित केंद्र सरकार के प्रस्तावित बिल पर झारखंड सरकार ने कड़ा ऐतराज जताया है. इस बिल के कानून बन जाने पर कोयले के भंडार वाली जमीनों का अधिग्रहण कोल माइंस के संपूर्ण जीवन काल के लिए किया जा सकेगा.

ये भी पढ़ेंः Ranchi News: कोयला और खनन परियोजनाओं के नामकरण पर सवाल, सीएम ने कहा- राज्य की परंपरा और इतिहास को मिले सम्मान

झारखंड सरकार का कहना है कि यह बिल देश और राज्यहित में नहीं है. इसके जरिए ऐसे बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं, जिससे झारखंड जैसे राज्यों को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा. इससे राज्य के आदिवासियों और मूल निवासियों के हक-अधिकारों का हनन होगा. झारखंड सरकार के खान एवं भूतत्व विभाग ने इस बिल पर आपत्तियां दर्ज कराते हुए केंद्र सरकार को पत्र भेजा है.

बता दें कि द कोल बियरिंग एरिया (एक्वीजीशन एंड डेवलपमेंट) अमेंडमेंट बिल, 2023 को केंद्र सरकार के कोयला मंत्रालय की ओर से प्रस्तावित किया गया है. इसे लेकर केंद्र ने राज्यों से राय मांगी है. इस पर झारखंड सरकार ने कहा है कि इस बिल के जरिए कोल बियरिंग एरिया एक्ट में बदलाव के जो प्रस्ताव हैं, वह जनभावना के भी विपरीत हैं. झारखंड सरकार राज्यवासियों और जल-जंगल-जमीन से जुड़े मुद्दों पर कोई समझौता नहीं करेगी.

झारखंड सरकार की ओर से केंद्र को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि पहले से जो कानून अस्तित्व में हैं, उसके तहत सरकारी कंपनियों को आवंटित किए जाने वाले कोल माइंस पट्टा एक निश्चित अवधि तक के लिए आवंटित किए जाते हैं. अब केंद्र सरकार द्वारा इस बिल के जरिए यह प्रावधान लाया जा रहा है कि कोल माइंस का खनन पट्टा तब तक के लिए मान्य होगा, जब तक माइंस में कोयला शेष है.

झारखंड सरकार ने अपनी आपत्ति में कहा है कि यह खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 की धारा 8 तथा खनिज समनुदान नियमावली 1960 के नियम-24 (सी) के विपरीत है.

इसी तरह मौजूदा नियम-कानूनों के अनुसार कोल माइंस के खनन पट्टा का विस्तार किए जाने की स्थिति में राज्य सरकार को अतिरिक्त राशि मिलती है, लेकिन नए प्रस्तावित संशोधन के अनुसार जब खनन पट्टा माइंस की पूरी अवधि तक के लिए जारी किया जाएगा तो राज्य सरकार को अतिरिक्त राशि नहीं मिल पाएगी. इससे राज्य के राजस्व का नुकसान होगा.

कोल बियरिंग एरिया एक्वीजीशन एंड डेवलपमेंट एक्ट 1957 के प्रावधान के मुताबिक कोयला खनन एवं इससे संबंधित गतिविधियों के लिए ही सरकारी कंपनियों के लिए भू-अर्जन का प्रावधान है. कोल माइंस के संचालन के लिए स्थायी आधारभूत संरचना कार्यालय, आवासीय सुविधाओं व अन्य के लिए एलए एक्ट 1894 के तहत जमीन अधिग्रहित की जाती है, लेकिन प्रस्तावित संशोधन लागू होने पर सरकारी कंपनियों के लिए अधिग्रहित की गई जमीन को निजी संस्थाओं को भी दिया जा सकता है.

झारखंड सरकार ने अपनी आपत्ति में कहा है कि सरकारी कंपनियों के लिए अधिग्रहित की जाने वाली जमीन को निजी संस्थाओं को देने से आदिवासियों और मूल निवासियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा.(इनपुट-आईएएनएस)

रांचीः देश में कोल माइंस के लिए जमीन अधिग्रहण से संबंधित केंद्र सरकार के प्रस्तावित बिल पर झारखंड सरकार ने कड़ा ऐतराज जताया है. इस बिल के कानून बन जाने पर कोयले के भंडार वाली जमीनों का अधिग्रहण कोल माइंस के संपूर्ण जीवन काल के लिए किया जा सकेगा.

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झारखंड सरकार का कहना है कि यह बिल देश और राज्यहित में नहीं है. इसके जरिए ऐसे बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं, जिससे झारखंड जैसे राज्यों को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा. इससे राज्य के आदिवासियों और मूल निवासियों के हक-अधिकारों का हनन होगा. झारखंड सरकार के खान एवं भूतत्व विभाग ने इस बिल पर आपत्तियां दर्ज कराते हुए केंद्र सरकार को पत्र भेजा है.

बता दें कि द कोल बियरिंग एरिया (एक्वीजीशन एंड डेवलपमेंट) अमेंडमेंट बिल, 2023 को केंद्र सरकार के कोयला मंत्रालय की ओर से प्रस्तावित किया गया है. इसे लेकर केंद्र ने राज्यों से राय मांगी है. इस पर झारखंड सरकार ने कहा है कि इस बिल के जरिए कोल बियरिंग एरिया एक्ट में बदलाव के जो प्रस्ताव हैं, वह जनभावना के भी विपरीत हैं. झारखंड सरकार राज्यवासियों और जल-जंगल-जमीन से जुड़े मुद्दों पर कोई समझौता नहीं करेगी.

झारखंड सरकार की ओर से केंद्र को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि पहले से जो कानून अस्तित्व में हैं, उसके तहत सरकारी कंपनियों को आवंटित किए जाने वाले कोल माइंस पट्टा एक निश्चित अवधि तक के लिए आवंटित किए जाते हैं. अब केंद्र सरकार द्वारा इस बिल के जरिए यह प्रावधान लाया जा रहा है कि कोल माइंस का खनन पट्टा तब तक के लिए मान्य होगा, जब तक माइंस में कोयला शेष है.

झारखंड सरकार ने अपनी आपत्ति में कहा है कि यह खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 की धारा 8 तथा खनिज समनुदान नियमावली 1960 के नियम-24 (सी) के विपरीत है.

इसी तरह मौजूदा नियम-कानूनों के अनुसार कोल माइंस के खनन पट्टा का विस्तार किए जाने की स्थिति में राज्य सरकार को अतिरिक्त राशि मिलती है, लेकिन नए प्रस्तावित संशोधन के अनुसार जब खनन पट्टा माइंस की पूरी अवधि तक के लिए जारी किया जाएगा तो राज्य सरकार को अतिरिक्त राशि नहीं मिल पाएगी. इससे राज्य के राजस्व का नुकसान होगा.

कोल बियरिंग एरिया एक्वीजीशन एंड डेवलपमेंट एक्ट 1957 के प्रावधान के मुताबिक कोयला खनन एवं इससे संबंधित गतिविधियों के लिए ही सरकारी कंपनियों के लिए भू-अर्जन का प्रावधान है. कोल माइंस के संचालन के लिए स्थायी आधारभूत संरचना कार्यालय, आवासीय सुविधाओं व अन्य के लिए एलए एक्ट 1894 के तहत जमीन अधिग्रहित की जाती है, लेकिन प्रस्तावित संशोधन लागू होने पर सरकारी कंपनियों के लिए अधिग्रहित की गई जमीन को निजी संस्थाओं को भी दिया जा सकता है.

झारखंड सरकार ने अपनी आपत्ति में कहा है कि सरकारी कंपनियों के लिए अधिग्रहित की जाने वाली जमीन को निजी संस्थाओं को देने से आदिवासियों और मूल निवासियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा.(इनपुट-आईएएनएस)

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