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बिहार से पहले झारखंड में हुई थी आरक्षण बढ़ाने की पहल, लेकिन पड़ोसी राज्य ने मार ली बाजी, यहां क्यों फंसा है पेंच, जिम्मेवार कौन ?

Jharkhand failed in reservation politics. बिहार में आरक्षण की सीमा को बढ़ाने के लिए लाया गया बिल पास हो गया. अब यह सवाल उठने लगा है कि झारखंड की हेमंत सरकार ने आरक्षण की सीमा को 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 77 प्रतिशत करने का मसौदा पहले तैयार किया था लेकिन बिहार ने बाजी मार ली. झारखंड इसे लागू करने में क्यों रह गया पीछे, पढ़ें रिपोर्ट

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Nov 23, 2023, 11:50 AM IST

रांची: पड़ोसी राज्य बिहार-झारखंड से आगे निकल गया. बिहार ने आरक्षण की सीमा को 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया है, जबकि आरक्षण की सीमा को बढ़ाने की योजना झारखंड ने पहले तैयार की थी. बिहार विधानसभा से पारित आरक्षण संशोधन बिल 2023 को राज्यपाल की मंजूरी मिलते ही नीतीश सरकार ने गजट भी प्रकाशित कर दिया. अब वहां की सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षित वर्ग को लाभ मिलने का रास्ता खुल गया है. हालांकि इसके बावजूद वहां राजनीति हो रही है. जीतन राम मांझी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार को मंत्रिमंडल बर्खास्त कर जाति की आबादी के हिसाब से मंत्रिमंडल का गठन करना चाहिए.

हेमंत सरकार ने की थी पहल: सवाल है कि आरक्षण की सीमा को 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 77 प्रतिशत करने की पहल तो सबसे पहले झारखंड की हेमंत सरकार ने की थी. 11 नवंबर 2022 को ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण की सीमा को 60 से 77 फीसदी (ईडब्ल्यूएस के 10 फीसदी को जोड़कर) करने के लिए " झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण अधिनियम, 2001" में संशोधन पारित कराया था. तब खूब वाहवाही लूटी गई थी. ढोल नगाड़े बजे थे. लेकिन संशोधन बिल पारित होने के पांच माह पूरा होते ही अप्रैल 2023 में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने अटार्नी जनरल से लिए गए कानूनी राय का हवाला देते हुए यह कहकर बिल लौटा दिया कि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों के विपरीत है. तब से यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है.

बिहार में कैसे बढ़ी सीमा क्या करे झारखंड: अब सवाल है कि बिहार में आरक्षण की सीमा कैसे बढ़ गयी. वहां के राज्यपाल ने प्रस्ताव को किस आधार पर स्वीकृति दे दी . झारखंड में ऐसा क्यों नहीं हो पाया. इसपर मूलवासी सदान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि झारखंड के बिल में टेक्निकल प्रॉब्लम है. राज्य सरकार को ईमानदारी बरतनी होगी. राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने सरकार को अनुशंसा किया था कि झारखंड में 54 से 55 प्रतिशत ओबीसी हैं. उन्हें कम से कम 36 प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता हैं. उसी को आधार मानकर हेमंत सरकार को जातीय आधारित सर्वेक्षण करना चाहिए था.

ओबीसी कहां है: रघुवर सरकार में जातीय सर्वेक्षण के लिए पत्र भी निकला था. आयोग ने भी अनुशंसा किया था. लेकिन हेमंत सरकार ने ऐसा करने के बजाए 9वीं अनुसूची में डालने की बात कर दी. सुप्रीम कोर्ट कह चुकी है कि 9वीं अनुसूची की भी समीक्षा हो सकती है. आश्चर्य है कि झारखंड में 26 प्रतिशत ट्राइबल है. उनको 26 प्रतिशत आरक्षण पहले से मिल रहा है. फिर भी उनको आबादी से ज्यादा यानी 28 फीसदी आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया. जो असंवैधानिक है. लिहाजा, यह बताता है कि हेमंत सरकार की मंशा ओबीसी को लेकर साफ नहीं है. अगर बिहार सरकार के तर्ज पर काम किया गया होता तो अब तक व्यवस्था लागू हो चुकी होती.

झारखंड ओबीसी आरक्षण मंच के अध्यक्ष कैलाश यादव ने कहा कि आरक्षण के मामले में झारखंड के पिछड़ने की वजह यहां की सरकार है. हेमंत सरकार ने ओबीसी को आरक्षण बढ़ाने के नाम पर सिर्फ लॉलीपॉप थमाया था. यह सबको मालूम था कि जैसी ही 9वीं अनुसूची की बात होगी तो मामला केंद्र के पास जाएगा. अगर हेमंत सरकार ने भी जातीय आधारित सर्वेक्षण कराकर यह व्यवस्था लागू करती तो राज्यपाल किसी हालत में बिल नहीं लौटा पाते. नीतीश सरकार ने ठोक बजाकर काम किया. इसलिए न चाहते हुए भी वहां के राज्यपाल को संशोधन बिल पर स्वीकृति देनी पड़ी. कैलाश यादव ने कहा कि सत्ताधारी दलों ने साजिश रचकर झारखंड के ओबीसी समाज की भावना से खिलवाड़ किया है.

बिहार से झारखंड को लेनी चाहिए सीख: बेशक, झारखंड सरकार ने पिछड़ों के हक की बात उठाई. पहल भी की लेकिन वह नहीं कर पाई जो बिहार सरकार ने किया. बिहार सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने के लिए सबसे पहले 7 जनवरी 2023 से जातीय आधारित सर्वेक्षण कराना शुरू किया. हालांकि इस दिशा में साल 2022 में ही पहल शुरू हो गई थी लेकिन कोर्ट में मामला जाने की वजह से सर्वे कराने में थोड़ा विलंब हुआ. इस मद में खर्च के लिए कैबिनेट से 500 करोड़ की स्वीकृति ली गई थी. फिर 8 माह पूरा होते ही 2 अक्टूबर 2023 को जातीय आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी कर दिया गया. इसके तुरंत बाद 6 नवंबर से 10 नवंबर तक चले शीतकालीन सत्र के दौरान 7 नवंबर को आरक्षण संशोधन बिल लाकर दोनों सदन से पास कराया गया. इसके 15वें दिन यानी 21 नवंबर को राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर की सहमति भी गई और सरकार ने बिना विलंब किए गजट भी प्रकाशित कर दिया.

बिहार में अब किसको कितना आरक्षण का लाभ: नई व्यवस्था के तहत बिहार सरकार ने आरक्षण की कुल सीमा में 15 प्रतिशत का इजाफा कर दिया है. अब वहां अनुसूचित जाति यानी एससी को 16 प्रतिशत के बजाए 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति यानी एसटी को 01 प्रतिशत की जगह 02 प्रतिशत, बीसी को 12 प्रतिशत की जगह 18 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी को 18 प्रतिशत की जगह 25 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलेगा. पिछड़ी जाति की महिलाओं को मिलने वाला 03 प्रतिशत आरक्षण उसी वर्ग के आरक्षण में शामिल कर दिया गया है. इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाले 10 प्रतिशत को जोड़ने पर आरक्षण की कुल सीमा 75 प्रतिशत हो गई है. बिहार में पिछड़ी जातियों को सबसे ज्यादा फायदा मिला है. उनके आरक्षण की कुल सीमा में 13 फीसदी का इजाफा (पिछड़ी जाति की महिलाओं का 3 प्रतिशत जोड़कर) हुआ है जो 30 प्रतिशत से बढ़कर 43 प्रतिशत हो गया है.

झारखंड में क्या है स्थिति: झारखंड में वर्तमान में अनुसूचित जनजाति यानी एसटी को 26 प्रतिशत, अनुसूचित जाति यानी एससी को 10 प्रतिशत, पिछड़े वर्ग को 14 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण यानी कुल 60 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है. लेकिन नवंबर 2022 को सदन से पारित संशोधन विधेयक के मुताबिक आरक्षण की सीमा को 17 प्रतिशत बढ़ाया गया था. इसमें एसटी के लिए 02 प्रतिशत, एससी के लिए 02 प्रतिशत, पिछड़ों के लिए 13 प्रतिशत आरक्षण कर दिया गया था. इससे ईब्ल्यूएस के 10 प्रतिशत को जोड़ने से आरक्षण की कुल सीमा 77 प्रतिशत हो गई थी. लेकिन इसका हक आजतक लोगों को नहीं मिला. एक साल से ज्यादा वक्त गुजरने के बावजूद झारखंड में पुरानी आरक्षण व्यवस्था चल रही है.

अब पिछड़ी जातियों की आवाज उठाने वाले संगठनों का कहना है कि अगर हेमंत सरकार ने जातीय आधारित सर्वेक्षण को जल्द से जल्द नहीं कराया तो अगले चुनाव में सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.

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रांची: पड़ोसी राज्य बिहार-झारखंड से आगे निकल गया. बिहार ने आरक्षण की सीमा को 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया है, जबकि आरक्षण की सीमा को बढ़ाने की योजना झारखंड ने पहले तैयार की थी. बिहार विधानसभा से पारित आरक्षण संशोधन बिल 2023 को राज्यपाल की मंजूरी मिलते ही नीतीश सरकार ने गजट भी प्रकाशित कर दिया. अब वहां की सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षित वर्ग को लाभ मिलने का रास्ता खुल गया है. हालांकि इसके बावजूद वहां राजनीति हो रही है. जीतन राम मांझी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार को मंत्रिमंडल बर्खास्त कर जाति की आबादी के हिसाब से मंत्रिमंडल का गठन करना चाहिए.

हेमंत सरकार ने की थी पहल: सवाल है कि आरक्षण की सीमा को 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 77 प्रतिशत करने की पहल तो सबसे पहले झारखंड की हेमंत सरकार ने की थी. 11 नवंबर 2022 को ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण की सीमा को 60 से 77 फीसदी (ईडब्ल्यूएस के 10 फीसदी को जोड़कर) करने के लिए " झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण अधिनियम, 2001" में संशोधन पारित कराया था. तब खूब वाहवाही लूटी गई थी. ढोल नगाड़े बजे थे. लेकिन संशोधन बिल पारित होने के पांच माह पूरा होते ही अप्रैल 2023 में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने अटार्नी जनरल से लिए गए कानूनी राय का हवाला देते हुए यह कहकर बिल लौटा दिया कि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों के विपरीत है. तब से यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है.

बिहार में कैसे बढ़ी सीमा क्या करे झारखंड: अब सवाल है कि बिहार में आरक्षण की सीमा कैसे बढ़ गयी. वहां के राज्यपाल ने प्रस्ताव को किस आधार पर स्वीकृति दे दी . झारखंड में ऐसा क्यों नहीं हो पाया. इसपर मूलवासी सदान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि झारखंड के बिल में टेक्निकल प्रॉब्लम है. राज्य सरकार को ईमानदारी बरतनी होगी. राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने सरकार को अनुशंसा किया था कि झारखंड में 54 से 55 प्रतिशत ओबीसी हैं. उन्हें कम से कम 36 प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता हैं. उसी को आधार मानकर हेमंत सरकार को जातीय आधारित सर्वेक्षण करना चाहिए था.

ओबीसी कहां है: रघुवर सरकार में जातीय सर्वेक्षण के लिए पत्र भी निकला था. आयोग ने भी अनुशंसा किया था. लेकिन हेमंत सरकार ने ऐसा करने के बजाए 9वीं अनुसूची में डालने की बात कर दी. सुप्रीम कोर्ट कह चुकी है कि 9वीं अनुसूची की भी समीक्षा हो सकती है. आश्चर्य है कि झारखंड में 26 प्रतिशत ट्राइबल है. उनको 26 प्रतिशत आरक्षण पहले से मिल रहा है. फिर भी उनको आबादी से ज्यादा यानी 28 फीसदी आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया. जो असंवैधानिक है. लिहाजा, यह बताता है कि हेमंत सरकार की मंशा ओबीसी को लेकर साफ नहीं है. अगर बिहार सरकार के तर्ज पर काम किया गया होता तो अब तक व्यवस्था लागू हो चुकी होती.

झारखंड ओबीसी आरक्षण मंच के अध्यक्ष कैलाश यादव ने कहा कि आरक्षण के मामले में झारखंड के पिछड़ने की वजह यहां की सरकार है. हेमंत सरकार ने ओबीसी को आरक्षण बढ़ाने के नाम पर सिर्फ लॉलीपॉप थमाया था. यह सबको मालूम था कि जैसी ही 9वीं अनुसूची की बात होगी तो मामला केंद्र के पास जाएगा. अगर हेमंत सरकार ने भी जातीय आधारित सर्वेक्षण कराकर यह व्यवस्था लागू करती तो राज्यपाल किसी हालत में बिल नहीं लौटा पाते. नीतीश सरकार ने ठोक बजाकर काम किया. इसलिए न चाहते हुए भी वहां के राज्यपाल को संशोधन बिल पर स्वीकृति देनी पड़ी. कैलाश यादव ने कहा कि सत्ताधारी दलों ने साजिश रचकर झारखंड के ओबीसी समाज की भावना से खिलवाड़ किया है.

बिहार से झारखंड को लेनी चाहिए सीख: बेशक, झारखंड सरकार ने पिछड़ों के हक की बात उठाई. पहल भी की लेकिन वह नहीं कर पाई जो बिहार सरकार ने किया. बिहार सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने के लिए सबसे पहले 7 जनवरी 2023 से जातीय आधारित सर्वेक्षण कराना शुरू किया. हालांकि इस दिशा में साल 2022 में ही पहल शुरू हो गई थी लेकिन कोर्ट में मामला जाने की वजह से सर्वे कराने में थोड़ा विलंब हुआ. इस मद में खर्च के लिए कैबिनेट से 500 करोड़ की स्वीकृति ली गई थी. फिर 8 माह पूरा होते ही 2 अक्टूबर 2023 को जातीय आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी कर दिया गया. इसके तुरंत बाद 6 नवंबर से 10 नवंबर तक चले शीतकालीन सत्र के दौरान 7 नवंबर को आरक्षण संशोधन बिल लाकर दोनों सदन से पास कराया गया. इसके 15वें दिन यानी 21 नवंबर को राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर की सहमति भी गई और सरकार ने बिना विलंब किए गजट भी प्रकाशित कर दिया.

बिहार में अब किसको कितना आरक्षण का लाभ: नई व्यवस्था के तहत बिहार सरकार ने आरक्षण की कुल सीमा में 15 प्रतिशत का इजाफा कर दिया है. अब वहां अनुसूचित जाति यानी एससी को 16 प्रतिशत के बजाए 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति यानी एसटी को 01 प्रतिशत की जगह 02 प्रतिशत, बीसी को 12 प्रतिशत की जगह 18 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी को 18 प्रतिशत की जगह 25 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलेगा. पिछड़ी जाति की महिलाओं को मिलने वाला 03 प्रतिशत आरक्षण उसी वर्ग के आरक्षण में शामिल कर दिया गया है. इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाले 10 प्रतिशत को जोड़ने पर आरक्षण की कुल सीमा 75 प्रतिशत हो गई है. बिहार में पिछड़ी जातियों को सबसे ज्यादा फायदा मिला है. उनके आरक्षण की कुल सीमा में 13 फीसदी का इजाफा (पिछड़ी जाति की महिलाओं का 3 प्रतिशत जोड़कर) हुआ है जो 30 प्रतिशत से बढ़कर 43 प्रतिशत हो गया है.

झारखंड में क्या है स्थिति: झारखंड में वर्तमान में अनुसूचित जनजाति यानी एसटी को 26 प्रतिशत, अनुसूचित जाति यानी एससी को 10 प्रतिशत, पिछड़े वर्ग को 14 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण यानी कुल 60 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है. लेकिन नवंबर 2022 को सदन से पारित संशोधन विधेयक के मुताबिक आरक्षण की सीमा को 17 प्रतिशत बढ़ाया गया था. इसमें एसटी के लिए 02 प्रतिशत, एससी के लिए 02 प्रतिशत, पिछड़ों के लिए 13 प्रतिशत आरक्षण कर दिया गया था. इससे ईब्ल्यूएस के 10 प्रतिशत को जोड़ने से आरक्षण की कुल सीमा 77 प्रतिशत हो गई थी. लेकिन इसका हक आजतक लोगों को नहीं मिला. एक साल से ज्यादा वक्त गुजरने के बावजूद झारखंड में पुरानी आरक्षण व्यवस्था चल रही है.

अब पिछड़ी जातियों की आवाज उठाने वाले संगठनों का कहना है कि अगर हेमंत सरकार ने जातीय आधारित सर्वेक्षण को जल्द से जल्द नहीं कराया तो अगले चुनाव में सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.

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