रांची: 25 फरवरी झारखंड भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश के कार्यकाल का अंतिम दिन है. उनको अध्यक्ष बने तीन साल पूरे हो चुके हैं. पार्टी के भीतर जोर शोर से चर्चा चल रही है कि दीपक प्रकाश को एक्सटेंशन मिलेगा या किसी नये चेहरे की एंट्री होगी. वर्तमान में दीपक प्रकाश राज्यसभा सांसद भी हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफा दे दिया था. इसी के बाद दीपक प्रकाश के राजनीतिक भाग्य का ताला खुला था. प्रदेश महामंत्री से प्रदेश अध्यक्ष घोषित किये गये थे. उन्होंने 25 फरवरी 2020 को पदभार ग्रहण किया था. इसके बाद पार्टी ने इनके लिए राज्यसभा का भी दरवाजा खोला.
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अपने तीन साल के कार्यकाल में दीपक प्रकाश भाजपा के लिए कोई चमत्कार नहीं दिखा पाए. चार उपचुनावों में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. मांडर उपचुनाव में दीपक प्रकाश ने जमकर ताल ठोका था, लेकिन वहां भी हार का सामना करना पड़ा. अब उनकी प्रतिष्ठा रामगढ़ उपचुनाव पर टिकी हुई है. यह अलग बात है कि दीपक प्रकाश इस सीट पर फील्डिंग अपने कैंडिडेट की जगह एनडीए के सहयोगी आजसू के लिए कर रहे हैं. यहां उन्हें चमत्कार की उम्मीद है. दूसरी तरफ सीएम ने भी इस सीट पर महागठबंधन के प्रत्याशी के लिए एड़ी चोटी लगा रखी है. अब सवाल है कि अगर इस सीट पर एनडीए की जीत हो भी जाती है तो क्या दीपक प्रकाश को इसका इनाम मिलेगा? राजनीति के जानकारों का मानना है कि ऐसा संभव नहीं दिखाई पड़ रहा है.
सूत्रों के मुताबिक 27 फरवरी के उपचुनाव के बाद इस बात की घोषणा हो सकती है कि दीपक प्रकाश को एक और मौका मिलेगा या किसी अन्य को जिम्मेदारी दी जाएगी. यह भी संभावना है कि लोकसभा में 13 मार्च से बजट सेशन का दूसरा पार्ट शुरू होना है. संभव है कि उससे पहले इस सस्पेंस पर से पर्दा उठ जाए. दरअसल, साल 2023 चुनावी साल है. इसी साल कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे महत्वपूर्ण राज्यों के अलावा नॉर्थ ईस्ट के कई राज्यों में भी विधानसभा का चुनाव होना है. लिहाजा, चुनाव को देखते हुए संगठन में बदलाव की संभावना जताई जा रही है. चर्चा इस बात की भी है कि मोदी कैबिनेट में भी बदलाव देखने को मिल सकता है.
दीपक प्रकाश ने राजनीति की शुरुआत एबीवीपी के साथ की थी. राज्य बनने पर प्रथम सीएम बाबूलाल मरांडी ने उन्हें जेएसएमडीसी यानी झारखंड स्टेट मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष बनाया था. पार्टी के आंतरिक मामलों को लेकर बाबूलाल मरांडी ने जब साल 2006 में भाजपा छोड़कर जेवीएम बनायी थी, तब दीपक प्रकाश भी उनके साथ हो लिए थे. हालांकि थोड़े समय बाद ही भाजपा में लौट आये थे. उस सवाल पर उनका एक ही जवाब आता है कि वह उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल थी. उनके इस भूल को पार्टी ने नजरअंदाज भी किया और फर्श से अर्स पर ले गयी. लेकिन सभी जानते हैं कि राजनीति में वही सिक्का चलता है जो खनकता हो. जातीय और सामाजिक संतुलन के तराजू पर भी तौला जाता है. यही वजह है कि आलाकमान ने यूपी के धुरंधर नेता लक्ष्मीकांत वाजपेयी को झारखंड का प्रभारी और कर्मवीर सिंह को संगठन महामंत्री की जिम्मेदारी सौंपी. अब सवाल है कि अगड़ी जाति से आने वाले दीपक प्रकाश को क्या मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में एक्सटेंशन देना पार्टी के लिए फायदेमंद होगा. चर्चा है कि पार्टी की नजर ओबीसी वोट बैंक पर है. आगे-आगे देखिए होता क्या है.