रांची: वैश्विक महामारी कोरोना के कारण मौजूदा दौर भले ही हर आम और खास के लिए मुश्किलों से भरा हुआ हो, लेकिन झारखंड में बीजेपी के लिए यह अच्छे दिनों की शुरुआत मानी जा रही है. 24 मार्च को लगे पहले लॉकडाउन से अब तक झारखंड में विपक्ष में बैठने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए सुकून देने वाला रहा है. हालांकि पार्टी के लिए अच्छे दिनों की शुरुआत लॉकडाउन के पहले शुरू हुई. पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी की बीजेपी में घर वापसी के बाद झारखंड विधानसभा में पार्टी के विधायकों की कुल संख्या 26 हुई. 17 फरवरी को मरांडी ने बीजेपी का औपचारिक दामन थामा, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के पुराने कैडर दीपक प्रकाश को संगठन की जिम्मेदारी मिली.
25 फरवरी को दीपक प्रकाश के प्रदेश अध्यक्ष बनने की औपचारिक घोषणा हुई. संगठनात्मक दृष्टिकोण से पार्टी को मजबूती प्रदान करने के लिए 3 जुलाई को प्रदेश में बीजेपी की नई कार्य समिति की घोषणा कर दी गई. इसमें 8 उपाध्यक्ष, 3 प्रदेश महामंत्री, 7 प्रवक्ता समेत मोर्चों के अध्यक्षों के नाम की घोषणा की गई. इतना ही नहीं कुछ पुराने चेहरों को संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, जबकि कुछ पुराने चेहरों को ऊपर 'लिफ्ट' भी किया गया. इसके अलावा बाबूलाल मरांडी के कथित सिपहसालार उनको भी बहुत ज्यादा स्पेस नहीं दिया गया.
विपक्ष में रहकर रास चुनाव में मिले सबसे अधिक मत
इतना ही नहीं लॉकडाउन की अवधि में 19 जून को हुए राज्यसभा चुनाव में बीजेपी को जीत मिली. जीत के अलावा पार्टी के लिए सबसे सुखद यह रहा कि एक तरफ पार्टी के 26 विधायक इंटैक्ट रहे. वहीं, पार्टी उम्मीदवार दीपक प्रकाश को मिले 31 वोट में दूसरे दलों के विधायकों का समर्थन मिला. उन पांच विधायकों में दो आजसू के जबकि दो वैसे विधायक थे, जिन्होंने बीजेपी पहले छोड़ दी थी. उसके अलावा एक विधायक सत्तारूढ़ दल से पाला बदलकर बीजेपी के पास पहुंचा. 8 जिलों में हुआ जिला कार्यालय का उद्घाटन इसी बीच मंगलवार को बीजेपी को पार्टी की प्रदेश इकाई को एक और तोहफा मिला. यह तोहफा बीजेपी के 8 संगठनात्मक जिलों में मॉडर्न सुविधाओं युक्त ऑफिस का रहा.
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दरअसल, राज्य के 8 जिलों में बीजेपी अपना ऑफिस बनाने को लेकर लंबे समय से संघर्षरत रही, लेकिन पार्टी का यह सपना कोरोना काल में ही पूरा हुआ. उन 8 जिलों में सिमडेगा, लोहरदगा, चाईबासा, गिरिडीह, धनबाद जिले भी शामिल हैं. सबसे बड़ी बात है इन कार्यालयों में आधुनिक सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा गया है. जानकारी के अनुसार हर जिले में ऑफिस का स्ट्रक्चर एक जैसा है और इनमें बड़े-बड़े हॉल के अलावा तीन वीआईपी कमरे बनाए गए हैं. इतना ही नहीं सिस्टम इनस्टॉल होने के बाद यह सारे कार्यालय दिल्ली के बीजेपी ऑफिस से जुड़े रहेंगे. नाम नहीं छापने की शर्त पर बीजेपी के एक नेता ने बताया कि एक ऑफिस के निर्माण में 70 लाख रुपये से भी अधिक का खर्च हुए हैं.
केंद्रीय नेतृत्व ने भी की तारीफ
कोरोना के दौर में झारखंड में बीजेपी की सक्रियता को लेकर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने भी तारीख की. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान झारखंड में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने लगभग 12,74,000 लोगों को भोजन पहुंचाया गया है. लगभग 27 लाख राशन किट बांटे. वहीं, पीएम केयर्स फंड में लगभग 42,580 कार्यकर्ताओं ने 5 करोड़ की राशि डाली है. हालांकि इन सबके बीच झारखंड के 2 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भी प्रस्तावित है. इसके लिए तैयारियों का जायजा लेने के लिए हाल में इलेक्शन कमीशन के टीम भी झारखंड पहुंची थी. इन दोनों विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है इनमें से एक पर जेएमएम जबकि दूसरे पर कांग्रेस का कब्जा रहा है ऐसे में बीजेपी के लिए यह दोनों सीट पर होने वाले उपचुनाव मायने रखते हैं.
दो सीट पर होगा विधानसभा उपचुनाव
बता दें कि झारखंड में दुमका और बेरमो सीट अभी खाली है. दोनों विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बीते विधानसभा चुनाव में बरहेट और दुमका से चुनाव लड़े थे और दोनों जगहों से जीते भी थे, लेकिन चुनाव जीतने के बाद सीएम हेमंत सोरेन दुमका सीट को छोड़ दिए, जिससे वह अभी खाली हैं. वर्ष 2014 में भी हेमंत सोरेन दुमका और बरहेट से विधानसभा चुनाव लड़े थे, जिसमें दुमका से भाजपा नेत्री लुईस मरांडी ने हेमंत सोरेन को हरा दिया था, लेकिन वर्ष 2019 में दोनों सीटों पर हेमंत सोरेन ने जीत दर्ज की.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा 5 जनवरी को दुमका सीट छोड़ने के बाद से दुमका विधानसभा सीट खाली है. तो वहीं दूसरी तरफ 24 मई को बेरमो विधायक राजेंद्र सिंह के निधन होने के कारण बेरमो विधानसभा सीट भी खाली हो गई है. राज्यसभा का यह चुनाव सत्ताधारी गठबंधन के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है. इसको लेकर राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अपने अल्पसंख्यक समर्थक स्टैंड के कारण ही कांग्रेस इस चुनाव में उतरी है. यदि वह चुनाव हार जाती है, तो इसका दूरगामी असर पड़ना स्वाभाविक है. उधर, भाजपा यदि यह चुनाव हार जाती है, तो विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद यह उसके लिए एक और धक्का होगा.