रांचीः मानसून सत्र के दूसरे दिन झारखंड विधानसभा में मणिपुर की घटना और राज्य में गिर रही विधि व्यवस्था को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में हंगामा होता रहा और दोनों के विधायक एक-दूसरे उलझते रहे. सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले विधानसभा परिसर में सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से नारेबाजी और प्रदर्शन होता रहा जो सदन के भीतर भी देखने को मिला.
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सदन के अंदर भाजपा विधायक वेल में पहुंचकर जहां झारखंड में विधि व्यवस्था को लेकर सदन में विशेष चर्चा की मांग कर रहे थे. वहीं दूसरी ओर सत्तापक्ष के झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और आरजेडी विधायक मणिपुर हिंसा को लेकर विधानसभा में चर्चा की मांग कर रहे थे. इन सबके बीच वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव ने चालू वित्तीय वर्ष के 11 हजार 988 करोड़ का प्रथम अनुपूरक पेश किया. इसके बाद सदन की कार्यवाही मंगलवार 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई है.
सदन के बाहर मीडियाकर्मियों से बात करते हुए बाबूलाल मरांडी ने कहा कि मणिपुर की घटना को लेकर लोकसभा में जब चर्चा कराने की बात की जाती है तो कांग्रेस चर्चा से भागती है और झारखंड में इस पर चर्चा करने की मांग करती है. कांग्रेस की यह दो नीति को सभी लोग जानते हैं. झारखंड विधानसभा में तो आवश्यकता इस बात की है कि राज्य में गिर रही विधि व्यवस्था पर चर्चा होनी चाहिए ना कि मणिपुर की घटना को लेकर.
आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने भी झारखंड विधानसभा में सत्ता पक्ष के रुख पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि मणिपुर की घटना वाकई में निंदनीय है. झारखंड में जिस तरह के हालात हैं और घटनाएं हो रही हैं, उस पर भी चर्चा सदन में होने की आवश्यकता है. लेकिन दुख की बात यह है कि सरकार की ओर से इस पर चुप्पी साध ली गई है.
स्पीकर को बुलाना चाहिए था कार्यमंत्रणा- सुदेशः आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने स्पीकर पर निशाना साधते हुए कहा है कि कार्यमंत्रणा की बैठक बुलाकर सदन में विधि व्यवस्था को लेकर विशेष चर्चा की कवायद होनी चाहिए. लेकिन विधानसभा अध्यक्ष यह भी भूल गए और सदन में मणिपुर की घटना ही सुर्खियों में रही. सरकार के द्वारा पेश किए गए अनुपूरक बजट पर आपत्ति जताते हुए सुदेश महतो ने कहा कि जब मूल बजट पेश की जाती है तो उसमें भविष्य की योजना बनाकर प्लानिंग किया जानी चाहिए. लेकिन सरकार वह नहीं कर पाई और अनुपूरक बजट लाकर इसे पाटने की कोशिश कर रही है. राज्य की हालात ऐसे हैं कि पिछले दो-तीन वर्षों से एक भी ट्रांसफार्मर नहीं खरीद हुए हैं. जिसके कारण से ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रांसफार्मर जल जाने के बाद इसे बदलने में 6 महीना लग जाता है सरकार को इन सब चीजों पर ध्यान नहीं है.
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