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सरकारों की संवेदनहीनता पर आंसू बहा रहा है बटाने जलाशय परियोजना, 1976 से लटका पड़ा है प्रोजेक्ट, सदन में उठा मामला

सोमवार को झारखंड विधानसभा मानसून सत्र की कार्यवाही के दौरान छतरपुर विधायक पुष्पा देवी ने बटाने जलाशय प्रोजेक्ट का मामला उठाया. उन्होंने पूछा कि 1976 में शुरू हुई योजना अभी तक लटकी है. कब तक पूरा होगा काम?

Batane reservoir project
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Published : Jul 31, 2023, 5:56 PM IST

Updated : Jul 31, 2023, 6:39 PM IST

रांची: सामान्य औसत से कम बारिश और सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से राज्य के किसान अपनी किस्मत को कोस रहे हैं. खासकर पलामू की स्थिति तो और भी खराब है. पिछले साल की तरह इस साल भी यह जिला सुखाड़ पर दहलीज पर खड़ा है. अगर सरकारें सजग होतीं तो शायद पलामू के एक बड़े हिस्से में खेत लहलहाते नजर आते. इसकी वजह है बटाने जलाशय प्रोजेक्ट का कागजों में सिमट कर रह जाना.

ये भी पढ़ें- नेशनल हाइवे 98 ने बढ़ाई बिहार-झारखंड के किसानों की परेशानी, बटाने डैम से निकलने वाला मुख्य नहर बंद, 175 गांव में नहीं हो पाई धनरोपनी

इस मामले को छतरपुर से भाजपा विधायक पुष्पा देवी ने सदन में उठाया. उन्होंने सरकार से पूछा कि 1976 में उत्तरी कोयल सिंचाई परियोजना के तहत शुरू की गई बटाने जलाशय परियोजना क्यों अधर में लटकी पड़ी है. उन्होंने सरकार से पूछा कि क्या यह सही है कि छत्तरपुर प्रखंड के दिनादाग, भंडारडीह, कउवल और धोबीडीह गांव के अलावा नौडीहा प्रखंड के नावाडीह और गुलाबझरी के रैयतों से तीन चरण में जमीन अधिग्रहण किया गया था. लेकिन अभी भी बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण का मुआवजा लटका पड़ा है.

जवाब में जल संसाधन विभाग की ओर से बताया गया कि बटाने जलाशय योजना का निर्माण कार्य साल 1976 में शुरू हुआ था. डीपीआर में कुल 3,350 एकड़ भूमि में से 1871.785 एकड़ रैयती भूमि है. शेष 204.365 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया जाना है. शेष भूमि अधिग्रहण के लिए विशेष भू-अर्जन पदाधिकारी, उत्तरी कोयल परियोजना, मेदनीनगर को 11,749.69 लाख रु. उपलब्ध करा दिए गये हैं. विशेष भू-अर्जन पदादिकारी के स्तर से 204.365 एकड़ भूमि का मुआवजा भुगतान प्राप्त करने के लिए भू-अर्जन के अधिनियम 2013 की धारा 37(2) का नोटिस तीन बार तामिला किया जा चुका है. फिलहाल नौडीहा बाजार अंचल के तहत नावाडीह और गुलाबझरी का भुगतान जारी है. छत्तरपुर अंचल के चार गांव से संबंधित रैयतों के द्वारा भू-स्वामित्व वंशावली प्रमाण पत्र और अन्य राजस्व कागजात जमा करने पर भुगतान कर दिया जाएगा.

जल संसाधन विभाग ने स्वीकार किया है कि इससे 39 विस्थापित परिवारों को मांडर पुनर्वास स्थल पर 25-25 डीसमिल जमीन वन भूमि पर दी गई है. हालांकि वन विभाग द्वारा भूमि का हस्तांतरण अबतक नहीं किया गया है. यह काफी पुराना मामला है. विभाग ने माना है कि यह मामला अभी संज्ञान में आया है. अब वन विभाग के साथ समन्वय स्थापित कर भूमि का वन पट्टा विस्थापितों को दिलाने की कार्रवाई की जा रही है.

विभाग के मुताबिक डूब क्षेत्र के छह गांवों के शेष 204.365 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करते हुए भू-धारियों को मुआवजा भुगतान की प्रक्रिया चल रही है. यह भी भरोसा दिलाया गया है कि झारखंड पुनरीक्षित पुनर्वास नीति, 2012 की कंडिका 9.2 के अनुसार स्वीकृत रिक्त बल के विरूद्ध नियुक्ति में विस्थापितों को प्राथमिकता दी जाएगी. हालांकि विभाग ने स्पष्ट नहीं किया कि यह योजना कब पूरी होगी. इस योजना के लंबित रहने की वजह से पलामू और बिहार के औरंगाबाद के करीब सात प्रखंड की सिंचाई व्यवस्था प्रभावित हो रही है. ऊपर से मुआवजे की राह ताक रहे ग्रामीणों ने जलाशय के गेट को वेलडिंग कर दिया है. इसकी वजह से पानी बह जा रहा है. एक छोटा सा काम पूरा कर दिया गया होता तो इलाके की तस्वीर बदल जाती.

रांची: सामान्य औसत से कम बारिश और सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से राज्य के किसान अपनी किस्मत को कोस रहे हैं. खासकर पलामू की स्थिति तो और भी खराब है. पिछले साल की तरह इस साल भी यह जिला सुखाड़ पर दहलीज पर खड़ा है. अगर सरकारें सजग होतीं तो शायद पलामू के एक बड़े हिस्से में खेत लहलहाते नजर आते. इसकी वजह है बटाने जलाशय प्रोजेक्ट का कागजों में सिमट कर रह जाना.

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इस मामले को छतरपुर से भाजपा विधायक पुष्पा देवी ने सदन में उठाया. उन्होंने सरकार से पूछा कि 1976 में उत्तरी कोयल सिंचाई परियोजना के तहत शुरू की गई बटाने जलाशय परियोजना क्यों अधर में लटकी पड़ी है. उन्होंने सरकार से पूछा कि क्या यह सही है कि छत्तरपुर प्रखंड के दिनादाग, भंडारडीह, कउवल और धोबीडीह गांव के अलावा नौडीहा प्रखंड के नावाडीह और गुलाबझरी के रैयतों से तीन चरण में जमीन अधिग्रहण किया गया था. लेकिन अभी भी बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण का मुआवजा लटका पड़ा है.

जवाब में जल संसाधन विभाग की ओर से बताया गया कि बटाने जलाशय योजना का निर्माण कार्य साल 1976 में शुरू हुआ था. डीपीआर में कुल 3,350 एकड़ भूमि में से 1871.785 एकड़ रैयती भूमि है. शेष 204.365 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया जाना है. शेष भूमि अधिग्रहण के लिए विशेष भू-अर्जन पदाधिकारी, उत्तरी कोयल परियोजना, मेदनीनगर को 11,749.69 लाख रु. उपलब्ध करा दिए गये हैं. विशेष भू-अर्जन पदादिकारी के स्तर से 204.365 एकड़ भूमि का मुआवजा भुगतान प्राप्त करने के लिए भू-अर्जन के अधिनियम 2013 की धारा 37(2) का नोटिस तीन बार तामिला किया जा चुका है. फिलहाल नौडीहा बाजार अंचल के तहत नावाडीह और गुलाबझरी का भुगतान जारी है. छत्तरपुर अंचल के चार गांव से संबंधित रैयतों के द्वारा भू-स्वामित्व वंशावली प्रमाण पत्र और अन्य राजस्व कागजात जमा करने पर भुगतान कर दिया जाएगा.

जल संसाधन विभाग ने स्वीकार किया है कि इससे 39 विस्थापित परिवारों को मांडर पुनर्वास स्थल पर 25-25 डीसमिल जमीन वन भूमि पर दी गई है. हालांकि वन विभाग द्वारा भूमि का हस्तांतरण अबतक नहीं किया गया है. यह काफी पुराना मामला है. विभाग ने माना है कि यह मामला अभी संज्ञान में आया है. अब वन विभाग के साथ समन्वय स्थापित कर भूमि का वन पट्टा विस्थापितों को दिलाने की कार्रवाई की जा रही है.

विभाग के मुताबिक डूब क्षेत्र के छह गांवों के शेष 204.365 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करते हुए भू-धारियों को मुआवजा भुगतान की प्रक्रिया चल रही है. यह भी भरोसा दिलाया गया है कि झारखंड पुनरीक्षित पुनर्वास नीति, 2012 की कंडिका 9.2 के अनुसार स्वीकृत रिक्त बल के विरूद्ध नियुक्ति में विस्थापितों को प्राथमिकता दी जाएगी. हालांकि विभाग ने स्पष्ट नहीं किया कि यह योजना कब पूरी होगी. इस योजना के लंबित रहने की वजह से पलामू और बिहार के औरंगाबाद के करीब सात प्रखंड की सिंचाई व्यवस्था प्रभावित हो रही है. ऊपर से मुआवजे की राह ताक रहे ग्रामीणों ने जलाशय के गेट को वेलडिंग कर दिया है. इसकी वजह से पानी बह जा रहा है. एक छोटा सा काम पूरा कर दिया गया होता तो इलाके की तस्वीर बदल जाती.

Last Updated : Jul 31, 2023, 6:39 PM IST
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