रांचीः 20 वर्षों से पुलिस के लिए चुनौती बने 25 लाख के इनामी पीएलएफआई सुप्रीमो दिनेश गोप की गिरफ्तारी में एनआईए में तैनात झारखंड कैडर के अफसरों की भूमिका बेहद अहम रही. झारखंड कैडर के आईपीएस अधिकारी और एनआईए के आईजी आशीष बत्रा और आईपीएस प्रशांत आनंद दोनों की ही भूमिका बेहद सराहनीय रही. दोनों अधिकारी झारखंड कैडर के ही आईपीएस हैं.
झारखंड से शुरू किया प्रयास एनआईए में हुआ सफलः झारखंड में तैनाती के दौरान भी आईजी एनआईए आशीष बत्रा और एसपी एनआईए (रांची विंग) दिनेश गोप की गिरफ्तारी के कई प्रयास किए थे. झारखंड पुलिस के आईजी अभियान रह चुके आईजी आशीष बत्रा अब एनआईए मुख्यालय में आईजी हैं. वहीं प्रशांत आनंद के पास रांची, लखनऊ और दिल्ली एनआईए कार्यालय का प्रभार है. साल 2002 से ही उग्रवादी दिनेश गोप को गिरफ्तार करने की की कोशिश बत्रा कर रहे थे. दिनेश गोप के भाई सुरेश गोप के मारे जाने के बाद जब सम्राट गिरोह के साथ जेएलटी की गैंगवार शुरू हुआ, तब बत्रा रांची के सिटी एसपी थे. उस दौरान खूंटी जिला रांची से अलग नहीं हुआ था. बाद में आशीष बत्रा जब झारखंड पुलिस के आईजी अभियान बने, तब भी उन्होंने पीएलएफआई और भाकपा माओवादियों के खिलाफ कई सफल अभियानों की दिशा तय की थी. आईजी अभियान के पद पर रहते हुए भी उन्होंने दिनेश गोप की गिरफ्तारी के कई बार प्रयास किए. वहीं प्रशांत आनंद भी हटिया में एएसपी के पद पर थे, तब खूंटी से सटे तुपुदाना का इलाका प्रशांत आनंद के ही अधीन आता था. इस दौरान उन्होंने भी दिनेश गोप और उसके सहयोगियों के खिलाफ अभियान चलाया था.
झारखंड पुलिस भी लगातार कर रही थी सूचनाओं का आदान-प्रदानः दिनेश गोप के नेपाल भागने के बाद भी लगातार उसके संबंध में झारखंड पुलिस सूचनाएं जुटा रही थी. झारखंड पुलिस के वरीय अधिकारियों ने भी कई सूचनाएं केंद्रीय एजेंसियों के साथ शेयर की. जिसके बाद एजेंसियों ने कार्रवाई शुरू की. इसके बाद दिनेश गोप को गिरफ्तार किया गया. एनआईए ने दिनेश गोप की गिरफ्तारी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर होने की जानकारी दी है, हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि दिनेश को नेपाल से गिरफ्तार किया गया है. गिरफ्तारी के वक्त दिनेश गोप ने पंजाबी वेशभूषा में था.
एनआईए के रडार पर था दिनेश गोपः केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के बाद भी आईजी आशीष बत्रा और आईपीएस प्रशांत आनंद लगातार दिनेश को गिरफ्तार करने के लिए प्रयास कर रहे थे. दरअसल, झारखंड में टेरर फंडिंग मामले की जांच भी एनआईए कर रही है. झारखंड के रांची, खूंटी, सिमडेगा, गुमला, चाईबासा समेत कई जिलों में पीएलएफआई का प्रभाव रहा है. इन इलाकों में कारोबारियों, ठेकेदारों से वसूली कर दिनेश गोप ने अकूत कमाई की थी. नोटबंदी के बाद 10 नवंबर 2016 को पेट्रोलपंप संचालक को पैसे देकर दिनेश गोप ने इसे खातों में जमा कराने की कोशिश की थी, लेकिन तब पैसे बरामद कर लिए गए थे.
लेवी के जरिए दिनेश ने अकूत संपत्ति अर्जित की थीः बाद में एनआईए ने 19 जनवरी 2019 से जब इस केस की जांच शुरू की तब पाया कि लेवी के पैसों से दिनेश गोप ने काफी अचल-संपत्ति खरीदी है. वहीं शेल कंपनियों के जरिए निवेश भी कराया है. इस केस में एनआईए ने दिनेश गोप की दोनों पत्नियों, उसके कई सहयोगियों को गिरफ्तार किया था. इस केस में नौ जनवरी 2017 को चार लोगों के खिलाफ पुलिस ने चार्जशीट की थी. बाद में एनआईए ने इस केस में दिनेश गोप समेत 11 आरोपियों के खिलाफ 23 जुलाई 2022 को चार्जशीट दायर किया था. इसमें पांच लोगों के साथ तीन प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों को भी आरोपी बनाया गया था. जांच के बाद एनआईए ने 14 बैंक खातों में जमा राशि, दो कार, अचल संपत्तियों को यूएपीए के तहत जब्त किया था. गोप ने मेसर्स पलक इंटरप्राइजेज, शिव आदि शक्ति, मेसर्स शिव शक्ति समृद्धि इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड, मेसर्स भाव्या इंजीकॉन जैसी कंपनियों में निवेश किया था. इस कंपनियों में उग्रवादियों के परिवार के सदस्यों को ही निदेशक बनाया गया था. लेवी की राशि को हवाला कारोबारियों के मदद से भी कई जगह ट्रांसफर किए जाने के साक्ष्य एनआईए को मिले थे.
बेरोजगारों को फ्रेंचाईजी देकर कमांडर बनाता था दिनेश गोपः दिनेश गोप की गिनती काफी शातिर और खतरनाक उग्रवादी के तौर पर होती थी. साल 2002 में दिनेश गोप ने जेएलटी नाम के उग्रवादी संगठन की नींव डाली थी. जेएलटी के जरिए सैकड़ों आपराधिक कांडों को दिनेश ने अंजाम दिलवाया. गोप को मजबूती तब मिली तब जुलाई 2007 में बड़े भाकपा माओवादी मसीह चरण के साथ जा मिला, उसके बाद तो उसका आतंक कई जिलों में कायम हो गया.