रांची: 23 जून को रिलीज हुई नागपुरी फिल्म नासूर को लोग खूब पसंद कर रहे हैं. यह फिल्म सामाजिक मुद्दा डायन प्रथा पर आधारित है. इसमें सामाजिक कुरीतियों के अलावा मनोरंजन भी भरपुर है. फिल्म के डायरेक्टर-प्रोड्यूसर का कहना कि फिल्म का सब्जेक्ट अच्छा होगा और बेहतर तरीके प्रस्तुत किया जाएगा तो दर्शकों को पंसद आएगी ही. यही नासूर के साथ भी है. राजीव सिन्हा ने ईटीवी भारत के साथ अपना अनुभव साझा किया.
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उन्होंने कहा कि आए दिन खबरों में देखते हैं कि झारखंड के ग्रामीण इलाकों में डायन कहकर किसी को मार दिया जाता है या किसी के साथ मारपीट कर उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है. झारखंड के लिए यह विषय बेहद ही ज्वलंत और संवेदनशील है. यह सब जागरूकता की कमी के कारण हो रहा है. इसलिए हमने सोचा कि मनोरंज के माध्यम से समाज के बीच एक अच्छा संदेश भी दिया जाए, झारखंडी फिल्म नासूर के माध्यम से भी कुछ ऐसा ही प्रयास किया गया है.
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मुश्किल से मिला स्क्रीन: नागपुरी मूवी नासूर की सफलता पर उन्होंने कहा कि फिल्म को स्क्रीन नहीं मिल रहा था. बहुत मुश्किल से एक स्क्रीन मिला जहां पर हमलोगों ने फिल्म को रिलीज किया. पहले ही दिन से फिल्म के प्रति लोगों का रुझान अच्छा था. लोग आते थे, टिकट नहीं मिलने पर वापस लौट जाते थे. उन्होंने कहा कि हालत यह हो गई कि पांच करोड़ की फिल्म देखने के लिए हॉल में पांच आदमी नहीं आ रहे हैं, जबकि 50 लाख की फिल्म देखने के लिए डेढ़ सौ से अधिक लोग पहुंच रहे थे. लोगों की डिमांड पर ही हमने फिल्म के प्रदर्शन को एक और हफ्ते के लिए बढ़ा दिया है.
झॉलीवुड फिल्मों का बाजार छोटा: राजीव सिन्हा ने कहा कि झारखंड में क्षेत्रीय भाषा की फिल्में बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. यहां आपको फाइनेंसर जल्दी मिलता ही नहीं है, क्योंकि झॉलीवुड का बाजार अभी उतना विकसित नहीं हुआ है, जितना दक्षिण के राज्यों में देखने को मिलता है. आज तमिल, तेलुगू, मलयालम और कन्नड़ भाषा की फिल्में अपने राज्यों के साथ साथ हिंदी भाषी राज्यों में भी काफी धूम मचा रही हैं. उन्होंने कहा कि भोजपुरी फिल्मों के लिए भी अब बाजार बन गया है, लेकिन नागपुरी, खोरठा, पचपरगनिया, कुडुख जैसी झारखंडी भाषाओं के लिए बाजार अभी भी बहुत छोटा है.
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रिजलन फिल्म इंडस्ट्री को चाहिए सरकार का सपोर्टः फिल्म के डायरेक्टर राजीव सिन्हा ने कहा कि अभी झॉलीवुड इंडस्ट्री को सरकार से सपोर्ट की जरूरत है. एक तो यहां फाइनेंसर नहीं मिलते हैं, दूसरी ओर जब आप फिल्म रिलीज करने जाएंगे तो स्क्रीन मिलने में दिक्कत होती है. उन्होंने कहा कि कई राज्यों में सिनेमा हॉल वालों के लिए क्षेत्रीय भाषा की फिल्में लगाना अनिवार्य होता है. झारखंड में भी इस तरह की व्यवस्था हो जाए तो यह इंडस्ट्री बुस्टअप होगा और ग्रो करेगा.
राजीव सिन्हा के बारे में जानें: राजीव सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत एक प्राइवेट नौकरी से की थी लेकिन उन्हें गीत-संगीत का ज्यादा शौक था. इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और 2001 में नागपुरी भाषा में 'जंगल' नाम से एक वीडियो एलबम बनाया. नागपुरी गाने से शुरुआत कर उन्होंने डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट फिल्में और फीचर फिल्में बनाने के लिए अपना प्रोडक्शन हाउस खोल लिया. इसके बाद उन्होंने नागपुरी भाषा में कई एलबम बनाए जो काफी हिट भी हुए. इन्होंने 2005 में नागपुरी भाषा में पहली फीचर फिल्म सुन सजना बनाई. इनकी दूसरी फिल्म करमा 2011 में आई. इन्होंने तीसरी फिल्म 2018 में खोरठा और भोजपुरी भाषा में दीवानगी नाम से बनाई. इसके साथ ही उन्होंने 2023 में नागपुरी फिल्म नासूर को दर्शकों के सामने लेकर आए हैं. फिलहाल राजीव सिन्हा नागपुरी के साथ-साथ भोजपुरी और बंगाली फिल्म के प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहे हैं.