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डेंगू के बढ़ते मरीजों के बीच प्लेटलेट्स का इंतजाम झारखंड के अस्पतालों के लिए बड़ी चुनौती, जानिए प्लेटलेट्स क्यों है इतना महत्वपूर्ण

झारखंड में डेंगू के मरीज इन दिनों लगातार बढ़ रहे हैं. ऐसे में डेंगू के मरीजों के इलाज के लिए प्लेटलेट्स का इंतजाम रामबाण के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन झारखंड के अस्पतालों में प्लेटलेट्स के इंतजाम को लेकर अस्पताल प्रबंधन को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. राजधानी के सदर अस्पताल और रिम्स के अलावा अन्य अस्पतालों में ब्लड से प्लेटलेट्स निकालने की व्यवस्था नहीं है. जिस वजह से मरीजों के साथ-साथ स्वास्थ्य कर्मचारियों को भी डेंगू के मरीजों के इलाज के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

dengue patients in hospitals of Jharkhand
dengue patients in hospitals of Jharkhand
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 21, 2023, 4:15 PM IST

ब्लड बैंक में प्लेटलेट्स की कमी

रांची: राजधानी सहित पूरे प्रदेश में डेंगू का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. रांची सहित राज्य के विभिन्न जिलों में हजारों मरीज प्रतिदिन डेंगू के लक्षण के साथ अस्पताल इलाज कराने पहुंच रहे हैं. डेंगू के दौरान मरीजों के शरीर में प्लेटलेट्स की कमी की काफी गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है. राज्य में अधिकांश डेंगू के मरीज प्लेटलेट्स की कमी से जूझ रहे हैं. झारखंड के अस्पताल भी इस चुनौती का सामना कर रहे हैं. अस्पताल में मरीजों को पर्याप्त मात्रा में प्लेटलेट्स उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. प्लेटलेट्स की कमी और इससे होने वाले प्रभाव को लेकर ईटीवी भारत ने डॉक्टरों से बात की. साथ ही ब्लड बैंक में भी स्थिति की पड़ताल की.

यह भी पढ़ें: Ranchi News: राजधानी में डेंगू का कहर, बड़ी संख्या में मरीजों के पहुंचने से अस्पताल में बेड की कमी

डॉक्टरों के अनुसार, एक व्यक्ति के शरीर में एक लाख पांच हजार प्लेटलेट्स से चार लाख पांच हजार प्लेटलेट्स की संख्या होनी चाहिए. लेकिन डेंगू से पीड़ित मरीजों का सबसे पहले प्लेटलेट्स डाउन हो जाता है, इस दौरान मरीजों के शरीर में प्लेटलेट्स की संख्या पचास हजार से साठ हजार हो जाती है.

प्लेटलेट्स डाउन होने से ये होता है प्रभाव: रिम्स ब्लड बैंक के वरिष्ठ चिकित्सा डॉक्टर चंद्रभूषण बताते हैं कि प्लेटलेट्स डाउन होने से शरीर में आए किसी चोट या ट्रामा में रक्तस्राव को रोकना मुश्किल हो जाता है. क्योंकि शरीर में अनावश्यक रक्त रिसाव को रोकने में प्लेटलेट्स मददगार होता है. वे बताते हैं कि यदि प्लेटलेट्स की संख्या अत्यधिक कम हो जाए यानी कि यदि शरीर में दस हजार से कम प्लेटलेट्स की संख्या हो जाती है तो लोगों को जॉइंट ब्लीडिंग, नोजल ब्लीडिंग, मुंह कान से भी खून निकल सकते हैं. इसके अलावा आंत, छाती सहित शरीर के कई अंगों से ब्लीडिंग की शिकायत हो सकती है. ऐसे में कई बार मरीज की जान भी चली जाती है. इसलिए मरीज अपना कंप्लीट ब्लड काउंट टेस्ट (सीबीसी टेस्ट) अवश्य करवाते रहें.

प्लेटलेट्स निकालने के दो तरीके: रिम्स ब्लड बैंक में कार्यरत डॉक्टर चंद्रभूषण बताते हैं कि प्लेटलेट्स निकालने की दो विधियां हैं. एक रैंडम डोनर प्लेटलेट्स (RDP) और सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (SDP). इन दोनों विधि से लोगों के लिए प्लेटलेट्स निकाले जाते हैं. प्लेटलेट्स को ज्यादा दिनों तक स्टोर कर नहीं रखा जा सकता. इसलिए डोनर से लिए गए प्लेटलेट्स को तुरंत ही उपयोग कर लिया जाता है. प्लेटलेट्स को स्टोर और संरक्षित करना ब्लड बैंकों के लिए एक चुनौती है, क्योंकि प्लेटलेट्स को पांच दिनों तक ही संरक्षित किया जा सकता है.

डेंगू के मरीजों के लिए सिंगल डोनर प्लेटलेट्स और दूसरा रैंडम डोनर प्लेटलेट्स के माध्यम से प्लेटलेट्स मुहैया कराया जाता है. लेकिन डॉक्टरों के अनुसार, डेंगू या फिर अन्य गंभीर मरीजों के लिए सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (SDP) की आवश्यकता होती है, लेकिन झारखंड के रिम्स और रांची सदर अस्पताल को छोड़कर राज्य के कई अस्पतालों में सिंगल डोनर प्लेटलेट्स निकालने की व्यवस्था नहीं है. लोगों को रैंडम डोनर प्लेटलेट्स (RDP) मुहैया कराया जा रहा है. जिस वजह से मरीजों को डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों से राहत नहीं हो पा रहा है.

रिम्स में प्लेटलेट्स की हो जा रही खपत: रिम्स प्रबंधन की तरफ से जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ राजीव रंजन ने बताया कि रिम्स में प्रतिदिन 50 यूनिट प्लेटलेट्स बनाए जा रहे हैं और सभी की खपत हो जा रही है. क्योंकि डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इसलिए प्लेटलेट्स की भी मांग बढ़ गई है. ऐसे में रिम्स प्रबंधन की तरफ से लोगों से अपील भी की जा रही है कि राज्य के स्वस्थ नागरिक अपने शरीर के प्लेटलेट्स का दान करें ताकि मरीजों के शरीर में प्लेटलेट्स बढ़ सके. ईटीवी ने जब ब्लड बैंक की पड़ताल की तो पाया कि मरीजों की बढ़ रही संख्या की वजह से अस्पताल में व्यवस्था भी दम तोड़ रही हैं. सिंगल डोनर प्लेटलेट्स किट्स भी अस्पतालों से खत्म हो रहे हैं. ऐसे में लोगों को रैंडम डोनर प्लेटलेट्स मुहैया कराया जा रहा है, जो डेंगू के गंभीर मरीजों के लिए काफी नहीं है.

ब्लड बैंक में प्लेटलेट्स की कमी

रांची: राजधानी सहित पूरे प्रदेश में डेंगू का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. रांची सहित राज्य के विभिन्न जिलों में हजारों मरीज प्रतिदिन डेंगू के लक्षण के साथ अस्पताल इलाज कराने पहुंच रहे हैं. डेंगू के दौरान मरीजों के शरीर में प्लेटलेट्स की कमी की काफी गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है. राज्य में अधिकांश डेंगू के मरीज प्लेटलेट्स की कमी से जूझ रहे हैं. झारखंड के अस्पताल भी इस चुनौती का सामना कर रहे हैं. अस्पताल में मरीजों को पर्याप्त मात्रा में प्लेटलेट्स उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. प्लेटलेट्स की कमी और इससे होने वाले प्रभाव को लेकर ईटीवी भारत ने डॉक्टरों से बात की. साथ ही ब्लड बैंक में भी स्थिति की पड़ताल की.

यह भी पढ़ें: Ranchi News: राजधानी में डेंगू का कहर, बड़ी संख्या में मरीजों के पहुंचने से अस्पताल में बेड की कमी

डॉक्टरों के अनुसार, एक व्यक्ति के शरीर में एक लाख पांच हजार प्लेटलेट्स से चार लाख पांच हजार प्लेटलेट्स की संख्या होनी चाहिए. लेकिन डेंगू से पीड़ित मरीजों का सबसे पहले प्लेटलेट्स डाउन हो जाता है, इस दौरान मरीजों के शरीर में प्लेटलेट्स की संख्या पचास हजार से साठ हजार हो जाती है.

प्लेटलेट्स डाउन होने से ये होता है प्रभाव: रिम्स ब्लड बैंक के वरिष्ठ चिकित्सा डॉक्टर चंद्रभूषण बताते हैं कि प्लेटलेट्स डाउन होने से शरीर में आए किसी चोट या ट्रामा में रक्तस्राव को रोकना मुश्किल हो जाता है. क्योंकि शरीर में अनावश्यक रक्त रिसाव को रोकने में प्लेटलेट्स मददगार होता है. वे बताते हैं कि यदि प्लेटलेट्स की संख्या अत्यधिक कम हो जाए यानी कि यदि शरीर में दस हजार से कम प्लेटलेट्स की संख्या हो जाती है तो लोगों को जॉइंट ब्लीडिंग, नोजल ब्लीडिंग, मुंह कान से भी खून निकल सकते हैं. इसके अलावा आंत, छाती सहित शरीर के कई अंगों से ब्लीडिंग की शिकायत हो सकती है. ऐसे में कई बार मरीज की जान भी चली जाती है. इसलिए मरीज अपना कंप्लीट ब्लड काउंट टेस्ट (सीबीसी टेस्ट) अवश्य करवाते रहें.

प्लेटलेट्स निकालने के दो तरीके: रिम्स ब्लड बैंक में कार्यरत डॉक्टर चंद्रभूषण बताते हैं कि प्लेटलेट्स निकालने की दो विधियां हैं. एक रैंडम डोनर प्लेटलेट्स (RDP) और सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (SDP). इन दोनों विधि से लोगों के लिए प्लेटलेट्स निकाले जाते हैं. प्लेटलेट्स को ज्यादा दिनों तक स्टोर कर नहीं रखा जा सकता. इसलिए डोनर से लिए गए प्लेटलेट्स को तुरंत ही उपयोग कर लिया जाता है. प्लेटलेट्स को स्टोर और संरक्षित करना ब्लड बैंकों के लिए एक चुनौती है, क्योंकि प्लेटलेट्स को पांच दिनों तक ही संरक्षित किया जा सकता है.

डेंगू के मरीजों के लिए सिंगल डोनर प्लेटलेट्स और दूसरा रैंडम डोनर प्लेटलेट्स के माध्यम से प्लेटलेट्स मुहैया कराया जाता है. लेकिन डॉक्टरों के अनुसार, डेंगू या फिर अन्य गंभीर मरीजों के लिए सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (SDP) की आवश्यकता होती है, लेकिन झारखंड के रिम्स और रांची सदर अस्पताल को छोड़कर राज्य के कई अस्पतालों में सिंगल डोनर प्लेटलेट्स निकालने की व्यवस्था नहीं है. लोगों को रैंडम डोनर प्लेटलेट्स (RDP) मुहैया कराया जा रहा है. जिस वजह से मरीजों को डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों से राहत नहीं हो पा रहा है.

रिम्स में प्लेटलेट्स की हो जा रही खपत: रिम्स प्रबंधन की तरफ से जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ राजीव रंजन ने बताया कि रिम्स में प्रतिदिन 50 यूनिट प्लेटलेट्स बनाए जा रहे हैं और सभी की खपत हो जा रही है. क्योंकि डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इसलिए प्लेटलेट्स की भी मांग बढ़ गई है. ऐसे में रिम्स प्रबंधन की तरफ से लोगों से अपील भी की जा रही है कि राज्य के स्वस्थ नागरिक अपने शरीर के प्लेटलेट्स का दान करें ताकि मरीजों के शरीर में प्लेटलेट्स बढ़ सके. ईटीवी ने जब ब्लड बैंक की पड़ताल की तो पाया कि मरीजों की बढ़ रही संख्या की वजह से अस्पताल में व्यवस्था भी दम तोड़ रही हैं. सिंगल डोनर प्लेटलेट्स किट्स भी अस्पतालों से खत्म हो रहे हैं. ऐसे में लोगों को रैंडम डोनर प्लेटलेट्स मुहैया कराया जा रहा है, जो डेंगू के गंभीर मरीजों के लिए काफी नहीं है.

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