रांची: झारखंड में नक्सलियों का इतिहास रहा है. जब-जब कमजोर हुए हैं उन्होंने आईईडी को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया है. एक बार फिर से नक्सलियों ने अपनी लाल जमीन को बचाने के लिए आईईडी का घेरा बनाना शुरू कर दिया है. बूढ़ा पहाड़ और बुलबुल जंगल से खदेड़े जाने के बाद भाकपा माओवादियों के सारे सेंट्रल कमेटी मेंबर कोल्हान के इलाके में कैंप कर रहे हैं. यही वजह है कि इन इलाकों में नक्सलियों ने कदम कदम पर मौत का सामान बिछा रखा है. ताकि वह अपने आप को सुरक्षित रख सके.
ये भी पढ़ें- Naxal Encounter in Jharkhand: दहशतगर्दों को तलाश रही थी रांची पुलिस, टीपीसी उग्रवादियों से हो गई मुठभेड़, तीन घायल
पहले में नक्सली संगठन सड़क के बीचो-बीच लैंडमाइंस लगाया करते थे. सड़क पर लगे लैंडमाइंस इतने खतरनाक और शक्तिशाली होते थे कि इन की चपेट में आने से एंटी लैंड माइंस वाहन भी क्षतिग्रस्त हो जाया करते थे. नक्सलियों की इस योजना को नाकामयाब करने के लिए नक्सल ऑपरेशन के दौरान जवान पैदल ही दुर्गम इलाकों में जाने लगे. जिसके बाद नक्सलियों ने नए तरह के आईईडी इजाद किए जो 2 से 10 किलो के होते हैं. ऐसे जमीन पर जवानों का पैदल चलना भी मुश्किल है.
कोल्हान के घोर नक्सल इलाकों में जंगल के भीतर दाखिल होने वाले कच्चे-पक्के रास्ते हों या फिर पक्की सड़कें किसी की भी राह आसान नहीं है. आम ग्रामीण हो या फिर पुलिस के जवान किसी की भी सड़कों पर चहल-कदमी जोखिमों से भरी हुई है. इन सड़कों पर पैदल चलना तक दूभर है. बेफिक्री से जमीन पर रखा गया कोई भी कदम जानलेवा साबित हो सकता है. ऐसी विषम परिस्थितियों में झारखंड पुलिस केंद्रीय सुरक्षा बलों के साथ लगातार अभियान चला रही है और इसमें उन्हें सफलता भी हासिल हो रही है. लेकिन कभी-कभी नुकसान भी हो रहा है.
क्यों की है नक्सलियों ने घेराबन्दी: खुफिया रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में भाकपा माओवादियों के सारे सेंट्रल कमेटी मेंबर कोल्हान के इलाके में कैंप कर रहे हैं. वर्तमान में एक करोड़ के चार इनामी माओवादी हैं, जिसमें पोलित ब्यूरो मेंबर मिसिर बेसरा, असीम मंडल, पतिराम मांझी उर्फ अनल के साथ साथ प्रयाग मांझी शामिल हैं. पुलिस के आला अधिकारियों के मुताबिक, माओवादियों के सेकेंड इन कमान प्रशांत बोस व शीला मरांडी की गिरफ्तारी के बाद भाकपा माओवादियों के पोलित ब्यूरो के सदस्य मिसिर बेसरा व प्रयाग मांझी अपने दस्ते के साथ सारंडा इलाके में कैंप कर रहे हैं.
मिसिर बेसरा और प्रयाग मांझी इन इलाकों में संगठन को मजबूत करने की कवायद में जुटे हैं. पतिराम मांझी के बारे में सूचना है कि वह सरायकेला-खरसांवा, रांची और खूंटी के ट्राइजंक्शन पर हैं, वहीं असीम मंडल के दस्ते के चौका-चांडिल के इलाके में होने की जानकारी है. अपने इन बड़े नेताओं को सुरक्षित रखने के लिए ही आईडी बमों के जरिए नक्सलियों ने पूरे इलाके की घेराबंदी कर रखी है.
ये भी पढ़ें- चाईबासा में सर्च ऑपरेशन के दौरान आईईडी विस्फोट, 6 जवान घायल, एयरलिफ्ट कर लाया गया रांची
आईईडी बमों को खोज कर निष्क्रिय करने में लग रहा समय: नक्सलियों के द्वारा जमीन के नीचे लगाए गए आईईडी बमों को खोज कर निकालना मुश्किल काम है. झारखंड जगुआर की बीडीएस टीम लगातार इस पर काम कर रही है, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर बम लगाए गए हैं इसमें काफी समय लग रहा है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि केवल ऑपरेशन ऑक्टोपस जो बूढ़ा पहाड़ को क्लीन करने के लिए चलाया गया था उस दौरान वहां से 17 किस्म के आईडी और लैंड माइंस बरामद किए गए थे. झारखंड पुलिस मुख्यालय से मिले आंकड़ों पर अगर आप गौर करेंगे तब आपको यह समझ आएगा कि आखिर बूढ़ा पहाड़ क्यों नक्सलियों के लिए सबसे सुरक्षित था.
बूढ़ा पहाड़ से भारी मात्रा में बरामद हुए थे विस्फोटक: झारखंड पुलिस के आंकड़े यह बताते हैं कि ऑपरेशन ऑक्टोपस के दौरान जब सर्च ऑपरेशन चलाया गया, तब सुरक्षाबलों को 68 आईईडी, 30 सीरीज आईईडी, 23 प्रेशर कुकर आईईडी, 02 स्टील कंटेनर आईईडी, 20 सिरिंज आईईडी, 18 प्रेशर आईडी, 93 सिलेंडर आईडी, 16 टिफिन आईडी, 214 चेक बोल्ट टाइप आईडी, इसके अलावा बूढ़ा पहाड़ से ही आयरन एरो बम यानी तीर बम 25 की संख्या में बरामद किए गए थे. बूढ़ा पहाड़ से ही पहली बार 39 चाइनीज हैंड ग्रेनेड और 50 देशी हैंड ग्रेनेड भी मिले थे. इसके अलावा 1600 मीटर को कॉर्डेक्स वायर, 1200 डेटोनेटर, 500 से ज्यादा ग्रेनेड आरमिंग रिंग, 100 किलो एक्सप्लोसिव बरामद हुए थे.
साल 2022 में मिला था विस्फोटकों का जखीरा: अगर केवल 1 साल के आंकड़ों की बात करें तो झारखंड पुलिस और केंद्रीय बलों के संयुक्त अभियान में नक्सलियों को अपने आर्म्स और एम्युनेशन का काफी नुकसान उठाना पड़ा था. झारखंड पुलिस से मिले आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में पुलिस ने नक्सलियों के 700 किलो विस्फोटक को जब्त किए ही साथ साथ 1022 विभिन्न प्रकार के आईईडी भी बरामद कर उसे निष्क्रिय कर दिया गया. इसके अलावा 53 पुलिस से लूटे गए हथियार, 23 रेगुलर हथियार, 107 देसी हथियार, 16,280 एम्युनेशन भी बरामद किए गए.
देशी तकनीक से बमों का निर्माण: झारखंड के नक्सली संगठन देसी तकनीक के बल पर कुछ खास किस्म के बमों और आईईडी का निर्माण करने में सफल रहे हैं जिसका इस्तेमाल वे सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाने के लिए कर रहे हैं. नक्सलियों ने 50 से अधिक तरह के बमों का निर्माण कर लिया है. डायरेक्शनल बम, इनमें तीर बम, टाइम बम, घड़ी बम, सुराही बम, सुतली बम, टिफिन बम, सिरिंज बम, रेडियो बम, पॉउच बम, पिठ्ठू बम, चूड़ी बम, ग्रेनाइड बम, बंदूक बम, स्प्रिंग बम, कपाट बम, पर्स बम मुख्य है.
सबसे खतरनाक है डायरेक्शनल बम: नक्सलियों के द्वारा इजाद किए गए आईईडी बम में सबसे ज्यादा खतरनाक डायरेक्शनल बम है. डायरेक्शन बम का इस्तेमाल नक्सली बड़े हमलों को अंजाम देने में करते आये हैं. इस तरह के विस्फोटकों का प्रयोग पूर्व में छत्तीसगढ़ में हुआ करता था. छत्तीसगढ़ से ही इस बम की तकनीक झारखंड पहुंची है. दरअसल, डायरेक्शनल बम एक तरह का जुगाड़ लॉन्चर है, जिसे चलाने के लिए मानव बल की जरूरत नहीं है. लैंड माइंस की तरह ही दूर बैठे तार की मदद से नक्सली इसका संचालन कर सकते हैं. इसकी खासियत है कि इसे सिर्फ जमीन में ही नहीं लगाया जा सकता है, बल्कि पेड़ों और पहाड़ों पर भी लगाया जा सकता है. इसमें लॉन्चर की तरह ही एक पाइपनुमा संरचना होती है, जिसमें एक तरफ का हिस्सा बंद रहता है. सबसे पहले पाइप में हाई एक्सप्लोसिव भरा होता है. उसमें रॉड के गोलीनुमा छोटे-छोटे टुकड़े सैकड़ों की संख्या में रहते हैं. विस्फोटक के पास एक दो तार के बराबर छेद होता है, जहां तार लगा होता है. इस देसी लॉन्चर को दूर किसी पेड़, पहाड़ पर लगाकर अपराधी-नक्सली कहीं दूर चले जाते है. जैसे ही सुरक्षा बल उस पेड़ या पहाड़ के नजदीक पहुंचते हैं, वह अपराधी-नक्सली तार को बैट्री की मदद से स्पार्क कर देता है और विस्फोटक में आग लगते ही ब्लास्ट होता है. उसमें पड़े सभी रॉड के टुकड़े खाली दिशा में तेजी से निकलते हैं और उनके रास्ते में जो मिलता है उसके शरीर को छेद देता है.
तीर बम का ईजाद किया नक्सलियो ने: वहीं, नक्सलियों ने अब तीर बम का भी इजाद कर लिया है. एक तीर में नक्सली सर्किट लगा कर उसके मुंह पर विस्फोटक बांध देते हैं जिसके बाद विस्फोटक जब जमीन पर टकराता है तब उसमें विस्फोट हो जाता है. तीर बम का इस्तेमाल नक्सली सुरक्षाबलों के वाहनों पर हमला करने के लिए करते हैं ताकि थोड़ी देर के लिए सुरक्षा बल इधर उधर हो जाए और उन पर नक्सलियों को हमला करने का मौका मिल जाए.
आम लोगों के इस्तेमाल करने वाले सामानों का प्रयोग बम बनाने में: आमतौर पर हम जिन चीजों को बेकार समझकर उन्हें कबाड़ी वालों को दे देते हैं या फिर उन्हें कचरे में फेंक देते हैं उसका इस्तेमाल भी नक्सली बम को बनाने के लिए कर रहे हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि नक्सली पुराने घड़े, दवाई की सिरिंज, लेडीज पर्स, सुटकेस, सर्फ का डब्बा, टिफिन बॉक्स, केन तक का इस्तेमाल कर बम बना रहे हैं.