रांची: जनजातियों की सभ्यता और संस्कृति को समाज तक पहुंचाने के लिए 1953 में बनी झारखंड का एकमात्र शोध संस्थान टीआरआई दम तोड़ रहा है. रांची के मोरहाबादी स्थिति इस संस्थान की हालत यह है कि निदेशक से लेकर शोधकर्ता तक के पद खाली हैं. जाहिर तौर पर 58 स्वीकृत पदों में से मात्र 19 कार्यबल के जरिए काम कर रहे हैं. इस संस्थान में कैसे कामकाज हो रहे होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. स्वर्गीय रामदयाल मुंडा के नाम पर वर्तमान समय में काम कर रहे रांची के इस जनजातीय शोध संस्थान में सिर्फ और सिर्फ रुटीन कार्य हो रहे हैं.
जानकारी के मुताबिक राज्य सरकार खाली पड़े निदेशक के पद पर एक बार फिर संविदा के आधार पर रणेंद्र कुमार को ही लाने की तैयारी में है जिसके लिए विभागीय स्तर पर संचिका बढ़ा दी गई है. मगर खास बात यह है कि जिस जनजातीय सभ्यता संस्कृति के बारे में आज भी दुनियां अनभिज्ञ है उसे जानने का प्रयास जिस संस्थान के माध्यम से शोध के जरिए होता है उसके स्वीकृत 58 पदों में 39 रिक्त हैं. दिसंबर और मार्च महीने में रिक्तियों की संख्या कुछ और बढ़ जाएगी ऐसे में समय रहते यदि सार्थक कदम नहीं उठाया गया तो अन्य बोर्ड निगम की तरह इसका भी वही हाल होगा.
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