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Holi in Ranchi Old Age Home: होली पर छलका रांची के वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों का दर्द, कहा- कभी हमारी भी होती थी अनोखी होली, अब वो खुशी नहीं

होली को एक सामाजिक पर्व कहा गया है. इस पर्व का मजा परिवार और समाज के साथ मिलकर मनाने का है, लेकिन समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो अपनों से दूर होकर पर्व-त्योहार मनाने को विवश हैं. हम बात कर रहे हैं ओल्ड एज होम की. जहां अपनों के द्वारा ठुकराए गए लोग जीवन के अंतिम पड़ाव में तन्हा पर्व-त्योहार मनाने को विवश हैं. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में कई बुजुर्गों ने अपना दर्द साझा किया.

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Holi Of People Living In Old Age Home of Ranchi
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Published : Mar 8, 2023, 5:24 PM IST

रांचीः होली खुशियों का त्योहार है जिसमें मस्ती भी है, पारिवारिक मिलन भी है और सामाजिक एकजुटता भी है. यही वजह है कि यह पर्व उत्साह के रूप में मनाया जाता है, लेकिन बदलते दौर में समाज भी बदल रहा है और परिवार की व्यवस्था भी, जिसका प्रभाव कहीं ना कहीं सामने आ रहा है. होली की मस्ती के इस माहौल में समाज में ऐसे भी लोग हैं जो अपनों द्वारा ठुकराने की वजह से अनाथालय में रहने को विवश हैं. इनकी कभी होली अपनों के बीच होती थी. आज इनके लिए होली, दीपावली सामान्य दिन की तरह है. जहां ना कोई उत्साह और ना ही कोई उमंग. हालांकि इनकी माने तो अनाथालय में रहने वाले लोग ही अब इनका परिवार है, जहां खुशियां ही खुशियां हैं.

ये भी पढे़ं-Holi in Jharkhand BJP Office: होलिया में उड़े रे गुलाल... बीजेपी कार्यालय में सिर चढ़कर बोल रहा होली का रंग, कार्यकता हुए सराबोर
ओल्ड एज होम और अनाथालय का बढ़ रहा है चलनः पारिवारिक विवाद की वजह से संयुक्त परिवार में तेजी से बिखराव आ रहा है. ओल्ड एज होम और अनाथालय का तेजी से प्रचलन बढ़ने लगा है. राजधानी रांची की ही यदि बात करें तो एक दर्जन से अधिक ओल्ड एज होम और अनाथालय यहां हैं. जिसमें सैकड़ों वृद्ध और अनाथ महिलाएं और पुरुष रहते हैं. इसी तरह से राज्य के अन्य जिलों में भी ओल्ड एज होम का कंसेप्ट तेजी से बढ़ा है. जिसमें राज्य भर में करीब 20 हजार ऐसे लोग रहते हैं.

कभी परिवार के साथ होती थी अनोखी होलीः सिंहमोड़ और हरमू स्थित ओल्ड एज होम में रहने वाले कुछ लोगों ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि कभी उनकी भी होली अनोखी होती थी. अपने पोते-पोतियों और बेटी-बहू के साथ होली के अवसर पर रंग जमता था, लेकिन आज सब कुछ खत्म हो चुका है. उन्होंने कहा कि अब अनाथालय ही अपना आशियाना है और यहां रहनेवाले सभी लोग परिवार हैं. जिसमें हम सभी लोग त्योहार भी मनाते हैं. लेकिन पर्व की वो खुशी भलें ही ना मिले लेकिन इतना जरूर है हम धीरे-धीरे पुरानी बातों को अब जीवन के अंतिम समय में भूलते जा रहे हैं.

संस्कृति को भूलते जा रहे युवाः हम क्या हैं और हमारी संस्कृति क्या है आज इसे समझने की जरूरत है. आज के बदलते समय में युवा पीढ़ी इसे समझने की कोशिश नहीं करती. इस वजह से कहीं ना कहीं समाज और परिवार के प्रति वो लगाव खत्म होने लगा है और परिवार टूटने लगा है. बहरहाल, होली को बुराई पर अच्छाई की जीत और अपने मन की गंदगी को दूर कर गले मिलने का पर्व है. ऐसे में अपने अंदर झांकने की आवश्यकता है. जिससे इन बुजुर्गों के चेहरे पर भी खुशियों का रंग जीवन के अंतिम अंतिम समय तक दिखे.

रांचीः होली खुशियों का त्योहार है जिसमें मस्ती भी है, पारिवारिक मिलन भी है और सामाजिक एकजुटता भी है. यही वजह है कि यह पर्व उत्साह के रूप में मनाया जाता है, लेकिन बदलते दौर में समाज भी बदल रहा है और परिवार की व्यवस्था भी, जिसका प्रभाव कहीं ना कहीं सामने आ रहा है. होली की मस्ती के इस माहौल में समाज में ऐसे भी लोग हैं जो अपनों द्वारा ठुकराने की वजह से अनाथालय में रहने को विवश हैं. इनकी कभी होली अपनों के बीच होती थी. आज इनके लिए होली, दीपावली सामान्य दिन की तरह है. जहां ना कोई उत्साह और ना ही कोई उमंग. हालांकि इनकी माने तो अनाथालय में रहने वाले लोग ही अब इनका परिवार है, जहां खुशियां ही खुशियां हैं.

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ओल्ड एज होम और अनाथालय का बढ़ रहा है चलनः पारिवारिक विवाद की वजह से संयुक्त परिवार में तेजी से बिखराव आ रहा है. ओल्ड एज होम और अनाथालय का तेजी से प्रचलन बढ़ने लगा है. राजधानी रांची की ही यदि बात करें तो एक दर्जन से अधिक ओल्ड एज होम और अनाथालय यहां हैं. जिसमें सैकड़ों वृद्ध और अनाथ महिलाएं और पुरुष रहते हैं. इसी तरह से राज्य के अन्य जिलों में भी ओल्ड एज होम का कंसेप्ट तेजी से बढ़ा है. जिसमें राज्य भर में करीब 20 हजार ऐसे लोग रहते हैं.

कभी परिवार के साथ होती थी अनोखी होलीः सिंहमोड़ और हरमू स्थित ओल्ड एज होम में रहने वाले कुछ लोगों ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि कभी उनकी भी होली अनोखी होती थी. अपने पोते-पोतियों और बेटी-बहू के साथ होली के अवसर पर रंग जमता था, लेकिन आज सब कुछ खत्म हो चुका है. उन्होंने कहा कि अब अनाथालय ही अपना आशियाना है और यहां रहनेवाले सभी लोग परिवार हैं. जिसमें हम सभी लोग त्योहार भी मनाते हैं. लेकिन पर्व की वो खुशी भलें ही ना मिले लेकिन इतना जरूर है हम धीरे-धीरे पुरानी बातों को अब जीवन के अंतिम समय में भूलते जा रहे हैं.

संस्कृति को भूलते जा रहे युवाः हम क्या हैं और हमारी संस्कृति क्या है आज इसे समझने की जरूरत है. आज के बदलते समय में युवा पीढ़ी इसे समझने की कोशिश नहीं करती. इस वजह से कहीं ना कहीं समाज और परिवार के प्रति वो लगाव खत्म होने लगा है और परिवार टूटने लगा है. बहरहाल, होली को बुराई पर अच्छाई की जीत और अपने मन की गंदगी को दूर कर गले मिलने का पर्व है. ऐसे में अपने अंदर झांकने की आवश्यकता है. जिससे इन बुजुर्गों के चेहरे पर भी खुशियों का रंग जीवन के अंतिम अंतिम समय तक दिखे.

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