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इस मंदिर में स्वान भी करते हैं पूजा, जानिए क्या है पगला बाबा आश्रम का इतिहास - झारखंड न्यूज

भारत में कई मंदिर स्थापित हैं. सभी मंदिरों का अपना इतिहास है. उन्हीं में से एक मंदिर है, पगला बाबा आश्रम का मुक्तेश्वर धाम.  इस मंदिर में भोलेनाथ के कई रूप स्थापित हैं. आइए जानते हैं  इस मंदिर और इसके नामकरण के पीछे के इतिहास के बारे में.

स्वान भी करते है पूजा
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Published : Jul 29, 2019, 1:30 PM IST

रांचीः सावन में सोमवारी का खासा महत्व होता है. श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ के मंदिर में माथा टेकने पहुंच रहे हैं. राजधानी के कोकर स्थित भोलेनाथ के मुक्तेश्वर धाम में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. सभी अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मुक्तेश्वर धाम मंदिर और पगला बाबा आश्रम पहुंचते हैं. मंदिर का इतिहास, इसकी खासियत को बयां करता है.

देखें पूरी खबर

क्यों कहा जाता है इस मंदिर को पगला बाबा आश्रम

मंदिर के पूजारी और यहां रहने वाले लोग बताते हैं कि आज से सैकड़ों साल पहले बंगाल के रहने वाले पंचानंद मित्र नाम के शख्स ने इस मंदिर परिसर में साधना की थी. पंचानन मित्र पेशे से इंजीनियर हुआ करते थे और बंगाल के रहने वाले थे. लेकिन कम उम्र में ही उन्होंने परिवारिक मोह का त्याग कर ईश्वर की आराधना में अपने जीवन को समर्पित कर दिया. इसी मंदिर में बने एक गुफा में पंचानंद मित्र ने साधना की और पगला बाबा के नाम से विख्यात हुए. धीरे-धीरे वह बड़े तांत्रिक, तंत्र मंत्र के ज्ञानी, अध्यात्म शक्तियों से पूर्ण और ज्योतिषाचार्य के रूप में भी प्रचलित हुए. पंचानद मित्र उर्फ पगला बाबा के साथ अरमेश्वरी देवी उर्फ लखी गांगुली, साधिका कल्याणी देवी उर्फ कल्याणी भट्टाचार्य और विमल मोहन भट्टाचार्य उर्फ विमल दादू का भी इस मंदिर के निर्माण में काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

रांची से संवाददाता हितेश कुमार चौधरी

कई रूपों भोलेनाथ के मंदिर है स्थापित

इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ के कई रूपों का वास है. जानकारों के मुताबिक मुक्तेश्वर का रूप, महामृत्युंजय का रूप, शांतिनाथ का रूप, मुक्तिनाथ का रूप, गौरीनाथ का रूप, गोपीनाथ का रूप, परेश नाथ का रूप, ब्रह्मेश्वर, ब्रह्म विदेश्वर, रुदेश्वर, भद्रेश्वर विजेश्वर सहित भगवान भोलेनाथ के कई रूपों के मंदिर यहां पर स्थापित किए गए हैं. मंदिर में बना कुंड का जल पूरे देश में प्रचलित है और यहां का जल महाराष्ट्र, गुजरात सहित देश के कई जिलों के श्रद्धालु लेकर अपने घर की सुख शांति के लिए उपयोग करते हैं. लेकिन अब कुंड की देखरेख नहीं होने के कारण यहां का जल दूषित हो रहा है.

ये भी पढ़ें- विधानसभा चुनाव को लेकर RJD की बैठक, 9 अगस्त से पार्टी चलाएगी सदस्यता अभियान

मंदिर में स्वान भी करते है भगवान भोले की पूजा

इस मंदिर में कुत्ते का भी खास महत्व है. जानकारों के मुताबिक पगला बाबा का एक वफादार कुत्ता हुआ करता था. जिसकी मौत होने के बाद उसे इसी मंदिर परिसर में स्थान दिया गया. जिसका भैरवनाथ के रूप में मूर्ति स्थापित किया गया. श्वानों द्वारा भगवान भोलेनाथ की पूजा करने वाला दृश्य, यहां आए श्रद्धालुओं को काफी भाता है.

गौरतलब है कि रांची के कोकर स्थित यह मंदिर राजधानी वासियों के लिए खासा महत्व रखता है. अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा करने पहुंचते हैं. वही श्रद्धालु बताते हैं कि इस मंदिर में हर मनोकामना पूर्ण होती है. प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह मंदिर परिसर कहीं ना कहीं पुराने भव्य रूप को खोता जा रहा है.

रांचीः सावन में सोमवारी का खासा महत्व होता है. श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ के मंदिर में माथा टेकने पहुंच रहे हैं. राजधानी के कोकर स्थित भोलेनाथ के मुक्तेश्वर धाम में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. सभी अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मुक्तेश्वर धाम मंदिर और पगला बाबा आश्रम पहुंचते हैं. मंदिर का इतिहास, इसकी खासियत को बयां करता है.

देखें पूरी खबर

क्यों कहा जाता है इस मंदिर को पगला बाबा आश्रम

मंदिर के पूजारी और यहां रहने वाले लोग बताते हैं कि आज से सैकड़ों साल पहले बंगाल के रहने वाले पंचानंद मित्र नाम के शख्स ने इस मंदिर परिसर में साधना की थी. पंचानन मित्र पेशे से इंजीनियर हुआ करते थे और बंगाल के रहने वाले थे. लेकिन कम उम्र में ही उन्होंने परिवारिक मोह का त्याग कर ईश्वर की आराधना में अपने जीवन को समर्पित कर दिया. इसी मंदिर में बने एक गुफा में पंचानंद मित्र ने साधना की और पगला बाबा के नाम से विख्यात हुए. धीरे-धीरे वह बड़े तांत्रिक, तंत्र मंत्र के ज्ञानी, अध्यात्म शक्तियों से पूर्ण और ज्योतिषाचार्य के रूप में भी प्रचलित हुए. पंचानद मित्र उर्फ पगला बाबा के साथ अरमेश्वरी देवी उर्फ लखी गांगुली, साधिका कल्याणी देवी उर्फ कल्याणी भट्टाचार्य और विमल मोहन भट्टाचार्य उर्फ विमल दादू का भी इस मंदिर के निर्माण में काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

रांची से संवाददाता हितेश कुमार चौधरी

कई रूपों भोलेनाथ के मंदिर है स्थापित

इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ के कई रूपों का वास है. जानकारों के मुताबिक मुक्तेश्वर का रूप, महामृत्युंजय का रूप, शांतिनाथ का रूप, मुक्तिनाथ का रूप, गौरीनाथ का रूप, गोपीनाथ का रूप, परेश नाथ का रूप, ब्रह्मेश्वर, ब्रह्म विदेश्वर, रुदेश्वर, भद्रेश्वर विजेश्वर सहित भगवान भोलेनाथ के कई रूपों के मंदिर यहां पर स्थापित किए गए हैं. मंदिर में बना कुंड का जल पूरे देश में प्रचलित है और यहां का जल महाराष्ट्र, गुजरात सहित देश के कई जिलों के श्रद्धालु लेकर अपने घर की सुख शांति के लिए उपयोग करते हैं. लेकिन अब कुंड की देखरेख नहीं होने के कारण यहां का जल दूषित हो रहा है.

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मंदिर में स्वान भी करते है भगवान भोले की पूजा

इस मंदिर में कुत्ते का भी खास महत्व है. जानकारों के मुताबिक पगला बाबा का एक वफादार कुत्ता हुआ करता था. जिसकी मौत होने के बाद उसे इसी मंदिर परिसर में स्थान दिया गया. जिसका भैरवनाथ के रूप में मूर्ति स्थापित किया गया. श्वानों द्वारा भगवान भोलेनाथ की पूजा करने वाला दृश्य, यहां आए श्रद्धालुओं को काफी भाता है.

गौरतलब है कि रांची के कोकर स्थित यह मंदिर राजधानी वासियों के लिए खासा महत्व रखता है. अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा करने पहुंचते हैं. वही श्रद्धालु बताते हैं कि इस मंदिर में हर मनोकामना पूर्ण होती है. प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह मंदिर परिसर कहीं ना कहीं पुराने भव्य रूप को खोता जा रहा है.

Intro:सावन में सोमवारी का खासा महत्व होता है श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ के मंदिर में माथा टेकने पहुंचते हैं। इसी को लेकर राजधानी के कोकर स्थित भोलेनाथ का मंदिर मुक्तेश्वर धाम में भी श्रद्धालुओं की भीड़ होती है और अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए मुक्तेश्वर धाम मंदिर व पगला बाबा आश्रम पहुंचते हैं। इसी को लेकर हमने आज इस मंदिर के इतिहास को जानने की कोशिश की आखिर किस इतिहास के साथ इस मंदिर का हुआ था स्थापना।


Body:क्यों कहा जाता है इस मंदिर को पगला बाबा आश्रम। मंदिर के लोग बताते हैं कि आज से सैकड़ो वर्ष पहले बंगाल के रहने वाले पंचानंद मित्र नाम के शख्स ने इस मंदिर परिसर में साधना की थी। पंचानन मित्र पेशे से इंजीनियर हुआ करते थे और वह बंगाल के रहने वाले थे, लेकिन अल्प आयु में ही उन्होंने परिवारिक मोह को त्याग ईश्वर की आराधना में अपने जीवन को समर्पित कर दिया। इसी मंदिर में बने एक गुफा में पंचानंद मित्र ने साधना की और पगला बाबा के नाम से विख्यात हुए। धीरे-धीरे उनकी पहचान बड़े तांत्रिक, तंत्र मंत्र के ज्ञानी,अध्यात्म शक्तियों से पूर्ण और ज्योतिषाचार्य के रूप में भी प्रचलित हुए। पंचानद मित्र उर्फ पगला बाबा के साथ अरमेश्वरी देवी उर्फ लखी गांगुली, साधिका कल्याणी देवी उर्फ कल्याणी भट्टाचार्य और विमल मोहन भट्टाचार्य उर्फ विमल दादू का भी इस मंदिर के निर्माण में काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ के कई रूपों का वास है जानकारों के मुताबिक मुक्तेश्वर का रूप, महामृत्युंजय का रूप, शांतिनाथ का रूप, मुक्तिनाथ का रूप, गौरीनाथ का रूप, गोपीनाथ का रूप, परेशनाथ का रूप, ब्रह्मेश्वर, ब्रह्म विदेश्वर, रुदेश्वर, भद्रेश्वर विजेश्वर सहित भगवान भोलेनाथ के कई रूपों के मंदिर यहां पर स्थापित किए गए हैं। मंदिर में बना कुंड का जल पूरे देश में प्रचलित है और यहां का जल महाराष्ट्र,गुजरात शहीद देश के कई जिलों के श्रद्धालु लेकर अपने घर की सुख शांति के लिए उपयोग करते हैं। लेकिन अब कुंड की देखरेख नहीं होने के कारण यहां का जल दूषित हो रहा है।


Conclusion:इस मंदिर में कुत्ते का भी खास महत्व है। जानकारों के मुताबिक पगला बाबा का एक वफादार कुत्ता हुआ करता था जिसकी मौत होने के बाद उसे इसी मंदिर परिसर में स्थान दिया गया था जिसका भैरवनाथ के रूप में मूर्ति का स्थापना किया गया है।श्वानों द्वारा भगवान भोलेनाथ का पूजा करने वाला दृश्य यहां आए श्रद्धालुओं को काफी भाता है। गौरतलब है कि रांची के कोकर स्थित यह मंदिर राजधानी वासियों के लिए खासा महत्व रखता है और अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा करने पहुंचते हैं वही श्रद्धालु बताते हैं कि यह मंदिर हमारी हर मनोकामना को पूर्ण करता है प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह मंदिर परिसर कहीं ना कहीं पुराने भव्य रूप को खोता जा रहा है। बाइट- प्रदीप कुमार,मंदिर के संचालक। बाइट- पुजारी बाइट- श्रद्धालु।
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