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हाईकोर्ट के लाल बिल्डिंग की बदौलत दशकों गुलजार रहा डोरंडा का इलाका, कब से धुर्वा के नये ग्रीन बिल्डिंग में होगा न्यायिक कार्य

अब डोरंडा स्थिति झारखंड हाईकोर्ट का लाल बिल्डिंग न्यायिक व्यवस्था के इतिहास के पन्नों का हिस्सा बन गया है. 24 मई 2023 की शाम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के हाथों धुर्वा में नवनिर्मित देश के सबसे बड़े हाईकोर्ट भवन के उद्गाटन के बाद न्यायिक व्यवस्था की नई इबारत लिखी जाएगी. झारखंड की न्यायिक व्यवस्था के लिए यह दिन हमेशा यादगार रहेगा.

Old Jharkhand High Court
झारखंड हाईकोर्ट
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Published : May 24, 2023, 4:44 PM IST

रांची: झारखंड हाईकोर्ट का पुराना लाल भवन अब इतिहास का हिस्सा बन गया है. एक दौर था जब न्याय के इस भवन के पास से गुजरते वक्त गाड़ियों के हॉर्न साइलेंट हो जाया करते थे. मुख्य सड़क के दोनों ओर पार्किंग में व्यवस्थित तरीके से गाड़ियां लगी रहती थीं. इसी भवन के एक कोने पर राजद सुप्रीमो लालू यादव की पसंदीदा भोला की लिट्टी की दुकान पर दिनभर भीड़ लगी रहती थी. इंसाफ के इस मंदिर में आने वाले लोग बिल्डिंग के पीछे स्थित मार्केट में जलपान के अलावा जरूरी खरीददारी भी कर लिया करते थे. पास में ही नेपाल हाउस यानी सचिवालय भवन होने की वजह से दूसरे जिलों से आने वाले लोग अपने दूसरे कार्य भी निपटा लिया करते थे.

ये भी पढ़ें- झारखंड में बना है देश का सबसे बड़ा हाईकोर्ट, राष्ट्रपति करेंगी उद्घाटन, सुविधाओं और खासियत की है भरमार

मेन रोड से ओवरब्रिज पार करते ही देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की आमदकद प्रतिमा के दीदार के बाद आगे बढ़ने पर संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेदकर की आदमकद प्रतिमा पुराने हाईकोर्ट भवन के प्रति न्याय की उम्मीद को पुख्ता करती थी. लेकिन 19 मई के बाद इस इलाके की रौनक फीकी पड़ गई है. नियमित न्यायिक कार्य बंद हो गये हैं. हाईकोर्ट में ग्रीष्मावकाश हो चुका है. हालांकि इस बीच 8 दिन वेकेशन बेंच में सुनवाई होगी. यहां 23 मई के बाद अब सिर्फ 26 मई, 30 मई, 31 मई, 2 जून, 6 जून, 7 जून और 9 जून को सुनवाई होगी. इसके बाद धुर्वा में नवनिर्मित ग्रीन बिल्डिंग में नियमित सुनवाई शुरू हो जाएगी.

गौरवशाली रहा है पुराने लाल भवन का इतिहास: साल 2000 में झारखंड राज्य बनने से पहले एकीकृत बिहार के जमाने में 6 मार्च 1972 को यह बिल्डिंग सुर्खियों में आया था. यहां पटना उच्च न्यायालय के सर्किट बेंच की स्थापना हुई थी. फिर छह साल बाद 8 अप्रैल 1976 को सर्किट बेंच को स्थायी पीठ बनाया गया था. इसके बनने से बिहार के दक्षिणी हिस्से में रहने वाले लोगों को पटना हाईकोर्ट जाने से राहत मिल गई थी. 15 नवंबर 2000 को अलग राज्य बनने के बाद इसको झारखंड उच्च न्यायलय बनाया गया. करीब पांच दशक से ज्यादा समय तक इस बिल्डिंग में मौजूद कोर्ट रूम से लोगों को न्याय मिला. राज्य बनने के बाद जस्टिस विनोद कुमार गुप्ता झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनाए गये. इसके बाद जस्टिस पीके बालासुब्रमण्यन, अल्तमश करीब, एन दिनाकर, एम करपगा विनयागम, ज्ञान सुधा मिश्रा, भगवती प्रसाद, पीसी टाटिया, आर भानुमति, वीरेंद्र सिंह, प्रदीप कुमार मोहंती, अनिरूद्ध बोस और डॉ रवि रंजन ने इस पद को सुशोभित किया. जस्टिस संजय कुमार मिश्रा 14वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा दे रहे हैं.

हाईकोर्ट ने लिए कई बड़े फैसले: साल 2001 से अबतक झारखंड हाईकोर्ट ने लाल बिल्डिंग ने कई बड़े फैसले सुनाए. नियोजन नीति, स्थानीय नीति, संविधा कर्मियों के नियमितीकरण, कोरोना काल में अस्पतालों के कामकाज, नक्शा पास करने में गड़बड़ी, धनबाद के आशीर्वाद अपार्टमेंट अग्नीकांड में 14 लोगों की मौत, डायन बिसाही के नाम पर हत्याएं, रांची-टाटा रोड निर्माण में विलंब, धनबाद के जिला जज की मौत, देवघर रोपवा हादसा और कानून व्यवस्था पर इस कोर्ट भवन से सरकार और प्रशासन को कई दिशा-निर्देश मिले. कई मौकों पर प्रशासन को फटकार भी लगी. बिजली और पानी की किल्लतों पर भी इस कोर्ट ने प्रशासन को उसकी जिम्मेदारियों का एहसास कराया.

रांची: झारखंड हाईकोर्ट का पुराना लाल भवन अब इतिहास का हिस्सा बन गया है. एक दौर था जब न्याय के इस भवन के पास से गुजरते वक्त गाड़ियों के हॉर्न साइलेंट हो जाया करते थे. मुख्य सड़क के दोनों ओर पार्किंग में व्यवस्थित तरीके से गाड़ियां लगी रहती थीं. इसी भवन के एक कोने पर राजद सुप्रीमो लालू यादव की पसंदीदा भोला की लिट्टी की दुकान पर दिनभर भीड़ लगी रहती थी. इंसाफ के इस मंदिर में आने वाले लोग बिल्डिंग के पीछे स्थित मार्केट में जलपान के अलावा जरूरी खरीददारी भी कर लिया करते थे. पास में ही नेपाल हाउस यानी सचिवालय भवन होने की वजह से दूसरे जिलों से आने वाले लोग अपने दूसरे कार्य भी निपटा लिया करते थे.

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मेन रोड से ओवरब्रिज पार करते ही देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की आमदकद प्रतिमा के दीदार के बाद आगे बढ़ने पर संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेदकर की आदमकद प्रतिमा पुराने हाईकोर्ट भवन के प्रति न्याय की उम्मीद को पुख्ता करती थी. लेकिन 19 मई के बाद इस इलाके की रौनक फीकी पड़ गई है. नियमित न्यायिक कार्य बंद हो गये हैं. हाईकोर्ट में ग्रीष्मावकाश हो चुका है. हालांकि इस बीच 8 दिन वेकेशन बेंच में सुनवाई होगी. यहां 23 मई के बाद अब सिर्फ 26 मई, 30 मई, 31 मई, 2 जून, 6 जून, 7 जून और 9 जून को सुनवाई होगी. इसके बाद धुर्वा में नवनिर्मित ग्रीन बिल्डिंग में नियमित सुनवाई शुरू हो जाएगी.

गौरवशाली रहा है पुराने लाल भवन का इतिहास: साल 2000 में झारखंड राज्य बनने से पहले एकीकृत बिहार के जमाने में 6 मार्च 1972 को यह बिल्डिंग सुर्खियों में आया था. यहां पटना उच्च न्यायालय के सर्किट बेंच की स्थापना हुई थी. फिर छह साल बाद 8 अप्रैल 1976 को सर्किट बेंच को स्थायी पीठ बनाया गया था. इसके बनने से बिहार के दक्षिणी हिस्से में रहने वाले लोगों को पटना हाईकोर्ट जाने से राहत मिल गई थी. 15 नवंबर 2000 को अलग राज्य बनने के बाद इसको झारखंड उच्च न्यायलय बनाया गया. करीब पांच दशक से ज्यादा समय तक इस बिल्डिंग में मौजूद कोर्ट रूम से लोगों को न्याय मिला. राज्य बनने के बाद जस्टिस विनोद कुमार गुप्ता झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनाए गये. इसके बाद जस्टिस पीके बालासुब्रमण्यन, अल्तमश करीब, एन दिनाकर, एम करपगा विनयागम, ज्ञान सुधा मिश्रा, भगवती प्रसाद, पीसी टाटिया, आर भानुमति, वीरेंद्र सिंह, प्रदीप कुमार मोहंती, अनिरूद्ध बोस और डॉ रवि रंजन ने इस पद को सुशोभित किया. जस्टिस संजय कुमार मिश्रा 14वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा दे रहे हैं.

हाईकोर्ट ने लिए कई बड़े फैसले: साल 2001 से अबतक झारखंड हाईकोर्ट ने लाल बिल्डिंग ने कई बड़े फैसले सुनाए. नियोजन नीति, स्थानीय नीति, संविधा कर्मियों के नियमितीकरण, कोरोना काल में अस्पतालों के कामकाज, नक्शा पास करने में गड़बड़ी, धनबाद के आशीर्वाद अपार्टमेंट अग्नीकांड में 14 लोगों की मौत, डायन बिसाही के नाम पर हत्याएं, रांची-टाटा रोड निर्माण में विलंब, धनबाद के जिला जज की मौत, देवघर रोपवा हादसा और कानून व्यवस्था पर इस कोर्ट भवन से सरकार और प्रशासन को कई दिशा-निर्देश मिले. कई मौकों पर प्रशासन को फटकार भी लगी. बिजली और पानी की किल्लतों पर भी इस कोर्ट ने प्रशासन को उसकी जिम्मेदारियों का एहसास कराया.

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